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अलविदा माह ए रमज़ान शायरी माहे रमजान अलविदा नज़्म

Alvida Mahe Ramzan Shayari : Alwidah Mah e Ramadan


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अलविदा माह ए रमज़ान शायरी माहे रमजान अलविदा नज़्म


माहे रमजान अलविदा

हम से रूख्सत हो रहे माहे रमजान है।
पुख्ता करके हमारी इबादत इमान है।।

पहली तारीख से पहलें दिन तरावीह हुई।
दुसरे दिन से सहेरी रोजा का मिजान है।।

अहले सहर सेहरी के बाद फज़र नमाज पढ़।
बुराई का दुर भागता रहा वो शैतान है।।

बाली जिस पर रोजा फर्ज सुन्नत मानता।
उसे ही कहतें सच्चा मोमिन इन्सान है।।

रोजा नमाज जकात इस माह की फजिलते।
इस वजह बुराई से बचाता रहमान है।।

रूख्सती का वक्त आँखों में भरे आंसू।
शुक्र करों रब का उसका बड़ा अहसान है।।

औरत आदमी अपना फर्ज निभाने लगे।
हक की रोजी पाओ खुदा का ये फर्मान है।।

कुरान पुरा मुक्कमल हुआ तरावीह में वो।
पांचो वक्त नमाज को बुलाती अजान है।।

'शहज़ाद 'गमजदा मोमिन रमजान जा रहें।
रौनक रहमत बरकत माह की पहचान है।।

मजीदबेग मुगल 'शहज़ाद '
हिगणघाट, जि वर्धा, महाराष्ट्र
8329309229

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