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मुंशी प्रेमचंद की कहानी कफन का सारांश और समीक्षा | Summary and Review of Munshi Premchand’s Story Kafan

मुंशी प्रेमचंद की कहानी कफन का सारांश और समीक्षा | Summary and Review of Munshi Premchand’s Story Kafan


इस लेख में हम बात करने जा रहे हैं प्रेमचंद की कहानी कफन का जिसमें गरीब बेबस और लाचार बुधिया और उसके गर्भस्थ शिशु की मौत का जिम्मेदार उसका पति माधव और ससुर घीसू है।

कफ़न का सारांश और समीक्षा

प्रेमचंद की कहानी कफन की समीक्षा करने से पहले कहानी के सभी पात्रों और कहानी के कथानक से परिचित होना आवश्यक है।

कफ़न : कहानी परिचय ( Kafan Story Introduction)

संतान उत्पत्ति के लिए सृष्टि के नियमानुसार स्त्री और पुरूष दोनों ही की आवश्यकता होती है, परंतु किसी और की जान बचाने के लिए जब अपनी जान गंवाने की बात आती है तो स्त्री को ही आगे आना पड़ता है। यह प्राकृतिक प्रदत्त स्वाभाविक प्रक्रिया है इसमें किसी भी तरह से पुरूष की कोई ग़लती नहीं है। गर्भधारण करके तरह-तरह की मुसीबतों को सहकर औलाद को जन्म देने का काम जब प्रकृति ने औरत को दिया है तो समाज ने औरतों और बच्चों की देखभाल और भरण पोषण करने का कर्तव्य पुरूष को दिया है। परंतु इस संसार में कुछ ऐसे भी पति हैं जो प्रकृति के बनाए हुए इस नियम को नहीं मानते हैं और अपने कर्तव्य से विमुख होकर अपनी पत्नी और संतान की देखभाल तक करना भूल जाते हैं। ऐसे इंसान इंसान नहीं बल्कि इंसान के रूप में जीते जागते जानवर हैं। वह वास्तव में मिट्टी के माधव हैं जो ना कुछ देख सकते हैं ना सुन सकते हैं।


कफन कहानी की नायिका एक गर्भवती स्त्री है जिसका नाम बुधिया है। बुधिया के पति का नाम माधव है। ऐसे कर्तव्य विमुख पति का क्या किया जाए जिसकी औलाद को जन्म देने के लिए दर्द में तड़पती हुई बेबस और लाचार बुधिया मौत के बिस्तर पर पड़ी हुई अपनी मौत का इंतजार कर रही है। फिर भी उसके पति माधव को इंसानियत के नाते भी दया नहीं आती है? वह बाहर बैठा हुआ अपने कामचोर बाप घीसू के साथ आग में आलू भूनकर खाता रहता है लेकिन एक बार भी झोपड़ी के अंदर देखने नहीं जाता है की बुधिया जिंदा है या मर गई। एक औरत 9 महीने से माधव के बच्चे को अपने पेट के अंदर लिए हुए मुसीबत झेल रही है। उसके बच्चे की जिंदगी बचाने के लिए बुधिया खुद को मारने पर भी तुली हुई है। शायद वह ऐसा इसलिए कर रही है, या करने के लिए मजबूर है कि वह एक मां है और किसी की पत्नी।


उसी संतान के पिता और उस औरत का पति माधव अपने बच्चे के जन्म और आपनी पत्नी की जान बचाने के लिए किसी डॉक्टर, वैद या प्रशिक्षित दाई को नहीं बुलाता है। वह इतना निर्दयी और संवेदनहीन है कि पत्नी के दर्द की चीखों से उसे दया नहीं बल्कि गुस्सा आता है। क्या यही एक पति और एक अजन्मे संतान के पिता का कर्तव्य है? क्या यही है हमारा सभ्य समाज है? जिसने नारी की रक्षा का जिम्मा उठा रखा है!


