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तिरिछ कहानी का सारांश एवं प्रश्न उत्तर

तिरिछ कहानी का सारांश एवं प्रश्न उत्तर


तिरिछ पाठ का लेखक परिचय
तिरिछ कहानी के लेखक का नाम उदय प्रकाश है। इनका जन्म 01 जनवरी 1952 हुआ। इनका निवास स्थान सीतापुर, अनुपपुर, मध्य प्रदेश है। इनके पिता का नाम प्रेम कुमार सिंह और माता का नाम गंगा देवी था।

तिरिछ कहानी का सारांश लिखें

तिरिछ कहानी में लेखक ने अपने पिता को माध्यम बनाकर पुरानी पीढ़ी के संस्कारों और विश्वासों को बड़ी चतुराई से उजागर किया है। लेखक के पिताजी प्रातःकाल स्वास्थ्य लाभ हेतु भ्रमण पर गये थे। इसी क्रम में उन्हें एक विषैले जंतू, तिरिछ काट लेता है। तिरिछ के बारे में जनमानस में ऐसी मान्यता है कि वह रात के समय अपने मूत्र में स्नान कर लेता है और उसके बाद वह और अधिक विषैला हो जाता है। ऐसी स्थिति में तिरिछ के काटे जाने पर आदमी का बचना मुश्किल हो जाता है। लेकिन अगर उस तिरिछ को उसी समय मार दिया जाए तो उसके विषैला प्रभाव कुछ कम हो जाता है। लोगों का यह भी कहना है कि जो आदमी तिरिछ को मारता है उसका चित्र तिरिछ की आंखों में उभर जाता है और तिरिछ का पूरा परिवार उसका बदला अवश्य लेता है।

तिरिछ कितना विषैला और भयंकर है यह केवल एक तथ्य है लेकिन वास्तविकता यह है कि आजकल संवेदना शून्य, उच्छृंखल, उद्दंड शहरों का जीवन उससे कई गुना अधिक भयानक है। विशेष रूप से उस आदमी के लिए जो सरल, संकोची और अनासक्त स्वभाव का होता है। तिरिछ तो एक छोटा सा जन्तु है जो थोड़ा बहुत विषैला भी है लेकिन शहरी जीवन क्या कम विष भरा है क्या यहां के लोग कम विषैले हैं। यह तिरिछ लेखक के सपने में बार बार आता है। उसे भयभीत भी करता है। उसके बारे में तरह तरह की मान्यताएं हैं। जैसे कि वह तभी काटता है जब कोई व्यक्ति उससे आंखें मिलाता है। कहा जाता है कि तिरिछ को देखते ही उससे आंखें हटा लेनी चाहिए। अगर आंखें मिलीं, वह दौड़ा तब वह उसको फिर नहीं छोड़ सकता। यहां यह भी पता चलता है कि हम अपनी मान्यताओं से डरे हुए और बंधे हुए हैं। यह भय हमें इस प्रकार से जकड़ चुका है कि हम विज्ञान का भी महत्व स्वीकार नहीं करते हैं। यह भी मान्यता है कि यदि तिरिछ को मार दिया जाए तो रात में चन्द्रमा की किरणें उसको दुबारा जीवित कर देती हैं। पिताजी ने भले ही उस तिरिछ को मार दिया था लेकिन पिताजी का परम्परागत ढंग से उपचार चलता रहा। उसी दिन पिताजी को अदालत में एक पेशी के सिलसिले में शहर भी जाना था। सड़क पर गांव का एक ट्रैक्टर शहर जा रहा था। वह उसमें बैठ गये। वहां जाने पर यह भेद खुल गया कि उन्हें तिरिछ ने काट लिया है।

