नए समाज के लिए कविता - सामाजिक समरसता पर कविता - सामाजिक बुराई पर शायरी
Samajik Burai Par Shayari Poem On Social Evils
राजनीतिक तंज शायरी समाज सुधार शायरी
Samajik Burai Par Shayari
यूँ नगर को सजाया गया
झोंपड़ों को हटाया गया
पी लिया हंस ने शौक़ से
दूध पानी मिलाया गया
लोग हँसते हुए रो पड़े
स्वाँग ऐसा रचाया गया
काम आई न कोई दवा
रोग इतना बढ़ाया गया
फिर न गंगा कहीं वो मिली
फिर न मुझसे नहाया गया
मूल क़ायम रहा उम्र-भर
सूद कितना चुकाया गया
मधुवेश
सत्ता पर शायरी कटाक्ष शायरी
ग़ज़ल पेश है
जाने ऐसा क्या मिला था दाल में
हो गई ज़ाहिर मिलावट माल में
घर में चुस्ती गुम थी जिसकी चाल में
वो ही इतराता रहा चौपाल में
नींद, सपने, चैन जिसका खो गया
पूछना उससे न हो किस हाल में?
चार दानों की कशिश पर मर मिटा
वरना क्यों फंसता वो पंछी जाल में
वह दरीचों पर थी दस्तक दे रही
बूंदा बूंदी छम छमा कर ताल में
चाँद धरती पर उतर आया था तब
देखा ‘देवी’ ने उसे जब थाल में
Devi Nangrani
Ladkiyon Ke Shoshan Aur Atyachar Per Kavita
नफरतों से भरी फ़िज़ाएँ हैं,
ज़हर आलूद ये घटाएँ हैं।
खुशबुएँ छिन गयी हैं जीवन से,
कितनी ज़हरीली ये हवाएँ हैं।
क़ातिलों को मिले सभी तमगे,
बेगुनाहों को सब सज़ाएं हैं।
बात करते हैं अम्न की लेकिन,
रक्तरंजित मगर कथाएँ हैं।
काम कोई नहीं युवाओं को,
इस लिए जुर्म है खताएं हैं।
अब कहीं मज़हबी न झगड़े हों,
हर घड़ी बस यही दुआएँ हैं।
है ये इक्कीसवीं सदी नीलम,
बेटियों को तो वर्जनाएँ हैं।
डा० नीलिमा मिश्रा
प्रयागराज
Justice For Manisha Valmiki
दिल से...
चौधरी कुंवर सिंह 'कुंवर'
सहारनपुर, उत्तर प्रदेश!
Samajik Mudde Par Motivational Shayari
घर में कैसे रहते छुपकर देखा है
ठंडा चूल्हा जल न सका वो मंजर देखा है
आज बताना दुनिया में क्या ढूँढ सके
आदम हव्वा मुझसे बेहतर देखा है
एक इबारत आज इबादत पढ़ न सके
सूखे पत्तों पर वो अक्षर देखा है
सन्नाटे को चीर निकलते झोंके हैं
सन सन करते हमने अक्सर देखा है
जब धरती भूखी प्यासी रोज तड़पती
रोता और सिसकता अंबर देखा है
कतरा कतरा करके जिनसे खून बहा
उन आँखों में ज़ब्त समंदर देखा है
'रास' बताए सारे जग को सच्चाई
ऐब छिपाने ओढ़े चादर देखा है
धन्यवाद
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