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घीसू का चरित्र चित्रण | Ghisu Ka Charitra Chitran

घीसू का चरित्र चित्रण | Ghisu Ka Charitra Chitran


घीसू का चरित्र चित्रण : घीसू मुंशी प्रेमचंद की कहानी 'कफन' का एक पात्र है। घीसू का वर्णन कहानी कफ़न की शुरुआत से लेकर आखिर तक मिलता है। कहानी के संपूर्ण घटनाक्रम के मूल में घीसू की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है और बाक़ी पात्र घीसू के चरित्र को उजागर करते रहते हैं। 

घीसू के चरित्र के जरिए प्रेमचंद ने निम्न वर्ग के लोगों के मन की कुप्रवृत्तियों को उजागर किया है और साथ ही यह भी बताया है कि घीसू जैसे लोग आरामतलब, कामचोर, आलसी, निठल्ले, निर्दयी, निष्ठुर और कठोर हृदय वाले होते हैं। ऐसे लोग स्वयं परिश्रम न करके दूसरों के खेत से आलू-मटर चुरा ले आते हैं और भून पका कर खा लेते हैं नहीं तो दो चार ऊख ही उखाड़ लाते हैं और जब गाँव वाले सो जाते हैं तो रात भर बिस्तर पर लेटे लेटे चूसते रहते हैं।


कफन कहानी के पत्र घीसू का चरित्र चित्रण निम्न रूपेण है:


निर्दयी एवं कठोर हृदय व्यक्तित्व

घीसू बहुत निर्दयी निष्ठुर और कठोर व्यक्तित्व का आदमी है, जब उसकी पतोहू अर्थात उसके पुत्र की पत्नी बुधिया प्रसव वेदना से तड़प रही थी, उस समय उसकी हृदय विदारक पीड़ा से किसी का भी कलेजा फट जाता लेकिन घीसू को उस पर थोड़ी भी दया न आई। बुधिया के बारे में प्रेमचंद लिखते हैं— “ अन्दर बेटे की जवान बीबी बुधिया प्रसव वेदना से पछाड़ खा रही थी। रह-रहकर उसके मुंह से ऐसी दिल हिला देने वाली आवाज निकलती थी कि दोनों कलेजा थाम लेते थे।” वह बुधिया, जिसने इस खानदान में व्यवस्था की नींव डाली थी और इन दोनों बे-गैरतों का दोजख भरती थी, परिश्रम करके आज वही प्रसव वेदना से तड़प-तड़पकर आखिरी सांसें गिन रही है, लेकिन घीसू न तो दवा-दारू की व्यवस्था करता है और न दाई बुलाता है बल्कि उसे तो आलू खाने की चिन्ता है। ” वैसे वह माधव को जाकर देखने के लिए कहता जरुर है, लेकिन वह बुधिया को देखने नहीं जाता। इसलिए कहा जा सकता है कि घीसू भी बुधिया की मौत के लिए किसी न किसी तरह से जिम्मेदार है। हालांकि घीसू कहानी में कहता है- “ मेरी औरत जब मरी थी, तो मैं तीन दिन उसके पास से हिला तक नहीं। ” इतना ही नहीं बल्कि उसकी निर्ममता-निष्ठुरता उस समय हद पार कर जाती है जब वह बुधिया के कफ़न के लिए जुटाए गए चन्दों के पैसे से शराब पीता है और पूरियां खाता है, कलेजियां, चटनी और अचार भी खाता है। इसलिए साफ तौर पर कहा जा सकता है कि घीसू निर्मम, निष्ठुर और कठोर व्यक्ति के रूप में है।


कामचोर और आलसी प्रवृत्ति

कहानी ‘ कफ़न ’ में घीसू का वर्णन कामचोर व्यक्ति के रूप में हुआ है, इसलिए कि वह एक दिन काम करता है तो तीन दिन आराम। यही कारण है कि उसे कोई भी अपने यहां कम पर नहीं रखता है। अगर घीसू के घर में थोड़ा बहुत भी खाने-पीने की चीज मौजूद हो तो उसे काम पर जाने की जरूरत नहीं पड़ती थी। जब तक घर पूरी तरह से अनाज से खाली ना हो जाए और भीख मांगने की नौबत ना आ जाए तब तक वह कम पर नहीं जाता था। जब दो-चार दिन का फांका हो जाता तो वह पेड़ पर चढ़कर लकड़ियां तोड़ लाता और माधव उन्हें बाजार में बेच आता था। घीसू ने इसी वृत्ति से साठ साल पूरे कर दिये थे। बुधिया के आ जाने से घीसू और ज्यादा कामचोर व आराम-तलब हो गया था, बल्कि अकड़ने भी लगा था।


