मनक़बत हज़रत अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु
लब-ए-फ़लक से उतरती निशानियों में अली
हमें मिला है मुक़द्दस कहानियों में अली
लुआब डाल के अपना मिला रहा है मिठास
शराब-ख़ाना-ए-कौसर के पानीयों में अली
वो ज़ेर-ए-ख़ाक कभी मुन्तशिर नहीं होगा
है जिस बदन के लहू की रवानियों में अली
हजर, शजर, हों बशर हों कि फिर नुजूम-ओ-क़मर
ज़मीनीयों में अली, आसमानीयों में अली
ज़ईफ़ सोच की आंखों में डाल कर आंखें
रजज़ सुनाती हुई सब जवानीयों में अली
पुल-ए-सिरात पे तक़सीम कर रहा है नजात
ग़म-ए-हुसैन की महफ़िल के बानीयों में अली
हिरा से ख़ुम तक सुना काइनात ने अब्बास
मेरे रसूल की मुअजिज़ बयानियों में अली
हैदर अब्बास
इमाम हुसैन की शान में शायरी
मआमूरा-ए-अरब से अज़म के दियार तक
कोई पहुंच सका न अली के वक़ार तक
औलाद-ए-फ़ातिमा से तवस्सुल किए बग़ैर
कोई पहुंच न पाएगा परवरदिगार तक
क्या मौसमों के काफ़िले बे-इज़्न हैं रवां?
ताबे हैं सब अली के, ख़िज़ां से बहार तक
आदम से कह रहा है ख़ुदा — पंजतन हैं ये
रखते हैं ये रसाई मेरे इख़्तियार तक
ला सैफ़ व ला फता का तक़द्दुस लिए हुए
आती है दाद अर्श से दलदल सवार तक
महफ़िल में ज़िक्र-ए-आल-ए-मुहम्मद के फैज़ से
गर्दन मेरी पहुंच गई फूलों के हार तक
ये सरफ़राज़ियां तो मुक़द्दर की बात है
मैसम अली के इश्क़ में आया है दार तक
अब्बास मांगता हूं दुआएं नमाज़ में
पा लूं रसाई राह-ए-नजफ़ के ग़ुबार तक
हैदर अब्बास
कर्बला शायरी| मुहर्रम शायरी हिंदी में 2025
हमारा नाम अली है वला के लहजे में
कलाम हमने किया है ख़ुदा के लहजे में
पहन के आयतें लब पर हैं बोलती ज़हरा
हसन, हुसैन, अली, मुस्तफ़ा के लहजे में
ज़मीरे “कुन” की बलागत है मौजज़न इस में
अजब कमाल है ख़ैरुन्निसा के लहजे में
मदद को आएगा उम्मुल बनीन का बेटा
अलम के पास पुकारो वफ़ा के लहजे में
है मेरे सामने जब भी यज़ीदियत आए
मैं हमकलाम हुआ कर्बला के लहजे में
सख़ी हुसैन ने बाब-ए-क़ुबूल खोल दिया
भरी हुई थी उदासी दुआ के लहजे में
अबू तराब को मौला बता रहे हैं नबी
ख़ुमार-ए-सूरह-ए-यासीन मिला के लहजे में
बंटा हुआ कई टुकड़ों में इज्तेहाद में मिला
थी ज़रब-ए-तैग़-ए-अली मुझतबा के लहजे में
ज़माना पूछ रहा था कि बरसर-ए-दरबार
ये कौन बोल रहा है ख़ुदा के लहजे में
सफ़-ए-अज़ा पे मैं पढ़ता हूं मर्सिया अब्बास
ग़म-ए-हुसैन के दरिया बहा के लहजे में
हैदर अब्बास
हैदर अली बिन अबी तालिब की शान में कसीदे
लश्कर-ए-अहमद, मुख़्तार में हैदर हैदर
हमने देखा है हर एक वार में हैदर हैदर
घर से निकलो तो ज़रूरी है कि कंदा रखो
