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उसने कहा था चंद्रधर शर्मा गुलेरी कहानी की व्याख्या एवं सारांश और प्रश्नों के उत्तर

उसने कहा था चंद्रधर शर्मा गुलेरी कहानी की व्याख्या एवं सारांश और प्रश्नों के उत्तर


आज की पोस्ट में हम चंद्रधर शर्मा गुलेरी की रचना उसने कहा था कहानी की व्याख्या एवं सारांश और प्रश्नों के उत्तर प्रस्तुत करने जा रहे हैं यह कहानी बिहार बोर्ड की कक्षा 12 दिगंत भाग 2 के गद्य खंड में सम्मिलित किया गया है। Usne Kaha Tha class 12 Hindi चंद्रधर शर्मा गुलेरी की उसने कहा था कहानी शीर्षक से बिहार बोर्ड की परीक्षा में सवाल पूछे जाते हैं इसलिए इसका पढ़ना हम सबके लिए अति आवश्यक है। चलिए उसने कहा था कहानी के प्रश्नों के उत्तर जानते हैं।

उसने कहा था कहानी का सारांश लिखिए | Usne Kaha Tha Kahani Ka Saransh Likhiye


उसने कहा था इस कहानी के लेखक का नाम चंद्रधर शर्मा गुलेरी है। यह एक दिव्य प्रेम तथा एक युद्ध की कहानी है। चंद्रधर शर्मा गुलेरी ने इस कहानी के माध्यम से हम लोगों के सामने एक दिव्य प्रेम को उजागर करने की चेष्टा की है। इस कहानी की शुरुआत इस प्रकार से होती है कि — अमृतसर की भीड़ भरी सड़कों पर एक बार एक लड़का और एक लड़की की मुलाक़ात एक दुकान पर होती है। लड़के ने लड़की से मुस्कुराकर पूछा “तेरी कुड़माई हो गई ” इस पर लड़की ने तेवर बदलते हुए और कुछ आंखें चढ़ा कर धत कह कर दौड़ जाती है और लड़का मुंह देखते रह जाता है। यहीं से दोनों के बीच प्यार की शुरुआत हो जाती है। दो-तीन दिनों के बाद दोनों की फिर से मुलाक़ात होती है। लगभग एक महीना भर यही हाल रहता है, कुड़माई के बारे में पूछने पर लड़की जवाब देती है — “ देखते नहीं यह रेशम से कढ़ा हुआ शालू ”। इतना कह कर लड़की भाग गई। लड़का वापस लौटते हुए कई प्रकार के कार्य रस्ते में करता है, वह सब्जी वाले के ठेले को गुस्से में गिरा देता है तथा दूसरे पर चीखने चिल्लाने भी लगता है। कभी बेचैनी से मिट्टी में लेटने लगता है एक आदमी को नाले में धकेल देता है तथा वह यह सब करता हुआ अपने घर पहुंच जाता है। धीरे-धीरे दिन गुज़रते जाते हैं। 25 साल बाद वही लड़का जिसका नाम लहना सिंह था वह भारतीय सैनिक, अंग्रेजों के साथ जर्मनी में लड़ाई कर रहा था। वहां भयंकर युद्ध चल रहा था। साथ ही वहां ठंड भी बहुत पड़ रही थी।

लहंगा सिंह को 25 साल बाद अपने बचपन की याद आती है। वो जिस लड़की से पूछता था कि कुड़माई हो गई? वह लड़की अब सूबेदारनी है। वह लहना सिंह से कहती है मेरा बेटा बोधा सिंह और मेरे पति हजारा सिंह दोनों लाम पर जा रहे हैं।

सूबेदारनी लहना सिंह के नज़दीक जाती है और कहती है कि बचपन में तुमने मुझे एक दुर्घटना में मरने से बचाया था। ठीक इसी तरह तुम्हें मेरे पति और बेटे की रक्षा करनी होगी। सूबेदारनी आंचल पसार कर लहना सिंह से अपने बेटे और पति की जान बचाने की भिक्षा मांग रही थी। कुछ देर के बाद तीनों युद्ध के लिए निकल पड़ें । वहां भीषण ठंड और बारिश भी हो रही थी। बोधा सिंह को ज्यादा सर्दी लग रही थी। लहना सिंह बुखार से पीड़ित बोधा सिंह को अपनी जर्सी ओढ़ा देता है। कुछ देर के बाद लहना सिंह देखता है कि जर्मन सिपाहियों ने आक्रमण कर दिया है दोनों तरफ से गोली चलती है एक गोली बोधा सिंह को लगने वाली थी लेकिन वह लहना सिंह को लग जाती है। अगर लहना सिंह नहीं होता तो आज बोधा सिंह और हजारा सिंह की जान नहीं बच सकती थी और सुबेदारी अपने बेटे और पति दोनों को हमेशा के लिए खो देती।

