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नात शरीफ अच्छी-अच्छी हिंदी में लिखी हुई - Acchi Acchi Naat Sharif Hindi Mein Likhi Hui

नात शरीफ अच्छी-अच्छी हिंदी में लिखी हुई - Acchi Acchi Naat Sharif Hindi Mein Likhi Hui

आज की तहरीर में हम प्यारे मुसलमान भाइयों और बहनों के लिए नात शरीफ अच्छी-अच्छी हिंदी में लिखी हुई पेश करने जा रहे हैं। यहां पेश की जाने वाली अच्छी-अच्छी नात शरीफ हिंदी में आप निशुल्क पढ़ सकते हैं। तो चलिए पढ़ना शुरू करते हैं नाते रसूल मकबूल और अपने लिए जन्नत का रास्ता हमवार करते हैं।

Acchi Acchi Naat Sharif Hindi Mein Likhi Hui


नात शरीफ़ हिंदी में
होता अगर ज़मीन पर साया रसूल का
फिर पांव उम्मती कहां रखता रसूल का

पढ़ते हैं यूं तो ग़ैर भी कलमा रसूल का
जन्नत उसे मिलेगी जो होगा रसूल का

करते हैं एहतराम जनाज़े का इस लिए
वो जा रहा है देखने चेहरा रसूल का

दुनिया को देखना भी गवारा नहीं किया
जब तक अली ने देखा न चेहरा रसूल का

शेर ए ख़ुदा न बनता तो बनता भी और क्या?
बचपन से ही तो था ये पाला रसूल का

नारा रज़ा का लगता है दुनिया में इसलिए
अहमद रज़ा के लब पे था नारा रसूल का

अच्छी-अच्छी नात शरीफ हिंदी में लिखी हुई

चमक तुझसे पाते हैं सब पाने वाले
मेरा दिल भी चमका दे चमकाने वाले

बरसता नहीं देख कर अब्रे रहमत
बदों पर भी बरसा दे बरसाने वाले

मदीने की खित्ते खुदा तुझ को रक्खे
गरीबों फकीरों के ठहराने वाले

तू ज़िंदा है वल्लाह तू जिंदा है वल्लाह
मेरे चश्मे आलम से छूप जाने वाले

मैं मुजरिम हुं आका मुझे साथ लेलो
के रस्ते में हैं जा बजा थाने वाले

तेरा खायें तेरे गुलामो से उलझें
हैं मुनकिर अजब खाने गुर्राने वाले

रहेगा यूं हीं उनका चर्चा रहेगा
पड़े ख़ाक हो जायें जल जाने वाले

रज़ा नफ्स दुश्मन है दम में न आना
कहां तू ने देखे हैं चाँद आने वाले

न्यू नात शरीफ हिंदी में लिखी हुई

तेरे दर पे मौला दुआ मांगते हैं
तुझसे दर्दे दिल की दवा मांगते हैं

खुदाया बुराई से हमको बचा ले
भलाई का हम वो शीला मांगते हैं

फलक पे सितारों में तेरी दुहाई
रूहि चांदनी से सिया मांगते हैं

नबी के वसीले से रास्ता दिखा दे
मदीने से राहे खुदा मांगते हैं

मिला है करम का मिले हमको साया
मिलाएं इलुम की रिदा मांगते हैं

हमें बेसहारों का तू है सहारा
करीमा तुझे आसरा मांगते है

हमें तो वसीले का जलवा दिखा दे
तजल्ली के हम भी अदा मांगते हैं

दुआ की है जिससे शौकत इलाही
करम की दुआ में सूजा मांगते हैं

तेरे दर पे मौला दुआ मांगते हैं
तुझसे दर्दे दिल की दवा मांगते हैं

नात शरीफ हिंदी में

उलफत में तेरी आका मजनू कहा गया हूं
दीवाना तेरे दर का कहता सुना गया हूं।

जब से मिली गुलामी मैं सुर्खरू हुआ हूं
मैं तेरा नाम लेकर आलम पे छा गया हूं।

और मुद्दत से सह रहा था मैं तो ग़म ए जुदाई।
रब का करम के तेरे रोजे पे आ गया हूं।

मैं दिल को रख के आका रोजे के जालियों पर।
तेरे इनायतों का कर्जा चुका गया हूं।

मुझको राहें वफा में जो भी मिला है राही।
दीवानगी का उसको रास्ता बता गया हूं।

और हुस्न -ए नजर से जिसने रोजे को तेरे देखा।
आँखों में उसकी बन के सुरमा समा गया हूं।

