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ओ सदानीरा का सारांश और प्रश्नों के उत्तर

ओ सदानीरा का सारांश और प्रश्नों के उत्तर


ओ सदानीरा पाठ का लेखक परिचय

ओ सदानीरा के लेखक का नाम जगदीश चन्द्र माथुर है। इनका जन्म 16 जुलाई 1917 को हुआ और मृत्यु 14 मई 1978 को हुई। इनका निवास स्थान शाहजहांपुर, उत्तर प्रदेश है। इनके पिता का नाम लक्ष्मी नारायण माथुर है।

ओ सदानीरा का सारांश लिखिए

जगदीश चंद्र माथुर ने ओ सदानीरा शीर्षक निबंध के माध्यम से गंडक नदी को आधार बनाकर, उसके किनारे बसने वाले लोगों की संस्कृति, रहन सहन और जीवन की उत्कृष्ट झांकी प्रस्तुत की है।

इस निबंध में लेखक सबसे पहले चंपारण क्षेत्र के प्राकृतिक वातावरण के सुंदर मनोरम दृश्य का वर्णन करते हुए उसकी प्रत्येक अंगों का सुंदरता पूर्वक वृस्तित वर्णन किया है। लेखक इस प्रकार लिखते हैं कि नदियों में बाढ़ आने का कारण मनुष्यों का स्वार्थी होना है। क्योंकि महावन जो कि चंपारण से लेकर गंगा तट तक फैला हुआ था, अगर स्वार्थपूर्ति के लिए मनुष्यों द्वारा नहीं काटा गया होता तो बाढ़ नहीं आती। लेखक आगे कहते हैं कि धार्मिक मान्यता और अंधविश्वासों के कारण मनुष्यों द्वारा पूजा पाठ के बाद बचा हुआ बेकार कचड़ा और सरी गली चीजों को गंगा नदी में प्रवाहित कर दिया जाता है जिसके कारण पवित्र गंगा का जल दूषित हो रहा है।

इस निबंध के माध्यम से जगदीश चंद्र माथुर जी मध्ययुगीन समाज की सच्चाईयां भी बताते हैं कि किस प्रकार से आक्रमणकारी मुसलमान शासकों ने अपनी महत्वाकांक्षाओं की तृप्ति मात्र के लिए निर्दयतापूर्वक जंगलों की कटाई की। इसी प्रकार यहां अनेक संस्कृति आते गए और यहीं बसते चले गए। सभी ने प्राकृतिक संसाधनों का भरपूर दोहन ही किया। इस निबंध में चंपारण के प्रत्येक स्थलों पर प्राचीन काल से लेकर आधुनिक काल में गांधी के चंपारण आने तक के पूरे इतिहास की चर्चा अच्छे बुरे प्रभाव को खंगालते हुए की गई है।

इस निबंध के अंत में लेखक ने गंडक नदी की महिमा का बखान करते हुए कहा है कि ओ सदानीरा! ओ नारायणी! ओ महा गंडक! युगों-युगों से दिन हीन जनता, इस विविध नामों से तुझे संबोधित करती रही है। और तेरे पूजन के लिए जिस मंदिर की प्रतिष्ठान हो रही है, उसके नींव बहुत गहरी है, इसे तू ठुकरा ना पाएगी।

यह निबंध अपने आप में चंपारण की पूर्णता को समाहित किए हुए है इसलिए क्योंकि इसमें अंग्रेजों की गुलामी, नील की खेती और तीन कठिया प्रथा, महात्मा गांधी का स्वतंत्रता के लिए संघर्ष और बिहार की वर्तमान स्थिति ग़रीबों और बंधुआ मजदूरों की स्थिति, गंडक नदी के कारण बाढ़ का तांडव इत्यादि पर बड़े विस्तार से चर्चा की गई है।

निष्कर्ष में यह कहा जा सकता है कि “ ओ सदानीरा ” जगदीशचंद्र माथुर के सबसे अच्छे निबंधों में से एक है और इस निबंध के माध्यम से उन्होंने अपने विचारों को सुंदरता और उत्कृष्टता से प्रस्तुत किए हैं।

प्रश्न १.

