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रोटी पर शायरी | रोटी पर कविता | रोटी पर सुविचार Roti Shayari in Hindi

रोटी रोटी रोटी और केवल रोटी।
पेट भरने की एक वस्तु है रोटी।।
जो बनती है गेहूँ जौ के आटे से।
धूप में जलकर बारिश में भींगकर।

दो वक्त की रोटी शायरी - भूख और रोटी पर कविता Roti Status in Hindi

विषय-रोटी
विधा-कविता
शीर्षक-"रोटी"
रोटी रोटी रोटी और केवल रोटी।
पेट भरने की एक वस्तु है रोटी।।
जो बनती है गेहूँ जौ के आटे से।
धूप में जलकर बारिश में भींगकर।
ठंड से काँपकर स्वयं भूखा रहकर।
किसान पैदा करता है वो होता गेहूँ
फिर उसे धोकर सुखाकर पीसकर।
बनाया जाता वो आटा कहलाता है।
फिर उसे गूँथती है माँ बहन या बेटी।
तब उसे बीवी चूड़ी खनकते हाथों से।
बनाती है नरम-नरम गरम-गरम रोटी।
तो इतने परिश्रम के बाद मिलती रोटी।

माँ की रोटी शायरी - मेहनतकश पर कविता - गरीब बच्चों पर शायरी

किसी के लिए रोटी चाँद जैसी होती है।
रोटी-बेटी संबंध के लिए भी होती है।
रोटी बहुत से प्रयोग में आती रहती है।
दो जून की रोटी मुश्किल से मिलती है।
कोई किसी के रोटी के टुकड़ों पर पलता।
और वह उसका गुलाम ही है कहलाता।
कोई रोटी के लिए घरबार है छोड़ता।
कोई रोटी के लिए ईमान गिरवी रखता।
कोई रोटी के लिए तन का सौदा करता।
कोई रोटी के लिए अपनी जान गवांता।
दुनिया में रोटी है बड़ी अनोखी चीज।
इज्जत की रोटी खाओ और खिलाओ।
रोटी की कहानी होती है बड़ी ही अजीब।
उन्हें मिलती है जिनका होता अच्छा नसीब।
रोटी की कथा "दीनेश" होती बहुत लम्बी है।
कितना भी लिखें लगती बहुत ही छोटी है।
दिनेश चन्द्र प्रसाद "दीनेश" कलकत्ता

रोटी शायरी | Roti Shayari In Hindi | Roti Status In Hindi

शीर्षक :- रोटी
क्या लिखूं मैं रोटी के लिए।
दर-दर भटकना पड़ता है इसके लिए।।
किसी ने अपना घर त्यागा तो किसी ने अपना गांव।
किसी ने मां का आंचल त्यागा तो किसी ने बच्चों की किलकारी।।
किसी को रोटी हंसाती ही रहती है तो किसी को रूलाती ही रहती है।
किसी घर में खाने को नहीं मिलती और कही कचरे में मिलती है।।
बड़ी बावली है यह बेचारी इधर-उधर भटकते ही रहती है।
जो जितना इज्जत दिया उसका उतना ही हमदर्द बनी रहती है।।
शुक्र है सब से यह मेहनत करवाती है।
धनवानों को भी जमीन पर रखती है।।
वंदना कुमारी

Poem On Roti रोटी पर कविता शायरी Roti Shayari in Hindi रोटी थी अनमोल

तब रोटी थी अनमोल
( काल 1970 -1980 )
था वो भी एक ज़माना,
जब कुत्ता ले भागे रोटी गोल गोल।
दौड़ा दौड़ा उसे मज़ा चखाना,
तब रोटी थी अनमोल।।
विवाह-मुण्डन-भोज-उत्सव में,
तब खाना ही था अनमोल।
छक -छक खाता था हर कोई।
तब रोटी थी अनमोल।।
कचड़े में भी ढूढ़ते फिरते,
हर दोने-पुड़िये खोल-खोल।
तिनके टुकड़े में ही खुश हो जाते,
तब रोटी थी अनमोल।।
इसी इक टुकड़े के ही खातिर,
बोले न कोई कड़वे बोल।
टुक-टुक कितने नज़र गड़ाये,
तब रोटी थी अनमोल।।
जिसका पेट भरा होता था,
वह मुसकाता बढ़ाता मेल-जोल।
जिसे मिली नहीं वह ताक-झांक में,
तब रोटी थी अनमोल।।
पेट की आग बुझाने को,
घिनौने काम की तोल-मोल।
मिलते अक्सर मलिन ही मुखड़े,
तब रोटी थी अनमोल।।
नौकर-चाकर मौका पाकर,
टटोलत बटुवा-पाकेट खोल-खोल।
विनती-चोरी-छीना-झपटी,
तब रोटी थी अनमोल।।
इश्क़-मुस्क-मुहब्बत-चस्का-मुस्का,
इज्ज़त सोहरत का भूगोल।
जिसकी लाठी उसी की भैंसी,
तब रोटी थी अनमोल।
प्यार-वार संग आँखें चार,
दरो-दीवारों जज्बाती मेल जोल।
था भरा पेट ही सब श्रृंगार,
तब रोटी थी अनमोल।।
बहन-बेटियों की शादी में भी,
तब होता ही न कोई और मोल,
होगी न दिक्कतें खाने की,
चाहे सुरतें -दुल्हा लोल-नकलोल।
तब रोटी थी अनमोल -निराला,
तब रोटी थी अनमोल।
तब रोटी थी अनमोल-निराला,
तब रोटी थी अनमोल।।
डा. निराला पाठक

