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एक लेख और एक पत्र का सारांश | एक लेख और एक पत्र प्रश्न उत्तर

एक लेख और एक पत्र का सारांश | एक लेख और एक पत्र प्रश्न उत्तर


एक लेख और एक पत्र का लेखक परिचय

एक लेख और एक पत्र के लेखक का नाम भगत सिंह है। इनका जन्म 28 सितम्बर 1907 और निधन 23 मार्च 1931 को हुआ। भगत सिंह बंगा चक्क न० 105, गुगैरा ब्रांच, वर्त्तमान लायलपुर (पाकिस्तान) के रहने वाले थे। इनके पिता का नाम सरदार किशन सिंह और माता का नाम विद्यावती देवी था।

एक लेख और एक पत्र का सारांश लिखें

एक लेख और एक पत्र महान क्रांतिकारी और स्वतंत्रता सेनानी शहीद भगत सिंह द्वारा लिखा गया है। इस पाठ में उनके द्वारा लिखित निबंध जिसका शीर्षक “ विद्यार्थी और राजनीति ” है तथा एक पत्र जिसे उन्होंने अपने परम मित्र सुखदेव के नाम लिखा था सम्मिलित किया गया है।

भगत सिंह अपने लेख के माध्यम से विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कहते हैं कि, विद्यार्थियों को अपने दायित्वों का निर्वाहन पूर्ण निष्ठा और तन्मयता के साथ करना चाहिए। उन्हें चाहिए कि सच्ची लगन, निष्ठा और नैतिकता जैसे गुणों को अपने जीवन का आदर्श बनाएं । विद्यार्थियों को अपनी पढ़ाई पर किसी भी स्थिति में पूरा ध्यान देना चाहिए।

विद्यार्थियों को राजनीतिक अथवा पॉलिटिकल कार्यों में अवश्य भाग लेना चाहिए। यह हमारा दुर्भाग्य ही है कि छात्रों को ऐसे कामों में हिस्सा लेने से रोका जाता है। विद्यार्थियों को कॉलेज में नामांकन लेते समय, नामांकन से पहले इस बात की शर्त पर हस्ताक्षर करवाया जाता है कि वह भविष्य में कभी भी राजनीति के क्षेत्र में नहीं जाएंगे। ऐसी स्थिति में उन्हें राजनीति अलग थलग रहने को बाध्य होना पड़ता है जो कि पूर्णतः अनुचित है छात्रों को चाहिए कि आवश्यकता पड़ने पर निष्ठापूर्वक तन मन और धन से देश की सेवा के लिए राजनीतिक दलों और कार्यों में भाग लेना चाहिए तथा देश के लिए अपने जीवन का बलिदान देने में गर्व का अनुभव करना चाहिए।

भगत सिंह अपने परम मित्र सुखदेव को लिखे गए पत्र में लिखते हैं कि, आत्महत्या जैसा कदम एक घृणित अपराध है, यह कायरतापूर्ण कार्य है। एक क्रांतिकारी ही नहीं बल्कि कोई भी मनुष्य इस प्रकार के कार्य को उचित नहीं कह सकता। उनका कहना है कि, आदमी किसी भी काम को उचित मानकर ही करता है। जैसे कि ववो और उनके मित्र ने साथ मिलकर लेजिस्लेटिव असेंबली में बम फेंकने का साहसपूर्ण कार्य किया था।

भगत सिंह अपने क्रांतिकारी भावनाओं तथा अपने देश भक्ति के साथ जेल में यातनाओं से भरपूर जीवन को जीते हुए खुशी खुशी फांसी पर चढ़ गए परन्तु कभी हार नहीं मानी। वह देश के लिए अपने जीवन का बलिदान दिया और शहीद हो गए। उनकी इस महान शहादत को याद करते हुए प्रत्येक वर्ष शहीद दिवस (बलिदान दिवस) मनाया जाता है। छोटा या बड़ा कैसा भी परिवर्तन, क्रांति के बिना संभव नहीं है। क्रांति तो लगातार संघर्षरत रहने से प्रयत्नों से और कष्टों को सहन करने तथा बलिदानों के द्वारा ही उत्पन्न की जा सकती है और की जाती रहेगी।

एक लेख और एक पत्र प्रश्न उत्तर

प्रश्न १.

विद्यार्थी को राजनीति में भाग क्यों लेना चाहिए ?

