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प्रकृति की अनुपम छटा, गाँव के दृश्य पर शायरी | Village Life

गांव की सुंदरता पर शायरी | Village Life In India

प्रकृति की अनुपम छटा मेरे गांव में

प्रकृति की अनुपम छटा मेरे गांव में
याद आ रही है मुझे !अपने गांव की
ले चल मुझे! उसकी गोद में
कोलाहल से दूर पीपल की छांव में
सुकून के पल बिता लूं अपनों के बीच में
प्रकृति की अनुपम छटा मेरे गांव में
जहां प्यारा – सा आयताकार में घर है हमारा
बड़े-बड़े कमरे बड़े बरामदे बड़ा– सा आंगन
मेरे द्वार की शोभा बढ़ाता है
और सब की मीठे पानी से प्यास बुझाता
जिसको अंग्रेजी में कहते हैं वेल
पर, मुझे कुआं कहना ही भाता
सदन के सामने द्वार से लगा
छ: बीघे आम की मीठी बगिया
आंख बंद करके खाऊं लगे न खट्टा
मेरी इसी बगिया में द्वार के सामने प्यारा – सा शिवालय
जिसमें मेरी चाची माला जाप किया करती थीं
दूसरे छोर हरा– भरा खेत उससे लगा तालाब
सुबह –शाम देखते ही बनता
प्रकृति की अनुपम छटा मेरे गांव में
ले चल मुझे! गांव की ओर

गाँव की यादें पर कविता | ग्रामीण संस्कृति पर कविता

गांव की सुंदरता पर शायरी | Village Life In India

शहर और गांव पर कविता | गांव की मिट्टी पर कविता

सोचती हूं कभी-कभी
मेरा घर हम सब का गांव
बसती थीं हम सबके प्राण उसमें
हम सब की आवाजें गूंजती थीं कोने –कोने
हम सब मिलकर पले बढ़े जिसमें
आज भी ! अकेली !
बाट जोहती है हम सबके आने की
कुछ भी कमी ना है फिर भी लगता है मुझको!
पश्चात संस्कृति की हवा ने बिखेर दिया हम सबको
घूम आती हूं देश-विदेश
क्षणिक ही मुझे अच्छा! लगता
पर,
जो आनंद झरोखेदार मड़हा में एकसाथ हम सबको मिलता
हंसते हंसते लोट–पोट हो जाते
वह पीवीआर में कहां ?
प्रकृति की अनुपम छटा मेरे गांव में
ले चल मेरे नाथ! मुझे गांव की ओर
मेरा गांव है बहुत सुंदर।
(स्वरचित)
चेतना चितेरी, प्रयागराज
9/4/2021,2:54pm

गांव की सुंदरता पर कविता | ग्रामीण संस्कृति पर कविता
कविता

गाँव की गलियाँ
शुद्ध, हवा, शुद्ध खान-पान,
मधुर वाणी शिष्ट व्यवहार।
मेरे गाँव की गलियाँ,
मनभावन तीज त्यौहार।।

खेत खलिहान धरोहर,
छाछ राबड़ी वो चटनी।
मेरे गाँव की गलियाँ,
छाप छोड़ती जो अपनी।।

पक्षी कलरव मनमोहक,
जैव विविधता मन भाती।
मेरे गाँव की गलियाँ,
सुखदायक प्यार लुटाती।।

घर आँगन सुंदर संस्कृति,
आन-बान-शान निराली।
मेरे गाँव की गलियाँ,
नयनाभिराम मतवाली।।

पावन संस्कृति की शोभा,
चहल-पहल थी सुखकारी।
मेरे गाँव की गलियाँ,
जय हो भारत माता की।।
रामबाबू शर्मा,राजस्थानी,दौसा(राज.)

प्रकृति पर कविता हिंदी में Poem On Nature In Hindi

वो उगती हुई रोशनी,
कुछ कहती जरूर है,
वो चांदनी छिटकती रागिणी,
कुछ कहती जरूर है,
वो बारिश, वो प्याली,
वो परवान चढ़ती सूरज की लाली,
वो इन्द्रधनुषी आसमाँ की डाली,
कुछ कहती जरूर है,
कुछ कहती जरूर है,
कुछ कहती जरूर है।
वो सौंधी सी महक,
बारिश में वो चाय की चहक,
वो जो सरसो के खेत में मन जाता बहक,
न सुबह की ख़बर, न शाम की फ़िक्र,
बस, प्रकृति की गोद में, मन जाता लहक,
ये लहकना, ये बहकना,
उन बूंदों में वो मिट्टी का महकना,
कुछ कहती जरूर है,
कुछ कहती जरूर है,
कुछ कहती जरूर है।
खुशबू कुमारी
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