चम्पारण क्षेत्र में बाढ़ के क्या कारण हैं ?

उत्तर : चम्पारण क्षेत्र में बाढ़ आने का मुख्य कारण जंगलों की अंधाधुंध कटाई है। जंगली पेड़ पौधे जल को अपनी जड़ों में अवशोषित करते रहते हैं तथा बाढ़ को रोकने हेतु बनाए गए बांधों की मिट्टी को बाढ़ के पानी के द्वारा कटाव से बचाते हैं। पेड़ पौधे नदियों की तेज धाराओं को मद्धिम करते हैं। इस प्रकार यह नदी की धाराओं की गति को भी संतुलित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अगर नदी का पानी ख़तरे के निशान से ज्यादा हो जाती है तो बाढ़ अवश्य आती हैं, परंतु जब बीच में बाढ़ की धारा को रोकने वाले ये विशालकाय वृक्ष न हो तो नदियां प्रचंड रूप धारण कर तांडव मचाने लगती हैं। वृक्ष उस बाढ़ रुपी तांडव को रोकने मैं सहायक होते हैं। वर्तमान समय में चंपारण में वृक्षों को काट कर कृषि योग्य समतल भूमि बना दी गई है। अब बाढ़ को रोकने वाले विशालकाय वृक्ष नहीं रहें इसलिए इस क्षेत्र में बरसात के दिनों बाढ़ आने का खतरा बना रहता है। शायद यह बाढ़ इसलिए भी आते हैं कि मनुष्यों को इस बात का अहसास हो सके यह संकट उसके स्वयं के कर्मों का फल है।

प्रश्न २.

धाँगड़ शब्द का क्या आशय है ?

उत्तर : ‘ धाँगड़ ’ शब्द का अर्थ ‘ भाड़े का मजदूर ’ है। यह शब्द ओराँब भाषा से लिया गया है। धाँगड़ एक आदिवासी जाति का नाम भी है, इसको 18 वीं शताब्दी के अंत में नील की खेती करवाने के उद्देश्यों से दक्षिण बिहार के छोटानागपुर पठार से चंपारण के इलाके में लाया गया था। ‘ धाँगड़ जाति ’ आदिवासी जातियों अर्थात ओराँव, मुंडा, लोहार इत्यादि के वंशज हैं। लेकिन अब यह अपने आप को आदिवासी नहीं मानते हैं। धाँगड़ के बोलचाल की भाषा मिश्रित ओराँव है। इस जाति का सामाजिक जीवन बहुत उल्लासपूर्ण होता है, स्त्री और पुरुष ढलती शाम समय के मंद प्रकाश में सामूहिक नृत्य करते हैं।

प्रश्न ३.

थारूओं की कला का परिचय पाठ के आधार पर दें।

उत्तर : थारूओं की गृहकला अनुपम और अनमोल है। कला उनकी रोज़मर्रा की जिंदगी का अभिन्न अंग है। धान पात्र सींक से बनाया जाता है, यह आकर्षक रंगों और डिजायनों में होता है। सींक एक झाड़ीदार घास से निकाला जाता है। सींक की सूखी हुई घास से फूस के छप्पर भी बनाए जाते हैं । सींक (कर) और मूंज से घरेलू उपयोग के सामान इनके जैसा और कहीं नहीं बनता है। उनके द्वारा बनाए गए सामानों में उनकी कला और उसके सौन्दर्य की सुंदर झलक दिखाई देती है। धवल सीपों और बीज से बनाए जाने वाले विशेष आभूषण तो उनकी संस्कृति की विशेषता और पहचान है, जिनका एक उदाहरण लेखक ने स्वयं अपने नववधू के अपने प्रियतम को कलेउ कराने के संदर्भ में झंकृत होने वाली वेणियों से दिया है।

प्रश्न ४.

अंग्रेज नीलहे किसानों पर क्या अत्याचार करते थे?

