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मत करो पापा कन्यादान | कन्यादान पर कविता | शुभ विवाह गीत

पिता और बेटी पर कविता | बेटी पर मार्मिक कविता

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एक बेटी का दर्द | माँ बेटी का रिश्ता कविता

मत करो पापा कन्यादान
न मैं तिल हूंँ न मैं जौ हूंँ,
क्यों करते हो मेरा दान?
बंद करो यह झूठी रस्में,
मत करो पापा कन्यादान।।

खूँटे से मत बांँधो गईया,
हिरणी बन कर दौड़ूँ मैं।
पेड़ों से मत काटो डाली
फूलों- सा खिल जाऊंँ मैं ।।

तुम मत करो विसर्जन मेरा,
तुम मत करो मुझे निष्प्राण।
उठने दो दरिया में मौजें,
रहने दो मुझ में भी प्राण।।

स्त्री मन कविता

न दो कपड़े न दो जेवर,
दे दो घर का बस एक कोना।
गुड़ियों के संग खेली मैं,
वह पल रह जाए ना सूना।।

मत कहो पराया धन मुझको,
मैं भी हूँ तेरा ही अंश।
दाना चुग कर लाऊंँगी मैं
खूब चलेगा तेरा वंश।।

संसद में गूंँजे आरक्षण,
वर्ष रहा बिटिया के नाम।
इतने सारे चकाचौंध में
मैं बेचारी हुई अनाम ।।

घर से बेघर मत करो पापा,
दे दो मेरा भी अधिकार।
कालचक्र के पहियों के संग, श
स्वप्न करूंँ मैं भी साकार।।
न मैं तिल हूंँ न मैं जौ हूँ,
क्यों करते हो मेरा दान ?
बंद करो यह झूठी रस्में,
मत करो पापा कन्यादान।।
मीनू मीनल
राँची
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