चोरी की की आदत

घीसू में चोरी करने की आदत भी मौजूद थी, जब गांव के सभी लोग सो जाते तो दूसरों के खेतों से मटर और आलू उखाड़ लाता था और दोनों बाप बेटे साथ बैठकर, भून कर खा लेते थे या दस-पांच ऊंख ही उखाड़ लाते और रात को चूस लेते थे। ज़मींदार भी इसे कई बार अपने हाथों से चोरी करने के अपराध में पीट चुका था और वचन देकर काम पर न आने के लिए भी। वह घीसू से पूछता है— “ क्या है बे घिसुआ, रोता क्यों है ? अब तू कहीं भी दिखाई नहीं देता। मालूम होता है, इस गांव में रहना नहीं चाहता। ”


विचारवान व्यक्ति

प्रेमचंद ने घीसू को विचारवान बना कर कहानी में वर्णन किया है— “ घीसू बाकी किसानों से कहीं ज्यादा विचारवान था और किसानों के विचारशून्य समूह में शामिल होने के बदले बैठकबाजों की कुत्सित मण्डली में जा मिला था। हां, उसमें उतनी शक्ति तो नहीं थी कि बैठकबाजों के नियम और नीति का बखूबी पालन कर सके इसीलिए जहां उसकी मण्डली के और लोग सरगना और मुखिया बने हुए थे, उस पर सारा गांव उंगली उठाता था। फिर भी उसे यह तसल्ली न होती थी कि अगर वह फटे हाल है तो कम से कम उसे किसानों की सी जी-तोड़ मेहनत तो नहीं करनी पड़ती और उसकी सरलता और निरीहता से दूसरे लोग बेवजह फायदे तो नहीं उठाते। ” इस तरह यह साफ तौर पर कहा जा सकता है कि घीसू प्रेमचंद के विचारों के वाहक है तथा कहीं तो वह रूढ़ियों, परम्पराओं की धज्जियाँ उड़ाता है तो कहीं वर्ग-वैषम्य पर आक्रोश प्रकट करता है। पूंजीपतियों के धन-संग्रह पर कटाक्ष करते हुए घीसू साफ लहज़े में कहता है - “ अब तो सबको किफायत सूझती है। शादी-ब्याह में मत खर्च करो, क्रिया-कर्म में मत खर्च करो। पूछो गरीबों का माल बटोर-बटोरकर कहां रखोगे ? बटोरने में तो कोई कमी नहीं है। हां खर्च में किफायत सूझती है। ” इसी प्रकार वह रूढ़िवादी रीति-रिवाजों पर भी कटु-कटाक्ष करता रहता है। 'कफन' के अस्तित्व- उपादेयता पर प्रश्नचिह्न लगाता हुआ घीसू स्पष्ट कहता है-“ कैसा बुरा रिवाज़ है कि जिसे जीते जी तन ढकने को चीथड़ा भी न मिले, उसे मरने पर नया कफन चाहिए। ”


इसी तरह से घीसू कभी-कभी दार्शनिकों के समकक्ष अपनी विचारवान भावना को प्रकट करते हुए कहता है हमारी आत्मा प्रसन्न हो रही है तो क्या उसे पुन्न न होगा। ” इसी तरह जब घीसू मोह माया की बात करता हुआ बुधिया को स्वर्ग की निवासिनी घोषित करता है- 'हां बेटा, बैकुण्ठ में जाएगी। किसी को सताया नहीं किसी को दबाया नहीं। मरते-मरते हमारी जिन्दगी की सबसे बड़ी लालसा पूरी कर गई। वह बैकुण्ठ में न जाएगी तो क्या वे मोटे-मोटे लोग जायेंगे, जो गरीबों को दोनों हाथों से लूटते हैं और अपने पाप को धोने के लिए गंगा में नहाते हैं और मंदिरों में जल चढ़ाते हैं। ” इसी प्रकार माधव के रोने पर वह समझाता है कि “ क्यों रोता है बेटा, खुश हो कि वह माया जाल से मुक्त हो गयी जंजाल से छूट गई। बड़ी भाग्यवान थी जो इतनी जल्द माया-मोह के बंधन तोड़ दिए। ” इस प्रकार घीसू कहानी में विचारवान व्यक्ति के रूप में चित्रित हुआ है।


घीसू झूठा व्यक्ति

'कफन' कहानी में घीसू झूठा व्यक्ति के रूप में चित्रित हुआ है। कहानी में कुछ प्रसंग ऐसे हैं जहाँ वह झूठ का सहारा लेकर अपना काम निकालता हुआ दिखाई देता है। उदाहरण स्वरुप जब बुधिया के मर जाने पर वह जमींदार के पास जाकर रोने का नाटक करते हुए झूठ कहता है- “ सरकार बड़ी विपत्ति में हूं। माधव की घरवाली रात को गुजर गई। रात भर तड़पती रही सरकार। हम दोनों उसके सिरहाने बैठे रहे। दवा-दारू जो कुछ हो सका सब कुछ किया, मगर वह हमें दगा दे गई, अब कोई एक रोटी देने वाला भी न रहा मालिक। तबाह हो गए। घर उजड़ गया। आपका गुलाम हूँ, अब आपके सिवा कौन उसकी मिट्टी पार लगाएगा। हमारे हाथ में तो जो कुछ था, वह सब दवा-दारू में उठ गया। सरकार को दया होगी तो उसकी मिटटी उठेगी। ” जबकि घीसू ने न तो रात भर उसकी देखभाल की थी और न दवा-दारू की व्यवस्था किया था। फिर भी जमींदार के सामने झूठ बोलकर उनकी हमदर्दी हासिल करके पैसे ले लेता है। इसी प्रकार वह जमींदार साहब के नाम पर ढिंढोरा पीटकर गांव के बनिये, महाजनों से भी बुधिया के क्रिया-कर्म हेतु रुपए जमा करता है। इसलिए साफ तौर पर कहा जा सकता है कि घीसू झूठा व्यक्ति है तथा उसके कथनी और करनी में जमीन-आसमान का फ़र्क है।


