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गौरैया पर कविता Poem On World Sparrow Day विश्व गौरैया दिवस पर कविता

गोरैया बचाव पर कविता | गोरैया दिवस पर कविता | कहाँ गई गोरैया

कहाँ गई गोरैया पर कविता | घर में गौरैया का आना शुभ या अशुभ

गौरैया पर स्लोगन : विश्व गौरैया दिवस पर कविता

धीरे धीरे मिटते गए गौरैया के निशान
दुनिया से धीरे धीरे, मिटते गए गौरैया के निशान,
काठ बांस के घर नहीं रहे, आ गए पक्के मकान।
कहां रहती गौरैया खुद, कहां रखती अंडे व बच्चों को?
घोंसला बनाने के लिए, थोड़ा भी बचा नहीं स्थान।
दुनिया से धीरे धीरे…
अब तो इतिहास में जाने के कगार पर है गौरैया,
समय रहते मानव ने इस पर, दिया नहीं ध्यान।
गरीब गौरैया दिनों दिन, कम होती चली गई है,
घर के आसपास पेड़ कट गए, बना नहीं मचान।
दुनिया से धीरे धीरे…
आने वाली पीढ़ियां हमारी, पुस्तकों में पढ़ पाएंगी,
कभी होती थी अपने घरों में जान, गौरैया समान।
थोड़े दाने खाती थी, और बहुत दुआ देती थी वह,
उसके सामने काल के गाल में, समा गया खानदान।
दुनिया से धीरे धीरे…
सूबेदार कृष्णदेव प्रसाद सिंह,
नासिक (महाराष्ट्र) जयनगर (मधुबनी) बिहार


अंतरराष्ट्रीय गौरैया दिवस 20 मार्च पर विशेष कविता

मैं गौरैया बोल रही हूँ
अंतरराष्ट्रीय गौरैया दिवस 20 मार्च
मैं गौरैया बोल रही हूँ, पोल खोल रही हूँ,
सुनो दुनियावालों, मेरी दर्द भरी कहानी!
मैं मरती रही, मिटती रही, चीखती रही,
किसी ने नहीं की, थोड़ी भी मेहरबानी।
मैं गौरैया बोल रही हूँ…
किसी ने घर से, घोंसला उजाड़ दिया था,
किसी ने बंद कर दिया मेरा दाना पानी।
बहुत गिरगिराई थी और रोई थी मैं तब,
जब लोग ले रहे थे, मेरे कल की कुर्बानी।
मैं गौरैया बोल रही हूँ…
मेरे घाव बहुत गहरे हैं, और भरे नहीं है,
इंसान के लिए बात हो सकती है पुरानी।
अब मैं सिमट गई हूँ, विलुप्त हो रही हूँ,
पता नहीं दुनिया क्यों हो रही है दीवानी?
मैं गौरैया बोल रही हूँ…
प्रकृति नाराज हुई तो, मेरी याद आई है,
मेरे साथ, हर प्राणी ने की थी बेईमानी।
मेरी जाति ने, पर्यावरण का साथ दिया,
कौन लौटाएगा मुझे, मेरी शाम सुहानी?
मैं गौरैया बोल रही हूँ…
सूबेदार कृष्णदेव प्रसाद सिंह,
नासिक (महाराष्ट्र) जयनगर (मधुबनी) बिहार


विश्व गौरैया दिवस पर कविता : फुदक फुदक फुदकती गौरैया
गौरैया

फुदक फुदक फुदकती गौरैया,
फुदक फुदक चुगती वह दाने।
कभी जाकर डाल पर बैठती,
कभी आती वह पानी में नहाने।।
फुदकते देख बच्चे भी फुदकते,
बच्चे देख वह उड़ भाग जाती।
भागकर जा बैठती है डाल पर,
शरारती स्वर में है गीत सुनाती।।
दुर्भाग्य है आज इस धरती पर,
दिखती नहीं आज यह गौरैया।
गौरैया बिन आज उदास पड़े हैं,
हमारे नन्हें मुन्ने बहन औ भैया।।
खटक रही है पक्षियों की कमी,
जो हमारी सुरक्षा के आधार थे।
देख सुरक्षित ये पक्षी भी सारे,
हमसे लेते बहुत ही वे प्यार थे।।
हुई है हमसे जो भी भूल चूक,
क्षमा करो पक्षीयों संग हे गौरैया।
मनहूस पड़ा यह मानव जीवन,
उदास पड़े नन्हे बहन और भैया।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना।
अरुण दिव्यांश 9504503560