कफ़न कहानी का सारांश (Summary)

कफ़न कहानी कि नायिका का नाम बुधिया है। बुधिया के पति और ससुर का वर्णन इस कहानी में किया गया है। बुधिया का ससुर तीन दिन काम करता तो तीन दिन आराम करता। बुधिया का पति भी कामचोर है जिसके कारण कोई जल्दी उसे काम पर नहीं रखता है। जब कभी एक दो दिन खाने पीने के लिये पैसा नहीं होता तब बुधिया का ससुर घीसू लकड़ी तोड़ लाता और पति माधव उन लकड़ियों को बाजार में बेंच देता है।


माधव और घीसू जिस गांव में रहते हैं वह किसानों का गांव है जहां रोजगार की कोई कमी नहीं है, परंतु माधव और घिसू काम करना ही नहीं चाहते हैं। घर में मिट्टी के दो-चार टूटे-फूटे बर्तन के अलावा कोई खास सम्पत्ति नहीं है। कामचोरी के कारण क़र्ज़ भी बहुत चढ़ गया है। घर में खाने पीने को नहीं होने पर खेत से आलू और मटर चोरी से उखाड़ लाते और अलाव जलाकर आग में भून कर खाते थे। यही थी उनकी रोज की दिनचर्या।


बुधिया बेचारी पिसाई करके, घास छील कर जो कुछ कमाती थी उससे किसी तरह एक सेर आटे का इन्तज़ाम कर लेती थी। जिससे बुधिया के आने के बाद घीसू और माधव और अधिक आलसी हो गए हैं। पहले थोड़ा बहुत जो काम कर लिया करते थे अब वह भी करना बंद कर दिया है।

बुधिया गर्भवती है। वह माधव के बच्चे की मां बनने वाली है। जिसके कारण वह सुबह से ही प्रसव पीड़ा से तड़प रही है लेकिन माधव ने ना तो स्वयं उसकी कोई सहायता की और ना ही किसी और को सहायता के लिए बुलाया। बुधिया दर्द से चीख रही थी और पिता-पुत्र आलू भूनकर खा रहें हैं। माधव तो यह भी चाहता है कि अगर इसे मरना ही है तो जल्दी मर जाए।


बुधिया की जान बचाने के उपाय करने की जगह पर घीसू को बीस साल पुरानी दावत याद आ रही थी जिसमें उसने स्वादिष्ट पकवान खाए थे। बुधिया पुरी रात दर्द से कराह रही थी लेकिन पिता-पुत्र दोनों में से किसी को भी उस पर दया नहीं आई।

सुबह उठकर माधव ने झोंपड़ी में जाकर देखा तो बुधिया की मृत्यु हो चुकी थी, साथ ही उसका बच्चा भी पेट में ही दम तोड़ चुका था। माधव ने जब यह बात घीसू को बताई तो दोनो रोने का नाटक करने लगे। घर में पैसा नहीं था जिसके कारण अब क़फन दफ़न और लकड़ी की फ़िक्र में लग गये।


घीसू और माधव दोनों रोते बिलखते हुए जमीदार के यहाँ जा पहुंचे। ज़मीदार दोनों को ही नापसंद करते थे। ज़मीदार के पूछने पर कि क्या हुआ? घीसू ने रोने का नाटक करते हुए झूठ कहा कि – “ माधव की घर वाली कल रात रात गुज़र गई। हमसे जो कुछ हो सका हमने इलाज करवाया उसकी सेवा करते रहें लेकिन फिर भी वह हमें दगा दे गई। ” घीसू के झूठ के अनुसार जो पैसा था सब दवाई में खर्च हो गया। अब अंतिम संस्कार करने के लिए वह ज़मीदार से पैसा मांग रहा है।


