नारी उत्पीड़न बलात्कार पर कविता – Hindi Poem On Harassment | Girl Molestation
कुँवारी माँन माथे में सिंदूर, न मेहंदी रचाई।
न डोली उठी, न शहनाई आई।
अभागन मुझे कहती है दुनिया,
पाप की गठरी मैं बाँध लाई।
हैवानियत पर कविता
भूख के मारे तड़प रही थी,अन्न के दाने को तरस रही थी,
रोटी के बदले, छीन ली आबरू,
जिस चौराहे मैं भटक रही थी।
दरिंदगी पर कविता
उन दरिंदों ने, ख़ूब क़हर बरपाया,इंसानियत को हवस की आग में जलाया,
चीख़ निकली फिर, एक ख़ामोशी छा गई,
बेहोशी में भी, उसे ज़रा रहम न आया।
नारी अस्मिता पर कविता
टुकड़े-टुकड़े में बिखरी थी आबरू,न जीने की चाहत न मरने की जुस्तजू,
समेटकर चुनर के दाग़, सोचने लगी,
दुनियावालों से कैसे हो पाऊँगी रूबरू।
महिला उत्पीड़न पर कविता
समय का दोष था, या मेरे भाग्य के लेखा,कलंकित बोल मुझे, सब ने किया अनदेखा,
बदनुमा दाग़ कहते हैं, इस कोख़ की ज़िंदगी को,
एक कुँवारी माँ की तड़प, किसी ने न देखा।
एक कुँवारी माँ की तड़प, किसी ने न देखा।
Nilofar Farooqui Tauseef
Fb, IG-writernilofar
हाँ हाँ! ख़ामोश हो जाओ!... और कुत्तों को भौंकने दो ...! करने दो अपनी मनमानी..! आख़िर दुनिया इन्हीं के लिए तो बनी है...! आज ये हादसा तेरे साथ हुआ...कल उस के साथ... और फिर किसी दिन होकर रहेगा मेरे साथ... इसे होने से कोई रोक नहीं सकता इसलिए कि तुम खामोश मैं खामोश ! समाज के बड़े बुद्धिजीवी, बुद्धिमान, इज्ज़तदार, आदरणीय लोग ख़ामोश और इंसाफ़ का बोर्ड लटकाए अदालत भी ख़ामोश..! हर तरफ़ है ख़ामोशी... उदासी और चुप्पी... ऐसे में कौन देगा इंसाफ़...! उठो..! निकलो...! चीखों और चिल्लाओ..! बंद कर दो पापीयों अत्याचारियों की आवाजें आज जी भर कर बोल लेने दो हिन्दी उर्दू साहित्य संसार को ... इससे पहले कि कोई कुत्ता इसकी आवाज़ दबा दें!
औरतों पर ज़ुल्म अत्याचार नाइंसाफी पर शायरी | बलात्कार शायरी
हादसे तो होते रहते हैं
बलात्कार हुआ तुम्हारा, ख़ामोश हो जाओ,
ख़बरदार जो बताया, चुपचाप कमरे में जाओ।
ऐसे दर्द तो हर रोज़ सहते हैं।
ऐसे हादसे तो होते रहते हैं।
पति पसन्द का नहीं है, मूँद कर आँखें परमेश्वर बनाओ।
शादी कोइ खेल नहीं, चुपचाप इसे उम्र भर निभाओ।
ऐसे ज़ख्म से गुज़रते रहते हैं।
ऐसे हादसे तो होते रहते हैं।
विधवा हो तुम, ग़ैर मर्द की तरफ़ न निगाह करो।
सफ़ेद साड़ी नहीं, कफ़न है ये इससे ही निबाह करो।
ऐसे आईने टूटते रहते हैं।
ऐसे हादसे तो होते रहते हैं।
बाँझ हो, चुपचाप कोने में बैठ जाओ,
ज़रूरत नहीं तुम्हारी जो रस्म निभाओ।
ऐसे सितम से गुज़रते रहते हैं।
ऐसे हादसे तो होते रहते हैं।
नौकरी करती हो, कोई एहसान नहीं करती हो,
पैसों पे पूरा हक़ है मेरा, चुपचाप सारे पैसे देती हो
ऐसे निशाँ उभरते रहते हैं।
ऐसे हादसे तो होते रहते हैं।
डॉक्टर है तुम्हारी पत्नी, बोलो गर्भ की जाँच करे,
पोता चाहिए, अगर न हुआ तो गर्भपात करे।
ऐसे काँटे चुभते रहते हैं।
ऐसे हादसे तो होते रहते हैं।
बुढ़ापे की दहलीज़ पे खड़ी हो, आवाज़ कम करो,
बहुत टेंशन दे दिया हमें, मरना है तो जल्दी मरो।
ऐसे किस्से सुनते रहते हैं।
ऐसे हादसे तो होते रहते हैं।
ऐसे हादसे तो होते रहते हैं।
नीलोफ़र फ़ारूक़ी तौसीफ़
मुंबई
Nilofar Farooqui Tauseef
Fb, IG-writernilofar
फिर वही चीख़ : बलात्कार सामाजिक बुराई पर कविता
फिर वही चीख़
सुना था,
लड़कियाँ आग हैं, और लड़के मोम बन पिघलते हैं।
निकलती हैं लड़कियाँ बाहर तो लड़के मचलते हैं।
पूछती हूँ,
लड़कियाँ आग हैं तो जलाती क्यों नहीं ?
