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विश्व गौरैया दिवस के उपलक्ष्य पर गौरैये का निवेदन : डॉ.आलोक प्रेमी

विश्व गौरैया दिवस के उपलक्ष्य पर गौरैये का निवेदन : डॉ.आलोक प्रेमी

गौरैये का ननिवेदन


डॉ.आलोक प्रेमी
मैं गौरैया विश्व गौरैया दिवस के उपलक्ष्य पर आप मानव जाति से एक निवेदन करती हूँ। आपके पूर्वजों ने जिस तरह का प्यार दिया, वही प्यार आप हमारे वर्तमान पीढ़ी को भी दीजिए ना ?

मेरी माँ, दादी, नानी, कहा करती थी कि हमलोगों को मानव का बहुत प्यार मिला, उनके प्यार के कारण ही आज हम इस सृष्टि में हैं। मानव हमारे लिए दाना-पानी और रहने की व्यवस्था तक कर दिया करते थे। वे अपनी जरूरत के साथ हमारी सारी जरूरतों का पूरा ख्याल रखते थे। जब धान का फसल तैयार हो जाया करता था, तो धान की बालियों को वे सबसे पहले हमारे लिए छप्पर के सहारे बान्ध कर झूला देते थे, साथ ही इतना भी ध्यान रखते थे कि हम झूल रहे धान की बालियों तक सरल तरीके से पहुॅंच सकें और उसके दानों को चुंग सके। वे बालियाँ इतनी होती थी कि हम गौरैयों के लिए साल भर का भोजन हुआ करता था। पर अब तो आप लोग मेरे घर को ही उजाड़ देते हैं। आप अपने विकास के लिए जो बहुत सारे यंत्र-तंत्र-उपकरण लगा रहे हैं, उससे हमारे जीवन को खतरा होते जा रहा है। इन्हीं सब कारणों के वजह से हमारे पूर्वजों को शहर से भागना पड़ा था। अब उन्हीं यंत्र तंत्र, व उपकरणों के गाँव में हो रहे विस्तार के कारण ही हमें गांव से भागने के लिए विवश होना पड़ रहा है। अब मुझे आपके यहाँ से दाना-पानी कुछ भी तो नहीं मिलता है। 
देखिए ना, अभी गर्मी का मौसम आ रहा है। हम पक्षी पानी के लिए तड़प-तड़प कर मरेंगे, आप मानव को जरा भी नहीं लगेगा कि हमें भी प्यास लगती होगी। यूँ तो आप व्यर्थ का पानी बर्बाद करेंगे पर हमारे लिए अपने छत पर, बाग-बगीचे, पेड़ के नीचे थोड़ा पानी नहीं रखेंगें। आपको पता है इस थोड़े पानी से ही मेरी प्यास बुझ जाएगी और मेरे कई साथियों का जान भी बच जाएगा, फिर भी आप ऐसा नहीं करेंगे। हमारे पूर्वजों को इसकी जरूरत ही नहीं होती थी, क्योंकि आपके और मेरे इर्द-गिर्द बहुत सारे जल स्रोत पोखर, नदी, नाली, नहर आदि हुआ करता था। उन जल स्रोतों से हम अपनी जल आपूर्ति कर लिया करते थे। पर अब आप लोगों ने अपनी सुविधा के लिए इन जल स्रोतों का दोहन कर दिया, जिस कारण हम पक्षियों को आपसे इस तरह का अनुरोध करने के लिए विवश होना पड़ रहा है।


आपके आधुनिक बहुमंजिली इमारतें या पक्के मकान मुझे बिल्कुल भी पसंद नहीं है। आपके पूर्वज जो फूस के बने छप्पर में रहते थे, वह हमारे लिए बहुत अनुकूल हुआ करता था। मेरे कम हो रहे संख्या में एक फूस के बने छप्पर का नहीं होना भी है।

फूस का छप्पर मेरे लिए सुरक्षित आशियाना हुआ करता था। इसके अलावे आपके इर्द-गिर्द भी रहने का मौका मिलता था। आपके इर्द-गिर्द रहने से मुझे बहुत फायदा होता था। हमारे घोंसले में पड़े अंडे पर कौवे एवं अन्य मांसाहारी पक्षियों की बुरी नजर रहती है। आपके बीच रहने से उसकी रक्षा अपने आप हो जाया करता था। मेरे घट रहे संख्या में एक कारण यह भी है।

