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सिपाही की माँ कहानी का सारांश | सिपाही की माँ प्रश्न उत्तर

सिपाही की माँ कहानी का सारांश | सिपाही की माँ प्रश्न उत्तर


सिपाही की माँ लेखक परिचय

सिपाही की माँ एकांकी के लेखक का नाम मोहन राकेश है। इनका जन्म 05 जनवरी 1925 और निधन 03 दिसम्बर 1972 को हुआ। यह अमृतसर, पंजाब के रहने वाले थे। इनके पिता का नाम करमचंद गुगलानी और माता का नाम बच्चन कौर था। वे एक कहानीकार और नाटककार थे। उनके द्वारा लिखित नाटकों की संरचना वस्तुनिष्ठ, अति संश्लिष्ट और रंगमंचीय निर्देशों से युक्त रहती थी। यही कारण है कि आधुनिक रंगमंच के लिए मोहन राकेश ही प्रेरणा-पुरुष माने जाते हैं। यूरोप में उन्नीसर्व शताब्दी में आरंभ होने वाले आधुनिक नाटक और रंग परंपरा का सार्थक विकास मोहन राकेश के द्वारा लिखे गये हिट नाटकों में दिखाई देता है। एकांकी का अभिप्राय ऐसे नाटकों से है जिसमें एक ही अंक में संपूर्ण घटना को प्रस्तुत किया जाता है। इसमें पात्र कम और दृश्य संक्षिप्त होते हैं।

सिपाही की माँ पाठ का सारांश

प्रस्तुत एकांकी में तीन प्रमुख केन्द्रीय पात्र हैं जिसके माध्यम से इस कहानी के संपूर्ण घटनाक्रम को दर्शाया गया है। यह एकांकी विशनी ( मानक और मुन्नी की माँ ), मानक (पुत्र) और मुन्नी (पुत्री) के इर्द-गिर्द घूमती है। इस एकांकी में एक निम्न मध्यवर्गीय परिवार की आर्थिक, सामाजिक एवं मानसिक समस्याओं पर रचनात्मक शैली में प्रकाश डाला गया है।

एक परंपरागत मध्यवर्गीय परिवार की आवश्यकताएं, उत्तरदायित्व और उसके सपने भी सामान्य होते हैं। उदाहरणार्थ घर की रोजी रोटी की व्यवस्था, बेटे की नौकरी, बेटी का ब्याह इत्यादि । लेकिन ग़रीबी और मजबूरी इस सामान्य से प्रतीत होने वाले सपने को भी असंभव बना देती है। विशनी की बेटी मुन्नी जिसकी उम्र अभी सिर्फ 14 साल की ही है, का विवाह भी विशनी को किसी बड़ी लड़ाई से कम नहीं लगता। क्योंकि विवाह के लिए बहुत सारे पैसों और दहेज के समान चाहिए, दहेज की व्यवस्था उसके एकमात्र पुत्र मानक को करना है जो सिपाही के रूप में द्वितीय विश्वयुद्ध के मोर्चे पर लड़ाई के लिए बर्मा गया हुआ है।

वह एक सिपाही है और पिछले सात महीनों से उसकी कुशलता की कोई सूचना प्राप्त नहीं हुई है। लेकिन मां और बेटी सभी प्रकार की आशंकाओं और अनिश्चितता से ग्रसित भविष्य के बीच उसके आने की प्रतीक्षा करती रहती हैं। घर की पूरी आशा उसी पर टिकी हुई हैं। माँ एक देहाती भोली भाली महिला है, उसे यह भी नहीं मालूम है कि बर्मा उसके घर से कितनी दूर है और लड़ाई किस लिए और किनसे हो रही है। उसका परिणाम ऐसा भी हो सकता है कि सबकुछ समाप्त हो जाए और इस घर के सभी सपने अधूरे रह जाएं। लेकिन वह ऐसा सोच भी नहीं सकती क्योंकि वह एक बिन ब्याही बेटी की मां है जिसके कुछ सपने और अरमान हैं। मुन्नी की मासूम कामनाओं और सपने क्रूरतम वास्तविकता के द्वन्द्व से उत्पन्न विडंबना बोध के बीच लेखक ने एक व्यापक विचार विमर्श की आवश्यकता की ओर ध्यान आकर्षित किया है। राजनीति और आम जनता की प्राथमिकताएं युद्ध एवं पारिवारिक आकांक्षाओं और उत्तरदायित्वों के अहसास पाठक को बेचैन कर देता है। इसका अंत एक गहरी संवेदना सी उत्पन्न कर जाता है। शिलपगत विशेषता की दृष्टि से देखा जाए तो यह लेखक की शिल्पगत कुशलता ही का परिचायक है जो बहुत कम रंग निर्देशों के प्रयोगों के बावजूद भी उन्होंने एकांकी को जिज्ञासापूर्ण, पठनीय एवं सफलतापूर्वक मंचन करने योग्य भी बना दिया है।


सिपाही की माँ प्रश्न उत्तर Subjective Question 

प्रश्न १.

विशनी और मुन्नी को किसकी प्रतीक्षा है, वे डाकिए की राह क्यों देखती हैं ?

