Ticker

6/recent/ticker-posts

पैसे की माया कविता | दुनिया पर कविता | रुपया पर शायरी

पैसा या परिवार शायरी | पैसे पर घमंड शायरी

हिंदी कविता

पैसे

पैसे के पीछे भाग रही,
यह सारी दुनियाँ,
चाहे अजीत,एडवर्ड,
युसुफ हो या मुनिया।
खत्म हो रही मानवता,
इंसानियत हुई गौण,
संवेदना हो रही खत्म,
करुणा हुई अब मौन।
बना दिया पैसे ने सबको,
महज एक व्यापारी,
भाग रहे पैसे के पीछे,
बनकर एक जुआरी।
भूल गये मानवता हम,
भूल गये हम प्यार,
नहीं रही वो भाईचारा,
रहा नहीं वो शिष्टाचार।
अरविन्द अकेला

क्या दुनिया में पैसा ही सब कुछ है? | पैसे की ताकत शायरी

क्या दुनिया में पैसा ही सब कुछ है? | पैसे की ताकत शायरी

पैसे पर कविता हिंदी में

पैसा नहीं सबकुछ जीवन में

Paisa Shayari in Hindi

पैसे के पीछे भाग रही,
यह सारी दुनियाँ,
चाहे अजीत,एडवर्ड,
युसुफ हो या मुनिया।
खत्म हो रही मानवता,
इंसानियत हुई गौण,
संवेदना हो रही खत्म,
करुणा हुई अब मौन।
बना दिया इस पैसे ने,
हम सबको व्यापारी,
भाग रहे पैसे के पीछे,
बनकर हम जुआरी।
भूल गये मानवता हम,
भूल गये हम प्यार,
नहीं रही भाईचारा हममें,
रहा नहीं वो शिष्टाचार।
पैसा नहीं सबकुछ जीवन में,
समझो मेरे भाई,यार,
पैसे के पीछे गर भागोगे,
खत्म होगी मानवता,संसार।
अरविन्द अकेला

प्रेम कविता | Romantic Shayari | Love Shayari

उनकी सादगी पर मरते रहे

हम सदैव उनकी सादगी पर मरते रहे,
वो हमारे भोलेपन पर सँवरते रहे,
बोलो इस प्यार को मैं क्या नाम दूँ,
हम दोनो जहाँ हैं वहीं पर निखरते रहे ।
हमने लिखी कई कविता उनके नाम पर,
लिख लिखकर पास उनके भेजते रहे,
लाइक कर कमेंट किया हरबार उन्होनें,
तबसे लेकर आजतक हम लिखते रहे।
दूर रहकर भी एक दूजे से प्यार करते हैं,
एक दूजे पर खुशियां निसार करते हैं,
जब भी पड़ती एक दूजे पर नजर,
देखकर मन हीं मन दोनों इतराते रहे।
अरविन्द अकेला


समाजिक बुराईयों पर ग़ज़ल

गजल
मत घोलो तुम समाज में नफरतों का जहर,
देखकर सर्प भी अब हमसे शर्माने लगे हैं। 

अब नहीं रहा देश में वो भाईचारा व प्यार,
जबसे राजनीति हमारे दरम्यान आने लगे हैं। 

जनता के दिलों में जबसे पड़ने लगी दरारें,
तबसे नेताओं के अच्छे दिन आने लगे हैं। 

अब नेताजी करने लगे अपने क्षेत्र के दौरे,
देखा जब चुनाव सिर पर नजर आने लगे हैं। 

नेतागिरी में भी दिख रहा अब सुनहरा भविष्य,
अपने कलुआ को अब सब समझ में आने लगे हैं ।

लोगों ने भी बहुत सताया हमें अकेला जानकर,
अब हम भी उनके चेहरे से नकाब हटाने लगे हैं। 
अरविन्द अकेला

ढलती शाम कविता | मुश्किलें कविता | ज्ञानवर्धक कविता

कविता
कैसे कैसे दिन आ गये
जरा देखिये अब,
कैसे कैसे दिन आ गये,
इंसान नहीं सुहाते लोगों को,
जानवर उन्हें अब भा गये।
पहले दरवाजे पर आदमी रखते थे,
कोई जानवर अंदर नहीं जा पाये,
अब दरवाजे पर कुत्ते रखते हैं,
कोई आदमी प्रवेश नहीं कर जाये।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