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मां कात्यायनी की आरती Maa Katyayani Ki Aarti कात्यायनी माता के भजन Katyayani Mata Ke Bhajan

कात्यायनी माता आराधना | कात्यायनी माता की आरती

पंक्तियां
“नवरात्रि की शुभ वेला, लगा है माता का दरबार,
कात्यायनी माता रानी की, चमक रही तलवार।
मां की कृपा करती, भक्ति में शक्ति का संचार,
देखकर महिषासुर का वध, झुका चरणों में संसार।
राक्षसों को मां ने, दैवी शक्ति का संदेश दिया था,
सदा के लिए जग से, अंत कर दिया था अहंकार।
भवानी के इस रूप को, त्रिलोक भी करते नमस्कार,
बनाए रखना हम सेवकों पर मां, अपना सारा प्यार।“

भक्ति गीत
कात्यायनी मां, शरणागत को चरणों में ले लो,
माता रानी दुनिया में, तेरी कृपा बड़ी महान् है।
आदिशक्ति का छठा रूप हो तुम, शक्ति स्वरूपा,
महिषासुर मर्दनी रूप में, जग में तेरी बड़ी पहचान है।

कात्यायनी मां...
ब्रह्मा, विष्णु, महेश के आग्रह पर हे देवी महारानी,
आदिशक्ति दुर्गा भवानी का दिया, रूप यह वरदान है।
कात्यायन ऋषी आश्रम गई थी, आप बेटी बनकर,
धर्म ग्रंथों में हे मां, ऐसा ही तेरा अमर निशान है।

कात्यायनी माँ...
पीताम्बर परिधान तुमको, बहुत भाता है देवी माता,
पंचमेवा तेरे भोग का भवानी, मन पसंद सामान है।
द्वापर में ब्रजमंडल की, अधिष्ठात्री देवी रही थी मां,
त्रेता युग में रामावतार में, श्रीहरि की रही शान है।

कात्यायनी माँ...
मैया, महिषासुर वध करके, दिया तुमने सुंदर उपहार,
तीनों लोक में बजा डंका, आज भी वही सम्मान है।
चार भुजाओं वाली देवी, तुम सारे जग की जननी हो,
अस्ताचल की शोभा मैया, तू सबके मन का अरमान है।

कात्यायनी माँ...
“या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो
नमः।"
सूबेदार कृष्णदेव प्रसाद सिंह,
जयनगर (मधुबनी) बिहार

माॅं कात्यायनी

नमन नमन माॅं कात्यायनी,
नमन तुम्हें सदा‌ हस्तजोड़।
कृपा मुझ पर माॅं बरसाओ,
हृदय जुड़ावहु मातु मोर।।
महर्षि कात्यायन की सुता,
वरदान स्वरूप तुम आई हो।
वर्षों तप किए कात्यायन,
कात्यायन सुता कहलाई हो।।
तू माते कहलाती दयामयी,
मेरा भी माते बेड़ा पार करो।
मैं भी सबसे हिलमिल जाऊॅं,
मन मेरा मिलनसार करो।।
तू कहलाती है सिंहवाहिनी,
तुम विराजीं भुजा चत्वारी।
प्रथम हस्त से अभय प्रदान,
द्वितीय हस्त आशीष भारी।।
तृतीय हस्त सुमन विराजे,
चतुर्थ हस्त में खड्गधारी।
संशय संकट दूर करें माते,
चाहे संकट ये जितना भारी।।
रोग क्लेश द्वेष दुःख दरिद्रता,
दूर कर करो अभय प्रदान।
धन धान्य भी परिपूर्ण करो,
अज्ञानता मिटा भरो माॅं ज्ञान।।
लोभ क्रोध ईर्ष्या ये दूर करो,
बना दे जन जन को दयावान।
कोई किसी को कभी न सतावे,
विश्व बना दे ऐसा आलीशान।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )
बिहार।