हवस के पुजारी को राख़ बनाती क्यों नहीं ?
सुना था,
जीन्स पहन कर लड़कियाँ इतराती हैं,
इसलिए बलात्कारी के हत्थे चढ़ जाती हैं।
महिला उत्पीड़न छेड़छाड़ पर कविता
पूछती हूँ,
दूध मुँही बच्ची को भी साड़ी पहनाऊँ क्या?
या नमक चटा कर मरने छोड़ आऊँ क्या ?
सुना था,
लड़कियाँ बावन गज घूँघट में अच्छी लगती हैं,
गंगा सी पवित्र और श्वेत सी सच्ची लगती हैं।
पूछती हूँ,
इंसाफ़ परस्ती में गूँगे की अदालत का खेल क्यों है?
आज़ाद घूमते हैं दरिंदे तो फिर ये जेल क्यों हैं।
फिर वही चीख़....
फिर वही चीख़, दस्तक देने लगी।
पानी से जलने लगी, आग से बुझने लगी।
पानी से जलने लगी, आग से बुझने लगी।
Nilofar Farooqui Tauseef
Fb, IG-writernilofar
दफ़न कर दो ये चीख़ बलात्कार पर कविता | महिला उत्पीड़न पर कविता
दफ़न कर दो ये चीख़ बलात्कार पर कविता
ये किसकी चीख़ सुनाई दे रही है,
बेवक़ूफ़ है जो दुहाई दे रही है,
बलात्कारियों का भला क़सूर होता है,
ये झूठी-मक्कार सफ़ाई दे रही है।
ग़लती है तुम्हारी जो रात में निकलती हो,
औरत हो तुम, ख़ुद को मर्द समझती हो,
दो क़लम पढ़कर नौकरी क्या कर ली,
हम मर्दों से बराबरी की बात करती हो।
दफ़न कर दो ये चीख़, मिट्टी डाल दो,
तूल न दो इसे इतना, यहीं पे टाल दो,
हवस की शिकार ख़ुद ही बनती हैं,
आग में जला दो या पानी में उबाल दो।
कलयुग है, बचाने श्री कृष्ण नहीं आएँगे,
द्रौपदी नहीं हो, जो महाभारत दोहराएंगे,
बेज़ुबान परिंदे जितनी है औक़ात तुम्हारी,
उड़ने की कोशिश में पंख कट जाएँगे।
देवियों की पूजा यहाँ सम्मान भी है,
जीती जागती नारियों का अपमान भी है।
बातें हैं मेरी ज़रा कड़वी पर क्या करें,
कैसे भूल जाएँ, ये पुरूष प्रधान भी है।
कैसे भूल जाएँ, ये पुरूष प्रधान भी है।
नीलोफ़र फ़ारूक़ी तौसीफ़
Nilofar Farooqui Tauseef
Fb, IG-writernilofar
दरिंदगी पर कविता | महिला हिंसा पर कविता | हैवानियत पर शायरी बलात्कार शायरी
फिर वही दस्तक
ज़ख़्म अभी भरा नहीं,
रंग दिखता हरा नहीं।
बोटी-बोटी नोचता रहा,
जिस्म हुआ, अधमरा नहीं।
ये चीख़, पुकार, ये कैसा है शोर,
झूठा है ज़माना, कहता नया दौर ।
कल जो हालत थी आज भी है वही,
वो कोई और था या ये कोई और।
सिमट कर ख़ुद को ख़ुद में समाई,
दाग़ चुनर ही नहीं, रूह में लग आयी,
पागल लड़की चुप रह, शोर न करना,
इतना सुनकर, वो पागल बुत बन आयी।
आँखों में लहू, दिल में चिंगारी,
ये समाज के सोंच की महामारी,
मिटा सकते हो, तो मिटा दो इसे,
कभी न मिटने वाली ये बीमारी।
दिल में ख़ौफ़, आँखों में कसक,
गुनहगार को मिलती नहीं सबक़,
सिहरने लगा है अब रोम-रोम,
फिर वही दस्तक, फिर वही दस्तक।