तभी युद्ध में मारे गए और घायलों को लेने के लिए गाड़ियां आती हैं। लहना सिंह पिता और पुत्र दोनों को गाड़ी पर चढ़ा देता लेकिन खुद नहीं जाता वह कहता है कि अगर तुम सूबेदारनी को चिट्ठी लिखोगे तो यह लिख देना कि – उसने कहा था, वह मैंने कर दिया। गाड़ी चली जाती है लहना सिंह खून से लथप है। वह वजीरा से कहता है कि वजीरा पानी पिला दे। बचपन की साड़ी यादें साफ होकर आई। लहना सिंह के घाव से लगातार खून बह रहा था और कह भी रहा था कि वजीरा पानी पिला दे। उसने कहा था और इस प्रकार कुछ देर बाद लहना सिंह की मृत्यु हो जाती है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि उसने कहा था कहानी वीरता, त्याग तथा दिव्य प्रेम की कहानी है।

उसने कहा था लघु उत्तरीय प्रश्न एवं दीर्घ उत्तरीय प्रश्न के उत्तर


प्रश्न १.

लहना सिंह का परिचय अपने शब्दों में दें।

उत्तर : लहना सिंह ब्रिटिश सेना में सिक्ख जमादार के पद पर कार्यरत है। वह भारत से फ्रांस में जर्मन सेना के विरुद्ध युद्ध करने के लिए भेजा गया है। वह एक कर्त्तव्यनिष्ठा सैनिक है। उसके अंदर अदम्य साहस, शौर्य एवं निष्ठा है। वह मरते दम तक युद्ध के मोर्चे पर डटा हुआ रहता है। विषम परिस्थितियों में भी वह हतोत्साहित नहीं होता। अपने प्राणों की परवाह किए बिना वह युद्धभूमि में बंकरों में रात-दिन अपना कर्तव्य पूरा करता रहता है। कई दिनों तक बंकर में बैठकर निगरानी करते हुए जब वह बहुत ऊब जाता है तो एक दिन अचानक वह अपने सूबेदार से कहता है कि यहाँ की इस ड्यूटी से उसका मन भर गया है, ऐसी निष्क्रियता से वह अपनी क्षमता का समुचित प्रदर्शन नहीं कर पा रहा है। इसलिए वह कहता है- “मुझे तो संगीन चढ़ाकर मार्च का हुक्म मिल जाए, फिर सात जर्मन को अकेला मारकर न लौटूं तो मुझे दरबार साहब की देहली पर मत्था टेकना नसीब न हो।” उसके इन शब्दों में दृढ़ निश्चय एवं आत्मोसर्ग की भावना भरी है। वह दुश्मनों से लोहा लेने के लिए इतना बेचैन है कि उसका कथन जो इन शब्दों में प्रकट होता है-“बिना फेरे घोड़ा बिगड़ता है और बिना लड़े सिपाही।” शत्रु की हर चाल को नाकाम करने की अपूर्व क्षमता एवं दूरदर्शिता उसमें थी।

लहना सिंह के जीवन का एक दूसरा पहलू है उसकी मानवीय संवेदना, वचनबद्धता तथा प्रेम। अपनी किशोरावस्था में एक लड़की से उसे एकतरफा प्यार हो जाता है। समय गुजरने के साथ वह सेना में भर्ती हो गया और संयोगवश उसे यह पता चलता है कि वह लड़की अब सूबेदार की पत्नी है, उससे भेंट होने पर सूबेदार की पत्नी ने अपने पति एवं फौज में भर्ती उसके अपने एकमात्र पुत्र की रक्षा का वचन लहना सिंह से लेती है, जिसका पालन लहना सिंह ने अपनी जान की बाज़ी लगाकर किया। यह लहना सिंह की कर्त्तव्यपरायणता तथा वचन का पालन करने का बेहतरीन उदाहरण है।

प्रश्न २.

‘उसने कहा था’ कहानी में किसने, किससे क्या कहा था ?

