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नात-ए-रसूल-ए-खुदा नात शरीफ अच्छी-अच्छी नात शरीफ Naat Sharif Lyrics In Hindi

नात-ए-रसूल-ए-ख़ुदा

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क्यों महकें न हर पल दर-व-दीवार-ए-मदीना ?!
है “ इत्र ” से बढकर, मेरे आक़ा/ अह़मद का पसीना!!

हर राह में, हर कूचा में, बे-मिस्ल है ख़ुश्बू!!
“ फ़िरदौस ” का है बाग़, के/ कि, गूल्ज़ार-ए-मदीना!?!

क्यों फ़िक्र मुझे, रोज़-ए-क़यामत की हो, वाइज़/ नासेह़/ मुल्ला/ रामा ?!
हैं मेरे मददगार जो साक़ी-ए-मदीना!!

साह़िल से बहुत दूर हूँ, तूफ़ाँ में घिरा हूँ!!
“ लिल्लाह ”!, मदद कीजिए!, डूबे न सफ़ीना!!

आक़ा हो नज़र मुझ पे भी, मैं भी हूँ तुम्हारा!!
हो फ़ज़्ल-व-करम मुझ पे भी,ऐ शाह-ए-मदीना!!

आक़ा-ए-जहाँ!,अपने नगर, मुझ को बुलाऐँ!!
क़िस्मत से कभी देखूँ मैं भी,” शह्र-ए-मदीना!!

इक लम्ह़ा सुकूँ मुझ को नहीं,रह़्मत-ए-आलम!?!
ज़ख़्मों से,मसाइब के,भरा है,मेरा सीना!!

दुन्या का ज़र-व-माल नहीं मक़्सद-ए-हस्ती!!
मक़्सद है मेरा,“ इश्क-व-मुह़ब्बत का ख़ज़ीना!!

त़ालिब नहीं दुन्या की मुह़ब्बत का, किसी त़ौर!!
ह़ासिल हो मुझे, इश्क-ए-ह़रम, इश्क-ए-मदीना!!

“ उम्मत ” के हर इक फ़र्द के दिल में हो “ मुह़ब्बत ”!!
हो दूर हर इक दिल से ह़सद,दूर हो कीना!!

दींदार-ए-मदीना के लिए ये भी है बे-चैन!!
देखेगा कभी,“ राम/ दास/ क़ैस/फ़ैज़/ मीर/ जोश/ नाथ भी,क्या?,शह्र-ए-मदीना!!
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इस त़वील " नात " के दीगर अश्आर फिर कभी पेश किए जायेंगे,इन्शा-अल्लाह-व-ईश्वर!!
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रामदास प्रेमी राजकुमार जानी दिलीपकपूर इन्सान प्रेमनगरी, जावेद अशरफ़ क़ैस फ़ैज़ अकबराबादी मन्ज़िल,हेड्-मास्टर अब्दुल-जब्बार ग़नी ह़ज़ीँ गली, आनन्द भवन रोड,राऊरकेला,ओडीशा,इन्डिया!

नात-ए-रसूल-ए-खुदा नात शरीफ अच्छी-अच्छी नात शरीफ Naat Sharif Lyrics In Hindi

नात-ए-रसूल-ए-खुदा
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जदीद,मुन्फरिद, बेहतरीन कलाम-ए-जावेद अशरफ़ फैज

नात शरीफ हिंदी में

हर वक्त रू-ए-शाह-ए-मदीना नजर में है!
खुश हूँ, कि,आज " काबे-का-काबा" नजर में है!!

सूनी दिखाई देती नहीं राह-ए-आखिरत!
"इस्लाम " की बरात का " दुल्हा " नजर में है!!

हासिल है मुझको तल्अत-ए-रुख्सार-ए-शाह-ए-दीन!
इन्सानियत/ इस्लामियत की शब का सवेरा नजर में है!!

क्यों, यारो!, मुझको फिक्र हो, महशर की धूप की ?!
खुश-बख्त हूँ, वो गेसूओं वाला नज़र में है!!

तारीकियों का क्यों?, मेरी शब में रहे वजूद!
" रू-ए-मुहम्मदी" का " उजाला " नजर में है!!

हूँ दूर!,फिर भी दीद से महरूम मैं नहीं!
हर पल,मेरे हुजूर का जलवा नजर में है!!
खिलते हैं जिस में रोज ही " गुलहाये-ए-आखिरत"!
वो नव-बहार-ए-गुलशन -ए-बतहा नजर में है!!
जिस में निहां है आगहि-ए-जात-ए-मुस्तफा!
फितरत/ कुदरत का वो लतीफे इशारा नजर में है!!
दिल में हो क्यों न अजमत-ए-सरकार-ए-दो-जहाँ!?!
तख्लीक-ए-कायनात का/ की मन्शा नजर में है!!
आमाल -ए-सालिहात से गाफ़िल रहूँ मैं क्यों!?
दीन-ए-शह-ए-जमन का तकाजा नजर में है!!

