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हँसते हुए मेरा अकेलापन पाठ का सारांश और प्रश्न उत्तर

हंसते हुए मेरा अकेलापन का सारांश | हंसते हुए मेरा अकेलापन का प्रश्न उत्तर


हँसते हुए मेरा अकेलापन पाठ के लेखक का नाम मलयज है। इनका जन्म 1935 ई. में और निधन 26 अप्रैल 1982 को हुआ। इनका निवास स्थान, महुई, आजमगढ़, उत्तर प्रदेश था। इनके पिता का नाम त्रिलोकी नाथ वर्मा और माता का नाम प्रभावती देवी था।

मलयज की रचनाएँ इस प्रकार हैं—
कविता संग्रह : जख़्म पर धूल, अपने होने को अप्रकाशित करता हुआ, हँसते हुए मेरा अकेलापन

निबंध संग्रह : कविता से साक्षात्कार (आलोचना), संवाद और एकालाप (आलोचना), रामचन्द्र शुक्ल (आलोचना), मेरा अकेलापन (सृजनात्मक गद्य), संवाद और एकालाप (आलोचनात्मक गद्य)

हँसते हुए मेरा अकेलापन पाठ का सारांश लिखिए

‘हँसते हुए मेरा अकेलापन’ शीर्षक मलयज द्वारा लिखी गई डायरी है। यह डायरी होते हुए भी उनकी उत्कृष्ट रचना है। मलयज अपनी भावनाओं के प्रति अत्यंत सजग और विवेकशील व्यक्ति थे। डायरी लेखन मलयज के लिए उतना ही महत्वपूर्ण था जितना कि जीवित रहने के लिए सांसें लेना। उनके द्वारा लिखी गई डायरी में उस समय की महत्वपूर्ण समसामयिक घटनाएं एवं सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनैतिक उथल पुथल और साथ ही उनके निजी जीवन की समस्याएं और परेशानियों को देखा जा सकता है।

पाठ्य पुस्तक में प्रस्तुत की गई डायरी के अंश की पहली डायरी में मलयज प्रकृति और मनुष्य के बीच समन्वय स्थापित करने का प्रयास करते हुए दिखाई देते हैं। मिलिट्री की छावनी में हरे भरे वृक्षों को काटा जा रहा है। लेखक इन हरे भरे वृक्षों के एक समूह में उनकी एकात्मकता का संकेत देता है। दूसरे डायरी में लेखक ने मनुष्य के जीवन की तुलना खेतों में लहलहाती फसलों से की है। मनुष्य का जीवन भी फसल ही के समान बढ़ता है, पकता है और अंत में कटता हुआ दिखायी देता है। तीसरी डायरी में लेखक ने चिट्ठी की प्रतीक्षा में और चिट्ठी नहीं आने पर अपनी मनोदशा का उल्लेख किया है। चिट्ठी के नहीं आने पर मन में एक अजीब सी बेचैनी पैदा होती है।

चौथी डायरी में लेखक ने बलभद्र ठाकुर नाम के एक लेखक का चरित्र चित्रण किया है और इसके माध्यम से यह बताने का प्रयास किया है कि एक लेखक का हृदय कितना सरल एवं मिलनसार होता है। अपनी प्रत्येक रचनाओं पर लेखक को बड़ा गर्व होता है, इस बात का सहज चित्रण इस डायरी में प्रस्तुत किया गया है। कौसानी में कुछ दिनों तक लेखक का प्रवास बड़ा ही आनन्ददायक वातावरण में व्यतीत हुआ। दो शिक्षकों का चित्रण उनके सहज तथा सामाजिक स्वभाव को दर्शाता है। पांचवी डायरी में भी लेखक ने कौसानी के प्राकृतिक, शांत, मनोरम वातावरण के सौंदर्य का चित्रण किया है। छठी डायरी में मलयज ने एक सेव बेचनेवाली लड़की का चित्रण बड़ी ही कुशलतापूर्वक किया है। वह लड़की इतनी भोली भाली थी कि सेव बेचने में उसका भोलापन स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है।