रोटी पर शायरी - माहौल पर शायरी - मुफलिसी पर शायरी

रोटी पर शायरी फोटो | Roti Shayari Image | Roti Status in Hindi

रोटी पर कविता | रोटी पर शायरी Poem on Roti - दादी अम्मा वाली रोटी मीठी मीठी वाली रोटी

रोटी
गोल गोल मीठी वाली रोटी
दादी अम्मा वाली रोटी
लकड़ी चूल्हे वाली रोटी
वो मेरे गांव वाली रोटी
मीठी मीठी वाली रोटी

पहली गौ माता की रोटी
दूसरी मन्दिर माली की रोटी
तीसरी पंछी वाली रोटी
चौथी कुत्ते वाली रोटी
फिर मिलती थी सबकों रोटी
" सब मिलकर खाते थे रोटी
दादी अम्मा वाली रोटी

कभी दाल संग मिलती थी रोटी
कभी मट्ठा संग दाल रोटी
कभी मक्खन दाल संग रोटी
कभी दूध ओर गुड संग रोटी
कभी सरसों पालक मक्की की रोटी
कभी गुड शक्कर बाजरे की रोटी
कभी हरी सब्जी संग रोटी
वाह वाह क्या वो गांव की रोटी
सब मिल बाट खाते थे रोटी
दादा दादी पापा मम्मी
सब प्यार से खाते थे रोटी
दादी अम्मा वाली रोटी

बटे परिवार बटी वो रोटी
दादी अम्मा वाली रोटी
ख्वाब होगई अब तो यारों
लकड़ी चूल्हे वाली रोटी
सास बहू में बट गई रोटी
बाप बेटे की बट गई रोटी
बंद हो गई गौ माता की रोटी

खो गई वो दादा दादी की रोटी
साथ मिल सब खाते थे रोटी
भूल गए सब दादा दादी की कहानी
" लक्ष्य " ख्वाब होगई वो रोटी॥
स्वरचित ... निर्दोष लक्ष्य जैन
धनबाद 6201698096

रोटी पर कविता शायरी— गोल गोल रोटी, फूली फूली रोटी, वो मीठी मीठी रोटी

वो प्यारी प्यारी रोटी
वो गोल गोल रोटी
वो फूली फूली रोटी
वो मीठी मीठी रोटी
वो चूल्हे वाली रोटी
दादी अम्मा वाली रोटी
वो नानी वाली रोटी
याद आगई वो रोटी
पहले गौ माता की रोटी
वो चिडिय़ां वाली रोटी
सब मिल खाते थे रोटी
घी मक्खन और रोटी
वो मट्ठा संग थी रोटी
वो मीठी मीठी रोटी
दाल संग थी रोटी
गुड़ की डली और रोटी
कभी चाय संग थी रोटी
वो मक्का वाली रोटी
वो बाजरा वाली रोटी
एक आँगन वाली रोटी
दादा दादी वाली रोटी
चाचा चाची वाली रोटी
पापा मम्मी वाली रोटी
भइया भाभी वाली रोटी
सब मिल खाते थे रोटी
वो थी प्यार वाली रोटी
दादी अम्मा वाली रोटी
मेरे गाँव वाली रोटी
हरी हरी सब्जी संग रोटी
अब तो सपना बन गई रोटी
अब तो बट गई यारों रोटी
नही रही प्यार वाली रोटी
खो गई अम्मा वाली रोटी
अब तो इतिहास बन गई रोटी
बटे आँगन बट गई रोटी
अब तो ख्वाब है वो रोटी
निर्दोष लक्ष्य जैन
धनबाद 6201698096

गरीबी और भुखमरी पर शायरी, गुरबत शायरी : गरीब की रोटी
गरीब की रोटी।

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गरीब की रोटी पकी कुत्ता कहीं से आ गया।
दो हीं रोटी थी बनी कुत्ता उसे भी खा गया।