उत्तर : उसने कहा था इस कहानी में सुबेदारनी ने लहना सिंह से कहा था कि जिस तरह बचपन में उसने एक बार घोड़े की लातों से उसकी रक्षा की थी उसी प्रकार उसके पति और बेकी भी वह रक्षा करें। वह उसके आगे अपना आँचल पसार कर भिक्षा माँगती है। यह बात लहना सिंह के दिल को छू जाती है और लहना सिंह अपनी जान देकर उन दोनों की रक्षा करता है।

प्रश्न ३.

‘उसने कहा था’ कहानी का केन्द्रीय भाव क्या है ? वर्णन करें।

उत्तर : ‘उसने कहा था’ कहानी प्रथम विश्वयुद्ध की पृष्ठभूमि में लिखी गयी है। चंद्रधर शर्मा गुलेरी ने लहना सिंह और सबेदारनी के काल्पनिक चरित्र के माध्यम से मानवीय संबंधों का नया रूप उजागर किया है। लहना सिंह सूबेदारनी के अपने उपर अटूट विश्वास से अभिभूत होता है, क्योंकि उसके विश्वास की नींव में बचपन के संबंध है। सबेदारनी का अटूट विश्वास ही लहना सिंह को उस महान त्याग की प्रेरणा देता है।

यह कहानी एक दूसरे स्तर पर भी अपने को व्यक्त करती है। प्रथम विश्वयुद्ध की पृष्ठभूमि पर यह एक अर्थ में युद्ध-विरोधी कहानी भी है। क्योंकि लहना सिंह के बलिदान का उचित सम्मान किया जाना चाहिए था लेकिन उसके बलिदान की कोई कीमत नहीं होती है और लहना सिंह का करुण अंत युद्ध के विरुद्ध में खड़ा हो जाता है। लहना सिंह का कोई सपना भी पूरा नहीं होता है।

प्रश्न ४.

कहानी का शीर्षक ‘उसने कहा था’ सबसे सटीक शीर्षक है। अगर हां तो क्या आप इसके लिए कोई दूसरा शीर्षक सुझाना चाहेंगे। अपना पक्ष रखें।

उत्तर : ‘उसने कहा था’ कहानी का शीर्षक बिल्कुल सटीक है। उसकी उपयुक्तता बहुत स्पष्ट है। उसने कहा था कहानी में सूबेदारनी की बातें जहाँ स्वयं सूबेदारनी के चरित्र को पूरी तरह उजागर करती है वहीं लहना सिंह के चरित्र में भी महत्त्वपूर्ण मोड़ लानेवाली साबित होती है। सूबेदारनी की बातें ही उनके बीच के संबंधों को भी उजागर करने में सक्षम होती हैं जो कहानी का मुख्य प्रतिपाद्य भी है। इसलिए सूबेदारनी के कहे वचन की ओर संकेत कराने वाला यह शीर्षक बिल्कुल सटीक है। मृत्यु की ओर बढ़ते लहना सिंह के कानों में अंतिम क्षणों में भी सूबेदारनी के कहे शब्द ही गूंजते रहते हैं। यही शब्द लहना सिंह को सूबेदारनी का विश्वास बनकर महान त्याग की प्रेरणा देता है।

प्रश्न५.

उसने कहा था कहानी कब प्रकाशित हुई

उत्तर : उसने कहा था कहानी पहली बार 1915 ई. में प्रकाशित हुई थी।

प्रश्न ६.

‘उसने कहा था’ कहानी कितने भागों में बँटी हुई है ? कहानी के कितने भागों में युद्ध का वर्णन है ?

उत्तर : ‘उसने कहा था’ यह कहानी पाँच भागों में बँटी हुई है। इस कहानी के तीन भागों में युद्ध का वर्णन मिलता है। द्वितीय, तृतीय एवं चतुर्थ भाग में युद्ध के दृश्य दिखाई देते हैं।

प्रश्न ७.

लहना सिंह के प्रेम के बारे में लिखिए।

उत्तर : एक बार लहना सिंह अपने किशोरावस्था में एक अजनबी लड़की के प्रेम में पड़ कर उसकी तरफ आकर्षित हुआ था लेकिन उसके साथ उसका प्रेम संबंध आगे नहीं बढ़ सका। समय गुजरने के साथ उस लड़की का विवाह सेना में कार्यरत एक सूबेदार से हो गया। लहना सिंह भी बाद में सेना में भर्ती हो गया। अचानक कई वर्षों के बाद उसे मालूम हुआ कि सूबेदारिन ही वह लड़की है जिससे उसने कभी प्रेम किया करता था। सूबेदारिन ने लहना सिंह से विनती किया कि सेना में भर्ती उसके पति और एकमात्र पुत्र बोधा सिंह की रक्षा करे। लहना सिंह ने कहा था कि वह इस वचन को निभाएगा और अपने प्राणों का बलिदान दे कर उसने अपनी प्रतिज्ञा को पूरा किया। यही लहना सिंह का वास्तविक प्रेम था।

प्रश्न ८.

