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अस्पताल में कुव्यवस्था और भ्रष्टाचार पर कविता | Corruption

Bhrashtachar Par Kavita | Poem on Corruption in Hindi

Bhrashtachar par kavita | Poem on Corruption in Hindi

भ्रष्टाचार के खिलाफ स्टेटस | भ्रष्टाचार पर कटाक्ष

सौदा लाश का

शहर के एक किनारे पर एक अस्पताल है
सुना है की वहा धरती के भगवान रहते है
बीमार लाचार बेबश होते जो तन- मन से
सुना है उसका वे मिलकर उपचार करते है
लेकिन किसे पता क्या-क्या खेल होता है
उपचार के साथ व्यवसाय का मेल होता है
बिक जाती है जिंदगियाँ लोगो की वहां पर
लूट जाती है सारी जमा पुंजिया वहां पर
ईलाज के नाम दवाईयों का बोझ होता है
सौदा जिंदगी-मौत का वहां रोज होता है।।

भ्रष्टाचार पर शायरी और कविता

पड़ोस में एक और अस्पताल है सरकारी
जिसे शायद जकड़ चूंकि है कोई बीमारी
उपचार के नाम पर है बस कागजी घोड़ा
मरीज की जिंदगी भगवान भरोसे छोड़ा
सुना है कि वह चलती आवाम के कर से
दुर्गंध बदतर आती ज्यादा वहां नरक से
जाते है बेबश लाचार गरीब मजदूर वहां
जिन्हें न हो कोई सहारा वे मजबूर वहां
माथे पर जिनके गरीबी का बोझ होता है
सौदा जिंदगी-मौत का वहां रोज होता है।।

सामाजिक समस्या पर आधारित कविता

संयोग से देखकर एक दुखदायी घटना को
शायद ही शर्म थोड़ी आई होगी पटना को
मरीज तड़पता रहा लेकिन उपचार न मिला
मशीनें जंग खा रही थी मगर जांच न मिला
दौड़ा दौड़ा भागा वह निजी अस्पताल में
लाखों खर्च हो गए जहां उसे महज जांच में
उपचार में लूट गई दौलत-शोहरत सब वहां
परिवार सड़को पर आ चुका उसका वहां
स्थल है वही जहां पैसे का खोज होता है
सौदा जिंदगी-मौत का वहां रोज होता है।।

सामाजिक समस्या पर शायरी

दुख की खर्च के बाद भी वह बच न सका
टूटा परिवार की फिर वह सम्भल न सका
अब बिल भरनेवाले की होने लगी तलाश
गिरवी रख दी गई वहां मरीज की लाश
पहले पैसे दो तब यहां से लाश ले जाओ
काउंटर खुले हुए पहले पैसे जमा कराओ
लाश दे दीजिए भले गिरवी मुझे रखिये
मानवता की लाज रख निर्दयी मत बनिये
वहां लाश नही परिजन का बोझ होता है
सौदा जिंदगी-मौत का वहां रोज होता है।।

समस्या पर सुविचार

धैर्य रखिये पाई-पाई आपका दूंगी चुका मैं
काम पर रख लीजिए दूंगी कर्ज चुका मैं
पत्नी रोती विनती करती सुनने वाला कौन
अर्थ के आगे वहां मानवता चुनने वाला कौन
व्यवसाय धन से होती वेदना का काम नही
पैसे के आगे में संवेदना का कोई स्थान नही
घर-द्वार बिका बेचनी पड़ी उसे मंगल सूत्र
बिकने के बाद भी चुकी न ईलाज का शुल्क
वहां लाश पर भी किसी का तो मौज होता है
सौदा जिंदगी-मौत का वहां रोज होता है।।

ज्वलंत सामाजिक समस्या पर कविता

क्या बिका कितना कहु शेष है न कोई शब्द
क्या गढ़े क्या लिखे अब शेष है न कोई छंद
मानवता नग्न नृत्य खुलकर सरेआम करे
लाश का बाजार व्यवसाय बनकर खूब फले
शासन सत्ता बेसुध होकर लाचार बैठी है
हत्या कर अस्पतालों की मग्न मुद्रा में ऐंठी है
कबतक अश्रु गरीबो के आंखों से निकलेगा
उपचार मिलेगी मुफ्त या मौत भी यहां बिकेगा
ये महज एक दिन नही वहां तो रोज होता है
सौदा जिंदगी-मौत का ही वहां रोज होता है।।
सोनू कुमार मिश्रा