वहां पंडित राम औतार भी उपस्थित थे, उन्होंने पिताजी को बताया कि कभी कभी तिरिछ का प्रभाव 24 घण्टे बाद भी होता है। राम औतार वैद्य का काम भी करते थे। कहने लगे कि चरक सूत्र में विष ही विष की औषधि है। इसलिए धतूरे के बीज से तिरिछ का विष काटा जा सकता है। उनके माध्यम से पिता जी का तिरिछ के काटे जाने का उपचार भी हो गया। उधर लेखक को यह पता लगा कि मरे हुए तिरिछ का शव वहीं पड़ा होगा और उसकी आंखों में पिता जी का चित्र उतर आया होगा। पिताजी को चाहिए था कि उसकी आंखें अवश्य कुचल देते। लेखक अपने दोस्त थानू के साथ एक बोतल मिट्टी का तेल, दियासलाई और एक डंडा लेकर जंगल में जाता है। थोड़ा इधर उधर ढूंढने पर तिरिछ का शव मिल गया। वह मरा हुआ चित्त पड़ा था। उसको जला दिया गया।

शहर में पिताजी का चक्कर के कारण सिर घूमने लगा। उसके बाद शहर में उनको कई प्रकार के अमानवीय व्यवहार झेलना पड़ा, पत्थर खाने पड़े तथा वे चल बसे। यहां पर एक चित्र देना आवश्यक है। लड़के ने यह बताया कि लड़के उन्हें बीच बीच में ढेला भी मार रहे थे। यह एक वृद्ध व्यक्ति के प्रति उपेक्षा, तिरस्कार, अपमान, अन्याय और घृणा का परिचायक है। साथ ही हिंसक और आतंकी प्रकृति का भी पोषक है। कहानी की घटनाएं प्रतीकात्मक है इसलिए उनको पूर्ण विश्वसनीय मानना सहज संभव नहीं है, लेकिन यहां आत्मीयता चुक गयी है मानवीय मूल्य पूर्णतः मिट गये हैं। इस घटनाक्रम से ऐसा ही प्रतीत होता है।

तिरिछ कहानी का प्रश्न उत्तर

प्रश्न १.

तिरिछ क्या है? कहानी में यह किसका प्रतीक है?

उत्तर : ‘तिरिछ’ एक विषैला जंगली जन्तु है। यह छिपकली प्रजाति का है। यह दिखने में हूबहू छिपकली जैसा ही होता है लेकिन इसका आकार छिपकली से बड़ा लगभग दो से तीन फूट तक होता है। इसे अलग-अलग जगहों पर अलग अलग नाम से जाना जाता है जैसे गोह, विषखापर Monitor Lizard इत्यादि भी कहते हैं। कहानी में ‘तिरिछ’ प्राचीन काल से प्रचलित अंधविश्वासों और रूढ़ियों का प्रतीक है।

प्रश्न २.

तिरिछ लेखक के सपने में आता था और वह इतनी परिचित आँखों से देखता था कि लेखक अपने आपको रोक नहीं पाता था। यहाँ परिचित आंखों से क्या आशय है?

उत्तर : हमारे समाज में प्राचीन काल से एक अंधविश्वास चला आ रहा है कि तिरिछ काटने के लिए तभी दौड़ता है, जब उससे आंखें लड़ जाए। अगर तिरिछ को देखो तो उससे कभी आँख मत मिलाओ। आँख मिलते ही वह आदमी की गंध पहचान लेता है और फिर पीछे लग जाता है। फिर तो आदमी चाहे पूरी पृथ्वी का चक्कर ही क्यों न लगा ले तिरिछ पीछे-पीछे जाता है। लेखक के सपने में अक्सर तिरिछ आता था, वह कोशिश करता था कि उससे आंखें न मिलने पाये। तिरिछ लेखक को इतनी परिचित आँखों से देखता था कि लेखक को उसकी आँखों में परिचय की जो चमक दिखाई देती थी उससे ऐसा लगता था कि वह लेखक का पुराना शत्रु है और उसे लेखक के दिमाग में आनेवाले हर विचार के बारे में पहले से पता है।

प्रश्न ३.

तिरिछ को जलाने गए लेखक को पूरा जंगल परिचित लगता है। ऐसा क्यों?

