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सत्ता मदारी और जनता वानर– सत्ता, सियासत चुनाव शायरी | समाज सुधार शायरी

सत्ता के लालच पर शायरी | समाज सुधार पर शायरी

सत्ता मदारी और जनता वानर
डम डम डमरू छम छम नाच
राजा मौन है सिंहासन गौण हैं
सांसत में पल-पल फंसती प्राण

सियासत पर शायरी | चुनाव पर शायरी

सस्ती है जिंदगी महंगी है कुर्सी
कण-कण शोक संसद में भोज
मदिरा-मांस या मिठाई की थाल
खाकर मानवता मचाती शोर

मुल्क के हालात पर शायरी

लुटती है बस्ती तो सजती शहरे
पुल शिल्यानस में खाजाए नहरें
ढोल नगारे बाजे धम धम
मृत्यु पर गाया जाए शोहर राग

बेईमान नेताओं पर शायरी

टक टक धीन-धीन की झनकारे
महलों के फेर में झोपडी उजाड़े
रोटी रोटी अब व्यर्थ है चिल्लाना
रोटी के खातिर ही है मर जाना

भ्रष्ट नेताओं पर शायरी

नित नित खेल खेलें सब भैया
सत्ता खेलते रहे नित ताता थैया
झूठा आवरण झूठी है सोच
भाग गिद्ध मनुज मनुज को नोंच

समाज पर शायरी

कदम कदम पर बिछी है लाश
छोड़ झूठ और सच को बांच
सत्ता मदारी और जनता वानर
डम डम डमरू छम छम नाच
सोनू कुमार मिश्रा

दुःशासन कौन है सत्ता शासन प्रशासन पर कविता

दुःशासन कौन है
सत्ता हमारा है हस्तिनापुर
खादी सदियों की है भूल
मर्यादा सारी तोड़ ही दी
हम ही है इसके द्रोपदी
कदम कदम पर तय मरण
हो रहा जिसका चीरहरण
पर मत पूछना तुम कभी
की दुःशासन कौन है
अस्मत सैकड़ो बार लुटी है
आबरू कई कई बार गिरी है
दर्पणों पर है गर्द जमा
भीड़ में बेशर्म खड़ा
क्या बताऊँ की शेष क्या है
कुल वंश अवशेष क्या है
पर मत पूछना तुम कभी
की दुःशासन कौन है
द्रोण से शिक्षा हमने भी ली
लेकिन बने धनन्जय नही
महाबली तो कर्ण जैसे है
लेकिन हुए विजय नही
धृतराष्ट्र तो आज भी है
लेकिन वह तो अंधा नही
सब जानते हो पर मत पूछना
की दुःशासन कौन है
हममे और द्रोपदी में
फर्क बस इतना ही है
चिंता चिता के बीच का
अंतर जितना भी है
जीवन है महाभारत
भूख गरीबी की विरासत
लेकिन मत पूछना तुम कभी
की दुःशासन कौन है
किस अधिपति ने छोड़ा है
किसने शोषण से मुंह मोड़ा है
बिन चढ़ावा द्वार खोले
आलय का मार्ग ठेढा है
कफ़न मिलती है किस्मत से
या किसी की रहमत से
निर्लज आसान देख रहा
की दुःशासन कौन है
सुना था कि अपना स्वराज्य है
आजाद हमारा अपना राज्य है
लेकिन क्या इसमें सच्चाई है
दाग है या कुछ अच्छाई है
रोटी की शोर से गूंजे सदन
मदिरा मांस में लेकिन मगन
पर मत पूछना तुम कभी
की दुःशासन कौन है
सोनू कुमार मिश्रा

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