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समाज के ज्वलंत मुद्दों पर शायरी | समाजिक बुराइयों पर शायरी

समाज पर कविता हिन्दी | सामाजिक कुरीतियों पर कविता

भ्रष्टाचार के खिलाफ स्टेटस-समाज के ज्वलंत मुद्दों पर शायरी | समाजिक बुराइयों पर शायरी

सामाजिक भेदभाव पर कविता | भ्रष्टाचार के खिलाफ स्टेटस

वैसे तो यह महज एक चौथाई है लेकिन फिर भी इसे पूरा पढ़ने के बाद ही कोई प्रतिक्रिया दे
कोई टूटा है कोई लुटा है
कोई तो है जो बिका है
मत पूछो टूटने वाले कौन है
लूटने वाले कौन है
और बिकने वाले कौन है
शायद झूठ चीखने लगा है
सत्य कही खोने लगा है
दुःशासन का साहस देखो
लंकापति का दुष्कर्म देखो
सब दिख जाएगा छिप जाएगा
या फिर कहिपर बिक जाएगा
बिकने वाले एक है तो क्या हुआ
खरीदने वाले तो हजार है
कोई फल फूल रहा तो क्या हुआ
कोई तो बेबश लाचार है
देखो देखो ईमान बिका
फूल और पाषाण बिका
बचा है कुछ शेष या
फिर कोई इंसान बिका
सत्य कहा तक चलेगा
बोलो कितना संघर्ष करेगा
धैर्य रखो इस बाजार में
सच सरेआम बिकेगा

Poem On Social Issues In Hindi

टूटने दो लूटने दो
बिकने तो बाजार में
चिंता किस बात की तुम्हे
झूठ छपेगी अखबार में
कवि की कलमे बिकेगी
शायर की शायरी बिकेगी
बिक जाएंगे मंच तमाम
मुँह पर लग जाएगा लगाम
कोई बिक कर मरेगा
कोई सौदा लाश की करेगा
कोई कफ़न बेच आएगा
कोई चिता को लूट जाएगा
अग्नि पर लगेगा कर
जीने से घातक जाना मर
शमशान में होगा पहरा
ईमान घूमेगा भूखा नंगा
पंछी के घोंसले छीनेंगे
शेर को गीदड़ डसेंगे
दिन है वह दूर नही
रुको देखो कौन बिका
कौन है अभीतक रुका
कौन बोलो नीलाम हुआ
कौन बेज्जत सरेआम हुआ
सवाल सारे है गम्भीर
धीरज खोने लगे है वीर
सत्य का कत्लेआम हुआ
झूठ का खूब नाम हुआ
जो लड़ा वह मरा
बच गए कुछ कायर बुजदिल
छुछुन्दर का कब्जा हुआ
सांप खोजने लगा है बिल
घर बिका बाजार बिका
शहर सरेआम बिका
बचा वही जिसका मोल नही
व्यक्ति व्यर्थ है तौल नही
बिकने दो लूटने दो
अभी पड़ोसी की है बारी
हमे क्या हम तो बचे हैं
खुद को बचाने की हो तैयारी
बचने दो सजने दो हंसने दो
किसी की बर्बादी को मचने दो
जयकारा लगाते है लोग यहां
जयकारा तो लगाने दो
झूठा है तो क्या हुआ
किसी को गाल बजाने दो
न्याय अन्याय से है हारा
सत्य असत्य के आगे बेचारा
कबतक टिकेगा कितना रुकेगा
धैर्य रखो एकदिन बिकेगा
बिक जाएगा सब लूट जाएगा सब
बिकने दो लूटने दो
लेकिन तुम कुछ मत बोलो
देखो मगर मुँह मत खोलो
कौन गुलाम और कौन आजाद
कौन आबाद और कौन बर्बाद
तबाही प्रेमिका बन करे आलिंगन
आंधी माथे को देती है चुम्बन
ठंड ठिठुर कर है गुजरा
ग्रीष्म में मिली है कम्बल
सुनो राज मत खोलो
सत्य तो बिल्कुल मत बोलो
जो हो रहा वह होने दो
आंखों को जीभर रोने दो
किया हुआ है जो अपराध
कभी न होगा पश्चाताप
अरे रुकने दो ठहरने दो
आंधियों को थमने दो
बादलों को ढलने दो
रातों को संवरने दो
बिकने दो अरे बिकने दो
सपनो को बिकने दो
अपनो को बिकने दो
घुटने टेक करेगा क्या
घुटने को बिकने दो
सर उठाकर जियेगा क्या
सर को तो झुकने दो
बिकने दो बिकने दो
मिट्टी हवा और जल को
माँ की ममता और वतन को
विरो की वीरता और जतन को
साहस धैर्य और कदम को
बिकने दो बिकने दो
अरे बिकने दो बिकने दो
तू रोकेगा नही रुकेगा
किसे कहेगा कौन सुनेगा
व्यर्थ में क्यो चीखता चिल्लाता
क्या शांति तुझे न भाता
अरे अमन चैन से रहने दो
कुछ तो मुझे भी कहने दो
स्वाद पराजय का चखने दो
रोड़ा रास्ते का हटने दो
बिकने दो बिकने दो
अरे बिकने दो बिकने दो
सोनू कुमार मिश्रा


कफ़न के सौदागर, समाज बदलाव शायरी | सामाजिक बुराई पर शायरी | समाज सुधार शायरी

हे कफ़न के सौदागर
हे कफ़न के सौदागर
सच बता तेरी मंशा क्या है?
बना दिया है जिंदा लाश मुझे
अब बता तेरी इच्छा क्या है?