उत्तर : विद्यार्थियों के द्वारा ज्यादा से ज्यादा समय पढ़ाई में लगाया जाना चाहिए क्योंकि पढ़ना ही उनका काम होता है। उन्हें जिन विषयों की शिक्षा दी जा रही है उसे गहरी रुचि, लगन एवं ध्यान लगाकर अध्ययन करना चाहिए। यही विद्यार्थियों की प्राथमिकता होती है। परीक्षाओं में अच्छे प्राप्तांक एवं अच्छी श्रेणी विद्यार्थीयों के गहन अध्ययन तथा उसकी बुद्धि की प्रखरता पर ही निर्भर होती है। इसलिए विद्यार्थीयों का मुख्य कार्य पढ़ाई करना होना चाहिए और अपना ध्यान पूरे मनोयोग से शैक्षणिक योग्यता को विकसित करने में लगाना चाहिए। परंतु इसके साथ यह भी आवश्यक है कि उन्हें देश की परिस्थितियों का बखूबी ज्ञान हो और जो कुछ भी कमी हो उनके सुधार के उपाय सोचने की योग्यता भी विकसित की जाये। इसके बिना विद्यार्थियों की शिक्षा अधूरी है एवं ऐसी स्थिति में वांछित लक्ष्य भी प्राप्त नहीं किया जा सकता है।

विद्यार्थियों के अभिभावकों द्वारा अक्सर इस प्रकार के दृष्टिकोण प्रकट किए जाते रहे हैं के उन्हें राजनीतिक कार्यों से सर्वदा ही दूर रहना चाहिए क्योंकि उनका काम तो पढ़ाई करना और अपनी योग्यता बढ़ाना मात्र है। राजनीतिक पचड़े में उलझना विद्यार्थियों का काम नहीं। लेकिन उनके यह विचार पूरी तरह से अव्यावहारिक और निरर्थक हैं। छात्र और युवाशक्ति किसी भी देश की रीढ़ की हड्डी होते हैं। महान क्रांतिकारी और स्वतंत्रता सेनानी शहीद भगत सिंह विद्यार्थियों का राजनीतिक कार्यों में योगदान आवश्यक मानते थे। उनका ऐसा मानना था कि विद्यार्थियों को अपनी पढ़ाई पूरी तन्मयता से करते हुए अपने देश हित में भी सोचना चाहिए और अगर इसके लिए अपने जीवन का बलिदान भी करना पड़े तो इसमें गर्व करना चाहिए। ठीक उसी प्रकार से जिस प्रकार से देशभक्त भगत सिंह इस महान कार्य में जुट गए हैं।

प्रश्न २.

भगत सिंह के अनुसार, “केवल कष्ट सहकर भी देश की सेवा की जा सकती है।” उनके जीवन के आधार पर इसे प्रमाणित करें।

उत्तर : अपने परम मित्र सुखदेव को लिखे गए पत्र में भगतसिंह ने इस तथ्य का वर्णन किया है कि “केवल कष्ट सहकर भी देश की सेवा की जा सकती है।” इस कथन का तात्पर्य यह है कि वर्तमान समय में किसी प्रकार के कष्टों को सहे बिना देश के लिए कुछ भी कर पाना संभव नहीं है। भगत सिंह के अनुसार, “नौजवान भारत सभा के ध्येय, ‘सेवा द्वारा कष्टों को सहन करना एवं बलिदान करना है’ को हमने सोच समझ कर इसका निर्माण किया था।” आदमी किसी भी काम को उचित समझकर ही करता है, लेकिन उस कार्य का परिणाम तथा उसका फल भोगने की बारी कार्य करने के बाद ही आती है। उसी तरह जैसे लेजिस्लेटिव असेंबली में बम फेंकने का कार्य महान क्रांतिकारी भगत सिंह ने किया था, क्योंकि परिणाम की परवाह किए बिना ही उन्होंने इस महान को कार्य किया था। अगर उन्होंने दया के लिए गिड़गिड़ाते हुए, दंड से बचने का प्रयास किया होता तो शायद यह कार्य उन्होंने कभी न किया होता।

यह सच है कि भगत सिंह ने इस कार्य से होने वाले, आत्मघाती परिणाम की परवाह कभी नहीं की होगी। वे सभी प्रकार के कष्टों को सहकर केवल देश की सेवा के लिए बड़ा से बड़ा बलिदान करने के लिए हर घड़ी तैयार रहते थे। उनका जीवन एक खुली किताब जैसी थी जिसमें उनके द्वारा देश सेवा के लिए किए जाने वाले महान और साहसपूर्ण कार्यों की वीरगाथाएं पढ़ी जा सकती हैं।

प्रश्न ३.

