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राजनीतिक तंज सच्चाई और ईमान पर चुनावी व्यंग्य बेईमान नेता पर शायरी

बेईमान नेताओं पर शायरी | झूठे लोग शायरी | राजनीतिक तंज शायरी

ग़ज़ल
बातें करना इन्सानों से।
दूरी रखना शैतानों से।‌।

सब के सब मनमानी करते,
बस बचना बे- ईमानों से।

मत करना विश्वास किसी पर,
दूरी रखना अनजानों से।

सोच-समझ करके ही बोलो,
बस बचना झूठ बयानों से।

जाम़ न लेना तुम हाथों में,
बचके रहना मयख़ानों से।

जबरन पंगा गैर-मुनासिब,
मत भिड़ना तुम हैवानों से।

ढोंगी-साधू राह दिखाएं,
फंसना मत इन भगवानों से।
ओम प्रकाश खरे जौनपुर

सच्चाई और ईमान पर शायरी | मतलबपरस्ती शायरी | जमीर पर शायरी

ईमान बेचता हूँ

महंगाई में शरीफों को ईमान बेचता हूँ!
दिल की बात छोड़ो मैं जान बेचता हूँ!

ये बात राज की है पूछो ना‌ इसका मतलब,
क्यो थाने में जाकर चोरी का सामान बेचता हूँ!

आ बैल मुझको मार‌ के कहावत के ही चलन,
आंतकवादी को मैं किराये के मकान बेचता हूँ!

निस्बत नहीं तो क्यो भला राम और रहीम से,
मैं तो दोनों ही अवतारों के अरमान बेचता हूँ!

नेताओं से ठेके मिलते है दंगों फसाद के,
बलवा कराना चाहो तो शैतान बेचता हूँ!

आजादी को कत्लेआम के तराजू में तौल कर,
छब्बिस जनवरी को देश का संविधान बेचता हूँ!

सौ कोशिशों के बाद भी कुछ हासिल न हो उन्हें,
पुरखों का नाम चलाने को संतान बेचता हूँ!

‌दहेज के पापी लूट लो अबला ओकी जिन्दगी,
मारो जला के साली को कन्यादान बेचता हूँ!

आप खाओ विदेशी कर्जों की खैराते माई-बाप,
मैं तन्हा हूँ भूखे पेट पे हिन्दुस्तान बेचता हूँ।
तन्हा नागपुरी,
नागपुर, महाराष्ट्र, मोबाइल,९३७३१२२०२६,

सियासत पर शायरी चुनाव शायरी राजनीतिक तंज

अम्न शहरों में है और न गाँवों में है
इक घुटन सी चमन की फिज़ाओं में है

फूट कर रो पड़ीं सुन के सदियाँ सभी
आज दुनिया घिरी किन बलाओं में है

देश के हित की बातें नहीं होतीं अब
अपने हक़ की सियासत सभाओं में है

अब ये मुमकिन है मुन्सिफ पे उंगली उठे
नाम मुजरिम का भी पारसाओं में है

कत्ल व ग़ारत ज़िना आम है अब यहां
इक वबा नफरतों की हवाओं में है

सामने कोहे ग़म हो तो टल जायेगा
ऐसी तासीर माँ की दुआओं में है

आशिकों में न पहले सी चाहत रही
अब कहाँ वो अदा दिलरुबाओं में है

कैसा किस्मत ने दिन ये दिखाया मुझे
अजनबीयत मेरे आशनाओं में है

अब पलटना ऐ जावेद मुमकिन नहीं
मेरी फिक्रेरसा जिन खलावों में है
जावेद सुल्तानपुरी

झूठे नेता पर शायरी - भ्रष्ट नेताओं पर शायरी - सियासत पर शायरी

नेता जी का बोलवाला
नेता जी अति बोल रहे थे
सुधि नहीं पोल खोल रहे थे।
अजी पार्टी का सितारा हूँ
फिर हुँकार बोल पिटारा हूँ।
अभी मुझे पहचान रहे हैं
जितने हैं सब जान रहे हैं।
शाही हिम्मत जिगर रहा है
विरासत नहीं असर रहा है।
परिवार पार्टी से उपर जो
हाँ। नेशनल स्तर से सुपर जो।
नेता जी चर्चे वाला हूँ
अब अपनी पर्चे वाला हूँ।
लेकर मुहर साथ चलते हैं
अव्वल हुनर लिए फिरते हैं।
पुराना चिन्ह ही मेरे हो
बस सबकुछ खाली तेरे हो।
वह कब हार मानने वाला
नये हैं सब जानने वाला।
अकेले बागी निकाल दिए
सबके सभी रे निढ़ाल हुए।
धन्यवाद।
प्रभाकर सिंह
नवगछिया, भागलपुर
बिहार

सत्ता सुख के सपने प्यारे, सत्ता पर शायरी - राजनीति शायरी इन हिंदी

झुनझुने वाली कुर्सी
मैं मध्य रात्रि उठकर बैठा
ख्वाब हुए झट क्षीण।
सत्ता सुख के सपने प्यारे
गिने एक दो तीन।
वही कुर्सी झुनझुने वाली
राजा वाला शान।
हवा मिली पंख मोर वाली
परियों की सुर-गान।
मटर गश्त का ताना बाना
शेरों जैसी चाल।
आन-बान सिंहासन बैठा
चंदन चावल भाल।
सीना तनकर कर्कश बोला
मंत्री मेरे खास।
अपने राज्य परिधि में बोलो
कौन अभी उदास?
सकपक सकपक मंत्री बोले
सुनें हे महाराज।
काल विकराल बनके आया
राज्य में यहीं आज।
प्रिये नहीं मिलते हैं उनसे
अभी उड़े जो प्राण।
कोरोना के मलयुद्ध हुए
कब किसको है त्राण?
बिषम समय में कुर्सी बैठे
तनिक नहीं है योग।
महाराज हाहाकार मचे
कैसे कैसा भोग?
सुन-सुन मंत्री मेरे प्यारे
खोज तुमही उपाय।
अब सत्ता सुख बैचेन करे
कुर्सी नाही जाय!
प्रजा को नहीं टीका मिलते
खुद ही लें वैक्सीन।
एकाएक ही सपने टुटे
गिना एक दो तीन।
धन्यवाद।
प्रभाकर सिंह
नवगछिया, भागलपुर
बिहार

सरकार पर तंज कसने वाली शायरी | राजनीतिक व्यंग्य शायरी

जिससे रखना हैं तुम रखो यारी।
एक नही हजार तुम रखो गाड़ी।।
जिंदगी जीना हैं तुम्हें भी एस से।
तो खजाना तुम रखो सरकारी।।
विशाल कुमार ,अ- छुआ
रायगढ़, छत्तीसगढ़

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