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गाँव नही रहा- गाँव की यादों पर कविता | गाँव के दृश्य पर शायरी

गाँव नही रहा- गांव की मिट्टी पर कविता | गाँव की यादें पर कविता

 गाँव नही रहा
कड़ी धूप में कभी कभी बैठ जाते थे
अब वह नीम पीपल का छाव नही रहा
अंधे हो गए स्वार्थ में जबसे लोग यहाँ पर
मेरा गाँव लगता है की अब गाँव नही रहा

गाँव नही रहा- ग्रामीण जीवन पर आधारित कविता | ग्रामीण कविता

भूल चुके है सुबह पैर छूना बुजुर्गों का
भूल चुके है दिल से सम्मान अपनो का
अपनो का अपनो से का लगाव नही रहा
मेरा गाँव लगता है की अब गाँव नही रहा

गाँव नही रहा- मेरे गांव के खेत में कविता | गांव की सुंदरता पर शायरी

गर्मियों का वह बाग-बगीचा आम का
वे झूले वे मेले वे मस्तियाँ वे खेत वे मित्र
तैरना सीखे जिसमे वह तालाब नही रहा
मेरा गाँव लगता है की अब गाँव नही रहा

गांव पर कविता इन हिंदी | गांव का घर कविता

शाम की चौपाल पर के वे सुनहरे किस्से
अकेले घुट जी रहे यह कहे अब किससे
मस्तियाँ करते जिससे वह नाव नही रहा
मेरा गाँव लगता है की अब गाँव नही रहा

Gaon nahin Raha- Gaon Ki Yaadein Par Kavita

आपस मे लड़ना झगड़ना औऱ मिलना
बात-बात पर होता चर्चा बहसें और मुद्दे
उलझने लाख थी मगर तनाव नही रहा
मेरा गाँव लगता है की अब गाँव नही रहा

Gaon Ke Drishya Par Kavita

खोज रहा हूँ वह मंदिरों की मधु घण्टिया
गाँव की वह मंडली टोली और कीर्तनिया
न ढोल न नगाड़े अब कोई राग नही रहा
मेरा गाँव लगता है की अब गाँव नही रहा

Sundarta Par Kavita

कहां गई वह चैती झूमर झझड़ी प्राति
संध्यावंदन फगुआ झिझिया और बैसाखी
खेतो में कुश्तियों का वह दाव नही रहा
मेरा गाँव लगता है की अब गाँव नही रहा

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खेत खलिहान पर शायरी | गांव की पुरानी यादें

लुप्त हो गई सोहर समदाउन नन्दी भौजी
तरस रहा हूँ सुनने को बागड़ी की बोली
गाँव की गलियों में वह भाव नही रहा
मेरा गाँव लगता है की अब गाँव नही रहा

मेरे गांव की यादें | लुप्त हो रही संस्कृति पर कविता

क्यो मौन हो चूंकि है आरती पूजा अजान
कहा गए बाबा दादा चाचा भैया रहमान
रबिया मुनिया में भी अब लगाव नही रहा
मेरा गाँव लगता है की अब गाँव नही रहा

कुछ तो बात हुई कि लोग उलझने लगे है
कही महजब कही वोट में फंसने लगे है
कल तक साथ थे जो न जाने क्यो दूर है
दुसरो की फिक्र छोड़ अपने मे मशगूल है

ईद की सेवइयां होली की रंगों को भूले
गीता पुराण कुरान के उद्देश्य से है भटके
आपस मे प्रेम मोहब्बत सद्भाव नही रहा
मेरा गाँव लगता है की अब गाँव नही रहा

जब मकान कच्चे थे तब रिश्ते पक्के थे
अब मकान पक्के है तो रिश्ते कच्चे है
रेशम के डोर के बंधे हुए जो टूट जाते है
या बनावटी जो रास्तें में ही छूट जाते है

ऐसे धन वैभव यश लेकर से क्या होगा
जब अर्थी को चार कंधा भी नही मिलेगा
भाई-भाई में अब वह जुड़ाव नही रहा
मेरा गाँव लगता है की अब गाँव नही रहा

गाँव तो वही है प्यारी जननी जन्मभूमि
जो दिन रात अशुओ से आँचल को धोती
पुत्र पुत्र में शत्रुता से हर्षित गाँव नही रहा
मेरा गाँव लगता है की अब गाँव नही रहा
सोनू कुमार मिश्रा
दरभंगा बिहार

गांव पर कविता इन हिंदी | Poem On Village In Hindi
कविता

बड़ा हीं सुंदर मेरा तरवाँ गाँव
सबसे सुंदर,सबसे प्यारा,
मेरा गाँव, घर, परिवार,,
जिसपर है ईश्वर की कृपा,
मिलता जहाँ का प्यार।
सबसे सुंदर ...।

गांव की सुंदरता पर शायरी

बिहार राज्य के गया जिला में,
अपना भी एक घर संसार,
जहाँ मेरा जन्म हुआ था,
बीते थे बचपन के दिन चार।
सबसे सुंदर...।

गाँव के दृश्य पर शायरी

घाघरा नदी के तट पर बसा,
बड़ा हीं सुंदर मेरा तरवाँ गाँव,
बड़ी सुंदर सड़कें यहाँ की,
सुंदर पीपल,बरगद की छाँव।
सबसे सुंदर...।

