दहेज़ लोभी हत्यारे
लाऊँ क्या-क्या मैके से हाँ
जिद पर जिद तुम हरदम करते हो।
लाऊँ क्या-क्या मैके से हाँ
जिद पर जिद तुम हरदम करते हो।
Dahej Pratha Par Shayari - Dahej Par Slogans Quotes
दहेज़ लोभी हत्यारे
लाऊँ क्या-क्या मैके से हाँ
जिद पर जिद तुम हरदम करते हो।
यह बात पिता को बताऊँ कैसे?
मोटर कार लिए मरते हो।
घर तेरे ससुराल तुम्हारे
पिता ससुर मात सास होगी।
खुशियाँ के भण्डार नज़ारे
ननद तुम्हारी बहना होगी।
पर यह सब क्या बदले-बदले!
प्रियतम बदल गये तुम भी हो।
अथाह प्यार के खान समझे,
पर अधजल गगरी छलकत हो।
और अपराध बस है मेरे,
साथ-साथ जन्मा दो बेटी।
दूध-दूध है बस चिल्लाती
बाँहें मेरे लेटी-लेटी।
क्या उसे पता है जब जिसने,
माता जिन्दगी सँवारे थे।
लोभ प्रवृति में फँसकर वो तो,
पत्नी के अब हत्यारे थे।
प्रभाकर सिंह
नवगछिया, भागलपुर
बिहार
लाऊँ क्या-क्या मैके से हाँ
जिद पर जिद तुम हरदम करते हो।
यह बात पिता को बताऊँ कैसे?
मोटर कार लिए मरते हो।
घर तेरे ससुराल तुम्हारे
पिता ससुर मात सास होगी।
खुशियाँ के भण्डार नज़ारे
ननद तुम्हारी बहना होगी।
पर यह सब क्या बदले-बदले!
प्रियतम बदल गये तुम भी हो।
अथाह प्यार के खान समझे,
पर अधजल गगरी छलकत हो।
और अपराध बस है मेरे,
साथ-साथ जन्मा दो बेटी।
दूध-दूध है बस चिल्लाती
बाँहें मेरे लेटी-लेटी।
क्या उसे पता है जब जिसने,
माता जिन्दगी सँवारे थे।
लोभ प्रवृति में फँसकर वो तो,
पत्नी के अब हत्यारे थे।
प्रभाकर सिंह
नवगछिया, भागलपुर
बिहार
अभी आपने दहेज़ प्रथा पर प्रभाकर जी की यह सु़ंदर कविता पढ़ी। अब पढ़ते हैं, हिंदी उर्दू साहित्य संसार द्वारा प्रस्तुत कुछ नारे स्लोगन और छोटी छोटी कविताएं जिनकी रचना स्वयं हिंदी उर्दू साहित्य संसार द्वारा की गई है।
हिंदी उर्दू साहित्य संसार - Hindi Urdu Sahitya Sansar
दहेज प्रथा पर पोस्टर - Dahej Shayari Image
दहेज़ लोभी पर विचार कविता - Dahej Shayari In Hindi
पढ़िए दहेज़ प्रथा के खिलाफ कुछ नारे, स्लोगन, दहेज़ प्रथा पर २ लाइन शायरी और विचार।
दहेज़ प्रथा के विरोध में नारे और स्लोगन - Dahej Pratha Ke Virodh Mein Naare Aur Slogan
दहेज़ प्रथा के रिवाजों को मिटाना होगा,
रिश्ता दौलत से नहीं, प्यार से निभाना होगा!
सोच समझ कर करना बेटी का विवाह,
क्यों कि ये लुटेरों का समाज है,
यहाँ दुल्हे का मुल्य करोड़ो है और
दुल्हन की जान मुफ़्त है!
दहेज़ ही इनका भगवान है,
दहेज़ इनका ईमान है!