उत्तर : अंग्रेज नीलहे किसानों पर कई प्रकार से अत्याचार किया करते थे जैसे कि किसानों से जबरदस्ती नील की खेती करवाने, हर बीस कट्ठा जमीन में से तीन कट्ठा जमीन पर नील की खेती करने की बाध्यता, जिसे तीनकठिया प्रथा के नाम से जाना जाता है, जिस भूमि में नील की खेती की जाती थी, उसकी उर्वरा शक्ति पूर्णतः समाप्त हो जाती थी और वह भूमि बंजर हो जाती थी। केमिकल से बने हुए रंगों के आविष्कार होने के बाद तीनकठिया प्रथा से मुक्ति पाने के लिए किसानों को मोटी रकम अंग्रेज़ ठेकेदारों को देना पड़ता था। जिस रास्ते पर अंग्रेजों की गाड़ी जाती थी उसपर भारतीय अपने जानवर तक नहीं ले जा सकते थे। अंग्रेज़ अधिकारियों के यहां कोई भी कार्यक्रम हो तो सारा खर्चा रैयत ही को देना पड़ता था।

प्रश्न ५.

गंगा पर पुल बनाने में अंग्रेजों ने क्यों दिलचस्पी नहीं ली ?

उत्तर : गंगा पर पुल बनाने में अंग्रेजों ने इसलिए दिलचस्पी नहीं ली क्योंकि उन्हें यह डर था कि अगर गगा पर पुल बन जाएगा तो दक्षिण बिहार के बागी विचार यहां तक पहुँच जाएगा और शेष भाग का सहयोग उन्हें नहीं मिल पाएगा। यह उनकी सत्ता के लिए बहुत हानिकारक हो सकता था। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि अंग्रेज किसानों पर अत्याचार किया करते थे जिसके विरोध में लोग बाग़ी हो रहे थे। इसलिए बागी विचारों को फैलने से रोकने के लिए ही उन्होंने गंगा पर पुल बनाने में दिलचस्पी नहीं दिखाई। क्योंकि बिना परिवहन के साधन के विचारों का संप्रेषण संभव नहीं हो पाता। और वह स्थानिक ही रह जाता है। जिसको आसानी से दमन किया जा सकता है।

प्रश्न ६.

चंपारण में शिक्षा की व्यवस्था के लिए गाँधीजी ने क्या किया ?

उत्तर : चंपारण में शिक्षा व्यवस्था के लिए गाँधी जी ने कई महत्त्वपूर्ण काम किए। वो ऐसा सोचते थे कि ग्रामीण बच्चों की शिक्षा की व्यवस्था किए बिना, सिर्फ आर्थिक समस्याओं को सुलझा लेने से विकास नहीं हो सकता। इसी बात को ध्यान में रखते हुए उन्होंने चंपारण के तीन गाँवों में आश्रम विद्यालय स्थापित किया। जिनमें बड़हरवा, मधुबन और भितिहरवा है। अपने कुछ निष्ठावान कार्यकर्ताओं को इन तीनों गाँवों में नियुक्त किया। बड़हरवा के विद्यालय में श्री बवनजी गोखले तथा उनकी विदुषी अवंतिका बाईं गोखले को नियुक्त किया गया। मधुबन में नर हरिदास पारिख तथा उनकी पत्नी और अपने सेक्रेटरी महादेव देसाई को नियुक्त किया। भितिहरवा में वयोवृद्ध डॉक्टर देव और सोपान जी को नियुक्त किया गया। बाद में यहां पुंडलिक जी चले गए। स्वयं कस्तूरबा गांधी भी भितिहरवा आश्रम में रहीं और इन कर्मठ और विद्वान स्वयंसेवकों की देखभाल की।

प्रश्न ७.

गाँधीजी के शिक्षा संबंधी आदर्श क्या थे ?