है ये मदीना मेरे लिए बाअस-ए-सुकून!!
हर पल!, जनाब-ए-शैख/शेख!,मदीना नजर में है!!

इन्सां ( انساں پریم نگری),मदीना-निवासी हूँ!!
हर लम्हा इस लिए मेरा आका नजर में है!!

बे-शक!, मैं खुश-नसीब हूँ, हर वक्त, हर घड़ी,
" जावेद कैस फैज "!," मदीना " नजर में है!!

ऐ मीर-ए-कारवां!, मैं मुसाफिर गरीब हूँ!
फिर भी,जनाब!," मन्जिल-ए-उकबा " नजर में है!!

है बाअस-ए-सुकून-ए-जिगर ये मदीना!, हाँ!
यारो!, हर एक लम्हा " मदीना " नजर में है!!

हर एक लम्हा अब/ बस है " मुहम्मद " निगाह में!
" मूसा" निगाह में ह,न " ईसा" नजर में है!!
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नोट :- इस तवील, जदीद,मुन्फरिद, बेहतरीन नात-ए-रसूल-ए-खुदा के दीगर शेर-व-सुखन आइंदा फिर कभी पेश किए जायेंगे, इन्शा-अल्लाह!
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शायर-ए-इस्लाम, हजरत-ए-अल्लामा जावेद अशरफ़ कैस फैज अकबराबादी ,इन्सान प्रेमनगरी हाऊस, डॉक्टर रामचन्द्र दास प्रेमी राजकुमार जानी दिलीपकुमार कपूर राज चंडीगढ़ी कम्पाऊनड, खदीजा नरसिंग होम, रांची हिल साईड,इमामबाड़ा रोड, रांची-834001,झारखण्ड, इन्डिया!

नात शरीफ़ हिन्दी में लिखी हुई Naat Paak In Hindi

नात-ए-रसूल-ए-खुदा
तुम्हारी मेहरबानी हो गयी है !
सरल अब जिन्दगानी हो गयी है !

मुहम्मद मुस्तफा सारे जहाँ में,
तुम्हारी हुक्मरानी हो गयी है !

बेहतरीन नात

बुलंदी पर है मेरा भी मुकद्दर !
" नबी" की मेहरबानी हो गयी है !

मुहब्बत हो गयी है " मुस्तफा " से !
ये निस्बत जाविदानी हो गयी है !

जनाब-ए-मुस्तफा आप आ गए हैं !
फजा कितनी सुहानी हो गयी है !

डॉकटर रामचन्द्र दास प्रेमी राज चंडी गढी,
द्वारा डॉकटर इनसान प्रेमनगरी,डॉकटर जावेद अशरफ़ कैस फैज अकबराबादी मंजिल,डॉकटर खदीजा नरसिंग होम,रांची हिल साईड,इमामबाड़ा रोड राँची-834001

नात शरीफ हिन्दी में लिखी हुई

जदीद-व-मुन्फरिद नात शरीफ हिंदी में पढ़े

खास वज्न-व-बह्र के तेहत/ साथ
" दिवानी" भी " सयानी " हो गयी है!
" मुहम्मद " की " दिवानी " हो गयी है!!
" जवाँ " को छोड़ कर " नब्वी" बनी है!
ये " जोगन " भी " सयानी " हो गयी है!
" नबी " को देख कर शर्म-व-हया से!
" दिवानी ", " पानी-पानी " हो गयी है!!
" गुलाम-ए-मुस्तफा" मैं बन गया हूँ!
खुदा की मेह्रबानी/ मेहरबानी हो गयी है!!
" मुहम्मद " ही का " शैदाई " हूँ मैं भी!
" नबी " की मेह्रबानी/ मेहरबानी हो गयी है!!
" फिदाई-ए-नबी " मैं हो गया हूँ!!
सहीह/ सही अपनी जवानी हो गयी है!!
इस जदीद-व-मुन्फरिद, तवील, बेहतरीन नात-ए-रसूल-ए-रब के दीगर शेर-व-सुखन आइंदा फिर कभी पेश किए जायेंगे, इन्शा-अल्लाह!
शायर-ए-दीन-ए-हक/मज्हब-ए-इस्लाम " रामचन्द्र नानक दास जगन्नाथ ओम-साईं-राम-दास प्रेमी राजकुमार जानी दिलीपकुमार कपूर, द्वारा डॉक्टर जावेद अशरफ़ कैस फैज अकबराबादी, इन्सान प्रेमनगरी हाऊस, खदीजा नरसिंग होम, रांची हिल साईड,इमामबाड़ा रोड, रांची-834001,झारखण्ड, इन्डिया