दहेज प्रथा पर छोटी सी कविता
बीच सभा में लेना दहेज,
लगता है व्यापारों सा,
अब शादी का मंडप भी,
लगता है बाजारों सा।
लाज नहीं कुछ शर्म नहीं,
इनको मांगा मांगी में,
हँसते रहते ऊपर से,
अंदर हैं, हत्यारों सा!
Slogans Against Dowry - दहेज प्रथा पर भाषण
आखिर कब तक अबला बनकर,
चीखेगी और चिल्लायेगी,
दौलत की लालच में तुझको,
कब तक दहेज़ की बलि चढ़ाई जायेगी?
●
खुद पैसा कमा नहीं सकते,
वो हाथ अपना फैला देते,
कुछ ऐसे भिखारी लोगों ने
बेटे को बिकाऊ बना दिया!
●
दहेज़ समाज के लिए ऐसा अभिशाप है!
जहाँ बेबस और लाचार बाप पूछता है,
क्या बेटी होना कोई पाप है?
●
दहेज के लोभियों ने अनगिनत बेटियों की जान ली है,
कुछ ऐसे भिखारियों ने दहेज को अपना हक़ मान ली है।
●
दहेज की पीड़ा उस बाप से पुछिए!
जिसने अपनी ज़मीन भी गंवाई और बेटी भी!
●
इक दहेज़ की आग ने झुलसाए कितने श्रृंगार,
लाशें कितनी दफ़न हुईं, उजड़े हैं कितने संसार।
●
औरत ही ने प्यार लुटाया,
दिया जहाँ को नूतन ज्ञान,
फिर भी क्यों दानव दहेज़ का,
छीना औरत का सम्मान?
●
कब तक इस गंदी दलदल में,
फंसें रहेंगें लोभी लोग,
नारी को कब तक कुचलेगा,
यह दहेज का गंदा रिवाज?
पढ़िए दहेज़ प्रथा पर कुछ और शायरों और कवियों की अलग अलग रचनाएं:
दहेज अभिशाप है— दहेज एक अभिशाप पर कविता दहेज़ प्रथा पर स्लोगन
दहेज अभिशाप है
दहेज एक पाप है,
दहेज एक अभिशाप है,
दहेज एक कलंक है,
दहेज जहरीला डंक है,
दहेज एक कुरीति है,
दहेज नही अच्छी रीति है,
दहेज एक अपराध है,
दहेज गंदी गाध है,
दहेज समाज का अपमान है,
दहेज से नही मिलता सम्मान है,
दहेज एक कुसंस्कार है,
दहेज एक बीमारी है,
बेटी के बाप की लाचारी है,
.....इसीलिए
दहेज मत लो,
दहेज मत दो,
दहेज को त्याग दो,
दहेज से बचो,
दहेज का बहिष्कार करो,
दहेज का तिरस्कार करो,
दहेज का अंतिम संस्कार करो,
दहेज का इलाज करो,
दहेज विहीन समाज का निर्माण करो,
........सबको पता है यह कुरीति है फिर भी
लोग दहेज लेते है,
लोग दहेज देते है,
दहेज के लिए जमीन बेच देते है,
दहेज के लिये जमीर बेच देते है,
दहेज के लिए कर्जा करते है
अपनों से ही सौदाबाजी करते है,
दहेज के लिए लड़ते है,
दहेज के लिए झगड़ते है,
दहेज के लिए मरते है,
पाप करने से नही डरते है,
दहेज को सम्मान मानते है,
दहेज को अधिकार मानते है,
..... अतः दहेज से बचने के लिए
बेटी को अच्छी शिक्षा दो,
बेटी को अपने पैरों पर खड़ा कर दो,
बच्चों को अच्छे संस्कार दो,
समाज को समझाओ,
जहाँ हो दहेज वहां मत जाओ,
दहेज वाली शादियों का भोज मत खाओ,
दहेज प्रथा के विरुद्ध अभियान चलाओ,
दहेज लोभियों को नीचा दिखाओ,
