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जदीद-व-मुन्फरिद नातिया कलाम | Jadeed Mun Fareed Natiya Kalam

नात-ए-रसूल-ए-ख़ुदा

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रही है, एक ज़माना से, " जुस्तजू-ए-रसूल "!
" मदीना " ले चली है मुझको, " आरज़ू-ए-रसूल "!!

" क़ुरान-ए-पाको-मुक़द्दस है, " आबरू-ए-रसूल "!!
हर इक ज़बाँ पे है, हर लम्हा, " गुफ़्तगू-ए-रसूल "!!

उठी मुसल्माँ/ ज़माने की, क्यों?, है निगाह!, "सू-ए-रसूल "!
है " आइना ", किसी दिल का कोई, ये " रू-ए-रसूल "!?

हसीना " माँग " में " अफ़्शाँ " समझ के भर लेगी!
के/ कि, " हाँ!", है ऐसी ही, " तक़दीर-ए-ख़ाक-ए-कू-ए-रसूल "!!

ये " राम-चन्द्र सुख़नवर, ये रामदास कवि "!
है " आबरू-ए-मुह़ब्बत ", है " रू-ब-रू-ए-रसूल "!!

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इस त़वील नात-शरीफ़ के दीगर अश्आर फिर कभी पेश किए जायेंगे, इन्शा-अल्लाह-व-ईश्वर!!
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रामदास प्रेमी राजकुमार जानी दिलीपकुमार कपूर राज चंडीगढ़ी/ इन्सान प्रेमनगरी/ अब्दुल्लाह जावेद अशरफ़ क़ैस फ़ैज़ अकबराबादी!

जदीद-व-मुन्फ़रिद नाते-रसूले-ख़ुदा

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हमारे क़ल्बो-जिगर में है आरज़ू-ए-ह़बीब/ आरज़ू-ए-रसूल!
हर एक लम्ह़ा है, हम सब को, जुस्तजू-ए-ह़बीब/ जुस्तजू-ए- रसूल!!

है जब " क़ुराने-मुक़द्दस " में " गुफ़्तगू-ए-ख़ुदा "!
पढूँगा कल्मा-ए-क़ुर्आन/ आयते-क़ुर्आन, " रू-ब-रू-ए-ह़बीब/ रू-ब-रू-ए-रसूल "!!

जिन्हें/ जिसे, ज़माने से मिलती नहीं " मता-ए-वफ़ा "!
उन्ही/ उसी को होती है, हर लम्ह़ा, जुस्तजू-ए-ह़बीब/ जुस्तजू-ए-रसूल!!

चमन में उन्ही के दम से बहारें हंसती हैं!!
गुलों में क्यों न रहे आज " गुफ़्तगू-ए-ह़बीब/ गुफ़्तगू-ए-रसूल "!!

अभी भी मुझको है ह़ासिल " स्आदते-दीदार "!
के/ कि/ यूँ, देखिये!, अभी भी हूँ मैं, " रू-ब-रू-ए-ह़बीब/ रू-ब-रू-ए-रसूल "!!

मुख़ालिफ़त की फ़ज़ाओं में, गो/जो/ये, रही, फिर भी!
रही ब-ह़ाल, ब-हर-लम्ह़ा, " आबरू-ए-ह़बीब/ आबरू-ए-रसूल "!!

हैं, इस की" ज़ीस्त " में " अन्वार-ए-पुख़्तगी-ए-अमल "!!
सियाह दिल नहीं रखता, सियाह " मू-ए-ह़बीब/ मू-ए-रसूल "!!

हम अपनी " माँग/ माँगों " में " अफ़्शाँ" समझ के भर लेंगी!!
सखी!, है ऐसी ही " तक़दीर-ए-ख़ाक-ए-कू-ए-ह़बीब/ तक़दीर-ए-ख़ाक-ए-कू-ए-रसूल "!!

अभी भी मुस्त़फ़ा/ मुज्तबा/ ग़ौस-जी/ राम जी की होती है " पज़ीराई "!!
अभी भी " ह़ुस्न " के दिल में है " आरज़ू-ह़बीब/ आरज़ू-ए-रसूल "!!