उत्तर : लेखक जब तिरिछ को जलाने के लिए उसकी लाश की तलाश करने जंगल में जाता है तब लेखक को पूरा जंगल परिचित इसीलिए लगता है क्योंकि इसी जगह से कई बार सपने में तिरिछ से बचने के लिए वह भागा था। लेखक गौर से हर तरफ देखता है। उसन सपने के बारे में बताया भी था कि एक सँकरा सा नाला इस जगह बहता है। नाले के ऊपर जहाँ बड़ी-बड़ी चट्टानें हैं, वहीं कीकर का एक बहुत पुराना पेड़ है, जिस पर बड़े शहद के छत्ते हैं। लेखक को एक भूरा रंग का चट्टान मिलता है जो बरसात भर नाले के पानी में आधी डुबी रहती थी। लेखक को उसी जगह तिरिछ की लाश भी मिल जाती है। सपने में आयी बातों का सच होना लेखक को जंगल से परिचित कराता है। इसीलिए लेखक को जंगल परिचित सा लगता है। क्योंकि इन सब चीजों को वह सपने में बहुत बार देख चुका था।

प्रश्न ४.

लेखक को अब तिरिछ का सपना नहीं आता, क्यों?

उत्तर : लेखक को अब तिरिछ का सपना नहीं आने का कारण लेखक के सपने का सत्य होना था। लेकिन अब लेखक ऐसा विश्वास करने लगा है कि मैं विश्वास करना चाहता हूँ कि यह सब सपना है। अभी आँख खोलते ही सब ठीक हो जायेगा।

इससे पहले लेखक को सपने की बात प्रचलित अंधविश्वास सपने सच हुआ करते हैं सत्य प्रतीत होती थी। लेखक रहस्यमय परिस्थितियों में जीता था परन्तु अनुभव से यह जान गया है कि सपना बस सपना भर है। लेखक ने इस जटिल यथार्थ को सफलतापूर्वक अभिव्यक्त करने के लिए दुःस्वप्न का प्रयोग किया है। लेकिन जैसे ही लेखक का भ्रम टूटता है तो उसे डर नहीं लगता और तिरिछ के सपने नहीं आते।

प्रश्न ५.

लेखक के पिताजी ने एक पत्र लिफाफे में देकर लेखक को शहर के डॉक्टर के पास भेजा, उसके बाद क्या हुआ, उन बातों पर प्रकाश डालें।

उत्तर : जब लेखक ने अपने स्कूल की फीस के बारे में पिताजी से कहा था तो दो दिनों तक वे चुऐ रहें। इसपर लेखक और उसकी माँ को लगा कि पिताजी फीस की बात भूल गए हैं। लेकिन तीसरे ही दिन लिफाफा युक्त एक पत्र लेखक को देते हुए शहर के डॉ. पंत के पास भेजा तब लेखक आश्चर्य में पड़ गए क्योंकि पत्र प्राप्ति के बाद डॉ. पंत ने लेखक को शरबत पिलाकर घर के अंदर प्रेमपूर्वक ले गए। अपने बेटे से परिचय कराकर सी सी के तीन नोट भी दिए।

प्रश्न ६.

लेखक पिताजी को किस रूप में देखता था?

उत्तर : लेखक अपने पिताजी के गंभीर एवं मितभाषी स्वभाव से अच्छी तरह परिचित था। इसलिए लेखक तथा परिवार के अन्य लोग पिताजी पर गर्व करते थे। परिवार के सभी सदस्य पिता जी से डरते भी थे। वें अपनी आवश्यकता और कठिनाई को किसी पर प्रकट नहीं करते थे। वे ग्रामीण परिवेश के सीधे-सादे सादे व्यक्ति थे। इन्हीं गुणों के कारण लेखक एवं परिवार के सभी सदस्य पिताजी पर गर्व करते थे एवं सम्मान की दृष्टि से देखते थे।

प्रश्न ७.

तिरिछ क्या होता है, क्या उसके काटने से आदमी बचता है?

उत्तर : तिरिछ एक विषैला और भयानक जन्तु है। किसी और भी कई नाम से जाना जाता है जैसे कि गोह, विषखापर, मॉनिटर लिजर्ड इत्यादि। इसके काटने पर मनुष्य इसके विष के प्रभाव से बच नहीं पाता है। ठीक उस जंतू तिरिछ के समान ही हमारे समाज में भी कुछ विषैले ‘तिरिछ’ रूपी मनुष्य रहते हैं जिनके दुर्व्यवहार से कोई भी बच नहीं सकता। वे भी भयानक एवं खतरनाक होते हैं। उनके विष-वाण से बचना असंभव होता है।

प्रश्न ८.