उत्तर : विशनी को अपने बेटे और मुन्नी को अपने भाई मानक की प्रतीक्षा है जो अंग्रेज सरकार की ओर से बर्मा में द्वितीय विश्व युद्ध पर गया है। वे दोनों डाकिए की राह इसलिए देखती हैं कि शायद मानक की चिठ्ठी आई हो। मानक पहले हर पंद्रह दिन पर अपनी मां को चिट्ठियाँ लिखता था, लेकिन बर्मा की लड़ाई पर गए हुए उसे सात महीने हो गए पर अभी तक उसकी कोई चिट्ठी नहीं आयी है।

प्रश्न २.

विशनी मानक को लड़ाई में बर्मा क्यों भेजती है ?

उत्तर : विशनी के घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है इसलिए वह अपने इकलौते बेटे मानक को लड़ाई पर भेजती है। वह अपनी बेटी मुन्नी के विवाह के लिए धन एकत्र करने के उद्देश्य से ही बेटे को लड़ाई पर भेजती है।

प्रश्न ३.

एकांकी और नाटक मे क्या अंतर है? संक्षेप में बताइए।

उत्तर : एकांकी में संपूर्ण घटनाक्रम को एक ही अंक मे प्रस्तुत किया जाता है। इसमें पात्रों की संख्या अपेक्षाकृत कम होते हैं। नाटक कई अंकों को एक साथ मिलाकर बनाया जाता है। इसमे पात्रों की संख्या, संवाद एवं दृश्यों की बहुलता होती है।

प्रश्न ४.

आपके विचार से इस एकांकी का सबसे सशक्त पात्र कौन है, और क्यों ?

उत्तर : इस एकांकी की सबसे सशक्त पात्र मानक की माँ विशनी है जो गरीबी और मुसीबतों में भी हिम्मत से काम लेती है और हर संकट का डटकर मुकाबला करती है। वह स्वयं तो अनगिनत दुःख झेलती है लेकिन अपनी संतानों का पालन करती है। इकलौते बेटे को द्वितीय विश्व युद्ध पर भेजती है। लड़ाई से बेटे के लौटने या ना लौटने के द्वंद्व और दुखी मनःस्थिति में भी धैर्य रखती है और दूसरों के सामने कमज़ोर नहीं दिखती है और अपनी बेटी मुन्नी की मासूम सपने और इच्छाओं को भी पूरा करने का हर संभव प्रयास करती रहती है।

प्रश्न ५.

दोनों लड़कियां कौन है ?

उत्तर : दोनों लड़कियां बर्मा के युद्ध से भाग कर आई हुई शरणार्थी है। वे दोनों विशनी के गाँव के पास शरणार्थी महिलाओं के साथ रह रही हैं और गाँव के लोगों से मांग कर अपना गुज़ारा कर रही है। उन्हीं के द्वारा विशनी को बर्मा के युद्ध की विभीषिका का हाल मालूम होता है।

प्रश्न ६

बिशनी कौन है इसको किसकी प्रतीक्षा है?

उत्तर : बिशनी मानक और मुन्नी की मां है। उसे अपने बेटे मानक की प्रतीक्षा है। बर्मा में द्वितीय विश्व युद्ध के मोर्चे पर गया हुआ है।

प्रश्न ७.

सिपाही की माँ किस विधा की रचना है?

उत्तर : सिपाही की माँ एकांकी विधा की रचना है।

प्रश्न ८.

मानक और सिपाही एक दूसरे को क्यों मारना चाहते हैं?

उत्तर : मानक बर्मा की लड़ाई में भारत की ओर से अंग्रेजों के समर्थन में लड़ाई करने गया था। और दूसरी ओर जापानी थे। दोनों देशों की सेना एक दूसरे के दुश्मन है। क्योंकि वे अपने अपने देश का प्रतिनिधित्व करते हैं। मानक और सिपाही अपने को एक दूसरे का दुश्मन समझते हैं इसलिए वे दोनों ही एक दूसरे को मारना चाहते हैं। 

प्रश्न ९.

सिपाही की माँ की संवाद योजना की विशेषताएँ बताएँ।

 उत्तर : सिपाही की माँ एकांकी की संवाद योजना की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं:

इस एकांकी की संवाद योजना बहुत ही सरल एवं सहज है जिससे कि इसे सहजता से समझा जा सकता है।
इस एकांकी की संवाद योजना की एक प्रमुख विशेषता संक्षिप्तता भी है। अधिकांश संवाद कुछ शब्दों या एक-दो वाक्यों के हैं।
इस एकांकी के अधिकांश संवाद भावपूर्ण है।
एकांकी में घटनाक्रम को आगे बढ़ाने में सहायक। एकांकी के अधिकतर संवाद कहानी को निश्चित प्रवाह के साथ आगे बढ़ाने में सहायक हैं।
एकांकी में प्रयुक्त संवाद रोचकता से परिपूर्ण हैं जिससे कहानी में बोझिलता या दुरुहता नहीं आई है।
संवाद पूर्णतः पात्रों को ध्यान में रखते हुए प्रस्तुत किए गए हैं जिससे पात्रों की मनःस्थिति तथा चरित्र के समझने में कोई कठिनाई नहीं होती है। कुछ संवाद तो पात्रों की क्रियाओं को भी वास्तविक अर्थ के साथ व्यक्त करते हैं।

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