हमारे दिल पे तसल्ली का हाथ, क्यों न रखे!!
रही है एक ज़माना से इक ये " ख़ू-ए-ह़बीब/ ख़ू-ए-रसूल "!!

मुसालिह़त को समझ, और, मस्लेह़त को समझ!!
क़ुराने-पाको-मुक़द्दस है " आबरू-ए-ह़बीब/ आबरू-ए-रसूल/ गुफ़्तगू-ए-ह़बीब/ गुफ़्तगू-ए-रसूल "!!

मियाँ " ग़रीब बदायूंनी" ये ह़बीबुल्लाह!
हैं " आबरू-ए-मुह़ब्बत ", हैं " रू-ब-रू-ए-ह़बीब/ रू-ब-रू-ए-रसूल "!!

ये " राम-चन्द्र/ रामदास, ये जावेद क़ैस फ़ैज़ मियाँ "!!
हैं " आबरू-ए-मुह़ब्बत ", हैं " रू-ब-रू-ए-ह़बीब/ रू-ब-रू-ए-रसूल "!!

" क़ुराने-ह़िकमते-अह़मद/ अशरफ़/ अकबर/ मौला है " आबरू-ए-ह़बीब/ आबरू-ए-रसूल/ गुफ़्तगू-ए-ह़बीब/ गुफ़्तगू-ए-रसूल!!
हर इक ज़बाँ पे/ हर इक ज़ुबाँ में है, हर लम्ह़ा, " गुफ़्तगू-ए-ह़बीब/ गुफ़्तगू-ए-रसूल "!!

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इस त़वील त़ुर्फ़ा-व-उम्दा नात के दीगर अश्आर फिर कभी पेश किए जायेंगे, इन्शा-अल्लाह-व-ईश्वर!!
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रामदास प्रेमी राजकुमार जानी दिलीपकुमार कपूर राज चंडीगढ़ी/ इन्सान प्रेमनगरी/ अब्दुल्लाह जावेद अशरफ़ क़ैस फ़ैज़ अकबराबादी!

जदीद-व-मुन्फरिद नातिया कलाम

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Mecca Saudi

या-नबी ! तेरी उम्मत ये, अब, कैसी है ?


" नूर-ए-यज़्दाँ " है तू!," जाम-ए-इर्फ़ाँ " है तू !
ठहरा " अफ़्ज़ल " तु ही !, " फ़ख़्र- ए-इन्साँ " है तू !

" मुस्त़फ़ा " !, " नाज़िश-ए-दो-जहाँ " कौन है !?!
कौन हो सकता है ?!, " जान-ए-जानाँ "! है तू !

" या-नबी "!, तेरी उम्मत ये, अब, कैसी है !?!
बोल !, क्या ?, अपनी उम्मत से शादाँ है तू !?!

आज भी, तेरी उम्मत है " फ़ख़्र-ए-जहाँ "!?!
आज भी, अपनी उम्मत पे नाज़ाँ है तू !?!

इक सुख़न-संज हूँ !, इक सुख़नदाँ हूँ मैं !
" ह़ाल " पर मेरे, " सर-बा/ बर-गरेबाँ " है तू !?!

मेरा क्या होगा !?,उस रोज़ !, " या-मुस्त़फ़ा " !
" वाँ " भी होगा तु ?!,मेरा,के/ कि " कुछ " याँ है तू !!

तुझ ही से दिल लगाया है, इस शख़्स ने !!
"राम/ दास/ बन्दा " कहता है के/ कि, " इस का " " जानाँ " है तू !!
----------इस त़वील नातिया कलाम/ ग़ज़ल के दीगर अश्आर फिर कभी पेश किए जायेंगे,इन्शा-अल्लाह-व-ईश्वर !!

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रामदास प्रेमी इन्सान प्रेमनगरी, ह़ज़रत जावेद अशरफ़ क़ैस फ़ैज़ अकबराबादी बिल्डिंग्, डॉक्टर खदीजा नरसिंग होम, राँची हिल साईड, इमामबाड़ा रोड,राँची,झारखण्ड,इन्डिया !

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