आपके घरों में रहने के कारण आप लोगों ने मुझे देवी लक्ष्मी की संज्ञा से सुशोभित कर दिया। इसका भी एक कारण है। आपके खेतों के फसलों में लग रहे कीड़े को अपना भोजन बनाकर फसल की रक्षा करती थी, उन फसलों को बेचकर आपके पास पैसे आते थे। आपको लगता था, यह पैसा मेरे माध्यम से ही आया है, इसलिए मैं आपके लिए लक्ष्मी हो गई। मुझे अब तो आपके घर की लक्ष्मी भी सुरक्षित नजर नहीं आती है। मैं अक्सर देखती हूँ कि कभी किसी लड़की को दहेज के लिए मार दिया जाता है, तो कभी जन्म लेते ही। और कभी-कभी तो लड़कियों को जन्म ही नहीं लेने दिया जाता है। इसके बाद भी लड़कियों को लड़के की तरह स्वतंत्र नहीं रहने दिया जाता है। मैं छोटी-सी चिड़िया आप समझदार मानव को कितनी बात समझाऊॅं। जहाँ मेरे से ज्यादा सबल लड़कियाँ सुरक्षित नहीं हैं, वहाँ मैं अपने आप को कैसे सुरक्षित मानूँ।


आप अपनी सुविधा के लिए बड़े-बड़े मोबाइल टावर लगा रहे हैं। ताकि अपने स्वजन परिजन से बात कर सकें। पर उससे जो तरंगे निकलती हैं, वह हमारे लिए बहुत हानिकारक है। उसके तरंगों से मैं अपनी दिशा भटक जाती हूँ और मैं उस स्थान तक भी नहीं पहुॅंच पाती हूँ, जहाँ मेरी माँ, बच्चे व घोंसला हुआ करता है। इससे मेरे प्रजनन पर भी असर होने लगा है। मेरे लगातार घट रही संख्या में यह भी एक बहुत बड़ा योगदान रखता है। मोबाइल तरंगों ने तो मेरे अन्य साथियों को आप मानव से दूर हो गए, पता नहीं अभी भी आपका ध्यान उधर गया है या नहीं।

आज मैं विश्व में सबसे अधिक पाए जाने वाले पक्षियों में से हूँ। भारत के अलावा कई देशों में पाई जाती हूँ। 16 सेंटीमीटर ऊंची और 25 से 40 ग्राम की होती हूँ। मैं हल्के भूरे रंग या फिर सफेद रंग की होती हूँ। मेरे छोटे- छोटे पंख मुझे लंबा सफर करने की इजाजत नहीं देता है। अगर मेरे गले के पास काले धब्बे दिखे तो समझ ले 'नर' हूँ, यह धब्बा नहीं दिखे तो मैं मादा हूँ। मेरे छोटे से चोंच और छोटे पैर आप मानवों को बहुत आकर्षित करता है।

शहर की तुलना में मुझे गांव में रहना ज्यादा पसंद है। जिसका कारण भी आप मानव ही है, शहरों को आप लोगों ने बहुत ज्यादा प्रदूषित कर दिया है। मुझे प्रदूषित जगह रहना बिल्कुल भी पसंद नहीं है। वैसे अब आपने शहरों की भांति गांवों को भी प्रदूषित करने लगे हैं। इसलिए तो मैं अब गांव में भी कम नजर आने लगी हूँ।


मैंने ऐसा कभी नहीं कहा मानवों ने मेरा ख्याल नहीं रखा। कुछ लोग आज भी मेरा ख्याल रखते हैं, लेकिन वे चन्द लोग ही हैं। नासिक के प्रसिद्ध पर्यावरणविद मोहम्मद ई . दिलावर को हम गौरैया कैसे भूल सकते हैं ? उनके प्रयासों का ही परिणाम है कि प्रत्येक वर्ष 20 मार्च को 2010 से विश्व गौरैया दिवस मनाया जाने लगा है। अब तो गौरैया संरक्षित करने वालों को गौरैया पुरस्कार से सम्मानित भी किया जाने लगा है। इन सबके बाद भी पिछले कुछ वर्षों से मैं अपने ऊपर अस्तित्व संकट के बादल को मंडराते हुए देख रहीं हूँ।

इतने परेशानियों के बाद भी, मुझे इंसानों और अपने साथियों के साथ झुंड में रहना बहुत पसंद है। मैं औसतन मात्र दो साल ही जीवित रहती हूँ। आपके बीचों-बीच रहकर इन दो सालों में जिंदगी का भरपूर आनंद लेती हूँ। एक तरफ मैं एक बार में पाॅंच से छ: अंडे देती हूँ तो दूसरी तरफ पिछले कुछ दिनों से मेरी आबादी में 60-80 फीसदी से अधिक की कमी आयी है। मेरी घटती संख्या के पीछे मानवों का विकास सबसे अधिक जिम्मेदार है। अफसोस आपने अपना तो विकास कर लिया पर मेरे बारे में नहीं सोचा। आप मानव से अभी भी निवेदन है, मुझे संरक्षण करने का प्रयास करें। नहीं तो मैं भी अन्य विलुप्त हुए पक्षियों की तरह गुगल और तस्वीरों में ही दिखाई दूंँगी।
संपर्क-
9504523693
ग्राम+पो.- भदरिया थाना- अमरपुर बाॅका
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