इमाम हुसैन की शान में मनकबत कसीदा दुरुद ओ सलाम कर्बला मोहर्रम शायरी
या हुसैन!
हरगिज़ भी वो ग़ुलाम-ए-हबीब-ए-ख़ुदा नहीं
जिसका ग़म-ए-हुसैन से कुछ वास्ता नहीं
इब्ने अली के जैसा कोई सूरमा नहीं
तेग़ों के साए में भी जो दिल-बाख़्ता नहीं
आने को यूँ तो आए हैं आबिद बहुत मगर
सजदा किसी ने आप के जैसा किया नहीं
हो मिस्ल आप के जो महकदार या हुसैन
सहन-ए-चमन में गुल कोई ऐसा खिला नहीं
हर सू रवाँ है आज भी सिक्का हुसैन का
सिक्का यज़ीदियों का कहीं पर चला नहीं
यूँ तो शहीद लाखों हुए हैं यहाँ मगर
रुतबा किसी को आप के जैसा मिला नहीं
लरज़ा न भूखा प्यासा भी बातिल के सामने
मेरे हुसैन जैसा कोई दिल जला नहीं
जैसे हुए हो सुरख़रू शब्बीर जग में तुम
ताबिंदा ऐसा कोई सितारा हुआ नहीं
जब से दिखा है चाँद मुहर्रम का ऐ फ़राज़
किस की ज़बाँ पे ज़िक्र-ए-शहे कर्बला नहीं
✍ सरफ़राज़ हुसैन "फ़राज़"
पीपल साना, मुरादाबाद
इमाम हुसैन की शान में मोहर्रम कर्बला शायरी
इंसानियत हुसैन की आलम पे छा गई
राह-ए-निजात क्या है सबको बता गई
मज़लूमियत हुसैन की क्या क्या सिखा गई
सब्र ओ रज़ा का पाठ जहां को पढ़ा गई
राह-ए-ख़ुदा में जान लुटाने के शौक़ में
जन्नत मेरे हुसैन के हिस्से में आ गई
मिट्टी में मिल के रह गया उसका ग़ुरूर सब
ज़ैनब की आह ज़ुल्म-ए-सितमगर को ढा गई
नाज़िल अज़ाब कैसे न होता यज़ीद पर
असग़र की चीख़ अर्श-ए-इलाही हिला गई
मैदान-ए-कर्बला में वो शब्बीर की नमाज़
दुनिया को बंदगी का तरीक़ा बता गई
जाह ओ जलाल देख के अकबर का ऐ 'फ़राज़'
फ़ौज-ए-यज़ीद ख़ौफ़ से लरज़े में आ गई
✍ सर्फ़राज़ हुसैन 'फ़राज़'
मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश
मनक़बत – इमाम हुसैन की शान में मोहर्रम शायरी
(शहीदे कर्बला की याद में)
कितना अज़ीम तेरा घराना है ऐ हुसैन
तुझ पर निसार सारा ज़माना है ऐ हुसैन
नाना के दीन-ए-हक़ को बचाना है ऐ हुसैन
बचपन का अपने वादा निभाना है ऐ हुसैन
इस्लाम की बक़ा के लिए तुझ को शेर-ए-हक़
सजदे में अपने सर को कटाना है ऐ हुसैन
शिम्र-ए-लईन हो कि उमर इब्ने सअद हो
तेरी ही सिम्त सब का निशाना है ऐ हुसैन
सजदे में सर कटा के तुझे अपने ख़ून से
कर्बला की सरज़मीं को सजाना है ऐ हुसैन
जिस पर फ़िदा हुए हैं तेरे सारे जांनिसार
उस सरज़मीं का मान बढ़ाना है ऐ हुसैन
शैदा हैं जो भी तेरे, उन्हें देहर में 'फ़राज़'
ता उम्र तेरा सोग मनाना है ऐ हुसैन
✍ सर्फ़राज़ हुसैन 'फ़राज़' – पीपलसाना, मुरादाबाद
हज़रत इमाम हुसैन की शान में क़सीदा कर्बला शायरी
हर सिम्त यही होता है चर्चा हुसैन का
दुनिया में बे-नज़ीर है सजदा हुसैन का
क्यों कर न औज पर हो सितारा हुसैन का
मिस्ल-ए-क़मर चमकता है रोज़ा हुसैन का
शिम्र-ए-लईन का नाम भी लेता नहीं कोई
हर इक ज़बाँ पे अब भी है क़िस्सा हुसैन का
क्यों कर न रंग लाए दुआ उसकी मोमिनों
जिस ने दिया दुआ में वसीला हुसैन का
हम गामज़न हैं यूँ ही शह-ए-दीं की राह पर
ख़ुल्द-ए-बरीं को जाता है रस्ता हुसैन का
मैं क्या करूँगा ले के ज़माने की दौलतें
काफ़ी है मेरे वास्ते सदक़ा हुसैन का
देखा है जब से चाँद मुहर्रम का ऐ 'फ़राज़'
हर शख़्स पढ़ रहा है क़सीदा हुसैन का
✍ सर्फ़राज़ हुसैन 'फ़राज़', पीपलसाना, मुरादाबाद
इमाम-ए-हुसैन – मुहर्रम शायरी कर्बला शायरी
लब पे हक़, हाथ में तलवार है रण पर निकला
सानी-ए-हैदर-ए-क़र्रार है रण पर निकला
यूँ तो शब्बीर ने ईसार पे ईसार किया
करने अब आख़िरी ईसार है रण पर निकला
करना था हक़ भी अदा, रब की वफ़ादारी का
करना था रब का भी दीदार है रण पर निकला
इसलिए आँखों में तस्वीर-ए-अली अकबर है
तोड़ कर लाशों की दीवार है रण पर निकला
सुर्ख़ियों ने ये दिखाया है लहू से छप कर
आयतों से भरा अख़बार है रण पर निकला
उमर अब क्यों न हो सलाम की लंबी, नादिर!