गांव शहर कविता

स्कूल,डाकघर,अस्पताल यहाँ पर,
बड़ा यहाँ का हाट, बाजार,
दूरदराज से लोग यहाँ आकर,
करते यहाँ खरीदारी, व्यापार।
सबसे सुंदर...।

ग्राम्य जीवन पर कविता

पक्की ईंट,कर्कट से बना,
मेरा अपना सुंदर घर- द्वार,
यहीं बसती गोविंद लाल की आत्मा,
रहता उनके बेटा का परिवार।
बड़ा सुंदर...।

ग्रामीण संस्कृति पर कविता

मेरे घर से सटे रहते माली व लोहार,
पास पड़ोस कोइरी,कुर्मी बसते,
रहते हैं मेरे घर के कोने पर,
धोबी,बढई,रजवार, कहार।
बड़ी सुंदर...।

गांव की मिट्टी पर कविता

बड़ा हीं सुंदर मेरा अपना गाँव है,
सुंदर यहाँ की सभ्यता संस्कार,
सभी लोग यहाँ हिल मिल रहते,
रखते हैं जन जन से सरोकार।
बड़ी सुंदर...।
अरविन्द अकेला

आओ कभी तुम मेरे शहर में – शहर पर शायरी गाँव पर शायरी | मेरा गाँव शायरी

कविता
आओ कभी तुम मेरे शहर में
आओ कभी तुम मेरे शहर में,
आकर देखो तुम मेरा हाल,
आओगे तो कुछ खुशी मिलेगी,
कुछ देखकर होगा बुरा हाल।

रीत गयी इस शहर में मेरी जवानी,
खत्म हुयी वो मौज, वो रवानी,
आये थे जब गाँव से यहाँ पर,
थे हम बहुत मालामाल।

छूट गये अब सब रिश्ते नाते,
इस उम्र तक यहाँ आते- आते,
भूल गये जबसे गाँव की पगडंडी,
मेरी जिंदगी हुयी जंजाल।

इस शहर ने मेरा जीवन लील लिया,
इसने मेरी खुशियों को सील किया,
गाँव से बदतर हुआ मेरा जीवन,
तन-मन-धन से हम हुये कंगाल।
अरविन्द अकेला

खूबसूरत है शहर से दृश्य मेरे गांव का– गांव पर शायरी | गाँव की याद शायरी

गज़ल
टहलना सरिता किनारे, सफ़र करना नाव का।
खूबसूरत है शहर से, दृश्य मेरे गांव का।
घूम आना तुम कभी भी, दोपहर के समय में,
मूल्य आएगा समझ तब, पेड़, पौधे, छांव का।

गाँव पर शायरी | मेरा गाँव शायरी

जब पले सुख में महल के, दुख नहीं देखा कभी,
जान पाओगे नहीं तुम, दर्द हमारे घाव का?
चांद को अब आसमां से, क्या शिकायत रह गई?
खनकती पायल नहीं वह, है बदल स्वभाव का।
था भरोसा खूब उनको, कौरवों पर "देव" वह,
पांडवो को क्या पता था, शकुनि के उस दाव का?
देवेन्द्र चौधरी, तिरोड़ा

मेरा गाँव: गांव की याद आती है कविता | गांव के खाने पर शायरी

मेरा गाँव - कविता
संस्कारों की अनुपम संस्कृति,
मनभावन प्यार लुटाती।
सुख ही सुख मेरे गाँव में,
सबका वो मान बढ़ाती।।

सब मिल आपस में रहते,
शुद्ध भावना परोपकारी।
सुख ही सुख मेरे गाँव में,
जय हो भारत माता की।।

धरा पुत्र है शान हमारी,
सैनिक सच्चा हितकारी।
सुख ही सुख मेरे गाँव में,
सब के सब आज्ञाकारी।।

घी दूध दही की बातें,
मनमोहक खुशबू आती।
सुख ही सुख मेरे गाँव में,
चटनी की याद सताती।।

माँ के हाथों की रोटी,
छप्पन भोग सी लगती है।
सुख ही सुख मेरे गाँव में,
छाछ-राबड़ी बनती है।।

पर्यावरण अपना साथी,
डाल-डाल पर पक्षी चहके।
सुख ही सुख मेरे गाँव में,
हर घर हरियाली महके।।
रामबाबू शर्मा, राजस्थानी,दौसा(राज.)

धन गांव अप्पन पटोरी : गांव की महानता पर कविता | गांव शायरी

धन गांव अप्पन पटोरी
गांव में माई के मंदिरवा, 
चलऽ न पूजनमा धनि हो।
धनियां पुरा होई असरा तोहार, 
करि दरशनमा धनि हो।।

मईया जी अईहें दुअरिया, 
करब अरजिया धनि हे।
धनियां लाले रंग माई के चुनरिया, 
मोहेला मनमा धनि हो।।

जय जय बोली दुर्गा रानी, 
जय जय भवानी माई हो।
धनियां जय जय सकल समाज,
विहँसे अंगनमा धनि हो।

धन गांव अप्पन पटोरी,
जिला दरभंगा धनि हे।
राति मईया के देखली दुअरिया,
गोद में ललनमा धनि हो।
उदय शंकर चौधरी नादान
9934775009

Poem-On-Village-In-Hindi-Urdu-Sahitya-Sansar

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