दरबार- ए मुस्तफा की मिट्टी मिली जो मुझको।
मैं तो वली उसी को तोसा बना गया हूं।

मुद्दत से सह रहा था मैं तो ग़म ए जुदाई।
रब का करम के तेरे रोजे पे आ गया हूं।

उलफत में तेरी आका मजनू कहा गया हूं।
दीवाना तेरे दर का कहता सुना गया हूं।

लिखा हुआ नात शरीफ

मेरी आंखें तरसती हैं यारब।
मुझको बागे मदीना दिखा दे।

प्यार से जिंदगी देने वाले।
मुझको प्यारे नबी से मिला दे।

कर्बला में हुसैन इब्ने हैदर।
हक से फरमाया खून में नहा कर।

ताज शाही याजीदों को देकर।
मुझको जामे शहादत पिला दे।

मेरी आंखें तरसती हैं यारब।
मुझको बागे मदीना दिखा दे।

लेकर तलवार फारुक घर से
कत्ल करने चले थे नबी को।

पास पहुंचे तो की अर्ज रोककर।
मेरे महबूब कलमा पढ़ा दे।

तन पे खा खा के जालिम के कोड़े।
हंस के बोले बिलाल -ए हब्सी।

मैं ना छोडूंगा दामन नबी का।
बेहया चाहे जितनी सजा दे।

मेरी आंखें तरसती है यारब।
मुझको बागे मदीना दिखा दे।

नाते रसूल हिंदी में लिखी हुई

ऐ सबा मुस्त़फा से कह देना
ग़म के मारे सलाम कहते हैं

याद करते है तुमको शाम-ओ-सहर
बे-सहारे सलाम कहते हैं

अल्लाह अल्लाह हुज़ूर की बातें
मरहबा रंगो नूर की बातें

चांद जिनकी बलायें लेता है
और तारे सलाम कहते हैं

ऐ सबा मुस्त़फा से कह देना
ग़म के मारे सलाम कहते हैं

ज़ाईरे क़ाबा तू मदीने में
मेरे आक़ा से इतना कह देना

प्यारे आक़ा रसूल सुन लीजे
ग़म के मारे सलाम कहते हैं

ऐ सबा मुस्त़फा से कह देना
ग़म के मारे सलाम कहते हैं

ज़िक्र था आखरी महीने का
तज़किरा छिड़ गया मदीने का

हाजियों मुस्त़फा से कह देना
ग़म के मारे सलाम कहते हैं

ऐ सबा मुस्त़फा से कह देना
ग़म के मारे सलाम कहते हैं

सब्ज़ ग़ुम्बद का आंख में मंज़र
और तसव्वुर में आपका मिम्बर

सामने जालियां हैं रौज़े की
आजिज़ी से सलाम कहते हैं

ऐ सबा मुस्त़फा से कह देना
ग़म के मारे सलाम कहते हैं

अल्लाह अल्लाह हुज़ूर के ग़ेंसू
भीनी भीनी महकती वोह खुश्बू

जिनसे मामूर है फिज़ा हर सू
वो नज़ारे सलाम कहते हैं

ऐ सबा मुस्त़फा से कह देना
ग़म के मारे सलाम कहते हैं

ऐ ख़ुदा के ह़बीब प्यारे रसूल
ये हमारा सलाम कीजे कुबूल

आज महफ़िल में जितने हाज़िर हैं
मिलके सारे सलाम कहते हैं

ऐ सबा मुस्तफा से कह देना
ग़म के मारे सलाम कहते हैं

याद करते है तुमको शाम-ओ-सहर
दिल हमारे सलाम कहते हैं


नात शरीफ हिंदी में लिखी हुई

मैं सो जाऊँ या मुस्तफ़ा कहते कहते
खुले आँख सल्ले - अला कहते कहते

हबीब-ए-ख़ुदा का नज़ारा करूँ मैं
दिल-ओ-जान उन पर निसारा करूँ मैं

मैं सो जाऊँ या मुस्तफ़ा कहते कहते
खुले आँख सल्ले-‘अला कहते कहते

मुझे अपनी रहमत से तू अपना कर ले
सिवा तेरे सब से किनारा करूँ मैं

मैं सो जाऊँ या मुस्तफ़ा कहते कहते
खुले आँख सल्ले - अला कहते कहते

ख़ुदा-रा ! अब आओ कि दम है लबों पर
दम-ए-वापसीं तो नज़ारा करूँ मैं

मैं सो जाऊँ या मुस्तफ़ा कहते कहते
खुले आँख सल्ले - अला कहते कहते

मुझे हाथ आए अगर ताज-ए-शाही
तेरी कफ़्श-ए-पा पर निसारा करूँ मैं

मैं सो जाऊँ या मुस्तफ़ा कहते कहते
खुले आँख सल्ले - अला कहते कहते

तेरा ज़िक्र लब पर, ख़ुदा दिल के अंदर
यूँ ही ज़िंदगानी गुज़ारा करूँ मैं

मैं सो जाऊँ या मुस्तफ़ा कहते कहते
