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नारी अत्याचार और शोषण पर कविता | महिला अत्याचार पर शायरी

नारी अत्याचार पर शायरी | नारी अत्याचार पर कविता

दिनांक- ५/३/२२
दिन- शनिवार
विषय- नारी प्रकृति का अनुपम उपहार

शीर्षक-- न करो अत्याचार

ना करो कोई अत्याचार
समझो, जानो नारी ही है
नारी प्रकृति का अनुपम उपहार
इसको भेजा उस दाता ने धरा पर
मानव ही मानव जाती का आधार।।

ना करो कोई अत्याचार।।२।‌।

भ्रुण हत्या कर ना खत्म करो मानव समाज
घटती नारी दर को रोक करो सभी संचार
जानो कारण क्यों न बढ़ रहा नारी विकास।।
इसके लिए भी हम दोषी सच पर कड़वी बात।।

ना करो कोई अत्याचार।।२।‌।

सबसे पहले एक नरभक्षी प्रथा से मिलवाती
नाम उस प्रथा का दानव दहेज़ बताती
मुंह फाड़े खड़ी ये प्रथा जिसकी भूख न मिट पाती
न जाने कितनी बेटियां या भ्रूण इस प्रथा के
बली चढ़ जाती।।

ना करो कोई अत्याचार।।२।‌।

दूसरी वज़ह अपराध बलात्कार से मिलवाती
कच्ची उम्र कि बच्चियां, बूढ़ी भी बच न पाती
हवस कि भूख मिटाने क्या ये मासूम धरा पर आती
कहीं हमारी बेटी के साथ भविष्य में ऐसा न हो
यही सोच आज कि मां बेटी होने पर घबराती।।

ना करो कोई अत्याचार।।२।‌।

तीसरा अपराध घरेलू हिंसा में बताती
कितनी बहू मार हैं खाती
मां बाप कहते बेटा तू वापस न आना मायके
तेरी दह़लीज़ वही मायके की बदनामी न चाहती।।
बताओ फूल सी बच्ची जो नाजों से पली
वो घुट-घुट दम़ तोड़ एक दिन मर जाती।।

ना करो कोई अत्याचार।।२।‌।

नारी जो आज कि नारी होनी चाहिए
वो नारी समाज में निकलते वक्त
अपनी जान, इज्ज़त, अनजाना खौंफ
हाथ में लिये निकल घर से काम पर जाती।।
घर लौटूंगी या नहीं वो भी नहीं जानती।।

प्रकृति का ये अनमोल उपहार नारी
कहने को अनमोल उपहार कहलाती
मानव जाती के ही कुछ जघन्य अपराध
जिससे नारी पल-पल सहमी सी नज़र आती।।

ना करो कोई अत्याचार।।२।‌।

वीना आडवाणी तन्वी
नागपुर, महाराष्ट्र


मैं वो लाचार औरत हूँ : महिला उत्पीड़न पर कविता

शीर्षक : मैं वो लाचार औरत हूँ
चेहरे पर मुस्कान लिए
दिन की शुरुवात हूँ करती
दिन भर काम काज में डूबी
खुद को व्यस्त हूँ पाती
सभी के खुशी में खुश हो जाती
हर एक के दुख में दुखी हो जाती
मुसीबत में कंधे से कन्धा मिलाकर
खड़ी हो हौसला भी हूँ बढाती
जब दुख का बादल मुझ पर बरसता
तो हर कोई नज़र अंदाज़ है करता
अपने दर्द को सीने में दबाये हूँ रहती
जब सहनता की बाँध टूट जाती तो
खुद को रोक न पाती
घर के किसी कोने में छुप छुप के
अश्रु धारा हूँ बरसाती
आँसू पोंछने वाला कोई न मिलने पर
खुद को हूँ कोसती रहती
टूटती और बिखरती हूँ
टूट,बिखरकर खुद को समेटी
रोती, सब कुछ सहती रहती
फिर रो, सहकर खुद को सँवार भी लेती
कोई कैसे पहचान लेता मेरी दर्द की कहानी
हमेशा हँस कर जी लेती हूँ ज़िन्दगानी
मै अनेक किरदारों में ढल जाती
माँ, बहन, बहू और बेटी बनकर
घर को हूँ मेहकाती
लेकिन अपनी स्वार्थ की आड़ में
सभी मेरे साथ
खेलते है खेल अनेक
बेबस तब हो जाती हूँ
जब कोई मेरे लिए आवाज नहीं उठाता
बनाकर तमाशा खेल है देखता
थक सी गई हूँ लोगों की
इस घटिया प्रवृत्ति से
जो नारी को सिर्फ उपभोग की
चीज़ है समझते
घरेलु काम तक सिमित है रखते
जब निराशा के बादल हट जाती
मन शांत सरोवर जैसा होता तो
हमेशा की तरह चेहरे पर मुस्कान लिए
फिर नई उम्मीद, उत्साह भर लेती...