भगत सिंह की विद्यार्थियों से क्या अपेक्षाएं हैं ?

उत्तर : भगत सिंह की विद्यार्थियों से यह अपेक्षाएं हैं कि देश का प्रत्येक विद्यार्थी पूरी तन्मयता के साथ और निष्ठापूर्वक होकर अपने आप को देश पर अर्पित कर दें। प्रायः ऐसा देखा गया है कि गुलाम देशों को आजाद कराने में वहाँ के विद्यार्थियों और युवाओं का विशेष योगदान रहा है। विद्यार्थियों द्वारा ही क्रांति का बिगुल फूंका जा सकता है। विद्यार्थीयों को अपना अधिकांश समय अवश्य ही फढ़ाई में लगाना चाहिए। परंतु अगर वे अपने देश के भविष्य के बारे में नहीं सोचते तो फिर उनकी पढ़ाई लिखाई का कोई मतलब नहीं रह जाता। इसलिए विद्यार्थियों को पढ़ाई के साथ राजनीतिक कार्यों का ज्ञान भी प्राप्त करना चाहिए और जब कभी आवश्यक जान पड़े तो उस समय राजनैतिक कार्यों में भाग लेना चाहिए। विद्यार्थियों को चाहिए कि अपना जीवन देश सेवा के काम में लगा दे। अपने प्राणों को देश के लिए समर्पित कर दे और बलिदान की जरूरत पड़ने पर गर्व महसूस करें।

प्रश्न ४.

जब देश के भाग्य का निर्णय हो रहा हो तो व्यक्तियों को स्वयं के भाग्य को पूर्णतया भुला देना चाहिए। आज जब देश आजाद है, भगत सिंह के इस विचार का आप किस तरह मूल्यांकन करेंगे ? अपना पक्ष प्रस्तुत करें।

उत्तर : भगत सिंह का यह कथन उनके देशप्रेम की भावना और मातृभूमि के प्रति निष्ठा को उजागर करता है। जब देश संकट में है और उसके भाग्य का निर्णय लिया जा रहा हो तो ऐसे समय में देश में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति को निश्चित ही अपने स्वार्थ से ऊपर उठकर देश के हित में सोचना चाहिए। देश के लिए तन, मन, धन से अपना सब कुछ निछावर कर देना चाहिए। लेकिन आज देश की आजादी के छिहत्तरवां साल हो गया फिर भी इस प्रकार की भावना किसी भी व्यक्ति के मन में दिखाई नहीं देता है। हर एक व्यक्ति केवल अपनी स्वार्थपूर्ति और थोड़े से सुख के लिए अपना सारा नैतिकता खो बैठा है। आज भारत वासी अपने ही देश में भ्रष्टाचारी बने रहते हैं और दिन रात काली कमाई में लगे हुए हैं, अंग्रेजों की गुलामी से आजाद होने के बाद भी आज देश अपने ही देशी अंग्रेजों द्वारा विनाश की ओर जा रहा है। अपराधी और भ्रष्टाचारी जनता को लूट रहे हैं। राजनीती का भी अपराधिकरण चरम सीमा पर होता जा रहा है। भ्रष्ट शासन व्यवस्था के कारण देश ही के लोग देश के दुश्मन बन चुके हैं। आतंकवादी गतिविधियां तेज गति से बढ़ रही है। आज के राजनीतिक दल धार्मिक, भाषाई और क्षेत्रीय उन्माद फैलाकर सत्ता पर अधिकार जमाये हुए है वो भी सिर्फ थोड़े से स्वार्थ के लिए।

प्रश्न ५.