भ्रष्ट अफसरों पर शायरी

मुझे तो कुछ मिला नही फिर
मेरे नाम पर घोटाले क्यो?
जब तड़पता ही रहा गरीबी से मैं
फिर संसद में रोटी पर हंगामे क्यो?

भ्रष्ट नेता पर शायरी | भ्रष्ट अधिकारियों पर शायरी

अधिकारी ने वसन लूट लिया तो
कफ़न पर होती सियासत क्यो?
जब जिंदा में हमदर्दी नही तुझे
फिर मुर्दो को मिलती राहत क्यो?
कृन्दन कर रही आत्मा मेरी
पूछती की लाश पर राजनीति क्यो?
सच बता दे हे खादी के रक्षक
लाश लांघकर रास्ते पटना जाती क्यो?
सोनू कुमार मिश्रा

हे गिद्ध ! आज के नेता पर कविता | झूठे नेता पर शायरी

हे गिद्ध किसे तू खोज रहा
बोल राह किसकी जोह रहा
मुर्दों को तो निगल गए चील
तू जिंदो को क्यो नोच रहा
हे गिद्ध किसे तू खोज रहा।

बेईमान नेताओं की मक्कारी पर शायरी

देख तेरे आने से पहले
यहां लाशों के अम्बार लगा
नोचने के लिए उन लाशों को
कौए चील में है बबाल मचा
बता एक ही लाश को
बारम्बार क्यो तू नोच रहा
हे गिद्ध किसे तू खोज रहा

सियासत पर शायरी

तुझे शायद पता नही की
गरीब यहां कई बार मरा है
खेत खलिहान में हो निसहाय
निर्बल निर्धन बारम्बार गिरा है
उसे तो पहले ही नोच लिया
चन्द कुर्सी के रखवालों ने
बोल तू क्या सोच रहा
हे गिद्ध किसे तू खोज रहा

दोगलेपन पर शायरी

मानवता का क्षरण किया
स्वयं कलयुग के मानव ने
विकराल रूप से पसारा पाव
शोषक बन चन्द दानव ने
तेरा इंतजार भला कैसे करता
इंसान ही इंसान को नोचने लगा
बोल तू किस ओर देख रहा
हे गिद्ध किसे तू खोज रहा

भ्रष्टाचार पर दोहे

बगैर कफ़न के निर्धन मानव
धरा पर तुझे बारम्बार दिखेंगे
नोच लिए गए पहले ही जो
हार मांस के लाचार मिलेंगे
जो दबे हुए है बोझ तले
उसे कितना तू मारेगा
बोल अब क्या बोल रहा
हे गिद्ध किसे तू खोज रहा

भ्रष्टाचार पर Quotes

हे गिद्ध चला जा यहां से
तुझे न कोई लाश मिलेगी
जिंदा तो मिलेंगे लोग
लेकिन तन पर न मांस दिखेगी
दाग दामन पर तेरे लगेगा
भले अपराध कोई करेगा
बोल क्यो तू मुर्दों को नोच रहा
हे गिद्ध किसे तू खोज रहा।।
सोनू कुमार मिश्रा


बेशर्म राजनीति शायरी | सियासत पर शायरी | नेताओं पर शायरी

नशा किसमे है? कुर्सी का नशा, कुर्सी का महत्व शायरी

नशा किसमे है?
किसी का सवाल है ,किसी का हिसाब है
किसी का मिजाज है,किसी का रुआब है
किसी का ख्याल है,किसी का जबाब है
की क्या नशा
शराब में होती है, शबाब में होती है
इश्क में होती है, मोहब्बत में होती है
या अफीम गांजे चरस में होती है
मेरे ख्याल से, नशा जितनी
शराब में होती है, शबाब में होती है
इश्क में होती है, मोहब्बत में होती है
या अफीम गांजे चरस में होती है
वह महज खेल है, सड़को का तमाशा है
भ्रम है मिथ्या है, झूठा है फरेबी है
या तो कोई मृगतृष्णा है
वास्तव में असल नशा
तो किसी कुर्सी में है

हुकूमत पर शायरी

जो रुआब झाड़े,खूब फटकारे
सौदा करे लाश का,खेल खेले ताश का
अवसर की त्रास का,जड़ है फसाद का
बाजार है विवाद का,दास है संवाद का
रोग है समाज का,भला उससे ज्यादा
नशा और किसमे है

सरकार पर शायरी

कुर्सी से ज्यादा ,ख्वाब किसमे है
सत्ता है सिंहासन है,छल है भाषण है
धोखा है आसन है,खाली राशन है
फिर उससे ज्यादा,नशा और किसमे है
जो झूमती है सड़को पर,खेत और खलिहानों में
बगीचे और बागानों में,मजदूर और किसानों में
पशु और इंसानो में,जीव और पाषाणों में
शायद नशा है

सत्ता पर शायरी

तो सत्ता में है,सिंहासन में है
राजा के आसन में है,झूठे आश्वासन में है
फरेबी भाषण में है,उससे ज्यादा नशा 
न तो शराब में है,न ही शबाब में है
न ही इश्क में है
न ही मोहब्बत में है और न ही वह
अफीम गांजा और चरस में है।
सोनू कुमार मिश्रा

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