दीन-ए-इस्लाम का दिलदार है रण पर निकला
✍️ नादिर असलूबी, इंडिया
ख़ाक उड़ाके सर पे अपने कर्बला ख़ामोश है मोहर्रम शायरी
राह-ए-हक़ में सर कटा के काफ़िला ख़ामोश है
ख़ाक उड़ाके सर पे अपने कर्बला ख़ामोश है
देखना है ये मिसाली हक़ परस्ती शै है क्या
सोचना है क्यूँ मुसीबत में ख़ुदा ख़ामोश है
आग ख़ेमों को लगा दी, सर से चादर छीन ली
सब्र के इस इम्तिहाँ में भी हया ख़ामोश है
कूफ़ियों ने असग़र-ए-मासूम की तक जान ली
तीर खा कर हल्क़ पर नन्हा दिया ख़ामोश है
किस तरह रब की मशीअत का बयाँ कोई करे
आबिद-ए-बीमार के हक़ में शिफ़ा ख़ामोश है
गर बचाना होता उनको तो बचा लेता ख़ुदा
ये वो मंज़िल है मशीअत की अदा ख़ामोश है
हिकमत-ए-रब से मैं नादिर क्या कहूँ
फ़लसफ़ा जिस की समझ में आ गया ख़ामोश है
✍️ नादिर असलूबी, इंडिया
लहू में डूब गया कर्बला, इमाम हुसैन : इमाम हुसैन की शहादत कर्बला शायरी
लहू में डूब गया कर्बला, इमाम हुसैन
कि जान लेके रहा कर्बला, इमाम हुसैन
तमाम कुनबे ने सर दे दिया वतन से दूर
है ग़म के बीच घिरा कर्बला, इमाम हुसैन
यज़ीदियों को रहेगा ये ता-क़यामत याद
बना है दर्स-ए-बक़ा कर्बला, इमाम हुसैन
बला का ज़ोर लगाया यज़ीद ने लेकिन
तुम्हारे हाथ रहा कर्बला, इमाम हुसैन
बचा लिया है शहीदों ने दीन को अपने
समझ में आया है क्या कर्बला, इमाम हुसैन
ये दोनों हक़ की सदाक़त के हैं अमीं नादिर
कभी न होंगे जुदा कर्बला, इमाम हुसैन
✍️ नादिर असलूबी, इंडिया
करता है इश्क़ मेरा मातम हुसैन का : इमाम हुसैन की शहादत कर्बला शायरी
मैं हूँ हुसैनी, दिल है ख़ादिम हुसैन का
करता है इश्क़ मेरा मातम हुसैन का
रोया नहीं कभी जो क़त्ल-ए-हुसैन पर
मुजरिम है मुस्तफ़ा का, आसिम हुसैन का
लड़ना है गर तुझे जो शकल-ए-यज़ीद से
बनना पड़ेगा तुझको लाज़िम हुसैन का
ओढ़ा हो जिसने ख़ुद पर परचम हुसैन का
दिखता है उसको ख़ुद में आलम हुसैन का
जान-ओ-दिलम सभी कुछ उन पर निसार है
नाना है जिनका अफ़ज़ल नाज़िम हुसैन का
✍️ आफ़ताब शाह
नज़राना-ए-अक़ीदत ब-हज़ूर इमाम-ए-आली मक़ाम
मग़मूम हुई हर आँख यहाँ, इक रस्म-ए-ग़म बरदारी है
कर्बल से उठा है शोर अजब, इक लहर ग़मों की तारी है
शब्बीर पे जाँ क़ुर्बान करूँ, क्या आला पाय है पाया
सजदे में शहादत मिलने को, कर्बल में आन पधारी है
मनक़बत
मर्द-ए-मुजाहिद तेरा ही ग़म होता है बहम, ऐ शाह-ए-उमम
हर पल हर दम है मह्व-ए-ग़म चश्म-ए-पुरनम, ऐ शाह-ए-उमम
गुलज़ार-ए-नबी के गुल सारे रखे हैं ख़ाक-ए-कर्बल पर
क्या क्या न सहे मासूमों ने कर्बल में सितम, ऐ शाह-ए-उमम
मासूम न रौंदे जाते, गर क़ुर्बानी आप नहीं देते
हो जाता दीन-ए-इलाही यूँ दरहम-बरहम, ऐ शाह-ए-उमम
लुट जाए ख़ानदान क्या ग़म है, बच जाए शरीअत नाना की
ये रेत तपां मज़लूमों के चूमें हैं क़दम, ऐ शाह-ए-उमम
हल्क़ूम में उतरें तीरों से असग़र की नन्ही प्यास बुझी
देती है पर्सा चश्म-ए-नम उस पर हर दम, ऐ शाह-ए-उमम
चुपचाप अकबर की सवारी पर, ग़ुमसुम अब्बास के लाशे पर