खुले आँख सल्ले - अला कहते कहते

दम-ए-वापसीं तक तेरे गीत गाऊं
मुहम्मद मुहम्मद पुकारा करूँ मैं

मैं सो जाऊँ या मुस्तफ़ा कहते कहते
खुले आँख सल्ले - अला कहते कहते

तेरे दर के होते कहाँ जाऊँ, प्यारे !
कहाँ अपना दामन पसारा करूँ मैं

मैं सो जाऊँ या मुस्तफ़ा कहते कहते
खुले आँख सल्ले - अला कहते कहते

ख़ुदा ख़ैर से लाए वो दिन भी, नूरी
मदीने की गलियाँ बुहारा करूँ मैं

मैं सो जाऊँ या मुस्तफ़ा कहते कहते
खुले आँख सल्ले - अला कहते कहते

अहमद रजा की नात शरीफ

आज दूल्हा बना शाह अहमद रज़ा
शाह अहमद रज़ा, शाह अहमद रज़ा

गुल्शन-ए-पुर-ज़िया शाह अहमद रज़ा
बुलबुल-ए-ख़ुश-नवा शाह अहमद रज़ा

दूध का दूध, पानी का पानी किया
किस ने तेरे सिवा शाह अहमद रज़ा

अहल-ए-सुन्नत पे है बार-ए-एहसाँ तेरा
नाइब-ए-मुस्तफ़ा शाह अहमद रज़ा

आस्ताना तेरा छोड़ जाएँ कहाँ
तेरे दर के गदा शाह अहमद रज़ा

मुझ को जो कुछ मिला तेरे दर से मिला
वाह ! क्या है 'अता शाह अहमद रज़ा

क्या ग़रज़ दर-ब-दर मारे मारे फिरें
जब तेरा दर है वा शाह अहमद रज़ा

तेरे मुश्ताक़-ए-ना-दीदा हैं सैंकड़ों
महव-ए-हुस्न-ए-लिक़ा शाह अहमद रज़ा

दोस्त दुश्मन की थी कुछ न हम को ख़बर
तू ने ज़ाहिर किया शाह अहमद रज़ा

एक मैं क्या हज़ारों हैं शैदा तेरे
बंदगान-ए-ख़ुदा शाह अहमद रज़ा

पूछे अल्लाह वालों से रुत्बा तेरा
मरहबा मरहबा शाह अहमद रज़ा

सच तो ये है कसौटी है ईमान की
है खरे से खरा शाह अहमद रज़ा

हम से खोटों को पूछे न पूछे कोई
पूछे आक़ा मेरा शाह अहमद रज़ा

घुट-घुटा घुट-घुटा कर हसद में मरें
तेरे दुश्मन सदा शाह अहमद रज़ा

गुल हज़ारों खिले गुल्शन-ए-दहर में
फूल आ'ला खिला शाह अहमद रज़ा

पूछते क्या फ़रिश्तो हो हुस्न-ए-'अमल
है यहाँ क्या सिवा शाह अहमद रज़ा

ख़ौफ़-ए-महशर और अय्यूब-ए-रज़वी ! तुझे
आप लेंगे बचा शाह अहमद रज़ा

नबी की नात शरीफ

वो जिस के लिए महफ़िल ए कौनैन सजी है
फ़िरदौस ए बरीं जिस के वसीले से बनी है

वो हाश्मी, मक्की, मदनी-उल-अरबी है
वो मेरा नबी, मेरा नबी, मेरा नबी है

अल्लाह का फ़रमाँ, अलम् नश्रह़् लक स़द्रक
मंसूब है जिस से, व-रफ़अना लक ज़िक्रक

जिस ज़ात का क़ुरआन में भी ज़िक्र-ए-जली है
वो मेरा नबी, मेरा नबी, मेरा नबी है

अहमद है, मुहम्मद है, वो ही ख़त्म-ए-रुसूल है
मख़दूम-ओ-मुरब्बी है, वो ही वाली-ए-कुल है

उस पर ही नज़र सारे ज़माने की लगी है
वो मेरा नबी, मेरा नबी, मेरा नबी है

व-श्म्सुद्दुहा चेहरा-ए-अनवर की झलक है
वलैल सजा गेसू-ए-हज़रत की लचक है

आलम को ज़िया जिस के वसीले से मिली है
वो मेरा नबी, मेरा नबी, मेरा नबी है

मुज़म्मिल-ओ-यासीन व मुदद्स़्स़िर-ओ-त़ाहा
क्या क्या नए अल्क़ाब से मौला ने पुकारा

क्या शान है उस की, कि जो उम्मी-लक़बी है
वो मेरा नबी, मेरा नबी, मेरा नबी है

वो ज़ात कि जो मज़हर-ए-लौलाक-लमा है
जो साहिब-ए-रफ़रफ़ शब-ए-मे’राज हुआ है

असरा में इमामत जिसे नबियों की मिली है
वो मेरा नबी, मेरा नबी, मेरा नबी है

किस दर्जा ज़माने में थी मज़लूम ये औरत
फिर जिस की बदौलत मिली इसे ‘इज़्ज़त-ओ-रिफ़’अत

वो मोहसिन-ओ-ग़म-ख़्वार हमारा ही
नबी है वो मेरा नबी, मेरा नबी, मेरा नबी है

नात शरीफ की किताब
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