संवेदनहीन व्यक्ति

घीसू 'कफन' कहानी में एक संवेदनहीन व्यक्ति के रूप में आया है। कहानी की शुरुआत में कहानी की नायिका बुधिया झोंपड़े के भीतर प्रसव पीड़ा से तड़प रही है, फिर भी घीसू आलू खाने में व्यस्त रहता है और बाद में धोती ओढ़कर सो जाता है, जबकि बुधिया हृदय विदारक चीखें मार रही है। न तो वह दवा-दारू की व्यवस्था करता है और न ही किसी डॉक्टर या दाई की। इसी तरह वह बुधिया के क्रिया-कर्म हेतु जमा किए गए पैसों की शराब पीता है, पूरियां खाता है, कलेजियां - अचार और चटनी का मज़ा लेता है और घर पर बुधिया की लाश पड़ी हुई है। कफ़न के इस संवाद में भी उसकी चतुरता, संवेदनहीनता और काइयां उजागर होती हैं —


माधव: “ जो वहां वह हम लोगों से पूछे कि तुमने हमें कफन क्यों नहीं दिया तो क्या कहोगे ? ”

घीसू: “ कहेंगे तुम्हारा सिर! ”

माधव: “ पूछेंगे तो जरूर ! ”

घीसू: “ तू कैसे जानता है कि उसे कफन न मिलेगा ? तू मुझे गधा समझता है। साठ साल क्या दुनिया में घास खोदते रहा हूँ। उसको कफन मिलेगा और बहुत अच्छा मिलेगा। ”

माधव: “ कौन देगा ? रुपए तो तुमने चट कर दिए। वह तो मुझसे पूछेगी उसकी मांग में सिंदूर तो मैंने डाला था। ”

घीसू: गुस्से में बोला “ मैं कहता हूं, उसे कफन मिलेगा। तू मानता क्यों नहीं ?”

माधव: “ कौन देगा, बताते क्यों नहीं ? ”

घीसू: “ वही लोग देंगे, जिन्होंने कि अबकी दिया। हां, अबकी रुपए हमारे हाथ न आयेंगे। ”

इसी तरह वहां शान से बैठे पूरियां कलेजियों की दावत उड़ रही है और घर पर बुधिया की लाश कफ़न के इंतजार में पड़ा हुआ है


नशेड़ी व्यक्ति

घीसू एक नशेड़ी व्यक्ति के रूप में कफ़न कहानी में आया है। वह नशे की लत पूरी करने के लिए बुधिया के दाह-संस्कार और कफ़न के लिए जुटाए गए पैसे से से शराब पीता है। प्रेमचंद ने इसका चित्रांकन इस प्रकार से किया हैं— “ तब न जाने किस दैवीय प्रेरणा से एक मधुशाला के सामने आ पहुंचे और जैसे किसी पूर्व निश्चित योजना के अन्दर चले गये। वहां जरा देर तक दोनों असमंजस में खड़े रहे।" फिर घीसू ने गद्दी के सामने जाकर कहा- 'साहू जी, एक बोतल हमें भी देना। ”

इसके बाद कुछ चिखना आया, तली हुई मछलियां आयीं ओर दोनों बरामदे में बैठकर आराम से शराब पीने लगे कई कुज्जियां ताबड़तोड़ पीने के बाद दोनों सरूर में आ गए। इस प्रकार अन्त में पूरी बोतल शराब की पीकर वह नशे में मदमस्त होकर वहीं गिर गया।

निष्कर्ष

उपरोक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि घीसू निठल्ला, आराम तलब, अकर्मक व झूठा व्यक्ति है। न उसे मान-मर्यादा की चिन्ता है और न ही किसी जवाबदेही का खौफ ! पुत्र वधु बुधिया सारी रात प्रसव वेदना से तड़पती रही, परन्तु उसने न तो उसके लिए दवा-दारू की व्यवस्था की और न डॉक्टर, आखिरकार इलाज न होने के कारण उसकी मृत्यु हो गई। लेकिन घीसू आलू की दावत उड़ाने में व्यस्त रहता है। वह नशेड़ी और झूठा व्यक्ति है तथा झूठ बोलकर बुधिया के दाह-संस्कार के लिए धनराशि एकत्रित करता है, परन्तु संवेदनहीन व्यक्ति घीसू उन पैसों से शराब पीता है और तली हुई मछलियां खाता है और घर पर मृत बुधिया की देह पड़ी हुई है।

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