देखकर ये दृश्य मुनियां बेचारी रो गई।
थी बड़ी भूखी कमला भी जाकर सो गई।

भाई भी उसके हीं पीछे जा वहीं पर सो गया।
भूख से व्याकुल क्षुदा आत्मा भी रो गया।

बच्चों को देख फुलवा का क्लेजा फट गया
दो हीं रोटी थी बनी कुत्ता उसे भी खा गया

गिर गई रोटी जमीं पर कुत्ते वहाँ पर चार थे।
एक दुसरे से सभी छीनने को अब तैयार थे।

इतने में हीं वहाँ फुलवा भी दौरा आ गया।
एक रोटी ली लपक एक कुत्ता खा गया।

रात के ग्यारह बजे थे चांदनी वो रात थी।
लौट आया झोपड़ी में टुटी पुरानी खाट थी।

हाथ में रोटी लिए मुनियां को बुलाने लगा।
वो नहीं बोली तो कमला को जगाने लगा।

एक रोटी है बची मुनियां खिलादो तुम इसे।
खाट ले लो पास में जाकर सुलादो तुम इसे।

मुनियाँ साहुकार के घर रोटी लाने थी गई।
गोद और सिंदुर की रक्षा में गिरवी पड़ गई।

क्या हुआ हो कहांँ फुलवा ने बोला जोर से।
मुनियां साहुकार के घर चीखी बड़ी जोर से।

मुनिया गिरफ्त हो गई वक्त भी मजबुर था।
क्या करे होनी को तो कुछ और हीं मंजूर था।

हैवानों के जैसा रुप पकड़ा था वो साहुकार ने।
होश खोकर गिर पड़ी मुनियां उसी के द्वार में।

वासना की आग में मुनियां की अस्मत जल गई।
गरीब की रोटी के संग लाज उसकी जल गई।

सेर भर आटा लिए मुनियाँ वहां से चल पड़ी।
आँख में आंसु लिए आहत हृदय निकल पड़ी।

झोपड़ी के पास आकर वो अचानक गिर गई।
भूखी थी तीन दिन से हर अंग ढीली पड़ गई।

दौरकर फुलवा उठाकर झोपड़ी में ले गया।
क्या हुआ भगवान कैसा दर्द मुझको दे गया।

कमला माँ के पास आ जोर से रोने लगी।
दौर कर आए पड़ोसी शोर गुल होने लगी।

मुनियां को ऐसे देख स्वांग सब भरने लगे।
जितनी हीं मुँह उतनी बातें सभी करने लगे।

एक अम्मा ने उसे तब पानी पीने को दिया।
आटा था पल्लु में खोल उसको रख दिया।

बच्चे हैं सब भूखे इन्हें रोटी पकाकर दो इसे।
फुलवा खड़ा खामोश था क्या हुआ जाने इसे।

शोरगुल को सुनकर साहुकार भी घबरा गया।
दी रपट थाने में जाकर चौकीदार भी आ गया।

चोरनी आई थी मेरी बटुआ चुराकर ले गई।
साथ में आंटा मेरे घर से उठाकर ले गई।

नाम फुलवा है मरद का पास की अछुत है।
मरद भी है चोर उसका वो तो जिंदा भूत है।

जाओ चौकीदार फुलवा को लाकर बांध दो।
पकड़ लाओ दरवाजे पे उसे और उल्टा टांग दो।

झोपड़ी में आया वो चौकीदार बोला रोब से।
काँप उठा फुलवा तब देख उसके खौफ से।

इतने में हीं अम्मां जोर जोर से आवाज दी।
आओ चौकीदार देखो पाप साहुकार की।

रात का यह दृश्य आहत था मगर कठोर था।
रात काली कट गई थी होने हीं वाला भोर था।

जानता हूँ मैं अरे सब चाल साहुकार की।
नीच कामी ने तो इसकी आवरु उतार ली।

वेशर्म उल्टा यहांँ थाने को लेकर आ गया।
ये नीच कैसे कोख में हीं हमारे आ गया।

देखते हीं देखते सारा गाँव भी था आ गया।
बेहोश मुनिया को होश थोड़ा आ गया।

मुनियां प्रतिशोध के आग में जलने लगी।
सर पे साहुकार काे लात तब पड़ने लगी।

मुनियां बोली क्रोध में मुँह इसके थुक दो।
ऐसे दरिंदे को अरे सारेआम कील ठोक दो।

बेसहारा निर्बलों पर अब न कोई जुर्म हो।
गरीब की रोटी के बदले में न ऐसी जुर्म हो।

इतने में सरपंच भी तब वहाँ पर आ गए।
वाक्या को जानकर वो भी तब शर्मा गए।

उनकी भी तो दोस्ती हीं थी साहुकार से।
क्या करे सरपंच भी इस समय लाचार थे।

इतने में हीं सामने अम्मां वहां पर आ गई।
माफ करदो अब इसे इसकी शामत आ गई।

गांव में हर ओर अम्मा का अपना राज था।
देवी समान पुजता उनको वहाँ समाज था।

अम्माँ के रहमो कर्म से साहु का जान बच गया।
अम्मा की तिजौड़ी खुली गांव फिर से बस गया।
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उदय शंकर चौधरी नादान
कोलहंटा पटोरी दरभंगा बिहार
9934775009

रोटी पर शायरी फोटो | Roti Shayari Image | Roti Status in Hindi

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