पीच-ए-जामा, ख़म-ए-दस्तार में हैदर हैदर
सारे अस्हाब दम-ए-फ़त्ह सुना करते थे
सौत-ए-जिबरील-ए-तरहदार में हैदर हैदर
क़ल्ब-ए-सिफ्फ़ीन में अब्बास जो उतरे इक बार
फिर तो गूंजा सफ़-ए-अग़्यार में हैदर हैदर
सहन-ए-फ़िरदौस में बिखरी हुई ख़ुशबू की क़सम
जल्वा-गाह-ए-गुल-ओ-गुलज़ार में हैदर हैदर
तुम ज़बां काट भी दोगे तो सुनाई देगा
लहजा-ए-मैसम-ए-तम्मार में हैदर हैदर
रक़्स करता है मलंगों की ज़बानों पे सदा
लअल ओ तबरीज़ के दरबार में हैदर हैदर
भाग जाते हैं अब ओ जद्द की तरह सुनते ही
मेरे दुश्मन, मेरी ललकार में हैदर हैदर
अपने पिंदार को अब्बास जवां रखेगा
साहिब-ए-अस्र की सरकार में हैदर हैदर
हैदर अब्बास
अली का ज़िक्र करो बेहतरीन लफ़्ज़ों में - मौला अली की शान में शायरी
घुला रहेगा मुहज़्ज़ब यक़ीन लफ़्ज़ों में
अली का ज़िक्र करो बेहतरीन लफ़्ज़ों में
मेरी निजात के सारे चराग़ रौशन हैं
सना-ए-बिंते-नबी के अमीन लफ़्ज़ों में
मेरे नबी की हर एक बात बन गई क़ुरआन
अजीब मुअजज़े देखे मक़ीन लफ़्ज़ों में
कभी ख़िताब मुअम्मिल, कभी लक़ब यासीन
ख़ुदा ने नात कही है हुसैन लफ़्ज़ों में
ख़ुदा ने भेजना चाहा जो पंजतन पे सलाम
फ़लक से आयतें उतरीं मतीन लफ़्ज़ों में
तमाम शेर किए हैं सुपुर्द-ए-मद्ह-ए-अली
कंवल तराश रही है “ज़मीन” लफ़्ज़ों में
रमूज़-ए-आय-ए-बलिग़ अता किए हमको
ख़तीब-ए-मिंबर-ए-ख़ुम ने ज़हीन लफ़्ज़ों में
सिनां की नोक पे मेरे हुसैन ने अब्बास
बयां किया है मुहम्मद का दीन लफ़्ज़ों में
हैदर अब्बास
मुझे अली के क़सीदे की धुन बनानी थी - मौला अली की शान में कसीदे
Hazrat Ali Ki Shan Mein Qasida
अज़ा के साथ लहद में नमाज़ ले आया
क़ज़ा के बाद मैं उम्र-ए-दराज़ ले आया
मुझे बहिश्त में जाने से कौन रोकेगा
मैं एक दो नहीं चौदह जवाद ले आया
मुझे अली के क़सीदे की धुन बनानी थी
गला नजफ़ से, तो मशहद से साज़ ले आया
मैं चाहता था कि घर में ख़ुदा की रहमत हो
मैं ख़ाक-ए-पाए ग़ुरूर-ए-हिजाज़ ले आया
अयां है जिस से "सग-ए-कू-ए-शेर-ए-यज़दानम"
मैं लअल साईं के दर से वो राज़ ले आया
सफ़-ए-अज़ा पे ख़ुद आया था फ़ातिमा का पिसर
क़लम मेरे लिए "बंदा नवाज़" ले आया
दिए जलाने को आए हैं अंबिया हैं अब्बास
मैं बांटने को अलम पर नयाज़ ले आया
हैदर अब्बास
Hazrat Ali Manqabat In Hindi
ख़िज़ां के बाद चमन में बहार आएगी
मुझे यक़ीन है शब-ए-इंतज़ार आएगी
कभी न मिलने का मुझ से मुआहदा करने
वो एक बार नहीं बार-बार आएगी
वो जानती है तलातुम से खेलने का हुनर
मुझे यक़ीन है वो दरिया के पार आएगी
मैं तेरी दस्त-दराज़ी का मुअतक़िद हूं हवा!