उसने कहा था कहानी के पात्रों की एक सूची तैयार करें।

उत्तर : उसने कहा था कहानी का मुख्य पात्र लहना सिंह है, इसी के इर्द-गिर्द कहानी का पूरा घटनाक्रम घूमता रहता है। उसके अतिरिक्त इस कहानी में अन्य पात्र निम्नलिखित हैं —

१. एक बालिका : जिसकी मुलाक़ात कभी किशोरावस्था में लहना सिंह से हुई थी और बाद में उसका विवाह सूबेदार हजारा सिंह के साथ हुआ।
२. लहना सिंह : कहानी का मुख्य पात्र।
४. हजारा सिंह : सूबेदार।
५. बोधा सिंह : हजारा सिंह का पुत्र।
६. लपटन साहब : सेना का एक उच्च अधिकारी।
७.. वजीरा सिंह : एक सैनिक।

प्रश्न ९.

“जाड़ा क्या है, मौत है और निमोनिया से मरने वालों को मुरब्बे नहीं मिला करते।” वज़ीरा सिंह के इस कथन का क्या आशय है ?

उत्तर : वज़ीरा सिंह पलटन का विदूषक है। वह लहना सिंह से कहता है कि अपने स्वास्थ्य ध्यान दो और उसकी रक्षा करो। जाड़ा की ठंढ मौत का कारण बन सकती है। तुम्हारे मरने के बाद तुम्हें कुछ प्राप्त होने वाला नहीं है। अगर निमोनिया से तुम्हारी मृत्यु हो जाती है तो तुम्हें कोई मुरब्बा या दूसरी स्वादिष्ट वस्तुएँ नहीं मिलेंगी। तुम्हें जीवन का सुख फिर से नहीं मिलेगा। साथ ही तुम अपने अस्तित्व को इस प्रकार समाप्त कर दोगे, मतलब मृत्यु ही अन्तिम सच्चाई है।

प्रश्न १०.

“कहती है, तुम राजा हो, मेरे मुल्क को बचाने आए हो।” वजीरा के इस कथन में किसकी ओर संकेत है ?

उत्तर : वजीरा के इस कथन में सम्भवतः फ्रांस की एक औरत की ओर संकेत है। जब वजीरा सिंह और उसके दूसरे साथी उसके बंगले के बगीचे में जाते हैं तो उस बंगले की मालकिन इन लोगों को फल, दूध और दूसरी खाने पीने की चीजें देती है और उसके लिए उनसे पैसे भी नहीं लेती है। उसे इस बात की बेहद खुशी है कि यह सैनिक इसके देश को जर्मन हमलावरों से रक्षा करने के लिए आए हैं। इसलिए वह उन सैनिकों को अपना रक्षक मानकर उनका आदर सम्मान करने को तत्पर रहती है।

प्रश्न ११.

लहना के गाँव में आया तुर्की मौलवी क्या कहता है?

उत्तर : एक बार लहना के गाँव में एक तुर्की मौलवी आता है। वह मौलवी गांव में पहुँचकर गांववासियों को प्रलोभन देता है। मौलवी गांव वालों को अपनी मीठी-मीठी बातों से भुलावे में डालने की भरपूर कोशिश करता है। वह गाँववालों को कहता है कि जब जर्मन शासन आ जाएगा तब तुमलोगों के सारे कष्ट दूर हो जाएंगे। तुमलोग सुख-चैन की वंशी बजाओगे। तुम्हारी सारी आवश्यकताएँ पूरी हो जाएँगी।

प्रश्न १२.

