विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस पर कविता | प्रकृति को बचाने पर कविता
(28 जुलाई)(गद्य काव्य)
पर्यावरण सजाने में , प्रकृति की हर चीज देती है योगदान,
इतना ज़रूर है, सब में जल, जमीन और जंगल हैं प्रधान।
पर्यावरण को ज्यादा खतरा, अन्य किसी प्राणी से नहीं है,
खतरे जो पैदा करते सदा, दुनिया कहती उनको इंसान।
पेड़ काटे, वन उजड़े, या वन्य जीवों की हत्या कोई करे,
न खुदा को कबूल है, न कभी स्वीकार करते हैं भगवान।
पर्यावरण सजाने में ……
हमें पर्यावरण के संरक्षण को, सुनिश्चित करना ही होगा अब,
अगर हम चाहते हैं कल, नल में जल और चेहरे पर मुस्कान।
प्रकृति के अनावश्यक दोहन से सृष्टि में संतुलन बिगड़ता है,
सुन्दर खुशगवार मौसम भी, नाराज होकर बन जाता बेईमान।
लालची इंसान अपने मित्र को, खुद ही अपना शत्रु बना लेता,
फिर भागा भागा फिरता है, जब सर्दी गर्मी करती उसको परेशान।
पर्यावरण सजाने में ……
विज्ञान में, पर्यावरण विज्ञान भी आता है, मेरे प्यारे साथियों,
आज कितने लोग हैं जग में, जो देते हैं कभी इस पर ध्यान?
बाढ़, तूफान, वज्रपात, भूचाल, महामारी, वृष्टि, सूखा क्या है?
क्या कारण हैं इनके पीछे, कभी तो कुछ सोचे इस पर इंसान!
जितना स्वस्थ और प्रसन्न रहेगी सुंदर प्रकृति रानी हमारी, उतने ही रहेंगे सपने इंसान के, खूबसूरत, हसीन और जवान।
पर्यावरण सजाने में……
प्रकृति और पर्यावरण दोनों, एक सिक्के के दो पहलू लगते हैं,
जीवन के लिए जहान में, प्रकृति ही होती है सबसे बड़ा वरदान।
इसी से हैं जीवन के तीन निशान, रोटी, कपड़ा और मकान,
इंसान कैसे खुश रह सकता, करके अपने ही दोस्त को कुर्बान?
विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस के, हैं यही विशेष पैग़ाम आज,
कभी प्रसन्न नहीं रह सकता, जो करता है प्रकृति का नुकसान।
पर्यावरण सजाने में……
प्रकृति के बारे में पवनसुत को है, त्रिलोक में सबसे ज्यादा ज्ञान,
इसलिए हर युग में अजर अमर हैं, रामदास बजरंगबली हनुमान।
प्रभु श्री राम और माता सीता के साथ वनवास के दौरान,
वन में रहते प्रकृति और पर्यावरण से हो गई अच्छी पहचान।
सावन माह है, उनको याद करना भी बड़ा स्वाभाविक लगता है,
दृष्टि में ना कोई हुआ है, और न होगा उनके जैसा बलवान।
सूबेदार कृष्णदेव प्रसाद सिंह,
नासिक (महाराष्ट्र)/
जयनगर (मधुबनी) बिहार
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