उन्हें चाहिए कि वे उन विधियों का उल्लंघन करें परंतु उन्हें औचित्य का ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि अनावश्यक एवं अनुचित प्रयत्न कभी भी न्यायपूर्ण नहीं माना जा सकता। भगत सिंह के इस कथन का आशय बताएँ। इससे उनके चिंतन का कौन-सा पक्ष उभरता है वर्णन करें।

उत्तर : भगत सिंह क्रांतिकारियों को संबोधित करते हुए उनसे कहते हैं कि क्रांतिकारी शासक अगर शोषक हो और कानून व्यवस्था अगर गरीबों का विरोधी और मानवता विरोधी हो तो क्रांतिकारियों को चाहिए कि उसका बलपूर्वक विरोध करें। लेकिन इस बात का भी ध्यान रहे कि आम लोगों पर इसका कोई असर न हो, वह संघर्ष तो आवश्यक हो पर अनुचित नहीं। संघर्ष अगर आवश्यकता के लिए हो तो उसे न्यायपूर्ण माना जा सकता है। लेकिन विरोध या संघर्ष केवल बदले की भावना से प्रेरित हो तो वह अन्यायपूर्ण है। इसका उदाहरण स्वरुप रूस की जारशाही का हवाला देते हुए कहते हैं कि रूस में बंदियों को बंदी गृहों में यातनाओं का सहन करना ही जारशाही का तख्ता उलटने के बाद उनके द्वारा जेलों के प्रबंध में क्रांति लाये जाने का सबसे बड़ा कारण था। इसलिए विरोध अवश्य करो लेकिन तरीका उचित होना और न्यायपूर्ण होना चाहिए। इस प्रकार से देखा जाए तो भगत सिंह का चिंतन बिल्कुल मानवतावादी है, जिसमें संपूर्ण मानव जाति के कल्याण की भावना निहित है। अगर मानवता पर थोड़ा सा भी प्रहार हो, तो उन्हें पूरी लगन और निष्ठा के साथ वर्तमान व्यवस्था का विरोध शुरू कर देना चाहिए।

प्रश्न ६

भगत सिंह ने कैसी मृत्यु को सुंदर कहा है ? वे आत्महत्या को कायरता कहते हैं, इस संबंध में उनके विचारों को स्पष्ट करें।

उत्तर : भगत सिंह देश की सेवा के बदले में दी गई फाँसी अर्थात मृत्युदंड को सुंदर मृत्यु कहा है। भगत सिंह इसके बारे में कहते हैं कि जिस समय देश के भाग्य का निर्णय लिया जा रहा हो तो व्यक्तियों अपने भाग्य को पूर्णतया भुला देनी चाहिए। इस दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ ही हमारी मुक्ति का प्रस्ताव सम्मिलित रूप में और विश्वव्यापी हो और उसके साथ ही जिस समय यह आंदोलन अपनी चरम सीमा पर पहुंचे तो हमें फांसी दे दी जाय। यह मृत्यु भगत सिंह के लिए सुंदर होगी जिसमें हमारे देश का कल्याण होगा। शोषक यहां से चले जायेंगे और हम अपना कार्य स्वयं करेंगे। इसी के साथ व्यापक समाजवाद की कल्पना भी करते हैं, जिसमें हमारी मृत्यु बेकार न जाय। अर्थात् संघर्ष में मरना एक आदर्श मृत्यु है। भगत सिंह आत्महत्या को कायरता कहते हैं इसलिए कि कोई भी व्यक्ति जो आत्महत्या करेगा वह थोड़ा दुख, कष्ट सहने से बचने के चलते करेगा। वह अपना समस्त नैतिक मूल्य एक ही क्षण में खो देगा। इस संदर्भ में उनका विचार यह है कि मेरे जैसे विश्वास तथा विचारों वाला व्यक्ति व्यर्थ में मरना कभी भी पसंद नहीं कर सकता। हम तो अपने जीवन का अधिक से अधिक मूल्य प्राप्त करना चाहते हैं। हम मानवता की अधिक से अधिक सेवा करना चाहते हैं। संघर्ष में मरना एक आदर्श मृत्यु है। प्रयत्नशील होना तथा श्रेष्ठ और उत्कृष्ट आदर्श के लिए जीवन दे देना कभी भी आत्महत्या नहीं कही जा सकती। आत्महत्या को कायरता इसलिए कहते हैं कि इसमें व्यक्ति केवल कुछ दुखों से बचने के लिए अपने जीवन को समाप्त कर देते हैं। इस संदर्भ में वे एक महत्वपूर्ण विचार भी देते हैं कि विपत्तियां व्यक्ति को पूर्ण बनाने वाली होती है।

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