सुकूने क़ल्ब ज़माने के वास्ते तुम हो- मनकबत Mankabat Imam Husain
इमाम हुसैन की शहादत मुहर्रम पर शायरी | मुहर्रम दुःख भरी शायरी हुसैनी शायरी
मनक़बतसीने में जिनके बस गई उल्फ़त ह़ुसैन की।
उनकी ज़ुबाँ पे रहती है मिदह़त ह़ुसैन की।
देखी है करबला ने शुजाअ़त ह़ुसैन की।
यूँ उससे जा के पूछिए अ़ज़मत ह़ुसैन की।
बन कर यज़ीद रह गया पैकर बुराई का।
ज़िन्दा है अब भी देखो सदाक़त ह़ुसैन की।
सजदे में सर झुका के उठाया न आपने।
कितनी है बेमिसाल इ़बादत ह़ुसैन की।
नोक ए सिनाँ पे सिर था ज़ुबाँ पर कलामे ह़क़।
मशहूर है यूँ जग में तिलावत ह़ुसैन की।
नरग़े से बातिलों के रवा राह की तरफ़।
ह़ुर को भी खींच लाई मुह़ब्बत ह़ुसैन की।
ह़ैदर का वो क़रार हैं ज़हरा का चैन भी।
हर दिल में इस लिए है मरव्वत ह़ुसैन की।
बातिल का नाम मिटना था आख़िर वो मिट गया।
इस्लाम की बक़ा है शहादत ह़ुसैन की।
क़ल्ब ओ जिगर की मेरे यह आवाज़ है फ़राज़।
जन्नत में ले के जाएगी चाहत ह़ुसैन की।
सरफ़राज़ हुसैन फ़राज़
शहादत इमाम हुसैन मुहर्रम शायरी Moharram Shayari
मनक़बत
गुलज़ारे मुस्तुफ़ा के गुल ए तर ह़ुसैन हैं।जन्नत की ख़ुश्बुओं से मुअ़त्तर ह़ुसैन हैं।
नायाब है जो सबसे वो गौहर ह़ुसैन हैं।
इस्लाम जिनसे चमका वो ख़ावर ह़ुसैन हैं।
ज़हरा के चैन दीन के सरवर ह़ुसैन हैं।
इब्न ए अ़ली हैं सिब्ते पयम्मबर ह़ुसैन हैं।
सब्र ओ रज़ा का सारे ज़माने में मोमिनो।
जिनका नहीं है कोई भी हमसर ह़ुसैन हैं।
कोई भी नाम लेवा नहीं है यज़ीद का।
है ज़िक्र जिनका आज भी घर घर ह़ुसैन हैं।
बातिल के सब चराग़ ख़ुदा ने बुझा दिए।
चर्ख़ ए बरीं पे अब भी मुनव्वर ह़ुसैन हैं।
चलता रहेगा राहे सदाक़त पे वो सदा।
जिस शख़्स के भी सीने के अन्दर ह़ुसैन हैं।
शिमर ए लय़ीं का नाम ही दुनिया से मिट गया।
सुर्ख़ी में अब भी रू ए ज़मीं पर ह़ुसैन हैं।
वो तिश्ना लब ही लड़ते रहे तीन रोज़ तक।
मौला अ़ली के ऐसे क़लन्दर ह़ुसैन हैं।
इमलाक जीत लेना बड़ी बात ही नहीं।
जीते हैं जिसने दिल वो सिकन्दर ह़ुसैन हैं।
आँसू लहू के रोए न क्योंकर यह करबला।
बाज़ू में थामे लाशा ए असग़र ह़ुसैन हैं।
अहल ए ख़िरद समझते हैं दीवानगी मिरी।
दिल में मिरे ह़ुसैन हैं लब पर ह़ुसैन हैं।
हम तो फ़राज़ यह ही समझते हैं देखिए।
ताबिश क़मर सी जिनकी वो अख़्तर ह़ुसैन हैं।
सरफ़राज़ हुसैन फ़राज़
कर्बला की शायरी मोहर्रम का मरसिया शहादत इमाम हुसैन मुहर्रम शायरी हिंदी
मनक़बतदुनिया में ऐसा कोई भी तबक़ा नहीं मिला।
जिसका ग़मे ह़ुसैन से रिश्ता नहीं मिला।
दिल से ग़मे ह़ुसैन मिटा दे जो दोस्तो।
ऐसा जहाँ में कोई भी नुस्ख़ा नहीं मिला।
नज़रों के सामने ही लुटा घर का घर तमाम।
फिर भी ज़ुबाँ पे आपकी शिकवा नहीं मिला।
