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महा मूर्खों के नाम एक पैगाम मूर्ख दिवस पर शायरी | April Fool

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महा मूर्खों के नाम एक पैगाम

कौन नहीं है मूर्ख दुनिया में, आइए करें थोड़ा विचार,
जड़ तक जाने पर पता चलेगा, मूर्खों से भरा है संसार।
मूर्खों का बहुमत है, इसलिए यह दुनिया टिकी हुई है,
वरना एक दिन में इसे बेचकर, खा जाएंगे लोग समझदार।
जो जितना बड़ा मूर्ख है, संसार में लगता उतना ईमानदार,
जहां पर जितना समझदार, वहां पर उतना ज्यादा भ्रष्टाचार।
कौन नहीं है मूर्ख दुनिया में…
पत्नी के आगे पति मूर्ख, मंत्री के आगे अधिकारी हैं मूर्ख,
व्यापारी के आगे दुनिया मूर्ख, और नाव के आगे है पतवार।
केला आगे अंगूर मूर्ख, आम और अमरूद आगे मूर्ख अनार,
खानेवाले से ज्यादा, खिलानेवाले मूर्ख, जब चुकता नहीं उधार।
पढ़े लिखे के पास जाने से डरती दुनिया,, नजर आती हार,
मूर्ख अपना फायदा कम देखते, करा देते दूजे का बेड़ा पार।
कौन नहीं है मूर्ख दुनिया में…
साला के आगे जीजा मूर्ख, पहलवान के आगे है विद्वान,
मूर्ख तो सारे हैं, कोई कम कोई ज्यादा, संभव है इंकार?
अगर मूर्ख पड़ जाए पीछे, तो खैर नहीं है समझदारों की,
जब चाहे, जहां चाहे डलवा दे, समाझदारों से हथियार।
मूर्ख झूठ नहीं बोलते, चूना नहीं लगाते देश के खजाने को,
भागते नहीं हैं बैंक लूटकर, धोखे से सात समुंदर पार।
कौन नहीं है मूर्ख दुनिया में…
आज जग को है, पढ़े लिखे से भी ज्यादा जरूरत मूर्खों की,
अगर ऐसा नहीं हुआ तो दोस्तों, रूठ जाएंगे बसंत बहार।
पढ़े लिखे को, सिर्फ मुफ्त सेवा लेने की आदत होती है,
हर जगह कीमत चुकाकर, मूर्ख ही होते हैं
सवारी पे सवार।
आज आप साथियों, इस मूर्ख के नमस्कार को करें स्वीकार,
एक ओर कलम नाच रही, दूसरी ओर गीत
गा रही तलवार।
कौन नहीं है मूर्ख दुनिया में…
प्रमाणित किया जाता है कि यह रचना स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसका सर्वाधिकार कवि/कलमकार के पास सुरक्षित है।
सूबेदार कृष्णदेव प्रसाद सिंह,
जयनगर (मधुबनी) बिहार

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