संपूर्ण क्रांति पाठ का सारांश व्याख्या एवं प्रश्नों के उत्तर
आज की पोस्ट में हम जयप्रकाश नारायण की रचना संपूर्ण क्रांति पाठ का सारांश और प्रश्नों के उत्तर प्रस्तुत करने जा रहे हैं यह पाठ बिहार बोर्ड की कक्षा 12 दिगंत भाग 2 के गद्य खंड में सम्मिलित किया गया है। Sampoorna Kranti class 12 Hindi जयप्रकाश नारायण की संपूर्ण क्रांति पाठ शीर्षक से बिहार बोर्ड की परीक्षा में हर वर्ष सवाल पूछे जाते हैं इसलिए इसका पढ़ना हम सबके लिए अति आवश्यक है। चलिए संपूर्ण क्रांति पाठ के प्रश्नों के उत्तर जानते हैं।
संपूर्ण क्रांति पाठ के लेखक का नाम जयप्रकाश नारायण है। इनका जन्म 11 अक्टूबर 1902 को और निधन 8 अक्टूबर 1979 को हुआ। इनके जन्म का स्थान सिताब दियारा गांव है जयप्रकाश नारायण के पिता का नाम हरसू दयाल और मां का नाम फूलदानी था। जयप्रकाश नारायण की प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही रहकर हुई। वे उच्च शिक्षा के लिए पटना कॉलेजिएट में नामांकन लिया। उसके बाद 1922 में आगे की शिक्षा के लिए अमेरिका गए। मां की बीमारी के कारण पी.एच.डी. नहीं कर सकें।
जयप्रकाश नारायण की रचनाएँ
एक चिड़ा और एक चिड़ी की कहानी, विफलता : शोध की मंजिलें, भाषण – 5 जून 1974,पटना,गांधी मैदान
संपूर्ण क्रांति पाठ का सारांश लिखिए
संपूर्ण क्रांति पाठ में लोकनायक श्री जयप्रकाश नारायण द्वारा पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में दिये गए भाषण का एक अंश है जिसे यह भाषण उन्होंने 5 जून 1974 को था। ‘ संपूर्ण भारत स्वतंत्र ’ पुस्तिका के रूप में यह भाषण जनमुक्ति पटना से प्रकाशित हुआ था। इस ऐतिहासिक भाषण को सुनने के लिए लाखों लोगों की भीड़ पूरे राज्य से पटना के गांधी मैदान में उपस्थित हुए थे, इस भाषण को सुनने वालों में सर्वाधिक संख्या युवाओं की थी। जयप्रकाश नारायण जी अपने इस भाषण में कहते हैं कि यदि रामधारी सिंह दिनकर और रामवृक्ष बेनीपुरी जी जीवित होते तो उनकी कविता भारतवर्ष के नव निर्माण के लिए क्रांति का कार्य करती परंतु आज वे हमारे बीच नहीं हैं। जयप्रकाश नारायण जी अपने भाषण में आगे कहते हैं कि यह जिम्मेदारी मैंने मांग कर नहीं लिया है बल्कि मुझे यह ज़िम्मेदारी युवा पीढ़ी द्वारा सौंपी गई है। जयप्रकाश नारायण जी का कहना है कि मैं नाम का नेता नहीं बनूंगा बल्कि मैं हर किसी की बात सुनूंगा परंतु अंतिम फैसला मेरा होगा। लेखक ने अपने परिवार की निर्धनता के बावजूद अमेरिका में अपने बलबूते पर पढ़ाई पूरी की और वापस आकर कांग्रेस पार्टी में योगदान दिया।
जयप्रकाश नारायण से मिलने के लिए बहुत सारे नेता आएं और सब ने उन्हें लोकतंत्र की शिक्षा दी और बधाईयां दी। जयप्रकाश नारायण जी कहते हैं कि ऐसे लोगों को ज़रा भी शर्म नहीं आती जो एक तरफ तो लोकतंत्र की बातें करते हैं और दूसरी तरफ लोकतंत्र को अपने ही पैरों से कुचलते रहते हैं। जयप्रकाश नारायण के कुछ विशिष्ट मित्र उनको इंदिरा जी से मिलवाना चाहते थे। इसके बारे में लेखक कहते हैं कि मेरा इंदिरा जी से किसी तरह का व्यक्तिगत झगड़ा तो नहीं है लेकिन उनकी गलत नीतियां से मेरा झगड़ा है। जयप्रकाश जी ने कई बार गांधी और नेहरु जी की भी आलोचना की। वह कहते हैं कि आज राजनीति में भ्रष्टाचार बहुत बढ़ गया है, जिसका प्रमुख कारण चुनावी चर्चा है। वर्तमान लोकतंत्र में जनता को बस इतना ही अधिकार रह गया है कि वह मतदान करें और अपने नेताओं का चुनाव करें। लोकतंत्र मे चुनाव के उपरांत अपनी ही प्रतिनिधियों पर जनता का कोई अधिकार नहीं रह जाता है। जयप्रकाश नारायण के अनुसार दूसरे देशों में प्रेस और पत्रिका जन प्रतिनिधियों पर अंकुश लगाती रहती हैं, परंतु हमारे भारत देश में इसका शुरू ही से अभाव रहा है। जयप्रकाश नारायण जी का यह भाषण सचमुच युवाओं के लिए संपूर्ण क्रांति प्रेरणास्त्रोत है।
संपूर्ण क्रांति पाठ के लघु उत्तरीय प्रश्न एवं दीर्घ उत्तरीय प्रश्न के उत्तर
प्रश्न १.