हाँ, मैं वो लाचार, बेबस औरत हूँ...
संध्या जाधव, हुबली कर्नाटक


दिल में दफ़न हुए जज़्बाते है : महिलाओं की बेबसी पर कविता

शीर्षक: दिल में दफ़न हुए जज़्बाते है....
कुछ बातें कहीं नहीं जाती
कुछ राज़ खोले नहीं जाते
दिल के कोने में दबी दबी रह जाते है
कुछ अनकहीं बातें है, दिल में दफ़न हुए जज़्बातें है

सुनना पड़ता है रोज़ कड़वी बातें हैं
गुज़ारना पड़ता है दर्द भरी रातें हैं
किसी को बताया भी न जाए
दिल का ज़ख्म सहा भी न जाए
कुछ अनकही बातें है, दिल में दफ़न हुए जज़्बाते है

ज़ख्म धीरे धीरे नासूर बन गए है
मरहम लगाने वाले ही कुदेरकर चल दिए हैं
करूँ तो शिकायत किससे करूँ
जिनसे ये तोहफ़े मिले है
उनके ही संग तो जीते है
कुछ अनकही बातें है, दिल में दफ़न हुए जज़्बाते है

उम्मीद की किरण नज़र नहीं आती
सुधरने की आस नज़र नहीं आती
फिर भी एक विश्वास पला है
कभी-न-कभी वो घड़ी आएगी
पत्थर दिल भी पिघल जाएगी
कुछ अनकही बातें है, दिल में दफ़न हुए जज़्बाते है
संध्या जाधव, हुबली कर्नाटक


नारी अत्याचार और शोषण पर कविता | महिला अत्याचार पर शायरी

नारी अस्मिता पर कविता | नारी के अपमान पर कविता

नारी अस्मिता पर कविता | नारी के अपमान पर कविता

नारी शोषण पर कविता | नारी की दुर्दशा पर कविता

निर्भया
न्याय क्या है,
होता है न्याय कहाँ?
होती है पूजा न्याय की
किस देवालय में?
विद्यालय,महाविद्यालय विश्वविद्यालय,
जहाँ इसकी पढ़ाई होती है।
कोई न्यायालय,जो इसको व्याख्यायित
करता है हू-ब-हू।

अन्याय के खिलाफ शायरी | जुल्म के खिलाफ शायरी

अब तो मुझे ही देना है उत्तर,
मेरी अग्नि परीक्षा ली गई,
दाँव पर लगाई गई मैं,
चीर हरण की चेष्टा मेरे हुई।
युद्धों का कारण कहा जाता है,
मुझको।
आरोपों का बोझ ढ़ो रही हूँ
सदियों से।
मेरी भ्रूण हत्या होती है,
जलायी जाती हूँ दहेज
के नाम पर।
फिर पूजन नौ दिनों तक?
मर्यादा की शर्तें सारी
मेरे लिए सुरक्षित।

क्रांतिकारी शायरी | क्रांति शायरी

माँ,तुम मेरी पहली पाठशाला
हो,बताओ गुर जीने के मुझे।
बनाओ मुझे योग्य
कि मैं मुझपर होते आ रहे
सारे अन्यायों के उत्तर
खुद न्यायालय में दे सकूँ,
मैं भी जी सकूँ,
अभय,प्रतिष्ठित,मानवीय
जीवन।
कृष्ण कुमार क्रांति
सहरसा,बिहार
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