मलयज अपनी सातवीं डायरी में यथार्थवादी दिखायी देते हैं। उनके अनुसार रचने और भोगने का संबंध एक द्वंद्वात्मक संबंध है। आठवीं डायरी में लेखक ने शब्द तथा अर्थ के बीच निकट संबंध का वर्णन किया है। लेखक के अनुसार शब्द अधिक होने पर अर्थ कम होने लगता है और अर्थ की अधिकता में शब्द की कमी होने लगती है अर्थात् शब्द अर्थ में और अर्थ शब्द में परिवर्तित होते जाते हैं। नवीं डायरी में लेखक ने सुरक्षा पर विचार-विमर्श किया है। व्यक्ति की सुरक्षा प्रकाश में हो सकती है, अँधेरे में नहीं। अँधेरे में तो केवल छिपा जा सकता है। सुरक्षा चुनौतियों को झेलने में ही है, स्वयं को बचाने में नहीं। इसलिए आक्रामक व्यक्ति ही अपनी सुरक्षा कर सकता है। बचाव करने में व्यक्ति असुरक्षित होता है। दसवीं डायरी में लेखक ने रचना और दस्तावेज के बीच अंतर एवं दोनों में पारस्परिक संबंध पर चर्चा की है। लेखक के अनुसार दस्तावेज रचना का कच्चा माल है।

ग्यारवीं डायरी में लेखक ने मन में उत्पन्न होने वाले भय का उल्लेख किया है। लेखक अपने को भीतर से डरा हुआ व्यक्ति मानता है। मन हर प्रकार के तनाव एवं संशय को उत्पन्न करता है। किसी की प्रतीक्षा की घडी बीत जाने पर मन में भय उत्पन्न होता है। भय कई प्रकार के होते हैं। मनुष्य जैसे जैसे जीवन में समस्याओं से घिरता जाता है वैसे वैसे उसके मन में भय की मात्रा भी बढ़ती जाती है। अंतिम डायरी में लेखक ने जीवन में तनाव के प्रभाव का उल्लेख किया है। मनुष्य जीवन में संघर्षों का सामना करते समय तनाव से भरा रहता है। इस प्रकार प्रस्तुत डायरी के अंश में मलयज ने अपने जीवन के संघर्षों एवं दुखों को उजागर करते हुए मानव जीवन में पायी जानेवाली सहज समस्याओं का चित्रण बड़ी ही कुशलतापूर्वक किया है। एक व्यक्ति को कितना खुला और ईमानदार तथा विचारवान होना चाहिए इस भाव का सहज चित्रण लेखक ने अपनी डायरी में प्रस्तुत किया है। एक व्यक्ति के क्या क्या दायित्व हैं और अपने दायित्वों के प्रति उनमें कैसा लगाव होना चाहिए ये सारे भाव प्रस्तुत डायरी में स्पष्ट रूप से चित्रित किए गए हैं।

हंसते हुए मेरा अकेलापन का प्रश्न उत्तर

प्रश्न १.

डायरी क्या है ?

उत्तर : डायरी हमारे जीवन का दैनिक लेखा जोखा है। यही कारण है कि इसको दैनंदिनी भी कहा जाता है। इसमें हम जीवन के प्रतिदिन की घटनाओं और अनुभवों का उल्लेख करते हैं। किसी व्यक्ति के द्वारा लिखी गई डायरी से उसके स्वभाव, उसके जीवन के लक्ष्यों तथा उसके जीवन की स्थितियां भी परिलक्षित होती हैं। डायरी किसी व्यक्ति के संपूर्ण जीवन का दर्पण होता है।

प्रश्न २.

किस तारीख की डायरी आपको सबसे प्रभावी लगी और क्यों?

उत्तर : मेरे विचार से देखा जाए तो 3 मार्च 1981 की डायरी सबसे अधिक प्रभावी लगी। क्योंकि इस तिथि की डायरी में लेखक ने मनुष्य के जीवन का बड़ा ही सटीक एवं यथार्थ चित्र प्रस्तुत किया है। मनुष्य अपने जीवन में अनेकों प्रकार की कठिनाइयों को झेलते हुए संसार में अपना अस्तित्व बनाये रखने का हर संभव प्रयास करता है। वह कई प्रकार के तनाव में जीवन जीता है। लक्ष्यों को प्राप्त करने की इच्छा से वह सदा प्रयत्नशील रहता है। मानव जीवन इस विशिष्टता से विशेष प्रभावित होता है।

प्रश्न ३.

‘धरती का क्षण’ से क्या आशय है?