आंदोलन के नेतृत्व के संबंध में जयप्रकाश नारायण के क्या विचार थे, आंदोलन का नेतृत्व किस शर्त पर करते हैं ?
उत्तर : आंदोलन के नेतृत्व के संबंध में लोकनायक श्री जयप्रकाश नारायण जी कहते हैं कि मैं सबकी सलाह लूगा और सबकी बातें भी सुनूंगा लेकिन अंतिम फैसला मेरा होगा। छात्रों के हित की बात जितनी भी ज्यादा होगी, जितना भी समय मेरे पास होगा मैं उनसे बात करूंगा समझूंगा तथा ज्यादा से ज्यादा बातें करूंगा। आप सब की बातें स्वीकार करूंगा, जनसंघर्ष के लिए बनाई गई समितियों की बात करुंगा लेकिन आखिरी फैसला मेरा होगा। इस फैसले को आप सभी को मानना होगा। जयप्रकाश नारायण आंदोलन का नेतृत्व स्वयं के फैसले पर मानते हैं तथा वह कहते हैं कि अगर ऐसा है तो इस नेतृत्व का कोई मतलब है, तभी यह क्रांति सफल हो सकती है। अन्यथा आपस की बहसों में पता नहीं हम किधर बिखर जाएंगे और क्या परिणाम निकलेगा।
प्रश्न २.
जय प्रकाश नारायण कम्युनिस्ट पार्टी में क्यों नहीं शामिल हए ?
उत्तर : जय प्रकाश नारायण जिस समय अमेरिका में थे उस समय वह पक्के कम्युनिस्ट थे। उस समय लेनिन और ट्राटस्की का ज़माना था। 1924 में लेनिन की मृत्यु के उपरांत वह मार्क्सवादी बन गयें। और जब वह अमेरिका से लौटकर भारत पहुंचे तो पक्के कम्युनिस्ट बनकर लौटे परंतु वह कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल न होकर काँग्रेस में शामिल हुए।
जय प्रकाश नारायण की कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल नहीं होने का कारण यह था कि उस वक्त भारत गुलाम था। उन्होंने लेनिन से जो भी सीखा था उसका सार यह था कि जो भी गुलाम देश हैं, वहां के जितने भी कम्युनिस्ट हैं, उनको कभी भी वहां की स्वतंत्रता संग्राम से अपने को अलग नहीं रखना चाहिए। भले ही उस लड़ाई का नेतृत्व निम्नवर्ग करता हो या कोई पूंजीपति।
प्रश्न ३.
जयप्रकाश नारायण के छात्र जीवन और अमेरिका प्रवास का परिचय दें। इस अवधि की कौन-कौन सी बातें आपको प्रभावित करती हैं ?
उत्तर : जयप्रकाश जी अपने बारे में बताते हैं कि 1921 ई. की जनवरी महीने में वह पटना कॉलेज में आई. एस. सी. के छात्र रूप में शिक्षा ग्रहण कर रहे थे। उसी दौरान वह गाँधी जी के असहयोग आंदोलन के आवाहन पर असहयोग किया। असहयोग आंदोलन में लगभग डेढ़ साल ही बीता था कि मुझे फूलदेव सहाय वर्मा की सेवा में भेज दिया गया। वहां कहा गया कि प्रयोगशाला में कुछ करो और सीखो।
मेरा हिंद विश्वविद्यालय में नामांकन नहीं लेने का कारण यह था कि विश्वविद्यालय को सरकारी सहायता मिलती थी। बिहार विद्यापीठ से परीक्षा पास की। बचपन में स्वामी सत्यदेव के भाषण से बहुत प्रभावित होकर अमेरिका चला गया। लेकिन मैं कोई धनी घर का नहीं था लेकिन मैंने सुना था कि कोई भी अमेरिका में मजदूरी करके पढ़ सकता है।
मेरी प्रबल इच्छा थी कि आगे पढ़ाई करूं। अमेरिका के बागानों और लोहे के कारखानों में मैंने काम किया, जहाँ जानवर मारे जोते थे उन कारखानों में भी काम किया। जब मैं युनिवर्सिटी में पढ़ता था तो छुट्टियों में काम कर के इतना पैसा कमा लेता था कि दो-चार विद्यार्थीयों को सस्ते में खिला पिला सकता था। एक कमरे में कई आदमी एक साथ रहते थे। रविवार की छुट्टी नहीं मनाया जाता था बल्कि एक घंटा रेस्टोरेंट में, होटल में बर्तन धोया या वेटर का काम किया करता था। बराबर दो तीन सालों तक दो-तीन लड़के एक ही रजाई में सोकर पढ़े थे। जब बी. ए. पास कर गये तो स्कॉलरशिप मिल गई, तीन महीने के बाद असिस्टेंट हो गये डिर्पाटमेंट के ट्यूटोरियल क्लास लेने लगे। इस तरह अमेरिका में मेरा प्रवास रहा।
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