हिंदी कविता : फूल और कांटे | Phool Aur Kante Hindi Kavita
फूल और कांटे
(कविता)
फूल और कांटों के स्वभाव विपरीत होते हैं,
दोनों की अपनी अपनी अलग है पहचान।
कांटे लगते ही मुंह से आह निकल जाती है,
फूलों से मिलती है, सारे जग को मुस्कान।
फूल और कांटों………….
फूलों से किसी का स्वागत किया जाता है,
कांटे तो केवल, करना जानते हैं अपमान।
दोनों को एक ही ईश्वर ने दुनिया दिखाई है,
लेकिन फूल चढ़ाने से खुश होते भगवान।
फूल और कांटों………..
कांटों में फूल और फूलों में कांटे भी होते हैं,
लेकिन ये एक दूसरे से रहा करते हैं अंजान।
दोनों के लिए एक ही जल, तल और पवन,
अंतर ऐसे होते, जैसे धरती और आसमान।
फूल और कांटों………..
गुणों के कारण फूल देवों के सिर चढ़ाए जाते,
अवगुण ही कराते सर्वत्र, कांटों का अपमान।
फूल सकारात्मकता के प्रतीक माने जाते सदा,
कांटे बांटते हैं दुनिया में नकारात्मकता के ज्ञान।
फूल और कांटों……….
कांटों की तुलना अभिशाप के की जाती सदा,
फूलों को तीनों लोक दिल से मानते हैं वरदान।
इंसान चाहकर भी फूलों को नहीं भूल सकता,
कांटों के निशान को भूलना भी कहां आसान?
फूल और कांटों………….
प्रमाणित किया जाता है कि यह रचना स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसका सर्वाधिकार कवि/कलमकार के पास सुरक्षित है।
सूबेदार कृष्णदेव प्रसाद सिंह,
जयनगर (मधुबनी) बिहार/
नासिक (महाराष्ट्र)
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