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या खुदाया, मुबारक इस संसार को।
मैं हिंदू,तूँ मुस्लिम, ये सिक्ख, वो ईसाई,
लहू के टुकड़े टुकड़े,सब ने कर दिए रे भाई।
देखा कतरे कतरे में,नफरत और तकरार को,
या खुदाया,मुबारक इस संसार को।
माँ -बाप,बीबी-बच्चे, सबके भाई बहने,
नफरत की बहती दरिया में,सब हैं सहमे-सहमे।
कोई हवा न दो भँवर में, अब पतवार को,
या खुदाया, मुबारक इस संसार को।
वाहे गुरु, गॉड, ईश्वर-अल्ला, खुदा,
किस चश्मे ने मालिक को, किया जुदा- जुदा।
छिन्न-भिन्न कर दो,सियासी बाजार को,
या खुदाया, मुबारक इस संसार को।
प्रीतम कुमार झा
महुआ, वैशाली, बिहार
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