‘उसने कहा था’ पाठ के आधार पर सूबेदारनी का चरित्र-चित्रण करें।

उत्तर : उसने कहा था इस कहानी में सूबेदारनी केवल दो बार आती है। एक बार कहानी के आरंभ में जब वह पहली बार लहना सिंह से मिलती है और दूसरी बार कहानी के अंतिम भाग में वह भी लहना सिंह की यादों में। परंतु कहानी में सूबेदारनी का चरित्र लहना सिंह के बाद सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण चरित्र है। लहना सिंह की उससे पहली मुलाक़ात आठ वर्ष की बालिका के रूप में होती है जो अपने ही हम-उम्र लड़के के मजाक से शर्माती है। परंतु उसके व्यक्तित्व में पहला परिवर्तन हमें तब नज़र आता है जब लहना सिंह के इस प्रश्न के जबाब में कि तेरी कुड़माई हो गई और जब वह यह कहती है कि “हाँ हो गई देखते नहीं रेशम से कढ़ा सालू।” उसका इतने विश्वास के साथ इस प्रकार जवाब देना यह बताता है कि जैसे सगाई के साथ वह एकाएक बहुत बड़ी हो गयी है, इतनी बड़ी कि उसमें इतना आत्मविश्वास आ गया है कि वह दृढ़तापूर्वक जवाब दे सके कि “हाँ हो गई।” इस बात से स्पष्ट है कि विश्वास की यह अभिव्यक्ति सूबेदारनी के व्यक्तित्व का नया पहलू है। फिर भी अभी वह यह समझने में असमर्थ है कि ‘कुड़माई’ का अर्थ क्या है। इसलिए या लड़की होने के कारण अपनी भावनाओं को या तो वह व्यक्त नहीं करती इसलिए ऐसा नहीं लगता कि कुड़माई का उस पर भी वैसा ही। आघात लगा है जैसा लहना सिंह पर लगा था।

लहना सिंह के साथ उसके संबंध कितने गहरे थे इसका अहसास भी कहानी में सूबेदारनी के द्वारा ही होता है। आठ साल की नन्ही सी उम्र में जिस लड़के से उसका मजाक का संबंध बना था उसे वह पच्चीस साल बाद भी अपने मन-मस्तिष्क से नहीं निकाल पाई। जबकि इस दौरान वह किसी और की पत्नी बन चुकी थी उसका घर-परिवार था। जवान बेटा था। और जैसा कि कहानी से स्पष्ट होता है कि वह अपने घर-परिवार से सुखी और प्रसन्न थी।

फिर भी पच्चीस साल बाद जब लहना सिंह अचानक उसके सामने आता है तो वह उसे तत्काल पहचान जाती है। न केवल पहचान जाती है बल्कि अपने बचपन के संबंधों के बल पर उसे अटूट विश्वास है कि अगर वह लहना सिंह को कुछ करने को कहेगी तो वह कभी इनकार नहीं करेगा। निश्चय ही यह अटूट विश्वास उसके अन्दर लहना सिंह के व्यक्तित्व से नहीं पैदा हुआ बल्कि यह स्वयं उसके मन में लहना सिंह के प्रति जो भावना थी उससे पैदा हुआ था। लहनासिंह के प्रति उसके अंतर्मन में बसी लगाव की भावना का इस तरह पच्चीस साल बाद भी ज़िन्दा रहना सूबेदारनी के व्यक्तित्व को नया निखार देता है। इस अर्थ में वह परंपरागत भारतीय नारी से भिन्न नज़र आती है।

इसका मतलब यह नहीं है कि सूबेदारनी अपने घर-परिवार के दायित्व से विमुख है। बल्कि इसके ठीक विपरीत लहना सिंह से उसकी पच्चीस साल बाद हुई मुलाक़ात उसके अपने घर-परिवार के प्रति गहरे दायित्व के बोध को भी व्यक्त करती है। वह लहना सिंह से प्रार्थना करती है कि जिस तरह बचपन में उसने तांगे से उसे बचाया था, उसी तरह अब उसके पति और पुत्र के प्राणों की भी रक्षा करे। इस तरह उसमें अपने पति और पुत्र के प्रति प्रेम और कर्तव्य की भावना भी है।

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि सूबेदारनी के लिए जितना सत्य अपने पति और पुत्र के प्रति प्यार और कर्त्तव्य है उतना ही सत्य उसके लिए वे स्मृतियाँ भी हैं। जो लहना सिंह के प्रति उसके लगाव को व्यक्त करती है। उसके चरित्र के दो पहलू हैं और इनसे ही उसका चरित्र महत्त्वपूर्ण है।

प्रश्न १३.