....नही तो एक दिन यह दहेज
अगली पीढ़ी को भूमिहीन कर देगा,
समाज मे हीन भावना भर देगा,
समाज को चीर चीर कर देगा,
समाज की मिट्टी पलीत कर देगा,
समाज के मान को खा जाएगा,
समाज के सम्मान को खा जाएगा,
आपसे करबद्ध विनती है
दहेज के विरुद्ध मेड़तिया का साथ दो,
दहेजरूपी दानव को अब मात दो,
दहेज लोभियों को दो लात दो,
दहेज विरोधियों का साथ दो,
लेखक: वीरेन्द्र प्रताप सिंह
डीघा गोपालपुर, अमेठी
दहेज़ पर शायरी | नारी के अपमान पर शायरी : एक ख़त बाबा के नाम
एक ख़त बाबा के नाम
ब्याह के बाद, पहली बार पैग़ाम आया।
छोटों को प्यार, बड़ों को सलाम आया।
बेचैनी थी सभी के दिल में कि आखिर,
वजह क्या है जो पिता का नाम आया।
बचपन से आपने अच्छा संस्कार दिया,
बाबा आपने मुझपे बहुत उपकार किया,
ग़ैर मर्द पे कभी निगाह भी न किया कभी,
जो आपने चाहा वही सपना साकार किया।
उम्र की दहलीज़ पे क़दम बढ़ने लगी,
शादी की चिंता, सबके दिल में बढ़ने लगी,
आपने दहेज देने से जब इनकार किया,
रिश्ता भी दस्तक देना बंद होने लगी।
तभी, कहीं से एक रिश्ता घर में आ गया,
दहेज़ की माँग न थी और फिर तय हो गया।
चट मंगनी और पट शादी की बाद,
दो हफ्तों में ही मुझे विदा किया गया।
ट्रेन के सफ़र पे, नई उमंग साथ लेकर चली,
कुछ दूर चलने पे एक अजीब हरकत पता चली,
सास-ससुर नहीं थे वो, कुछ लोगों का समूह था,
सब उतर गए, मैं अपने पति संग आगे बढ़ने लगी।
मुझे एक होटल ले जाया गया,
बड़े प्यार से पैसों पे बोली लगाया गया।
दुहाई देती रही, मिन्नतें करती रही,
कोई न समझा दर्द, सिर्फ़ मुझे तड़पाया गया।
सारी बात मेरी समझ में आने लगी,
हर रात बिस्तर पे मैं जाने लगी,
हर किसी से एक बार जरूर करती थी मिन्नत,
एक फ़रिश्ता मिला, जिससे उम्मीद बंधाने लगी।
दास्ताँ सुनकर उसे मुझपे तरस आ गया।
बहन बोल मुझे एक रौशनी दिखा गया,
बहन क्या करूँ ख़ातिर तुम्हारी इतना बताओ,
ख़त मेरे बाबा तक पहुंचा दो, ये जुमला दोहराया गया।
बाबा मेरे, अगर हो सके तो इतना दौलत ज़रूर कमाना,
दहेज माँगने वाले कुत्तों के आगे, हड्डियाँ फेंक आना,
मेरी छोटी बहन है, कोई जल्दी न हो पाए,
सिर्फ़ बिन दहेज वाले के आगे, आँखें मूंद कर न दे आना।
जब तक ये पैग़ाम आप तक आएगा,
ये जिस्म से रूह परवाज़ कर जाएगा।
मेरी मौत का कोई ग़म न करना,
ज़िंदा थी कहाँ, मेरी लाश कोई क्या ले जाएगा।
ज़िंदा थी कहाँ, मेरी लाश कोई क्या ले जाएगा।
यह हैदराबाद की सच्ची कहानी है, जो ख़त का पैग़ाम कोलकाता से आया था। कृपया अभद्र टिप्पणी न करें। धन्यवाद
नीलोफ़र फ़ारूक़ी तौसीफ़
मुंबई
Nilofar Farooqui Tauseef
Fb, IG-writernilofar