अ़र्ज़ ए तमन्ना रब से तमाम अम्बिया ने की।
फिर भी उन्हें ह़ुसैन का सजदा नहीं मिला।
वादा वफ़ा करे जो तुम्हारी तरह ह़ुसैन।
रू ए ज़मीं पे ऐसा नवासा नहीं मिला।
यूँ तो शहीद लाखों करोड़ो हुए मगर।
मेरे ह़ुसैन सा उन्हें रुत्बा नहीं मिला।
कूफ़े कि सिम्त तुमने बढ़ाया न करवाँ।
मुस्लिम का जब तलक तुम्हें रुक़आ़ नहीं मिला।
ख़ुश है बहा के ख़ून तू आले रसूल का।
तुझसा यज़ीद कोई भी पगला नहीं मिला।
बावस्ता जो ह़ुसैन के ग़म से नहीं फ़राज़।
उनको ख़ुशी का कोई भी मुज़दा नहीं मिला।
सरफ़राज़ हुसैन फ़राज़
मनकबत हिंदी में लिखी हुई | Mankabat Imam Husain Shahidi Kalam
मनक़बत
मिरे रसूल मुहम्मद मिरे इमाम अली।
बनाया आप को रब ने महे तमाम अली।
हूँ मैं भी आपका अदना सा इक ग़ुलाम अली।
इसी लिए तो मैं रहता हूँ शाद काम अली।
कभी जो मुश्किलें आतीं हैं राह में अपनी।
ज़बाँ पे आता है बस आपका ही नाम अली।
हुआ न होगा कोई आप सा ज़माने में।
बुलन्द रब ने किया आप का मुक़ाम अली।
रहा हमेशा शगुफ़ता ही आप का लहजा।
किसी से आप हुए जब भी हमकलाम अली।
ज़बाँ पे आपके दीवानों के क़यामत तक।
रहेगा आपका ही नाम बस मुदाम अली।
यही तमन्ना है अब तो फ़राज़ के दिल की।
क़ुबूल कीजिए मेरा भी अब सलाम अली।
सरफ़राज़ हुसैन 'फ़राज़' पीपलसाना मुरादाबाद
मनकबत इमाम हुसैन फोटो | Mankabat Imam Husain Shahidi Kalam Photo Hd
सभी के सीनों में शब्बीर यूँ बसे तुम हो मनकबत हिंदी में | Imam Hussain Manqabat Lyrics
मनक़बत
सभी के सीनों में शब्बीर यूँ बसे तुम हो।
हमेशा राहे सदाक़त पे जो चले तुम हो।
किसी लई़न के डर से कहाँ रुके तुम हो।
के जबभी दीन का लेकर अ़लम बढ़े तुम हो।
शजर ये सूखता इस्लाम का भला कैसे।
कि जिसके वास्ते आख़िर यहाँ मिटे तुम हो।
रखा हमेशा शग़ुफ्ता ही तुमने लहजा बस।
हुजू़र जब भी किसी से कभी मिले तुम हो।
कटा के राहे सदाक़त में तुम गला अपना।
जहाँ के सामने यूँ सुर्ख़रू हुए तुम हो।
तुम्हारी शान की कोई मिसाल क्या होगी।
नबी का चैन हो ज़हरा के लाडले तुम हो।
बुलन्द कितना तुम्हारा है मर्तबा हज़रत।
कि पुश्ते अहमदे मुख़्तार पर चढ़े तुम हो।
हरेक बात तुम्हारी है अफ़्ज़ल ओ आ़ला।
मुनाफ़िकों को यहाँ इसलिए खले तुम हो।
नमाज़े इश्क़ अदा की है तुमने मक़तल में।
ज़माने भर के शहीदों में यूँ भले तुम हो।
गवाही क्यों न दे तारीख़ यह शुजाअ़त की।
अकेले फ़ौजे सितमगर से जब लड़े तुम हो।
हुआ जो ह़क्मे ख़ुदा तो झुका दिया सर भी।
भला यज़ीद के लश्कर से कब डरे तुम हो।
फ़राज़" कैसे भुलायेगी करबला आख़िर।
जहाँ पे भूखे पियासे कभी लड़े तुम हो।
सरफ़राज़ हुसैन 'फ़राज़ पीपलसाना
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