तीन तलाक पर शायरी तलाक पर कविता Poem On Triple Talaq | Divorce Shayari
तलाक़ एक दाग़
दुत्कारा कभी, कभी अधमरा कर छोड़ दिया,
सात जन्मों का वचन, ग़ुलामी से जोड़ दिया,
आवाज़ जो उठा ली, ख़िलाफ़ ज़ुल्म की,
तलाक़ का काग़ज़ थमा कर, रिश्ता तोड़ दिया।
Poem On Triple Talaq
डोली पे निकली, अर्थी पे ही जाना,
विदाई के समय, दुहाई देता है ज़माना,
तलाक़शुदा तो दोनों हैं, फिर ये कलंक,
क्यों उजाड़े सिर्फ़ मेरा आशियाना।
Divorce Shayari
हर सुबह मेरी, शाम की तरह ढलती,
माँ सीता की मूरत, अग्नि पथ पे चलती,
लोक-लाज, शर्म व हया के मापदंड से मापते,
दुनिया की तिरछी निगाह सिर्फ़ मुझपे पड़ती।
Talaq Shayari
औरत ही बदनामी पाती है,
क़सूरवार औरत ही कही जाती है।
ज़ुल्म की आग में जलती है,
एक दिन घुट-घुट कर मर जाती है।
तीन तलाक पर शायरी
तलाक़ अंजाम है बुराई का,
तलाक़ दाग़ नहीं जग हँसाई का,
एक हसीन सफ़र का आग़ाज़ है ये,
तलाक़ नाम है किसी की बेवफ़ाई का।
तलाक़ नाम है किसी की बेवफ़ाई का।
तलाक पर कविता
नीलोफ़र फ़ारूक़ी तौसीफ़
Nilofar Farooqui Tauseef
Fb, IG-writernilofar
हक़ के लिए आवाज़ उठाने वाली औरत के लिए..... शाबाश.... बहुत बहुत धन्यवाद! नीलोफ़र फ़ारूक़ी तौसीफ़
ज़िंदाबाद!
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