‘बातचीत’ शीर्षक निबंध की व्याख्या एवं सारांश और प्रश्नों के उत्तर
आज की पोस्ट में हम बालकृष्ण भट्ट की रचना ‘बातचीत’ शीर्षक निबंध की व्याख्या भावार्थ एवं सारांश और प्रश्नों के उत्तर प्रस्तुत करने जा रहे हैं यह निबंध बिहार बोर्ड की कक्षा 12 दिगंत भाग 2 के गद्य खंड में सम्मिलित किया गया है। Batchit Class 12 Hindi बालकृष्ण भट्ट के ‘बातचीत’ शीर्षक निबंध से बिहार बोर्ड की परीक्षा में सवाल पूछे जाते हैं इसलिए इसका पढ़ना हम सबके लिए अति आवश्यक है। चलिए ‘बातचीत’ शीर्षक निबंध के प्रश्नों के उत्तर जानते हैं।
बातचीत पाठ की व्याख्या | Batchit Class 12 Hindi
‘बातचीत’ शीर्षक निबंध के लेखक का नाम - बालकृष्ण भट्ट है। इनका जन्म 23 जून 1844 ई. को और मृत्यु 20 जुलाई 1914 ई. में है। इनका जन्मस्थान और निवास इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश था।
बालकृष्ण भट्ट की रचनाएँ इस प्रकार हैं —
उपन्यास : रहस्य कथा, नूतन ब्रह्मचारी, सौ अजान एक सुजान, गुप्त वैरी, रसातल यात्रा, उचित दक्षिणा, हमारी घड़ी, सदभाव का अभाव।
नाटक : पद्मावती, किरातर्जुनीय, वेणी संहार, शिशुपाल वध, नल दमयंती या दमयंती स्वयंवर, शिक्षा दान, चंद्रसेन, सीता वनवास, पतित पंचम, मेघनाथ वध, कट्टर सूम की एक नकल, वहन्नला, इंग्लैंडेश्वरी और भारत जननी, भारतवर्ष और कलि, दो दूरदेशी, एक रोगी और एक वैध, रेल का विकेट खेल, बालविवाह।
प्रहसन : जैसा काम वैसा परिणाम, नई रौशनी का विष, आचार विडंबन इत्यादि ।
निबंध : बालकृष्ण भट्ट ने लगभग 1000 निबंध लिखें जिनमें सौ से अधिक बहुत महत्त्वपूर्ण एवं उपयोगी हैं। इनके निबंध का संग्रह ‘भट्ट निबंधमाला’ के नाम से दो खंडों में एक संग्रह के रूप में प्रकाशित हो चुका है।
बालकृष्ण भट्ट आधुनिक काल के भारतेन्दु युग के प्रमुख साहित्यकारों में से एक हैं। यह अपने तेजस्वी लेखन कला के माध्यम से साहित्य की सेवा करते रहने वाले समर्पित साहित्यकारों में मूर्धन्य थे।
Batchit Class 12 Hindi Explanation
बातचीत निबंध का सारांश - Batchit Summary
‘बातचीत’ शीर्षक निबंध आधुनिक काल के जाने-माने प्रसिद्ध निबंधकार। श्री बालकृष्ण भट्ट के द्वारा लिखा गया है। इस निबंध में वाकशक्ति (बोलने की क्षमता) को निबंधकार ने ईश्वर का वरदान बताया है। बालकृष्ण जी का कहना है कि अगर मनुष्य में बातचीत करने की क्षमता अर्थात वाकशक्ति ना होती तो ना जाने यह गूंगी सृष्टि आज किस हाल में होती। लेखक चिंतित होकर कहता है कि बातचीत में बोलने वाले को भाषण की तरह नाज नखरा और हाव भाव जाहिर करने का मौका नहीं दिया जाता।
भाषण (स्पीच) में वक्तृता और बातचीत दोनों है। भाषण में आदमी पहले संभल-संभल कर बोलता है और फिर कोई चुटीली बात करता है ताकि तालियों की आवाज़ से कमरा या वह जगह जहां भाषण दिया जा रहा है गूँज उठे। इसमें अपने भाषण में जानबूझकर ऐसा मौका लाना पड़ता है जिससे तालियां बजाने पर लोग मजबूर हो जाएं।
बातचीत के दौरान ताली बजाने का कोई मौका नहीं होता है। और ना ही लोगों के कहकहे उड़ाने जैसी कोई बात ही रहती है। हां इतना जरूर है कि बातचीत में कभी कोई चुटीली और मजेदार बात आ जाने पर चेहरे पर मुस्कान या थोड़ी हँसी आ जाती है। मुसकराहट से होठों का फड़क उठना इस हँसी की अंतिम सीमा होती है। स्पीच अर्थात भाषण देने का उद्देश्य सुननेवाले के मन में जोश और उमंग पैदा करना होता है। बातचीत मन को बहलाने का एक तरीक़ा है।
बालकृष्ण भट्ट कहते हैं कि जिस तरह आदमी को अपनी जिंदगी मजेदार बनाने के लिए खाने, पीने, चलने, फिरने वगैरह की ज़रूरत होती है वैसे ही खुशगवार जिंदगी के लिए बातचीत करना भी बहुत जरूरी है। बातचीत करने से आदमी का मन हल्का और शांत हो जाता है और अति आनंद की प्राप्ति होती है। दिल के भीतर जो भी गंदगी और धूंआ जमा रहता है वह भाप बनकर उड़ जाता है। लेखक आगे इस प्रकार लिखते हैं कि जिस किसी को एक बार बातचीत करने की आदत लग जाती है वह बात करने के चक्कर में खाना-पीना भी छोड़ देते हैं। लेकिन बातचीत का मज़ा नहीं खोना चाहते हैं।