कात्यायनी माता की आरती छठा रूप है माँ का आज

रोज रविवार तिथि षष्ठी,
छठा रूप है माँ का आज।

महिषासुर का आतंक बढ़ा,
देवों का था देवी पर नाज।

महर्षि कत के पुत्र कात्य ने,
भगवती पराम्बा की की उपासना।

छठे रूप पुत्री के रूप में,
कात्यायनी आईं सुन आराधना।।

कात्य गोत्र के महर्षि कात्यायन,
महिषासुर से जब हुए परेशान।

त्रिदेव ने निज तेज के अंश से,
एक देवी की किए थे निर्माण ।।

माँ कात्यायनी पड़ा नाम जिनका,
महर्षि कात्यायन की पूजा कारण।

कन्याओं को सुंदर घर वर देतीं,
भक्तों के कष्ट करतीं निवारण।

देवी के छठे इस रूप को।
बारम्बार हम करें प्रणाम।

रत होकर निज साहित्य में,
दें साहित्य को उच्च आयाम।।

9504503560 अरुण दिवांशु

आज नवरात्रि के षष्ठ दिवस माँ कात्यायनी को सादर सहृदय नमन करते हुए आप समस्त माताओं, बहनों, बंधुओं बृद्धजनों एवं बच्चों को नवरात्रि की षष्ठम् दिवस की हार्दिक बधाई एवं हार्दिक शुभकामनाएँ। माँ कात्यायनी की कृपा सदा हम आप सब पर अनवरत बरसती रहे। माँ हम सबको हर प्रकार की खुशियाँ, स्वास्थ्य, सुख और दीर्घ आयु उत्तम प्रदान करें।

महर्षि कत पुत्र ऋषि कात्य ने,
माता पराम्बा की लगाया ध्यान।

सुन कात्य की अंतरात्म प्रार्थना,
कात्य पुत्री रूप तब कीं पयान।।

जय जय हे कात्यायनी माता।
नित्य भजूँ मैं तुम्हें होते प्राता।।

तू ही कात्यायनी तू ही पराम्बा।
तुम्हीं माते दुर्गे भवानी अम्बा।।

महर्षि कात्य ने कृपा तेरी पाई।
कात्यपुत्री तब तुम कहलाई।।

महिषासुर का बढ़ा अत्याचार।
ब्रह्मा विष्णु शिव कृपा अपार।।

त्रिदेव ने स्वतेज अंश बरसायी।
तब तुम देवी उत्पन्न हो पायी।।

कात्य गोत्र उत्पन्न थे कात्यायन।
हुए महर्षि तब थे धर्मपरायण।।

कात्यायन किए तेरी प्रथम पूजा।
तुम सम माँ कोई देवी न दूजा।।

एक माँ देवी रूप तेरे हैं अनेक।
भक्त रक्षा हेतु तू ही होती टेक।।

तबसे तुम कात्यायनी कहलायी।
महिषासुर मार धर्म को बचायी।।

दुष्टों हेतु लेतीं खड्ग एक हस्ता।
देखते अरि धैर्य हो जाता पस्ता।।

दो हाथ सदा उठा रहे आशीष।
चौथा जलज देने को बख्शीश।।

जय जय माते भगवती पराम्बा।
जय जय माँ दुर्गे भवानी अम्बा।।

जय जय माँ कात्यपुत्री तुम्हारी।
रक्षा करो माँ सदा तुम हमारी।।

कात्यायनी माता भी ये तुम्हीं हो।
भक्त रक्षक कल्याणी तुम्ही हो।।

सहृदय नमन तुम्हें कात्य पुत्री,
सहृदय नमन तुम्हेँ माँ पराम्बा।

सहृदय नमन आदिशक्ति भवानी,
सहृदय नमन तुम्हें माँ जगदम्बा।।

पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना 
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )
बिहार।