‘उसने कहा था’ पाठ के आधार पर लहनासिंह का चरित्र-चित्रण करें।

उत्तर : उसने कहा था कहानी में लहना सिंह से हमारा पहला परिचय अमृतसर के बाजार में एक दुकान पर होता है। तब उसकी उम्र केवल 12 वर्ष की है। वह किशोर वय, शरारती और चुलबुला स्वभाव का लड़का है। उसकी यह शरारतें बाद में युद्ध के मैदान में भी दिखाई देता है। वह अपने मामा के यहाँ आया हुआ है। वहीं बाजार में उसकी मुलाकात एक 8 वर्ष की लड़की से होती है। अपनी शरारत करने की आदत के कारण वह लड़की से पूछता है-“तेरी कुड़माई हो गई।” और फिर यह मज़ाक ही उस लड़की से उसके प्रेम संबंध का साधन बन जाता है। लेकिन मजाक-मजाक में पूछा गया यह सवाल उसके दिल में उस अजनबी लड़की के प्रति मोह पैदा कर देता है। ऐसा ‘मोह’ जिसे ठीक-ठीक समझने की उसकी उम्र नहीं है। लेकिन जब लड़की बताती है कि हाँ उसकी सगाई हो गई है, तो उसके दिल को सदमा पहुंचता है। शायद उस लड़की के प्रति उसका लगाव इस खबर को सहन नहीं कर पाता और वह अपना गुस्सा दूसरों पर निकालता है। लहना सिंह के चरित्र का यह पक्ष अत्यंत महत्त्वपूर्ण तो है लेकिन असामान्य नहीं। लड़की के प्रति लहना सिंह का सारा व्यवहार बालकोचित है। लड़की के प्रति उसका मोह लगातार एक माह तक मिलने-जुलने से पैदा हुआ है और यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। लेकिन लहना सिंह के चरित्र की एक और विशेषता का प्रकाशन बचपन में ही हो जाता है, वह है उसका साहस। अपनी जान जोखिम में डालकर दूसरे को बचाने की कोशिश। लहना सिंह जब सूबेदारनी से मिलता है तो वह बताती है कि किस तरह एक बार उसने उसे तांगे के नीचे आने से बचाया था और इसके लिए वह स्वयं घोड़े के आगे चला गया था। इस तरह लहना सिंह के चरित्र के ये दोनों पक्ष आगे कहानी में उसके व्यक्तित्व को निर्धारित करने में मुख्य भूमिका निभाते हैं। एक अनजान बालिका के प्रति मन में पैदा हुआ स्नेह भाव और दूसरा उसका साहस।

लहना सिंह किसान का बेटा है, खेती छोड़कर सिपाही बन जाता है। लेकिन सिपाही बन जाने के बाद भी उसकी मानसिकताएँ उसके स्वप्न और उसकी आकांक्षाएँ किसानों-सी ही रहती है। सेना में वह जमादार के पद पर मामूली सिपाही है। लेकिन वहाँ भी किसानी जीवन की समस्याएँ उसका पीछा नहीं छोड़तीं। वह छुट्टी लेकर अपने गाँव जाता है। जमीन के किसी मुकदमे की पैरवी के लिए। कहानीकार यह संकेत नहीं देता है कि लहना सिंह विवाहित है या अविवाहित। लेकिन लहना सिंह की बातों से यही लगता है कि वह अविवाहित है। उसका एक भतीजा है, कीरत सिंह जिसकी गोद में सिर रखकर वह अपने बाकी दिन गुजारना चाहता है। अपने गाँव, अपने खेत, अपने बाग में। उसे सरकार से किसी जमीन-जायदाद की उम्मीद नहीं है न ही खिताब की। एक साधारण जिन्दगी जी रहा है उतना ही साधारण जितनी कि किसी भी किसान या सिपाही की हो सकती है। उस लड़की की स्मृति भी समय की पर्तों के नीचे दब चुकी है जिससे उसने कभी पूछा था कि क्या तेरी कुड़माई हो गई।

लेकिन उसके साधारण जीवन में जबर्दस्त मोड़ तब आता है जब उसकी मुलाकात 25 साल बाद सूबेदारनी से होती है। सूबेदारनी उसे इतने सालों बाद भी देखते ही पहचान लेती है। इससे पता चलता है कि बचपन की घटना उसको कितनी अधिक प्रभावित कर गई थी। जब वह उसे बचपन की घटनाओं का स्मरण कराती है तो वह आवाक्-सा रह जाता है। भूला वह भी नहीं है, लेकिन समय ने उस पर एक गहरी पर्त बिछा दी थी, आज एकाएक धूल पोंछकर साफ हो गई है। सूबेदारनी ने बचपन के उन संबंधों को अबतक अपने मन में जिलाये रखा। यह लहना सिंह के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण था। उसी संबंध के बल पर सूबेदारनी का यह विश्वास करना कि लहना सिंह उसकी बात टालेगा नहीं लहना सिंह के लिए और भी विस्मयकारी था। वस्तुतः उसका लहना सिंह पर यह विश्वास ही बचपन के उन संबंधों की गहराई को व्यक्त करता है और इसी विश्वास की रक्षा करना लहना सिंह के जीवन की धुरी बन जाता है।