उत्तर : गाँधीजी का शिक्षा संबंधी आदर्श यह था कि शिक्षा का वास्तविक अर्थ मनुष्यों को सुसंस्कृत बनाना तथा निष्कलुष चरित्र का निर्माण है। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए वह आचार्य पद्धति का समर्थन करते थे अर्थात बच्चे सुसंस्कृत और निष्कलुष चरित्र वाले व्यक्तियों के सानिध्य में रहकर सदाचारी बनें और ज्ञान प्राप्त करें। अक्षर ज्ञान को वह इस उद्देश्य की प्राप्ति में विधेय मात्र समझते थे।

वर्तमान शिक्षा पद्धति को वे हानिकारक और निम्न श्रेणी का मानते थे, क्योंकि शिक्षा का वास्तविक अर्थ है बौद्धिक एवं चारित्रिक विकास, परंतु वर्तमान शिक्षा पद्धति उसे कुंठित कर रही है। इस पद्धति में बच्चों को पाठ रटाया जाता है ताकि पढ़ लिखकर वे क्लर्क का काम कर सकें, लेकिन उनका सर्वांगीण विकास से कोई लेना-देना नहीं है। वे जीविकापार्जन के लिए नये साधन सीखने के इच्छुक बच्चों के लिए औद्योगिक शिक्षा के पक्षधर थे। ऐसा नहीं है कि हमारी परंपरागत व्यवसाय में कोई खोट है बल्कि होना यह चाहिए कि हम उन्नत ज्ञान प्राप्त कर उसका उपयोग अपने पेशे और जीवन को परिष्कृत करने में करें।

प्रश्न ८.

इतिहास की क्रीमियाई प्रक्रिया का क्या अर्थ है ?

उत्तर : चंपारण का इतिहास अपनी गोद में अनेक संस्कृतियों को समाहित किए हुए है। यहां समय समय पर बाहरी आक्रमण होते रहे हैं। ऐतिहासिक साक्ष्यों के आधार पर ऐसा प्रतीत होता है कि यहां बारहवीं शताब्दी में तीन सौ वर्षों तक कर्णाट वंश का शासनकाल था। इस वंश के पहले राजा नान्यदेव, चालुक्य, नृपात सा के पुत्र विक्रमादित्य के सेनापति, नेपाल तथा मिथिला की विजय यात्रा पर आए और यहीं बस गए। कीमिआई प्रक्रिया एक ऐसी रसायनिक प्रक्रिया है, जिसके द्वारा पारे को सोने में बदला जाता है, फिर पारे को कुछ विलेपनों के साथ उच्च तापमान पर गर्म किया जाता है। पाठ के संदर्भ में देखा जाए तो लेखक कहना चाहते हैं कि जिस तरह पारा को कुछ विशिष्ट विलेपनों के साथ गर्म करने पर एक दूसरे प्रकार का पदार्थ बन जाता है, ठीक उसी प्रकार से दक्षिण से आने वाली दसवीं संस्कृति और रक्त यहां आकर यहां की मूल संस्कृति में घुल-मिल गई और एक मिश्रित संस्कृति का रूप धारण कर एक नया आकार ले बैठी। यहां बसने वाले लोगों में परस्पर वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित होते गए और यह प्रक्रिया निरंतर चलती रही। इस क्षेत्र के निवासी भी प्राचीन और नवीन के मिश्रण हैं। यही है इतिहास की क्रीमियाई प्रक्रिया।

प्रश्न ९.

पुंडलिक जी कौन थे ?