Shayari On Corrupt Dishonest Doctor - Corruption In Blood Bank

लहु के तस्कर
घायल पड़ा फुटपाथ पर
मौत की वह घाट पर
पहले तो एम्बुलेंस ना आई
किसी तरह मौत घबराई
अरे कोई इसे उठा तो लो
किसी गाड़ी में बैठा तो लो
ले जाया गया अस्पताल
जो खुद ही था बीमार
डॉक्टर वह क्या होता है
दवा-दारू किसने देखा है
जमीन पर मरीजो का उपचार
बिस्तरों पर सुगर अपार
तभी कही से एक दीदी आती
पट्टी बांधकर चली जाती
तड़प रहा था वह निरन्तर
जीवन लग रहा प्रलयंकर
आते है कुछ डॉक्टर भी
अस्पताल के इंस्पेक्टर भी
लेकिन होता है यह क्या
तड़प या किसी की जय
अभी तो खेला शुरू हुआ
झमेला सभी शुरू हुआ

भ्रष और बेईमान डॉक्टर पर शायरी - Hospital Shayari

पहले हो इसकी जांच
लेकिन कहा यह तो बताओ
करता कौन है यही समझाओ
अस्पताल में मशीने नही है
जो है वह जंग से रंगी है
ऊपर से जांच करेगा कौन
कक्ष के बाहर ताला मौन
जाओ बाहर में दुकान सजी है
एक दो नही हजार खुली है
वही जांच करवाकर आया
पूंजी सारी लुटाकर आया
देखकर डॉक्टर घबराए
मथा उनका जोरो चकराए
लाल रक्त बहुत कम है
जाओ जाकर व्यवस्था करो
ब्लड बैंक से लेकर आओ
लेकिन वहां कैसे मिले
कोई तो राह कहे
अब शुरू होता तमाशा
आधुनिक भारत पर तमाचा
ब्लड बैंक कंगाल बना है
खाली वहां पोस्टर टँगा है
लहु आज नही कल आना
चलता रहता सदा बहाना
करे क्या कोई जुगाड़ नही है
बताओ कोई रास्ता और नही है
है पास में विकल्प शेष
लेकिन करना होगा कार्य विशेष
यम से बचना लक्ष्मी लाओ
नोटो के कुछ छींटे उड़ाओ
बड़ा नही छोटा बाजार
एक अंक का दस हजार
दस हजार कुछ तो कम हो
हम गरीब हम पर रहम हो
नही नही सब दाम तय है
हमे भी तो सबका भय है
जल्दी करो जल्दी लाओ
वरना तुम कल फिर आओ
करता क्या भला वह बेचारा
तड़प रहा किस्मत का मारा
गरीब होना श्राप भयंकर
फलता फूलता लहु का तस्कर।
सोनू कुमार मिश्रा

चूहे की निगरानी | भ्रष्टाचार पर कविता

चूहे की निगरानी
चूहा काम कर रहा कि नही
क्या कितना गलत या सही
उसपर नजर रखना होगा
काज उसका चखना होगा
चलो मिलकर एक काम करे
चूहे के कार्यो की जांच करे
चूहों की जांच करेगा कौन
कैमरा वीडियो या फिर ड्रोन
न न इस पर खर्च बढ़ेगा
शायद कुछ बजट भजेगा
होगा राशि का बंटाधार
मिल बांटकर खाएंगे यार
एक को अधिकारी बनाओ
जांच की जिम्मेदारी ठमाओ
अरे रुको थोड़ा तो सुनो
अधिकारी में उसे ही चुनो
किसे बिल्ली को कुत्ता को
या फिर किसी सियार को
जो मूढ़ हो या ज्ञानी हो
जान न पाए अधिकार को
उससे बस काम करवाओ
जितना हो फायदा उठाओ
खेलो खेल जांच जांच का
हिसाब रखो छः पांच का
भले हो कोई सुधार नही
लेना सब रहे उधार नही
दस्ता कोई बड़ा गठित करो
ईंधन का मिल प्रबन्ध करो
जो चूहा हो चतुर चालाक
समझदारी हो जिसमें लाख
उससे करना न होशियारी
बचकर निकलना वहां से
इसी में होगी समझदारी
दिखे कोई मासूम लाचार
करना उसपर अतिअत्याचार
लूटकर कुछ धन भी लाना
कुछ खाना कुछ तो पचाना
करवाया गया चूहों की जांच
लगाया गया लांछन तमाम
इस तरह तय हुई जिम्मेदारी
चरण वन्दना की पूरी तैयारी
बिल्ली कुत्ता अन्य को छोड़ा
छोड़ा घर द्वार दुनियादारी
चूहे को ही सरदार बनवाया
करवाया चूहों की निगरानी।
सोनू कुमार मिश्रा

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