लहना सिंह एक वीर सिपाही है और खतरे के समय भी अपना मानसिक संतुलन नहीं खोता। खंदक में पड़े-पड़े उकताने से वह शत्रु पर आक्रमण करना बेहतर समझता है। यहाँ उसकी कृषक मानसिकता प्रकट होती है जो निकम्मेपन और ऊब से बेहतर तो लड़ते हुए अपनी जान देना समझता है।

जब उसकी टुकड़ी में जर्मन जासूस कैप्टन साहब बनकर घुस आता है तब उसकी सूझबूझ और चतुराई देखते ही बनती है। उसे यह पहचानने में देर नहीं लगती कि यह कैप्टन साहब नहीं बल्कि जर्मन जासूस है और तब वह उसी के अनुकूल कदम उठाने में नहीं हिचकिचाया और बाद में उस जर्मन जासूस के साथ मुठभेड़ या लड़ाई के दौरान भी उसका साहसिकता और चतुराई स्पष्ट उभर कर प्रकट होती है। किन्तु इस सारे घटनाचक्र में भी वह सूबेदारनी को दिये वचन के प्रति सजग रहता है और अपने जीते जी हज़ारा सिंह व बोधासिंह पर किसी तरह की आँच नहीं आने देता। यही नहीं उनके प्रति अपनी आंतरिक भावना के कारण ही वह अपने घावों के बारे में सूबेदार को कुछ नहीं बताता। पसलियों में लगी गोली उसके लिए प्राणघातक होती है और अंत में वह मर जाता है।

लेकिन मृत्यु शय्या पर उसकी नजरों के आगे दो ही चीजें मंडराती हैं। एक सूबेदारनी का कहा वचन और उसका आम के बाग में कीरतसिंह के साथ आम खाना। सूबेदारनी ने बचपन के उन संबंधों के बल पर लहना सिंह पर जो भरोसा किया था उसी भरोसे के बल पर उसने अपने पति और पुत्र की जीवन की रक्षा की भीख माँगी थी, लहना सिंह अपनी जान देकर उस भरोसे की रक्षा करता है। यह विश्वास और त्याग सूबेदारनी और लहना सिंह के संबंधों की पवित्रता और गहराई पर मोहर लगा देता है। स्त्री-पुरुष के बीच यह बिलकुल नये तरह का संबंध है और इस दृष्टि से लहना सिंह एक नये तरह का नायक है जो नये सूक्ष्म रूमानी मानवीय संबंधों की एक आदर्श मिसाल सामने रखता है।

अपने व्यक्तित्व की उन ऊँचाइयों के बावजूद उसकी मृत्यु त्रासद कही जाएगी। उसकी चतुराई एवं उसकी साहसिकता जिसके कारण जर्मनों को पराजित होना पड़ा इस योग्य भी नहीं समझी जाती कि कम से कम मृत्यु की सूचना में इतना उल्लेख तो होता कि युद्ध के दौरान उसने साहस दिखलाते हुए प्राणोत्सर्ग किया बल्कि समाचार इस रूप में छपता है कि “मैदान में घावों से मरा”। इससे यह ज़ाहिर होता है कि जिस सबेदारनी के कारण इसके पति और पुत्र की रक्षा करता है उसके लिए भी लहना सिंह का बलिदान व्यर्थ ही चला जाता है। लहनासिंह का ऐसा दुखद अंत उसे त्रासद नायक बना देता है।

प्रश्न १४.

उसने कहा था' कहानी की शिल्पगत विशेषताएँ लिखिए

कहानी लेखन में भाषा है भाव की संवाहक होती है। किसी कहानी का कथानक कितना ही अच्छा क्यों न हो लेकिन भाषा अगर शिथिल और नीरस हो तो कथानक नहीं उभर पाता है। कहानी में बंबूकार्ट वाले लड़के लड़की की भाषा भी पात्र के बिल्कुल अनुकूल है। सिपाही शुद्ध शब्द का उच्चारण नहीं करते हैं इस लिए वह लेफ्टिनेंट को लफटन साहब कहते हैं कभी-कभी उर्दू तो कभी अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग करते हैं । मुहावरों का प्रयोग भी सहज रूप में हुआ है जैसे दांत बज रहे, खेत ना रहे इत्यादि छोटे-छोटे वाक्यों का प्रयोग हुआ है । कथोकथन बहुत छोटे और पात्र भी अनुकूल है इनमें व्यंग्य पुट का भी अच्छा प्रयोग हुआ है इस प्रकार भाषा शैली की दृष्टि से यह कहानी उसने कहा था श्रेष्ठ है।

