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Samajik Burai Par Shayari Poem On Social Evils राजनीतिक तंज शायरी

नए समाज के लिए कविता - सामाजिक समरसता पर कविता - सामाजिक बुराई पर शायरी

सीता बिलखे घाट पे, शूर्पणखा का राज।
मैं यारों विह्वल हुआ, कैसा बना समाज।।

कुत्ता पूजत लोग हैं, करत गाय उपहास।
अस लोगन से क्या करूँ, मैं नेकी की आस।।

समरस सजग समाज की, बात चले हर ओर।
समरसता समझे नहीं, बेमतलब का शोर।।

कहे बिजेन्द्र विचार के, साधक बन मन साध।
आस पराई छोड़ दे, नहीं मिलेगी बाध।।

आस करो बस आप से, आपै पर विश्वास।
महासमर के बीच भी, होगा नहीं उदास।।

बिजेन्द्र कुमार तिवारी
बिजेंदर बाबू

Samajik Burai Par Shayari Poem On Social Evils

Samajik Burai par shayari poem on social evils

राजनीतिक तंज शायरी समाज सुधार शायरी

Samajik Burai Par Shayari

ग़ज़ल
यूँ नगर को सजाया गया
झोंपड़ों को हटाया गया

पी लिया हंस ने शौक़ से
दूध पानी मिलाया गया

लोग हँसते हुए रो पड़े
स्वाँग ऐसा रचाया गया

काम आई न कोई दवा
रोग इतना बढ़ाया गया

फिर न गंगा कहीं वो मिली
फिर न मुझसे नहाया गया

मूल क़ायम रहा उम्र-भर
सूद कितना चुकाया गया
मधुवेश

सत्ता पर शायरी कटाक्ष शायरी

ग़ज़ल पेश है

जाने ऐसा क्या मिला था दाल में
हो गई ज़ाहिर मिलावट माल में

घर में चुस्ती गुम थी जिसकी चाल में
वो ही इतराता रहा चौपाल में

नींद, सपने, चैन जिसका खो गया
पूछना उससे न हो किस हाल में?

चार दानों की कशिश पर मर मिटा
वरना क्यों फंसता वो पंछी जाल में

वह दरीचों पर थी दस्तक दे रही
बूंदा बूंदी छम छमा कर ताल में

चाँद धरती पर उतर आया था तब
देखा ‘देवी’ ने उसे जब थाल में
Devi Nangrani

Ladkiyon Ke Shoshan Aur Atyachar Per Kavita

बेटियों को तो वर्जनाएँ हैं __
नफरतों से भरी फ़िज़ाएँ हैं,
ज़हर आलूद ये घटाएँ हैं।
खुशबुएँ छिन गयी हैं जीवन से,
कितनी ज़हरीली ये हवाएँ हैं।
क़ातिलों को मिले सभी तमगे,
बेगुनाहों को सब सज़ाएं हैं।
बात करते हैं अम्न की लेकिन,
रक्तरंजित मगर कथाएँ हैं।
काम कोई नहीं युवाओं को,
इस लिए जुर्म है खताएं हैं।
अब कहीं मज़हबी न झगड़े हों,
हर घड़ी बस यही दुआएँ हैं।
है ये इक्कीसवीं सदी नीलम,
बेटियों को तो वर्जनाएँ हैं।
डा० नीलिमा मिश्रा
प्रयागराज

Justice For Manisha Valmiki

किया है रेप फिर से एक बेटी का दरिंदों ने,

न जाने बेटी अब कितनी कोख़ में मार दी जाएं !
वो बेटी थी किसी की, थी किसी की बहन भी तो वो,
दरिंदों की कलाई से भी राखी उतार दी जाएं !
यहां राखी उतारने से मेरा मतलब उनकी बहनें उन्हें भाई ही न बोलें!
हाथरस में हुए इस जघन्य कृत्य लेकर मन बड़ा विक्षिप्त है आखिर जैसे कोई इस हद तक गिर सकता है क्या एक बार भी अपनी बहन का ख्याल मन में नहीं आता!
JusticeForManisha

दिल से...

चौधरी कुंवर सिंह 'कुंवर'

सहारनपुर, उत्तर प्रदेश!

Maa Shayari Maa Par Kavita
एक ग़ज़ल
मायूस किसी हाल में होने नहीं देती
माँ बच्चों को भूखा कभी सोने नहीं देती

सरहद की हिफ़ाज़त के लिए ख़ाक वतन की
बन्दूक़ थमाती है खिलौने नहीं देती

फुटपाथ पे दम तोड़ती रहती है ग़रीबी
एक छत भी मयस्सर कभी होने नहीं देती

ये कैसी सियासत है ये कुर्सी की लड़ाई
जो भाई को भी भाई का होने नहीं देती

ख़ामोश हूँ लेकिन मैं समुंदर भी नहीं हूँ
हालात की गर्दिश नदी होने नहीं देती

पलकों के किनारे भी नहीं भीगते "अतिया"
अब दर्द की बारिश हमें रोने नहीं देती
अतिया नूर
प्रयागराज इलाहाबाद

Samajik Mudde Par Motivational Shayari

रास की कलम से
घर में कैसे रहते छुपकर देखा है
ठंडा चूल्हा जल न सका वो मंजर देखा है

आज बताना दुनिया में क्या ढूँढ सके
आदम हव्वा मुझसे बेहतर देखा है

एक इबारत आज इबादत पढ़ न सके
सूखे पत्तों पर वो अक्षर देखा है

सन्नाटे को चीर निकलते झोंके हैं
सन सन करते हमने अक्सर देखा है

जब धरती भूखी प्यासी रोज तड़पती
रोता और सिसकता अंबर देखा है

कतरा कतरा करके जिनसे खून बहा
उन आँखों में ज़ब्त समंदर देखा है

'रास' बताए सारे जग को सच्चाई
ऐब छिपाने ओढ़े चादर देखा है

धन्यवाद

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