मग़मूम रहे लेकिन कम न हुआ वो ख़म-दम, ऐ शाह-ए-उमम
हो जाए सुख़न थोड़ा सा अता, वरना मेरी औक़ात ही क्या
एक ज़रा सी ग़ज़ाली पर भी, हो नज़र-ए-करम, ऐ शाह-ए-उमम
✍️ अमजद ग़ज़ाली, चोआ सैदन शाह, ज़िला चकवाल
मनक़बत दर शान हज़रत इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु
ख़ूब है लहजा मेरे शब्बीर का
हर कहा उम्दा मेरे शब्बीर का
बातिलों के मुँह में ताला लग गया
अज़्म है पुख़्ता मेरे शब्बीर का
फ़ख़्र से कहता है बाग़-ए-ख़ुल्द ये
देख लो रुतबा मेरे शब्बीर का
अब दिखा सकता नहीं आँखें सितम
सर पे है साया मेरे शब्बीर का
हैं यज़ीदी गुमरही के ग़ार में
हर सू है ग़ल्बा मेरे शब्बीर का
फ़हम में आया नहीं क्यूँ ऐ अदू
साफ़ था ख़ुत्बा मेरे शब्बीर का
कोई भी पहुँचा नहीं सकता ज़रर
हक़ पे है पहरा मेरे शब्बीर का
जिस्म में इस्लाम के जुब्बा है जो
उसमें है तुक्मा मेरे शब्बीर का
किस क़दर हावी यज़ीदियत पे है
मुख़्तसर दस्ता मेरे शब्बीर का
मज़हब-ए-इस्लाम के परवान में
है अहम् हिस्सा मेरे शब्बीर का
देखिए ज़ुल्म ओ जफ़ा की धूप में
"ऐनी" है सजदा मेरे शब्बीर का
✍️ अज़ क़लम: सैयद ख़ादिम रसूल 'ऐनी'
मनक़बत दर शान हज़रत इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु
सच्चा हुआ था देखिए दावा हुसैन का
चमका जो आसमाँ पे सितारा हुसैन का
दिलकश था, पुरवक़ार था, पूरनूर था बहुत
चेहरा वो ख़ाक ओ ख़ून में लिपटा हुसैन का
आँखों में सोगवारियाँ, होँठों पे प्यास थी
जब कर्बला में क़ाफ़िला उतरा हुसैन का
वो मिस्ल-ए-माहताब, मुनव्वर था किस क़दर
कैसा था पुरशुकोह सरापा हुसैन का
देखा था आसमान ने, नेज़ों के दरमियाँ
वो तमकुनत के साथ गुज़रना हुसैन का
फ़रहत! मैं ख़ून-ए-दिल में डुबोकर ये उंगलियाँ
लिखने लगी हूँ आज ये नौहा हुसैन का
✍️ फ़र्ज़ाना फ़रहत – लंदन
मेरे शहीद – शहीद-ए-कर्बला इमाम हुसैन पर शायरी
उसे न मुर्दा कहो जो शहीद होता है
वही ज़मीं पे नए हक़ के बीज बोता है
उसे फरिश्तों का रुतबा दिलाया जाता है
फिर उस पे फख़्र का सहरा सजाया जाता है
ज़मीं पे नूर की चादर बिछाई जाती है
फ़लक के तारों से महफ़िल सजाई जाती है
शहीद हो के जो गर्दन कटा के जाता है
वो अपने ख़ून के मोती लुटा के जाता है
जिसे शहीद का रुतबा नसीब होता है
मुझे यक़ीं है — ख़ुदा का हबीब होता है
✍️ फ़र्ज़ाना फ़रहत – लंदन
हज़रत इमाम हुसैन (रज़ि.) की शान में शायरी
मुझे उस ज़ात से वाबस्तगी है
गुलामी जिस के दर की क़ैसरी है
सनाँ पर सर रहा, हर सर से ऊँचा
अदू ने भी तेरी ताज़ीम की है
ख़याल-ए-आबिद-ए-बीमार रखिए
लपट ख़ेमों से फिर उठने लगी है
दिल-ए-मौज-ए-फ़िरात-ए-कर्बला में
लहू दो, फिर लहू की तिश्नगी है
जिसे सजदे करें ख़ंजर के साये
"वो सजदा आबरू-ए-बंदगी है"
मक़ाम-ए-हज़रत बज़्मी पे मत जा
गुलाम-ए-राकिब-ए-दोश-ए-नबी है
✍️ सरफ़राज़ बज़्मी – सवाई माधोपुर, राजस्थान
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