‘तिरिछ’ अधिकांशतः कहाँ पाया जाता है?

उत्तर : ‘तिरिछ’ अधिकांशतः पहाड़ की कन्दराओं, जंगलों या घनी झाड़ियों में पाया जाता है। यह आदमी को देखते ही तथा आंखें मिलते ही उसका पीछा कर काटकर ही दम लेता है। ठीक तिरिछ के समान ही समाज में भी विषैले ‘तिरिछ’ रूपी मनुष्य पाए जाते हैं।

प्रश्न ९.

लेखक किन-किन जीव-जंतुओं से डरता था ?

उत्तर : लेखक ने अपने बचपन के अनुभव को व्यक्त करते हुए बताया है कि वह सामान्य बच्चों की तरह ही बचपन में ‘तिरिछ’ से बहुत डरता था। वह सपने में दो चीजें अक्सर देखता था, एक हाथी और दूसरी ‘तिरिछ’। लेखक हमेशा कोशिश करता था कि इन दोनों से कभी भेंट न हो। इन दोनों के देखते ही लेखक आंखें बचाकर भागता था और अपनी जान बचाने की भरपूर कोशिश करता था।

प्रश्न १०.

सपने में लेखक क्या-क्या करता था?

उत्तर : लेखक के लिए सबसे डरावनी, यातनादायक, भयाक्रांत तथा बेचैनी से भरा सपना था कि हाथी और ‘तिरिछ’ से अपने प्राण की रक्षा कैसे की जाय। वह जब भी सपने में या सामने हाथी या ‘तिरिछ’ को देखता था तो प्राण रक्षा के लिए प्रयत्नशील हो जाता था। भागते-भागते उसका पूरा शरीर थक जाता था। फेफड़े फूल जाते थे। शरीर पसीने से लथ-पथ हो जाता था। एक डरावनी और सुन्न कर देने वाली मृत्यु बिल्कुल करीब दिखाई पड़ती थी। वह चीखने, चिल्लाने और रोने भी लगता था।

प्रश्न ११.

साँप के बारे में लोगों की एवं लेखक की क्या धारणा है, लिखें?

उत्तर : साँप के बारे में लेखक एवं आम लोगों की धारणा यह है कि अगर कोई व्यक्ति साँप को मार रहा हो तो अपने मरने के पूर्व वह साँप अंतिम बार अपने हत्यारे के चेहरे को पूरी तरह से, बहुत ध्यान से देखता है। आदमी उसकी हत्या कर रहा होता है, और साँप टक-टकी बाँधकर उस आदमी के चेहरे की एक-एक बारीकी को अपनी आँख के भीतरी पर्दे पर चित्र बना रहा होता है। बाद में, आदमी के जाने के बाद साँप का दूसरा जोड़ा उस मरे हुए साँप की आँख में झाँककर हत्यारे की पहचान कर लेता है। वह हत्यारा कहीं भी चला जाए साँप बदला लेने की कोशिश में रहता है।

प्रश्न १२.

थानू कौन था ? लेखक के साथ उसका क्या संबंध था?

उत्तर : थानू लेखक का प्रिय मित्र है। थानू लेखक का प्रिय एवं विश्वसनीय मित्र होने के नाते ‘तिरिछ’ के बारे में बता रहा था। जब लेखक के पिता को ‘तिरिछ’ जैसा विषैला जंतू काट लेता है तब वह (थान) कहता है कि ‘तिरिछ’ द्वारा काटा गया व्यक्ति जीवित नहीं रह पाता तथा उसकी मृत्यु चौबीस घंटे के भीतर हो जाती है। अब चूँकि उनकी (पिताजी की मृत्यु हो चुकी है इसलिए थानू अपने पूर्व कथन की पुनः पुष्टि कर रहा है।

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