उत्तर : लेखक जब कविता की शैली में डायरी लेखन करते हैं तो शब्दों एवं उनके अर्थ के मध्य की दूरी पूर्णतः अनिर्धारित हो जाती है। शब्द अर्थ में तथा अर्थ शब्दों में बदलते चले जाते हैं, एक दूसरे को पकड़ते और छोड़ते हुए। शब्द तथा अर्थ का जब साथ नहीं होता तो वह आकाश हो जाता है जिसमें रचनाएं बिजली के फूल के जैसे खिल उठती हैं लेकिन जब इनका साथ होता है तो वह धरती का क्षण हो जाता है और उसमें रचनाएं जड़ पा लेती हैं। इनमें प्रस्फुटन का मोती पनप जाते हैं। इसलिए यह कहना उचित है कि शब्द और अर्थ दोनों ही एक दूसरे के पूरक हैं।

प्रश्न ४.

रचे हुए यथार्थ और भोगे हुए यथार्थ में क्या संबांध है?

उत्तर : मनुष्य अपना यथार्थ स्वयं ही रचता है और बाद में उसी रचे हुए यथार्थ को दसरो को दे देता है। प्रत्येक व्यक्ति का भोगा हुआ यथार्थ किसी का दिया हुआ यथार्थ होता है। भोगा हुआ दूसरों के दिये हुए हिस्से होते हैं। हिस्से यथार्थ का एक सामूहिक नाम है। रिश्ता द्वंद्वात्मक होते हुए भी इन दोनों की जड़े एक दूसरे में हैं और वहीं से पोषण रस पाती हैं। ये दोनों एक-दूसरे को बनाते मिटाते भी रहते हैं। प्रत्येक मनुष्य ऐसे को रचता है, जिसमें वह जीता है और भोगता है। लेकिन रचा हुआ यथार्थ से भोगा हुआ यथार्थ अलग होता है, ऐसा कहा जा सकता है।

प्रश्न ५.

लेखक के अनुसार सुरक्षा कहां है? वह डायरी को किस रूप में देखना चाहता है?

उत्तर : लेखक के अनुसार सुरक्षा डायरी में नहीं, अपितु सूर्य के पूर्ण प्रकाश में है। अंधेरे में तो केवल पल भर की धुक धुकी के साथ स्वयं को छुपाया जा सकता है। लेकिन लड़ने, पिसने, खटने और चुनौतियों को स्वीकार करने में ही वास्तविक जीवन है। मुश्किलों से भागने और स्वयं को बचाने में जीवन की सुरक्षा नहीं बल्कि साहस के साथ चुनौतियों को स्वीकार कर पूर्णतः संघर्षरत प्रकाशित जीवन जीने में ही सुरक्षा है।

प्रश्न ६.

हरिचरण को हरचरना क्यों कहा गया है?

उत्तर : हरिचरण शब्द तत्सम संस्कृतनिष्ठ है तथा वह संभ्रांत नाम की संस्कृति का परिचायक भी है और हरचरणा ग्रामीण संस्कृति का शब्द है। हरिचरण विशिष्ट व्यक्ति का प्रतिनिधि हो सकता है। हरिचरण शब्द से परिस्थिति के अनुकूल गांव की फटेहालों, उसकी गरीबी एवं उसका क्षोभ व्यक्त नहीं होता है, जो हरिचरण से होता है। इसलिए कवि ने हरिचरण को हरचरणा कहकर संबोधित किया है।

प्रश्न ७.

डायरी का लिखा जाना क्यों मुश्किल है?

उत्तर : डायरी मन में उत्पन्न होने वाला कूड़ा है। डायरी में शब्दों तथा अर्थों के बीच तटस्थता बहुत कम रहती है। डायरी लिखने वाला व्यक्ति अपने मन की बातों को डायरी के कागज पर उतारता है। वह अपने यथार्थ को अपने अनुसार, अपने समझने योग्य शब्दों में लिखता जाता है। डायरी स्वयं के लिए लिखी जाती है, दूसरों के लिए नहीं। डायरी लिखने में अपने भाव के अनुसार शब्द नहीं मिल पाते हैं। अगर शब्दों का भंडार है भी तो उन शब्दों के योग्य वे भाव ही नहीं होते हैं। डायरी में मुक्ताकाश भी होता है और सूक्ष्मता भी। शब्दार्थ तथा भावार्थ के मेल के कारण डायरी का लिखा जाना मुश्किल काम है।


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