उसने कहा था कहानी की शिल्पगत विशेषताएँ निम्न है

(1) कथानक – किसी भी कहानी में सबसे अधिक प्रधानता कथानक ही की होती है। किसी कहानी का कथानक जितना आकर्षक होगा उस कहानी में पाठक का मन उतना ही अधिक लगेगा। उसने कहा था कहानी की शिल्पगत विशेषता उसका कथानक है। कहानी शुरू से ही पाठक को पूरी तरह पकड़ लेती है। इसका कथानक बड़ा ही मार्मिक है। इसी कारण से यह हिन्दी साहित्य की बेमिसाल कहानी है। कहानी का कथानक निश्छल प्रेम, त्याग और कर्तव्यनिष्ठा पर आधारित है जो मृत्यु शैय्या पर जाकर ही समाप्त होता है। इस कहानी की शुरुआत निश्छल प्रेम से होती है, मध्य भाग में कर्तव्यनिष्ठा तथ सेवाभाव है। और अन्त में पुनः त्याग और प्रेम है। इस कहानी का कथानक इतना आकर्षक है कि पाठक पहली पंक्ति से ही कहानी का अन्त जानने के लिए उत्सुक हो जाता है। ओरिया उत्सुकता आखिर तक बनी रहती है। बचपन के प्रेम के बाद कहानी का कथानक अचानक पच्चीस साल बाद पहुँच जाता है। जहाँ प्रथम विश्वयुद्ध की विभीषिका का जीवंत वर्णन है। अन्त में नायक लहनासिंह का स्वप्न दिल को छू जाता है और पाठक भावुक हो उठता है। कथानक सीधा-सपाट होते हुए भी बहुत आकर्षक है।

(2) शीर्षक – कभी-कभी कहानी का शीर्षक इतना आकर्षक होता है कि पाठक उसे पढ़ते ही कहानी से सीधे जुड़ जाता है। इस कहानी का शीर्षक भी बहुत आकर्षक है। तीन शब्दों का छोटा शीर्षक है लेकिन जिज्ञासात्मक है। शीर्षक को पढ़कर यह जिज्ञासा होता है कि किसने, किससे क्या कहा था? सम्पूर्ण कथावस्तु पढ़ने के पश्चात् ही शीर्षक पूर्णत: स्पष्ट होता है कि इससे अच्छा शीर्षक इस कहानी का हो ही नहीं सकता था।

(3) भाषा-शैली – कहानी की भाषा सरल और सहज है। आँचलिक शब्दों का प्रयोग जैसे-बाछा, सालू, बर्रा, ओबरी आदि का प्रयोग अधिक है। कहीं-कहीं उर्दू और तत्सम शब्दों के प्रयोग भी मिल जाता है। जैसे-क़यामत, क्षयी आदि। भाषा में मुहावरों का सहज रूप में प्रयोग किया गया है। कान पक गए, जीभ चलाना, कान के पर्दे फाड़ना, पलक न कॅपी आदि मुहावरे भाषा में इस तरह आ गए हैं जैसे मोतियों की माला में मणियाँ पिरो दी गई हों। शैली में कथोपकथन की प्रधानता है। कहानी की शुरुआत ही लड़के-लड़की के कथोपकथन से होता है। मध्य में जर्मन लपटन, सूबेदार हज़ारा सिंह और लहनासिंह के कथोपकथन हैं। सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वे छोटे और आकर्षक हैं।

(4) वातावरण का चित्रण – वातावरण कहानी का वह तत्त्व होता है जो कहानी को और अधिक आकर्षक बनाता है। अमृतसर के भीड़ भरे बाजार के वातावरण से कहानी की शुरुआत होती है। बम्बूकार्ट वाले किस प्रकार भीड़ में से निकलते हैं। इसका अच्छा वर्णन है। प्रथम विश्वयुद्ध का समय है। युद्ध के मैदान का जीवंत वर्णन है। उसमें चित्रात्मकता है। वर्णन को पढ़कर आँखों के सामने युद्ध के मैदान का सजीव दृश्य उभर जाता है।
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