फिर वही दस्तक, फिर वही दस्तक।
बुत = मूरत
नीलोफ़र फ़ारूक़ी तौसीफ़
Nilofar Farooqui Tauseef
Fb, IG-writernilofar
महिला उत्पीड़न बलात्कार और यौन शोषण के खिलाफ कविता : ये कैसी चीत्कार है दर्द भरी पुकार है
अख़बार लहू लुहान है
बलात्कार
ये कैसी चीत्कार है दर्द भरी पुकार है
वेदना अपार है करूण क्रंदन अवाज है
माँ पिता भाई दुख में किंकर्तव्यविमूढ़ हैं
दुखी ह्रदय में अब आक्रोश भरपूर है
बेजुबाँ बेबस बेचैन अनगिनत अजब से घाव हैं
छिला नुचा चेहरा देख काँप उठे दिल के भाव हैं
समूचे जिस्म पर झलकते ख़ून के लाल दाग हैं
बेखौफ ख़ूँख़ार दरिंदा घूमता फिरता बेदाग़ है
उपवन अब सूना है नहीं कहीं वसंत है
गीत नहीं धुन नहीं संगीत भी गुमसुम है
हर कली सहमी हुई हाय येअत्याचार है
आदमी की शक्ल में भेड़ियों का व्यभिचार है
छल कपट भरा पड़ा है ये कलयुगी संसार में
आँखें फटी मन रक्तरंजित हो उठा संसार में
पत्थराई नजर सत्य को लकवा लगा संसार में
सत्यम,शिवम्, सुंदरम् का उपहास है संसार में
दिल के तख़्तो ताज पर जिरहबख्तर पहन बैठी हूँ
रक्तप्लावित ह्रदय में घने स्याह साए लिये बैठी हूँ
ख़ामोश जिंदगी की शर्म सी शर्त नामंज़ूर है
ख़ुदगर्ज़ बख्तरबंद दो मुहाँ सिपहसालार है
नहीं खिलेंगी कली अब गुलशन उजाड़ है
तितलियाँ अब मौन हैं भवंरे गुंजायमान हैं
लहू पुकारेगा माटी का ये बेटियाँ हमारा अभिमान हैं
अंत हो यौन शोषण के दरिंदों का अब यही अभियान है
शबनम मेहरोत्रा
नारी अत्याचार अपमान पर कविता : जला दो पाप की लंका Nari Atyachar Par Kavita
जला दो पाप की लंका
सुनों प्यारी बहनों सुनों प्यारी बहनों
सुनों मेरा कहना, हिम्मत तुमको रखना
इन पापियों से नहीं है घबराना
तुम्हे दुर्गा, चंडी झांसी की रानी बनना
इन पापियों का चुन चुन के वध करना
दिखाए कोई आँख तो आँखे निकाल लेना
गलत बोल बोले जबान खींच लेना
चार पाँच पर अकेली काफी हो समझ लेना
नहीं इन पापियों में कोई ताकत होती है
हाथ तुम पर लगाए तुम चंडी बन जाना
चलाकर लात जांघो पर बेदम कर देना
नारी उत्पीड़न पर कविता Poem on Harassment Girl Molestation
मेरे हिंद की नारी तुम्हें अब नहीं घबराना
तुम्हे दुर्गा, चंडी,झांसी की रानी बनना
कानून के दरबारों में यहीं अब अर्ज अपनी
नारी को शस्त्र रखने का अधिकार दे दो
करें अपनी हिफाजत खुद ऐसा शस्त्र अब दे दो
जलाकर रख देंगी ये पाप की लंका
सफाया बलात्कारियों का कर देंगी
"लक्ष्य" शस्त्र रखने का अधिकार इन्हें दे दो
दुनियाँ सलाम करती है नारी शक्ति को
जागो बहनों अब अपनी पहचान तुम दे दो
स्वरचित .....निर्दोष लक्ष्य जैन
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