गौरैया छत पर नजर नहीं आती : विश्व गौरैया दिवस पर कविता

गौरैया
कहां गए वो दिन
अब गौरैया छत पर नजर नहीं आती
अब मेरे आंगन में ची -ची सुनाई नहीं देती
कितना सुंदर था हमारा बचपन
जुड़ा पूरा परिवार
दादा -दादी के साथ मस्ती
दादा के साथ मिल कर गौरैया को पकड़ना के तरीके सीखना
सफ़ेद धागा एक छड़ी में बांध कर
उस पर बड़ी टोकरी रखना फिर नीचे गेहूं के दाने डालना
पूरा दिन गौरैया का इंतजार करना जैसे ही गौरैया दाने खाने आए छड़ी को खीच लेना फिर
दादी के साथ मिल कर गौरैया को लाल, हरे,नीली रंग में रंगना और उड़ा देना
सुबह सुबह मम्मी का उठाना
देख तेरी गौरैया छत पर आ गई
अब देखने को नहीं मिलती
हमारे शहर में अब गौरैया नहीं मिलती
बचपन की यादें पन्नों पर लिखी मिलती
नई यादें लिखने को नहीं मिलती
अब घर में दादा -दादी के साथ रहने को नहीं मिलता
प्रतिभा जैन
टीकमगढ़ मध्य प्रदेश


विश्व गौरैया दिवस पर कविता Vishva Gauraiya Divas Kavita

आती गोरैया
फुदक फुदक आती गोरैया,
मीठी गीत सुनाती गोरैया।
सबकी बन जाती प्यारा मित्र,
फैला पंख बनाती मनोहारी चित्र।
खिलखिल हंसता आंगन मेरा,
निशां मिटाती भाव मेरा-तेरा।
हरती गम की काली छाया,
देती खुशियां बिन लोभ माया।
देख इसे सबका मन होता प्रफुल्लित,
निराले खेल से करती रहती आकर्षित
फुदक-फुदक आती गोरैया,
मीठी गीत सुनाती गोरैया।
रीतु प्रज्ञा
दरभंगा, बिहार


गौरैया पर कविता Poem On World Sparrow Day

"प्यारी सी गौरैया"
चीं चीं करती आई गौरैया,
बच्चों के मन भाई गौरैय्या। 
बच्चे बोले मम्मा -मम्मा ओ मम्मा
पहले तो बहुत दिखती थी,
अब कभी कभार ही दिखती है। 
पहले बहुत पेड़ हुआ करते थे,
चिडिय़ा दिन भर इस पेड़ से उस,
,फुदकती रहती थी अब कई,
स्वार्थी लोग पेड काट छीन रहे,
आशियाना नाजुक प्यारी गौरैया का। 
 मम्मा अब अपना बाग है न ये,
इसमे किनारों पर बडे पेड़ लगाये है पापा ने। 
इसमें व़ो देखो इक घोंसला किसी गौरैया का। 
अब यज देख और चिडिय़ा भी आयेंगीं,
सुबह सबेरे चीं चीं की मीठी तान। 
व चहकना कानों मे रह खोलेगी,
चलो मम्मा पानी व दाना रख आयें। 
प्यासी न उड़ जाये गौरैया,
सभी छत पर दाना पानी 
छोटे बड़े पेड़ लगायें। 
ताकि गौरैया आये।
कविता मोटवानी


आज विश्व गोरैया दिवस पर मेरी कुंडलियाँ

कुंडलियाँ(गोरैया)
गोरैया क्यों चहकना,छोड़ दिया है यार।
बदला कैसे देखिए, मानव का व्यवहार।।
मानव का व्यवहार,आहत पर्यावरण है।
केवल लेना लाभ,मनुष्य का आचरण है।।
कह बिनोद कविराय,तरु भी लगाओ भैया।
स्वच्छ रहे परिवेश,तभी चहके गोरैया।।
बिनोद कुमार "हँसौड़ा" दरभंगा(बिहार)
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