मेरे चराग़ पे करने तु वार आएगी
अभी तो आंख में फैली है मुख़्तसर सी नमी
अभी तो गाल पे काजल की धार आएगी
बहा रहा हूं अरीज़े के रहमतों की नवेद
सबा की दोश पे हो कर सवार आएगी
सफ़ैद हो गई आंखें तो ज़िंदगी मेरी
लहू के दश्त में इक शब गुज़ार आएगी
अली के दर पे मुसल्सल झुके रहो अब्बास
यहीं से बख़्शिश-ए-परवरदिगार आएगी
हैदर अब्बास
मैं अहलेबैत की लिखता हूं मुनक़बत अब्बास - हज़रत अली की शान में मनकबत
हुनर मिला है कुछ ऐसा मुझे मदीने से
पहाड़ तोड़ता रहता हूं आबगीनें से
अली के नाम से रौशन है काएनात-ए-ख़ुदा
शुआ-ए-नूर निकलती है इस नगीने से
न कोई ज़अफ़ है दिल में न धड़कनें हैं मरीज़
मैं मातमी को लगाता हूं अपने सीने से
मैं जिब्रईल हूं मेरा वुजूद ख़लक़ हुआ
अली वली के मुक़द्दस तरीं पसीने से
ख़ुमार-ए-जज़्बा-ए-मैसम लहू में दौड़ता है
विलायतों की मुबारक शराब पीने से
अली के ज़िक्र से भर जाए नामा-ए-आमाल
हर एक सांस गुज़ारो कुछ इस क़रीने से
इसी लिए तो ये सर साल भर नहीं झुकता
जुड़ा हुआ हूं मैं शअबान के महीने से
ग़म-ए-हुसैन की दौलत हरीम-ए-दिल का ग़ुरूर
चराग़ आंख को हासिल है इस ख़ज़ीने से
मेरे हुसैन! मुझे ख़ौफ़ राहज़न का नहीं
कि मुनसलिक है मुसाफ़त तेरे सफ़ीने से
मैं अहलेबैत की लिखता हूं मुनक़बत अब्बास
मैं इस मुक़ाम पे पहुंचा विलाअ के ज़ीने से
हैदर अब्बास
अली ख़ैरुल-बशर हैं - हज़रत अली मनकबत
अली ख़ैरुल-बशर हैं
फ़ज़ाएल किस क़दर हैं
अली ख़ैरुल-बशर हैं
जहां पाए अली है
वहां सजदों में सर हैं
हसन! सारे मलाएक
तेरी दहलीज़ पर हैं
कमर पर रुख़्त बांधे
अबस मह्व-ए-सफ़र हैं
हबश पर है हुकूमत
अजब दरियूज़ा-गर हैं
रुख़-ए-अब्बास देखो
अली बार-ए-दिगर हैं
क़सम चौदा अदद की
बहत्तर मुअतबर हैं
सभी ज़हरा के दुश्मन
फ़ना के दोश पर हैं
पढ़ी नाद-ए-अली है
हवादिस बे-ख़बर हैं
करम अब्बास पर है
मनाक़िब उम्र भर हैं
हैदर अब्बास
रजब की तेरह की शान में मनक़बत
✍️ शायान अब्बास अलीपुरी
रजब की तेरह अजीब मंज़र, ख़ुदा का है घर में क्या बताऊं
हुआ है दीवार में नया दर, अली हैं अंदर में क्या बताऊं
ये कैसी ख़ुशबू, कहां से आए हो, इक मलक़ ने मलक़ से पूछा
ज़मीं पे जश्न-ए-अली की थी, हर फ़िज़ा मुअत्तर, में क्या बताऊं
है ज़ेहन ना-क़िस, ज़ुबां है क़ासिर, अली की मिदह्त बयां हो कैसे
वो नूर-पैकर, वो रूह-ए-क़ुरआं, वो इल्म का दर, में क्या बताऊं
रसूल हाथों पे लेके मौला अली को अपने चचा से बोले
पढ़ी हैं चारों किताबें हैदर ने कैसे फ़रफ़र, में क्या बताऊं
सलाहियत ही कहां है ज़ेहनों में, शान-ए-मौला अली को समझें
ख़ुदा की मर्ज़ी ख़रीदी हैदर ने नफ़्स देकर, में क्या बताऊं
अली का दुश्मन बता रहा है, ये ज़ुल्फ़िकार-ए-अली के तेवर
चली अदू पर तो तन से कटकर, हवा में थे सर, में क्या बताऊं
ज़ुबां पे "बख्खिन" की थीं सदाएं, दिलों में बुग़ज़-ए-अली के शोले
ग़दीर-ए-ख़ुम में चले हैं सीनों पे कितने ख़ंजर, में क्या बताऊं
सुना है इश्क़-ए-अली में नौक-ए-सना पे चढ़कर भी बोलते हैं
ज़ुबां कटाकर किया है मैसम ने ज़िक्र-ए-हैदर, में क्या बताऊं
क़सीदा शायान पढ़ रहा था, फ़रिश्ते ख़ुश होकर सुन रहे थे
अली के नारों से बन गया था जनां का मंज़र, में क्या बताऊं
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