बेईमान लोगों पर शायरी | बेईमान भाई पर शायरी Beimaan Shayari
साहित्य से जुड़े समस्त माताओं, बहनों एवं बंधुओं को नमन। समााज के बेईमान लोगों पर एक भोजपुरी रचना का प्रयास।
बेईमान लोगों पर शायरी
मन में बईठल चोर बा
भोजपुरी रचना
कईसे कमाईब पुण्य रउआ,
जब मन में बईठल चोर बा।
भीतर बानी करिया कुचकुच,
खाली तनवे राउर ई गोर बा।।
भाई से बेईमानी पत्नी से चोरी,
टोला पड़ोसा करिले सीनाजोरी।
गरीबवन के होखे पईसा तंगी,
हरिश्चन्द्र बनी मन में पाप घोरी।।
धन दौलत भरल रउआ बानी,
गाँव जवार में खूबे ई शोर बा।
कईसे कमाईब पुण्य रउआ,
जब मन में बईठल चोर
गिरा हुआ इंसान शायरी
गरीबवन से सूद खूबे कमाईले,
करके खूब बेईमानी शैतानी।
आदमी बानी आदमीयत सीखी,
मत करीं केहू से अब मनमानी।।
देखे में त बानी रउआ भलेमानुष,
बेईमानी के कवनो ना छोर बा।
कईसे कमाईब पुण्य रउआ,
जब मन में बईठल चोर बा।।
दू सौ रुपईया मात्र नगद दे के,
दू हजार रुपईया खाता चढ़ाईले।
अनपढ़ गँवार गरीब के जबरन,
भगवान रउआ बड़का कहाईले।।
का करब रउआ जप तप पूजा,
जब मन में हलचल शोर बा।
कईसे कमाईब पुण्य रउआ,
जब मन में बईठल चोर बा।।
दूईए सौ रुपईया देके गरीब के,
लाखों के जमीन लिखवाईले।
जमीन खातिर करे कनर मनर,
कब्जा जबरदस्तीए देखाईले।।
ना होखे जमीन जेकरा जब,
मारपीट भरल देहमें पोरेपोर बा।
कईसे कमाईब पुण्य रउआ,
जब मन में बईठल चोर बा।।
जेकरे तेकरे से झगड़ा लगा के,
केस फउदारी रउआ कराईले।
गरीबो बेसहारा मजदूरो पर,
जाके आपन रोज रोब देखाईले।।
निःसंस्कारी रुपईया कमाएके,
फेंकात चारो ओरिए डोर बा।
कईसे कमाईब पुण्य रउआ,
जब मन में बईठल चोर बा।।
अरुण दिव्यांश 9504503560
समस्त साहित्य प्रेमी माताओं, बहनों एवं बंधुओं को हृदयतल से नमन है तथा परिवार सहित स्वस्थ, मस्त, सुखमय तथा दीर्घायु बनें, यही मेरी ईश्वर से प्रार्थना है। बेईमानी पर शायरी एक हिन्दी रचना का प्रयास हैः
बेईमानी पर शायरी हिंदी में Beimaan Shayari in Hindi
जीवन व्यथा
तन के गोरे और मन के काले,
गंदे नाले जा नित्य तू नहा ले।
नहीं सुधरेंगे जी हम कभी भी,
मन में निज कसमें भी खा ले।।
ऊपर बहता साफ सुथरा पानी,
नीचे बहता तो है कचरा जल।
कर रहे मनमना जो आज तुम,
सोच भी लेना क्या होगा कल।।
कितने कल तो गए बीत चूके,
कितने कल आने भी बाकी है।
आनेवाले कल को तुम सोचो,
निकाल रहा जैसी तू झाँकी है।।
बचपन बीतता अज्ञानावस्था,
किशोरावस्था बीते नादानी में।
युवावस्था हैवानियत करके,
लगाते हो तुम आग पानी में।।
प्रौढ़ावस्था ही है चेतनावस्था,
जिसपर निर्भर जिंदगानी है।
कर्मफल ही होता वृद्धावस्था,
युवा में किए जो मनमानी है।।
बेईमानी पर सुविचार
पूरा जीवन यौवन पे आश्रित,
यौवन ही जीवन की कहानी है।
युवावस्था समझा नहीं जिसने,
कष्टमय वृद्धा निश्चित आनी है।।
क्या करेगा यह सुंदर फैशन,
नीचे बह रहा बहुत है कचरा।
खाते पीते हो गंदा भोजन पानी,
ऊपर से पढ़ रहे सुंदर पचरा।।
प्रौढ़ा तक नहीं मानते किसी को,
अहंता में खो देते हो निज ज्ञान।
पीड़ा अंगड़ाई घृणा शर्मिंदगी,
याद आते हैं माँ बाप भगवान।।
अरुण दिव्यांश 9504503560
दिव्यांश जी महाराज ! लगे हाथों दो चार जूता और लगा ही दीजिए बेईमानों का कल्याण हो जाएगा तब तक मैं भी अपना हाथ पैर सीधा करता हूं और आपकी कविता पोस्ट करता हूं!
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