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दशहरा शायरी | Dussehra Shayari | विजयदशमी शायरी Vijayadashami Poetry In Hindi

दशहरा शायरी | Dussehra Shayari | विजयदशमी शायरी Vijayadashami Poetry In Hindi

विजयदशमी की हार्दिक शुभकामनाएं
रावण न होता इस धरती पर,
तो राम भी यहाँ कहाँ आ पाते।
सीताहरण न हुआ होता कभी,
तो हम दशहरा भी कैसे मनाते।।
नहीं होती मंथरा कभी जो दासी,
कैकेयी भी कोप कैसे दिखाती।
पुत्रमोह में आकर कैकेयी भी,
पति को कत्तई नहीं वह गँवाती।।
राम हेतु वह वनवास न माँगती, 
दशरथ का स्वर्गवास नहीं होता।
होता अयोध्या में रामराज्य लागू,
श्रीराम का वनवास नहीं होता।।
बहुत सुंदर दो शाब्दिक अर्थ भी,
लिए हुए है यह सुंदर सा दशहरा।
दश हरा दशानन सीता को हरा,
दश हरा दिशा दशा भी हरा भरा।।
दशानन ने माता सीता को हरा,
अंततः हुआ दशानन की ही मौत।
जनकनंदिनी को वह समझा नहीं,
सीताहरण बना जीवन का सौत।।
विभीषण रावण से न होता अलग,
नहीं होता रावण का स्वर्गवास।
रावण होता जीवित आज भी,
नहीं किया रावण इसका एहसास।।
दस शीश नहीं जो होते रावण को,
मिलता नहीं दशानन का उपहार।
सूर्पनखा की नहीं जो कटती नाक,
स्वर्ग हेतु सीढ़ी भी होता तैयार।।
आश्विन मास के ही शुक्लपक्ष में,
तिथि रही थी यही शुभ दशमी।
रावण को मार राम हुए विजयी,
आज मनाया जाता विजयादशमी।।
था रावण एक सुविख्यात विद्वान,
अत्याचार ही उसकी मजबूरी थी।
बिना किए देवलोक में अत्याचार,
पचहत्तर लाख योनी अधूरी थी।।
था रावण का यह शापित जीवन,
पचहत्तर लाख योनी राक्षस बनना था।
बताया था ऐसा भोलेदानी शिव ने,
उपाय यही ऋषिवर का कहना था।।
नहीं हुआ होता यदि यह सीताहरण,
नहीं रावण कभी भी मारा ही जाता।
नहीं रामायण की रचना ही होती,
नहीं अवतरित कभी होते विधाता।।
अरुण दिव्यांश 9504503560

रामलीला अब खत्म हो गया, रावण को घर भी जाना था, दशहरा शायरी Dussehra Shayari

मौत की जल्दी बहुत थी
रावण हुआ अधीर
युद्ध श्रेत्र तैयार पड़ा था
पहुंचे नहीं रघुवीर

रावण को घर भी जाना था
बच्चों को मेला लाना था
देर रात की बस से फिर
सबको अपने गांव जाना था

इस जल्दी में, उस जल्दी में
नमक गिरा जा हल्दी में
हनुमान ने खाना खाया
रावण की जूठी थाली में

रामलीला अब खत्म हो गया
वस्त्र उतर गए भाड़े वाले
मेकअप के बिन राम दिख रहे
अशरफ मियां नगाड़े वाले

जींस पहनकर रावण निकला
मथुरा वाला पावन निकला
जो थे अब तक हनुमान जी
निकले वो तो पहलवान जी

रामनगीना गोलगप्पे खा रहा है 
और मुंह टुल्लू को चिढ़ा रहा है

सीता और मंथरा का रोल
रामनगीना निभा रहा था
लक्ष्मण के वेश में देखो
टुल्लू सबको भा रहा था

सबको अब जल्दी जाना है
अपने-अपने घर
अगले साल फिर मिलेंगे
ऐसे ही सज-संवर
असित नाथ तिवारी
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Happy Dussehra Vijayadashami 2021

रावण जन्म लिया घर घर में : विजयादशमी पर विशेष कविता, शायरी

पत्थर दिल इंसान हो गया
विजयादशमी की हार्दिक बधाई।
मानवता हो चुकी कलंकित,
नर नारी सारे आतंकित।
करके अपना प्रेम विसर्जित,
देख मनुज पाषाण हो गया।
पत्थर दिल इंसान हो गया।।

काठ बाँस की चिता बनाई,
मिलकर उसमें आग लगाई।
मन का रावण मार न पाए,
पर झुठा अभिमान हो गया।।

रावण जन्म लिया घर घर में,
बसा हुआ है तेरे उर में।
करके पुतला दहन न सोचो,
कोई कीर्तिमान हो गया।।

ईर्ष्या द्वेष में डूबा मन है,
अंतर्मन मन मे दुर्योधन है।
चीख रही है सिया द्रौपदी,
कैसा युग भगवान हो गया।।

ढुंढो जग में राम कहाँ हैं,
मुरलीधर घनश्याम कहाँ हैं।
सबसे पहले राम बनो,
जो जग में वरदान हो गया।।

न पूजा में न ही अजान में,
मृगतृष्णा में मोह ध्यान में।
समझो जग की पीड़ा को,
आरती यही अजान हो गया।।

बची नहीं तप त्याग साधना,
क्षमा दया जप आराधना।
धर्म कर्म की बात न पूछो,
झुठा वेद पुराण हो गया।।
उदय शंकर चौधरी नादान
कोलहंटा पटोरी दरभंगा
7738559421
Happy Vijayadashami Image Dusshera Wishes photo
विजयादशमी पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं
नीलकंठ तुम नीले रहियो
दूधभात का भोजन करियो
हमरी बात राम से कहियो
शुभ दशहरा
मीनू मिनल