कात्यायनी माता आराधना | कात्यायनी माता की आरती

माँ कात्यायनी
आस्था का षष्टम पुष्प
माँ के चरणों में अर्पित

मातारानी की भक्ति में
कर पूरा जीवन समर्पित

ऋषि कात्यायन के घर
माता का हुआ अवतरण

सफल हुई उनकी तपस्या
घर में देवी के पड़े चरण

माता की सूंदर पायल से
छम छम सा संगीत बजे

ह्रदय में बस गयी हैं माता
ममतामयी मधुर गीत बजे

मोहन को पाने की इच्छा
मन गोपियों के जब आई

किया कठोर तप माता का
प्रभु के मन में प्रीत जगाई

रोग शोक संताप भय से
माता ही करती सदा मुक्त

स्वर्ण ओज की आभा से
मनमोहक मूरत रहे युक्त

चार भुजा धारी हैं माता
लिए शस्त्र और कमल

अर्थ धर्म काम मोक्ष का
भक्तों को मिलता फल

डॉ अनिल कुमार बाजपेयी
जबलपुर

माँ कात्यायनी आरती | देवी दुर्गा स्तुति Katyani Mata Aarti Devi Durga Stuti

जय माँ कात्यायनी
चौपाई
ऋषि कात्य की कठोर तपस्या
सुर देवों की दूर समस्या
अवतरित कात्यायनी माता
छठवें स्वरूप से सुख छाता
शेर सवारी वाली माता
कृपा करो देव अधिष्ठाता
महिषासुरमर्दिनि भवानी
करूं नमन मांँ जग कल्याणी
आज्ञा चक्र साधना करते
साधक अपनी झोली भरते
हिंसकरूपा माँ करुणामयी
मीनू चरण शरण हे दयामयी
मीनू मीनल

माँ कात्यायनी एवम् शिवभक्तों को समर्पित

आश्वनी माह, शुक्ल पक्ष का ज्येठा नक्षत्र आज है शुभ दिन सोमवार।
दुर्गासप्तशती शिवपुराण पाठ व रुद्राभिषेक करअन्न है उत्तम उपहार।

अभिजीत मुहर्त शुभ फलाफलकारी भक्तगण स्तुती करें आज।
विजय व गोधुली बेला में पूर्ण हो जाते समस्त विलम्बित काज।

राहुकाल में घर में रह ध्यान सतसंगादि में समय बितायें।
व्रती कात्यायन ऋषि कन्या कात्यायनी को आज ध्यायें।

महिषिसुर शुंभ निशुंभ आततायी दानव माँ के हाथों मोक्ष पाये।
देवी का पूजन वंदन से शत्रु संहार की अदम्य शक्ति आज पायें।

पूजन से वीर्यवर्धन, डिण्ब उत्सर्जन का सुयोग दंपत्ति पायें।
संतान प्राप्ति हो, आरती कर शहद का भोग अवश्य लगाएं।

कात्यायनी शुंंभदद्या देवी दानव घातिनी का आशिर्वचन आज पायें।
लाल चंदन लेप, रुद्राक्ष माला धारण कर बँधू मनोवांछित फल पायें।

प्रातः पञ्चाङ्ग दर्शन,गंगाजल आचमन; गो सेवा कर अनन्त पुण्य पावें।
रोली, अक्षत अर्पण, धूप, दीप दिखा गुड़हल लाल रंग का फूल चढ़ावें।

दुर्गा चालीसा (कात्यायनी मंत्र)

ॐ कात्यायिनी देव्ये नमः
या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

कात्यायनी महामाये, महायोगिन्यधीश्वरी।

जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी... कात्यायनी माँ की आरती

जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी...
नन्दगोपसुतं देवी, पति मे कुरु ते नमः।।

चंद्र हासोज्ज वलकरा शार्दूलवर वाहना।
कात्यायनी शुभंदद्या देवी दानव घातिनि।।
डॉ. कवि कुमार निर्मल
DrKavi Kumar Nirmal
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