उत्तर : पुंडलिक जी भितिहरवा आश्रम विद्यालय के शिक्षक थे। पुंडलिक जी को महात्मा गांधी ने भितिहरवा में रहकर बच्चों को पढ़ाने के लिए भेजा था। गांधी जी ने उन्हें बेलगांव से सन 1917 में बुलाया था। उन्हें दूसरा महत्वपूर्ण कार्य यह सौंपा गया था कि गांव वालों के दिल से भय दूर करना है। उन्हें ग्रामवासीयों के हृदय में नई आशा तथा सुरक्षा की भावना जाग्रत करना था। पहले एक नियम था कि जब अंग्रेज अधिकारी आएं तो गृहस्वामी उसके घोड़े की लगाम पकड़े। एक दिन एक अंग्रेज जो बहुत अत्याचारी था आया तो पुंडलिक जी ने कहा नहीं ! आना है तो मेरी कक्षा में आए मैं लगाम पकड़ने नहीं जाऊंगा। पुंडलिक जी ने गांधी जी से सीखी निर्भीकता गांव वालों को दी। यही निर्भीकता चंपारण अभियान की सबसे बड़ी देन है। पुंडलिक जी गांधीजी के आदर्शों को सच्चे दिल से मानने वाले बड़े ही निर्भय और कर्तव्यनिष्ठ पुरुष थे। वे लगभग एक साल तक यहां रह सके। अंग्रेज सरकार ने उन्हें जिले से निलंबित कर दिया लेकिन फिर भी वह हर दो तीन साल में अपने पुराने स्थान को देखने अवश्य आ जाते थे। लेखक की मुलाकात संयोग से पुंडलिक जी से भितिहरवा आश्रम में हुई। वह उनके व्यक्तित्व से काफी प्रभावित हुए।

प्रश्न १०.

ओ सदानीरा पाठ आपके समक्ष कैसे प्रश्न खड़े करता है ?

उत्तर : जीवन का प्रत्येक क्षण अपने आप में एक प्रश्न और एक समस्या है। हम जीवन के विभिन्न घटनाक्रमों से विभिन्न बातों को सीखते रहते हैं। हर दिन और हर समय ऐसे अनेकों प्रश्न हमारे मस्तिष्क में घूमते रहते हैं जिनके उत्तर प्राप्ति या उन प्रश्नों से उत्पन्न समस्याओं से निपटने के लिए अनथक एवं सार्थक प्रयास आवश्यक है। इस काम में हमारा व्यावहारिक ज्ञान सहायता प्रदान करता है।

ओ सदानीरा पाठ में हमारे समक्ष इसी प्रकार के कुछ प्रश्न उपस्थित होते हैं। सबसे पहला प्रश्न या समस्या यह है कि हम सभी के द्वारा अपने उत्तरदायित्व मूंह मोड़ लेने के कारण जंगलों में हरे भरे पेड़ों का निरन्तर कटाई जारी है। चंपारण की हरी भरी सुंदर धरती जो हरे-श भरे वृक्षों से ढंकी हुई है, वहां वृक्षों का काटा जाना जारी है। इस कारण पर्यावरण को तो हानि होती ही है, साथ ही हमारी नदियों ने बरसात के दिनों में बाढ़ एवं तबाही का भयंकर दृश्य दिखाए हैं। वृक्षों की कटाई के कारण बाढ़ को रोकने के लिए बनाए गए बांधों में जल अवरोध की क्षमता समाप्त हो गई है। हरे भरे पेड़ों को काट कर कृषि योग्य भूमि बनाने, भवन, कल-कारखानों और विभिन्न उद्योगों की स्थापना करने के कारण ही इन सारी विपदाओं का सामना करना पड़ रहा है। पेड़ों की घटती हुई संख्या और धरती की हरियाली में निरंतर कमी के कारण वर्षा की मात्रा भी बहुत घट गई है।

इस पाठ में चंपारण में बहने वाली गंडक, पंडई, भसान, सिकराना इत्यादि नदियां किसी समय में वनश्री के ढंके हुए वक्षस्थल में किलकती रहती थीं। लेकिन अब विलाप करती दिखाई देती हैं क्योंकि यह निर्वस्त्र हो गई हैं। जिसके कारण अनेकों समस्याएं उत्पन्न हो गई हैं। नदियों का कटाव, भयंकर बाढ़ की विनाश लीला, पर्यावरण में अप्रत्याशित प्रदूषण, अनियमित एवं कम मात्रा में वर्षा का होना इत्यादि। हमें चाहिए कि इन समस्याओं से निदान प्राप्त करने हेतु वनों की कटाई पर तत्काल रोक लगाएं और वृक्षारोपण करना प्रारंभ करें।

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