Ticker

6/recent/ticker-posts

वेश्याओं की जिंदगी पर शायरी - तवायफों पर शायरी Poetry On Tawaifs

वेश्यावृत्ति, वेश्या, तवायफ़ पर शायरी - सामाजिक बुराई शायरी

सुन दास्तान बदनाम बस्ती की।
आबरू बन गई है चीज मस्ती की।
माया से भी इस जगह बिक रही काया सस्ती की।
बसुंधरा पर बनी हूँ कठपुतली साहुकारों की हस्ती की।
ये है दास्तान बदनाम बस्ती की।।

जवानी लेके मैं बैठी अंजानो की कश्ती में।
वो पहूँचा दिए मुझे बदनाम सी बस्ती में।
हर रात मैं लुटती हूँ गैरों की बस्ती में।
नोचते हैं लोग मुझे दामों की किस्ती में।
ये है दास्तान बदनाम बस्ती की।।

सजती सँवरती पर सिंदूर नही भरती हूँ।
रिश्तों की डोर से भी अब मैं डरती हूँ।
लोगो का आना जाना देख आग सुलगती है।
अपनों को ये मर्द चीज़ कितनी छलति है।
ये है दास्तान बदनाम बस्ती की।।

हर शाम मेरी जवानी घोल के शराब में पीते हैं।
रजनीगंधा, चम्पा, बेली समझकर कुचलते हैं।
आबरू के लुटेरे न जाने किस किस भेस में मिलते हैं।

गंगा के पुजारी भी मंडी में भाव लगाते हैं।
रक्षक भी इस चौखट पर भक्षक बन आते हैं।
वर्दी की लाज हर रात गिरवी रख जाते हैं।
खादी के चरखों से मिल यह चाक चलाते हैं।
न जाने इस बदनाम बस्ती में कितने हाथ मिलाते हैं।
ये है दास्तान बदनाम बस्ती की।।

भूख की आग में हर रात बेइज्जती की रोटी खाती हूँ।
जाने अनजाने में कभी अपनों को पाती हूँ।
पाप की बीज कोठों पर अंकुरति हूँ।
किसी की भूल की सज़ा में, मैं खुद को हर रोज़ तिल तिल लुटाती हूँ।
ये है दास्तान बदनाम बस्ती की।।2
विशाल कुमार(अ-छुआ)

रेड लाइट एरिया - Red Light Area : वेश्यावृत्ति की दर्द भरी दास्तां

स्याही न जाने क्यों, उस पन्ने की तलाश में है।
कफ़न मिला है जिस्म को, या उसी लिबास में है।

आज फिर किसी की चीख़ फ़लक से टकराई है,
यूँही तो नहीं टूट कर बिजली ज़मीन पे आयी है।

शरीफ़ों के शहर के बीच, एक छोटा सा मकाम है,
इन्हीं शरीफ़ों की वजह से, ये गलियाँ बदनाम है।

रात की तारीकी में, मुँह छुपा कर आते हैं,
दौलत की नुमाईश पे, हवस का खेल रचाते हैं।

कभी ग़रीबी तो कभी बेबसी का नाम देकर छोड़ा,
हैवानियत के दरिंदो ने, मासूमियत को निचोड़ा।

कौन आवाज़ उठाये, हर किसी को इज़्ज़त प्यारी है,
जानते हैं सब, दुनिया के पहली और आख़री महामारी है।

इतिहास जब भी सुनहरे अक्षरों में लिखा जाएगा,
एक बदनुमा दाग़ बन रेड लाइट एरिया का नाम आएगा।
एक बदनुमा दाग़ बन रेड लाइट एरिया का नाम आएगा।
Nilofar Farooqui Tauseef
fb, ig-writernilofar

हाँ, ये वही बदनाम गलियाँ हैं : बदनाम गलियों पर शायरी | वेश्यावृत्ति के विरुद्ध कविता

हाँ, ये वही बदनाम गलियाँ हैं
हाँ, ये वही बदनाम गलियाँ हैं,
जहाँ हर रोज़ नाम वाले आते हैं।
अपने हवस की निशानी छोड़ जाते हैं।

हाँ, ये वही बदनाम गलियाँ हैं,
जहाँ हर दिन एक नया तमाशा होता है।
किसी की आबरू का जनाज़ा होता है।

हाँ, ये वही बदनाम गलियाँ हैं,
जहाँ हर रात महफ़िल सजाई जाती है,
चंद सिक्कों की ख़ातिर, बिस्तर लगाई जाती है।

हाँ, ये वही बदनाम गलियाँ हैं,
जहाँ लड़की होने पे जश्न मनाया जाता है,
पैरों में बेड़ियाँ डाल, घुँघरु बताया जाता है।