दहेज़ प्रथा पर भोजपुरी कविता - Dahej Pratha Par Bhojpuri Shayari
दहेज
घर घर आ गाम समाज में पसरल नोर कहैया
चुप चाप रोष अप्पन निज देखा रहल घरबैया
कदम कदम पर दानव के देखियौ रहल शोर मचाय
पढ़ल लिखल परिवार में देखलौं बेटी मारल जाय।।
जे स्वयं धिया हुनक हिया स दया गेल पडाय
राखी के दिन सूतक लेल सुत नीर बहाए
ज बेटी थिक समाजक लेल अभिशाप त
कियाक दुर्गा काली सरस्वती शक्ति पूजल जाय
पढ़ल लिखल परिवार में देखलौं बेटी मारल जाय।।
कतहु पावक में झड़कौल जा रहल या देह
कतहु देखी घसिटल जा रहल अछि केश
वैद्य के गृह में देखलौं कोइख उजाड़ल जाय
पढ़ल लिखल परिवार में देखलौं बेटी मारल जाय।।
पूत के पढा लिखा क कहु अहाँ के की सब भेटायल
चाची-दादी-पड़-पड़ोसिन फुसर फुसर बतियाय
देखु पढ़ल लिखल अधिपति स भूपति धैर
दहेजक आशा में देलखिन निज पाग गिराय
पढ़ल लिखल परिवार में देखलौं बेटी मारल जाय।।
मनबा लेल छथिन लक्ष्मी काली आ देवीक रूप
मुदा मानल जा रहल अछि कुलक्षणी स्वरूप
सभक मून मिजाज टटोलने बहरायल
ज अभिशाप धिया त कियाक सीता पूजल जाय
पढ़ल लिखल परिवार में देखलौं बेटी मारल जाय।।
ज नय रहथिन सुता जग में त जगक की हैत
अन्न धन लक्ष्मी स भरल परिवार में की भेटायत
पूजा करू या त्याग करू मुदा नै ई पाप करु
अंकुरित बीज के पुष्पित करबाक प्रयास करू
ई दहेजक दानव अप्पन पैर रहल नित्य पसाइर
मनुष्यता पर प्रश्नचिह्न लगा क ठेंगा देखाय
अप्पन आत्मा में पैस क देखु की उचित निर्णय
नय त हाथ के मलैत मिथ्या नयन नोर बहाय
पढ़ल लिखल परिवार में देखलौं बेटी मारल जाय।।
सोनू कुमार मिश्रा
दहेज प्रथा पर मैथिली गीत – बिना टाका के तिलक गनबै कोना
मैथिली साहित्य
विषय-गीत
दिनांक-२१/०९/२१
दहेज प्रथा गीत
गनबै कोना गनबै कोना गनबै कोना गनबै कोना,
बिना टाका के तिलक गनबै कोना----२ गनबै कोना---२।
लड़का के बाप माॅ॑गेय टाका दस लाख
जिनका खाना पर आफत नैय रहैय के ठहार,
देबै कोना देबै कोना देबै कोना देबै कोना
तकरा दस लाख तिलक देबै कोना--२,
गनबै कोना गनबै----२बिना टाका----२।
एक बिगहा खेत सेहो लागलयेअ सुदभरना
बेटी येअ चार तकर शादी जल्दी करना,
उबरबै कोना उबरबै कोना उबरबै कोना उबरबै कोना
ई संकट सॅ बाजू उबरबै कोना,
गनबै कोना गनबै----२बिना टाका----२।
हमहूॅ॑ गरीब कहुॅ॑ना जीवन खेपै छी
बेटी के मुॅ॑ह देखी सदिखन कानै छी---२,
देबै कोना देबै कोना देबै कोना देबै कोना देबै कोना
तकरा चाॅ॑द सनक बेटी देबै कोना-२
गनबै कोना गनबै----२बिना टाका----२।
नीतू रानी "निवेदिता"
पूर्णियाॅ॑ बिहार
Slogans Against Dowry System Hindi
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