विजयादशमी पर विशेष कविता

विजय
मीन से मिथुन ने वचन मांगा
तुला को दीजिए वनवास
धनु को दे दो राज यहां का
निज प्रिय सूत यह जान।
तुला वियोग में प्राण त्यागे
वचनों के फंस गए जाल
तुला चले पितु वचन निभाने
मेष -कुंभ हो लिए साथ।
बनवास काले दुर्मति ने
किया घोर अपराध
पर नारी की लालसा
हर ले गया अपने साथ।
विपदा काले बहुजन मिले
शूरवीर बलवान
करने तुला के काज को
कर्क गए जलधी लांग।
पहुंचे मेष नगरी में
धरा रूप विकराल
नीज पूंछ अनल लिए
मेष करी कंकाल।
तुला सूत बहू मार दिए
मारे सुभट अपार
मर्दि- मर्दि रजनीचर मारे
दी मेष वाटिका उजाड़।
कुंभ सुधी कर्क ले आए
छाई प्रसन्नता अपार
शब्द -नाद अति घोर हुआ
चली सेना उस पार।
घमासान तब संग्राम हुआ
डोला ब्रह्मांड सारा
अस्त्र-शस्त्र के वार से
छुटा ना कोई किनारा।
तुला ने तुला को मारा
कर्क ने दिया बहुत साथ
कुंभ का बहाना हुआ
मेष की सत्यानाश।
अहंकारी दुर्मति की अंत में
निश्चित है पराजय
सदा से चलती आ रही
अधर्म पर धर्म की जय।
ललिता कश्यप सायर डोभा 
जिला बिलासपुर ( हि0 प्र0 )

अधर्म पर धर्म का विजयोत्सव मनाएँ। राम रावण का युद्ध अनवरत चलाएँ

मन का रावण
अधर्म पर धर्म का विजयोत्सव मनाएँ।
राम रावण का युद्ध अनवरत चलाएँ।।

विजयादशमी पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ।
अष्टपाश- सट्ऋपु़ओं को हम मार भगाएँ।।

अधर्म पर धर्म की विजय।
असत्य पर सत्य की विजय।
बदी पर नेकी की विजय।
पाप पर पुण्य की विजय।
अत्याचार पर सदाचार की विजय।
क्रोध पर दया और क्षमा की विजय।
अज्ञान पर ज्ञान की विजय।
अन्याय पर न्याय की विजय।।

दशहरा "संस्कृत" शब्द से आया है।
दस अवगुण हैं त्यज्य, समझाया है।
अहंकार, क्रूरता, अन्याय अनुचित बतलाया है।
काम वासना, क्रोध, लोभ हमें नहीं करना है।
मद, ईर्ष्या और मोह का परित्याग हीं गहना है।।
डॉ. कवि कुमार निर्मल

अधर्म पर धर्म की सदा होती आई जीत : विजयादशमी पर विशेष प्रस्तुति

अधर्म पर धर्म की सदा होती आई जीत।
खड़ी हुई अभेद्य धर्म की- शास्वत भीत।
कड़ी धूप हो या फिर ठिठुरन भरी शीत।
जब तक रहेगी मानव जाति में ये प्रीत।
शंखनाद् कर गायें हम 'विजय' के गीत।
अधर्म का टिक न पाया कभी भी मीत।
'कुरुक्षेत्र' की यही रही है सनातन रीत।।
डॉ. कवि कुमार निर्मल

15 अक्टूबर 2021 विजयदशमी के पावन अवसर पर विशेष

15 अक्टूबर 2021
विषय विजयदशमी
सत्य और असत्य का।
धर्म और अधर्म का।।

न्याय और अन्याय का।
हिंसा और अहिंसा का।।

रात और दिन का।
मधुर और तिक्त का।।

उपर्युक्त पक्षों को बता रहा है।
हमें यह जता रहा है।।

यह पर्व युगो युगो से।
चलता आ रहा है।।

हमारी संस्कृति हमारी सोच को।
सही दिशा की ओर बढ़ाता जा रहा है।।

राम और दशानन का युद्ध।
अभी चल रहा है।।

कहीं घर तो कहीं समाज में।
हमारे आस-पास चल रहा है।।

राम शरण सेठ
छटहाॅं मिर्जापुर उत्तर प्रदेश
स्वरचित मौलिक
अप्रकाशित सर्वाधिकार सुरक्षित

विजयादशमी पर विशेष ग़ज़ल शायरी

ग़ज़ल
रोज बलत्कार अपहरण किये जाते है।।
यह रावन के भेस में नहीं आते है।।

करोंडें के देश में एक राम नहीं क्या।
कई सिताओं की इज्जत जो बचाते है।।

बनने वाले खुद को महान बनाते है।
लेकिन किसी रोतो को कहाँ हंसाते है।।

सच्चाई भलाई ईमानदारी का खून।
कौन किसकी राह से काटे हटाते है।।

रावन से भयानक रावन देखें हमनें।
फिर भी हर दशहरे में रावन जलाते है।।

उस जमाने में सभी काम से थे अपने।
कितने बेकार शर्म आती बताते है।।

थोडा भी राम का अंश काम में लायेंगे।
अपने देश को तबाही से बचाते है।।

"शहज़ाद" रावन पर तरस हर साल जलाते है।
रावनों का क्या जो लड़कियाँ जलाते है।।
मजीदबेग मुगल "शहज़ाद"
हिगनघाट, जि,वर्धा,महाराष्ट्र
8339309229
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