हाँ, ये वही बदनाम गलियाँ हैं,
जहाँ आबरू सरे आम लूटी जाती है,
ज़िंदा लाश बनी लड़कियाँ, घोंटी जाती है।

हाँ, ये वही बदनाम गलियाँ हैं,
जहाँ बेटी हो या बहन रिश्ता नहीं देखा जाता है,
धंधे की आग में सब को धकेला जाता है।

हाँ, ये वही बदनाम गलियाँ हैं,
जहाँ कल भी बेचा थी, आज भी बिकती हैं,
कल भी मरती थीं, आज भी मिटती हैं।

हाँ, ये वही बदनाम गलियाँ हैं,
जहाँ हर एक आह की बोली लगाई जाती है,
हवस की आग, उसी आह से बुझाई जाती है।

हाँ, ये वही बदनाम गलियाँ हैं,
जहाँ क़ीमती लिबास का कोई मोल नहीं होता है,
इंसान का वजूद पुर्ज़ा-पुर्ज़ा कहीं पड़ा होता है।

हाँ, ये वही बदनाम गलियाँ हैं,
जहाँ हर युग से कल युग तक वही खेल है,
रिश्ता तो सिर्फ़ एक, जिसका नाम 'रखेल' है।

हाँ, ये वही बदनाम गलियाँ हैं,
जहाँ क़लम की स्याही भी दम तोड़ देती है।
ज़माना क्या कहेगा, कहकर छोड़ देती है।

हाँ, ये वही बदनाम गलियाँ हैं,
हाँ, ये वही बदनाम गलियाँ हैं।
नीलोफ़र फ़ारूक़ी तौसीफ़


वेश्याओं पर कविता : वैश्या.....एक गाली

हर रात बदनाम गलियों का नज़ारा,
ख़ौफ़ व दहशत में भी लगता प्यारा।
हर रात नए रूप में सजी दुल्हन,
सुबह होते ही बन जाती उतरन।
सब कुछ होकर भी, झोली है ख़ाली,
कहते हैं सब वैश्या, क्यों देते गाली ???

न ये रास्ता अपना, न ही ये मन्ज़िल,
निशान छोड़ गया, दिखा कर साहिल।
लड़की होने पे, बहुत खुशियां मनाते,
बेड़िया पहना कर, मर्दों में नचाते।
तन्हाई में यही सवाल है सवाली।
कहते हैं सब वैश्या, क्यों देते गाली ???

बाहरी रूप को हुस्न ने सजा रखा है,
ग़म की सिलवटों को मिटा रखा है,
समाज में जीने का नहीं अधिकार,
जीना भी चाहूँ तो मिलती है दुत्कार।
जाने कैसा ये भ्रम सबने है पाली,
कहते हैं सब वैश्या, क्यों देते गाली ???

जिस्म का पुर्ज़ा-पुर्ज़ा टूट जाता है,
हवस का पुजारी गले लगाता है।
छीन जाता है रूह ,जिस्म से इस क़दर,
मुझमें बेजान लाश की हो क़ब्र
लहू के क़तरे से मनाते हैं दीवाली
कहते हैं सब वैश्या, क्यों देते गाली ???
कहते हैं सब वैश्या, क्यों देते गाली ???


नीलोफ़र फ़ारूक़ी तौसीफ़
मुंबई
Nilofar Farooqui Tauseef ✍️
Fb, ig-writernilofar

Veshyaon Ki Zindagi Par Shayari - Poetry On The Life Of Prostitutes

वेश्याओं की जिंदगी पर शायरी फोटो - तवायफों पर शायरी इमेज़ Poetry On Tawaifs Image.webp

हवस शायरी जिस्म का बाजार शायरी Hawas Shayari In Hindi

ग़ज़ल
हवस ने रख दिया बाज़ार में सजा के मुझे,
सभी ने देखा तमाशा मेरा बना के मुझे।।

मेरे बदन पे है संदल का कुछ असर शायद,
परख रहा है ज़माना जला जला के मुझे।।

मैं वो चिराग नहीं जो हवा में बुझ जाऊँ,
जला के देख कभी रूबरू हवा के मुझे।।

मैं सारे ऐब बता दूगाँ तेरी फ़ितरत के,
नज़र के सामने रख आइना बना के मुझे।।

मैं रास्ते में पड़ा संग तो नहीं हूँ मधुर,
गुज़र रहे हैं सभी ठोकरें लगा के मुझे।।
रचनाकार नित्यानन्द
पाण्डेय 'मधुर'
देवरिया उत्तरप्रदेश

तवायफों पर शायरी Poetry On Tawaifs

Read More और पढ़ें:

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