नात-ए-रसूल-ए-ख़ुदा ( बेहतरीन )

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" नबी " से " इश्क " जब हुआ, ह़यात ये / ह़यात भी, संवर गयी!!
उन्हीं को देखता रहा, जिधर मेरी / मिरी नज़र गयी!!

" जिगर " को " नूर " दे गयी, " नज़र " में " रंग " भर गयी!!
वो " मुस्तफ़ा " की " बात " थी, " दिलों " में जो उतर गयी!!

" बग़ैर-ए-इश्क-ए-मुस्त़फ़ा ", " ह़यात " बे-असर " गयी!!
" नबी " से " प्यार " जब हुआ, ये " ज़िन्दगी " निखर गयी!!

" बशर " को " दर्स " दे गयी, " जिगर " में " नूर " भर गयी!!
हुई " निगाह-ए-मुस्त़फ़ा / मुज्तबा, ह़यात ये संवर गयी!!

थी " जुस्तजू-ए-मुस्त़फ़ा / मुज्तबा ", " तु जानता था, ऐ ख़ुदा "!!
" वो राहबर " हुआ " अत़ा ", " तलाश-ए-राहबर " गयी!!

था " पास-ए-गुल्शन-ए-नबी ", तो " ह़ुक्म " कैसे टालती!?!
" जनाब-ए-मन "!, " वो " थी " सबा ", के/ कि, झूम कर, उधर गयी!!

" मैं " आज " मुज़्तरब/ मुज़्तरिब/ मुज़्मह़िल / हुआ, " दयार-ए-मुस्त़फ़ा/ मुज्तबा " चला!!
रविश-रविश, निखर गयी, डगर-डगर संवर गयी!!

" वो मुस्त़फ़ा/ मुज्तबा, जिधर गये, सभी चले उसी त़रफ़!!
के/कि, यारो!, " कायनात " भी, ये जान/मान लो, उधर गयी!!

" ख़ेरद / ख़िरद- जुनूँ " की बात क्या!?, " नबी " मिले!, " सुकूँ " मिला!!
हुई " निगाह-ए-मुस्त़फ़ा/ मुज्तबा"!, ये ज़िन्दगी संवर/ निखर गयी!!

मेरी/मिरी ज़बाँ पे " मरह़बा "है!, " ऐ बेलाल/ बिलाल-ए-मुस्त़फ़ा/ मोतबर!!
तेरी/तिरी " ह़यात ", " इश्क-ए-मुस्त़फ़ा/ मुज्तबा " ही में गुज़र गयी!!

ये देखा हम ने बारहा!, " मरीज़- शख़्सियत " थी जो!
" शिफ़ा " भी पाने के लिए, वो, आप के नगर गयी!!

" सुख़नवरी " में " इश्क-ए-मुस्त़फ़ा/ मुज्तबा " हुवा/ हुआ " शरीक " तो!
" सुख़नदान/ सुख़नत़राज़/ सुख़ननवाज़ "!, आप की ये " शायरी " निखर गयी!!

कही है " नात " जब से, इस क़दर ह़सीन-व-दिलनशीँ!!
है सच!, " सुख़नत़राज़ " की " सुख़नवरी " संवर गयी!!

कही " नबी " की शान में/ कही " नबी " के " इश्क" में ये " नात " शब को जाग कर!!
जनाब-ए-राम/ दास/ क़ैस/फ़ैज़/ प्रेमनगरी!, आप की ये " ज़ात " भी संवर/ निखर गयी!!

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इस त़वील " नात-शरीफ़ " के दीगर अश्आर फिर कभी पेश किए जायेंगे, इन्शा-अल्लाह-व-ईश्वर!!
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रामदास प्रेमी राजकुमार जानी दिलीप कपूर इन्सान प्रेमनगरी/ अब्दुल्लाह जावेद अशरफ़ क़ैस फ़ैज़ अकबराबादी, डाक्टर ख़दीजा नरसिंग-होम, एशियन डाईग्नोस्टिक्स सेन्टर, राँची-हिल्-साईड, इमामबाड़ा रोड, राँची, झारखण्ड, इन्डिया, एशिया!

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