जमींदार थोड़ा दयालु और नरम दिल था इसलिए उसने दो रूपये दे दिए, लेकिन घीसू और माधव की हरकतें ऐसी थी कि उनसे सहानुभूति के कोई शब्द नहीं कहे। ज़मीदार ने जब दो रूपये दे दिए तो गांव के दूसरे लोगों ने भी कुछ न कुछ पैसे या अनाज घीसू को दिया। घीसू के पास पाच रूपये इकट्ठे हो गए थे। लकड़ियाँ तो गाँव वालों ने पहले ही इकट्ठी कर दी थी अब क़फ़न लेने की जरूरत थी। जिसे लेने दोनों बाप-बेटे बाजार पहुँचे लेकिन क़फ़न लेने के बदले वह शराब की दुकान में जा पहुँचे और जी भर कर शराब पी, अच्छा भोजन किया। भोजन करने के बाद वहीं नाचते गाते नशे की हालत में गिर पड़े। इस प्रकार कहानी समाप्त हो जाती है।


कफ़न कहानी की समीक्षा (Review of story Kafan)

कफन कहानी में दर्शाए गए घटनाक्रम के अनुसार, कफन कहानी की नायिका बुधिया नाम की एक औरत है। जो गर्भवती है। बुधिया की मृत्यु उसके पति माधव और ससुर घीसू की लापरवाही के कारण हो जाती है। बुधिया को उसका पति और ससुर प्रसव पीड़ा के दौरान कोई भी चिकित्सीय या कोई अन्य सहायता नहीं पहुंचा सका जिसके कारण हुआ मर जाती है। इस कहानी के ज़रिए मुंशी प्रेमचंद ने समाज में महिलाओं की दयनीय स्थिति को उजागर किया है अधिकांशतः घरों में महिलाओं की यही स्थिति होती है शायद ही पुरुष वर्ग महिलाओं की समस्याओं पर ध्यान देते हैं ऐसी संभावना बहुत कम होती है कि महिलाओं के दुख दर्द में पुरुष सहायता के लिए आगे आते हैं।
 

भारतीय समाज में जब पत्नी की मृत्यु हो जाती है तो पति दूसरी पत्नी ले आता है चाहे उसकी आयु 60 वर्ष से अधिक ही क्यों ना हो गई हो। वहीं यदि पति का स्वर्गवास हो जाए तो पत्नी की दूसरी शादी का होना ना ही समाज आवश्यक समझता है, ना ही उसके दूसरे विवाह के लिए प्रयास करता है बल्कि अगर कोई महिला ऐसा करती है तो उसे समाज द्वारा अक्सर प्रताड़ित किया जाता है और कभी-कभी दंड भी दिया जाता है। चाहे विधवा की आयु 25 वर्ष से कम ही क्यों ना हो। पुरूष का अपनी पत्नी के लिये चिंतित ना होने का एक कारण यह भी रहा होगा या है। जब यह कहानी लिखी गई होगी तब सम्भवतः स्थिति पूर्ण रूप से इसी प्रकार रही होगी। वर्तमान में जागरूकता के कारण थोड़ा-बहुत सुधार हुआ है। लेकिन विचार और सुधार करने की आवश्यकता आज भी है।


कफ़न कहानी का निष्कर्ष (Conclusion of Story)
साहित्य हमारे समाज का दर्पण होता है जिसके कारण साहित्यकार अपनी रचनाओं में समाज का प्रतिबिंब दिखाने का प्रयास करता है। इस कहानी में स्त्री की दयनीय स्थिति पर प्रेमचंद ने कलम चलाई है।

शादी के बाद ससुराल में महिलाएँ अपनी जान अपने ससुराल वालों की लापरवाही के कारण गंवा देती हैं जिसका मुख्य कारण पुरूषों का दूसरा विवाह सरलता से हो जाना है। अगर पुरूषों के दूसरे विवाह में भी महिलाओं के दूसरे विवाह जितनी मुश्किलें पैदा होती तो किसी भी शादी शुदा महिला की मृत्यु लापरवाही से नहीं होती या होगी। इस कहानी को पढ़ते समय यह आवश्य ध्यान रखें कि यह कहानी 1936 से पहले के सामाजिक परिवेश में लिखी गई है। वर्तमान समाज में बहुत सुधार हुआ है।

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