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बातचीत पाठ की व्याख्या
लेखक ने रॉबिंसन क्रूसो के बारे में कहा है कि वह 16 साल तक आदमी का मुंह नहीं देखा था। 16 सालों तक कुत्ता, बिल्ली जैसे जानवरों के बीच रहने के बाद उसने फ्राइडे के मुंह से एक बात सुनी। उस समय रॉबिंसन को ऐसा आनंद प्राप्त हुआ मानो उसने नए सिरे से फिर से आदमी का चोला पाया हो। वह कहते हैं कि मनुष्य की वाकशक्ति (बातें करने की क्षमता) में लुभा लेने की शक्ति होती है।
बेन जॉनसन का कथन है कि बोलने से ही मनुष्य के वास्तविक रूप का साक्षात्कार होता है।
लेखक ने अपने निबंध में बातचीत के विभिन्न प्रकार को भी बताया है। बातचीत की सीमा दो से लेकर वहाँ तक हो सकती है, जहाँ तक उनकी जमात या मीटिंग या सभा न समझ ली जाए।
एडीसन मत है कि वास्तविक बातचीत केवल दो व्यक्तियों के बीच हो सकती है अर्थात जब दो लोग होते हैं तभी अपना दिल एक दूसरे के सामने खोल पाते हैं। तीन लोगों के बीच दो की बात कोसों दूर हो जाती है। छ: कानों में पड़ी बात खुल जाती है। दो व्यक्ति के बातचीत में अगर कोई तिसरा व्यक्ति आ जाता है तो वे दोनों अपने बातचीत बंद कर देते हैं।
लेखक बालकृष्ण भट्ट के अनुसार तीन लोगों के बीच बातचीत अंगूठी में जुड़ी नग जैसी होती है। तीनों लोगों की बातचीत त्रिकोण बन जाता है।
चार लोगों के बीच की बातचीत केवल फ़ार्मेलिटी निभाने भर होती है। इसमें खुलकर बाते नहीं होती हैं। वह ‘फॉर्मैलिटी’ गौरव और संजीदगी वाली बात होती है। चार से अधिक लोगों के बातचीत में राम-रमौवल होती है अर्थात हँसी-मजाक होता है।
दो बुढ़े लोगों के बातचीत में अक्सर ज़माने की शिकायत भरी होती है। वे बाबा आदम के समय की दास्तान शुरू करते हैं, जिसमें चार सच तो दस झूठ होता है। एक बार जब उनके बातचीत का घोड़ा छूट जाने पर पहरों बीत जाते पर भी अंत नहीं होता है।
लेखक बालकृष्ण भट्ट कहते हैं कि दो सहेलियों के बीच बातचीत का ज़ायका निराला होता है। भाग्य से ही दो सहेलियों के बीच का बातचीत सुनने को मिलता है। इनकी बातचीत रसभरी होती है।
दो बुढियों की बातचीत बहु-बेटी वाली होती है। वह अपनी बहुओं या बेटों का गिला शिकवा करती रहती हैं। या बिरादरी की ऐसी बात छेड़ देती हैं जिससे अंत में झगड़ा होने लगता है। स्कूल के लड़कों की बातचीत में अपने उस्ताद की शिकायत या तारीफ़ या अपने सहपाठियों में से किसी के गुण-अवगुण की चर्चा होती है। इसके अलावा लेखक ने बातचीत के अनेकों प्रकार के बारे में विस्तार से बताया है। जिसमें राजकाज की बात, व्यापार संबंधी बातचीत, दो मित्रों में प्रेमालाप आदि शामिल हैं।
लेखक बालकृष्ण भट्ट कहते हैं कि हमारे देश में अशिक्षित लोगों में बतकही होती है। लड़की लड़केवालों की ओर से एक-एक आदमी बिचवई होकर दोनों में विवाह संबंध की कुछ बातचीत करते हैं। उस दिन से बिरादरीवाले को ज़ाहिर कर दिया जाता है कि विवाह पक्का हो गया। और यह रस्म बड़े उत्सव से मनाया जाता है। चंडूखाने (गांजे और शराब के अड्डे) की बातचीत भी निराली होती है।
लेखक बालकृष्ण भट्ट कहते हैं कि यूरोप के लोगों मे बातचीत का हुनर है जिसे ‘आर्ट ऑफ कनवरसेशन’ (Art of Conversation) कहते हैं। इनके प्रसंग को सुनके कान को अत्यंत सुख मिलता है। इसे सुहृद गोष्ठी कहते हैं। पच्चीस वर्ष से उपर के उम्रवालों की बातचीत में गौरव और अनुभव पाया जाता है। लेकिन इससे कम उम्र के लोगों की बातचीत में गौरव नहीं पाया जाता है, पर मिठास दस गुनी बढ़ जाती है।
अंत में बालकृष्ण भट्ट कहते हैं कि हमें अपने अंदर ऐसी शक्ति पैदा करनी चाहिये जिससे हम अपने आप बातचीत कर लें और बातचीत का यही उत्तम तरीका है।
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