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आज़ाद नज़्म : बेवा ख़ातून, विधवा औरत Nazam : Bewa Khatoon Vidhava Aurat

आज़ाद नज़्म : बेवा ख़ातून, विधवा औरत Nazam : Bewa Khatoon Vidhava Aurat

आज़ाद नज़्म (बेवह ख़ातून) विधवा औरत
आज़ाद नज़्म:
(बेवह ख़ातून)
कभी मैं सोचता हूं यह
कि सारे क़ौम वालों की
ज़ेहानत खो गई है क्या..!!??
इन्हें बे फ़िक्र रहने की 
अ़लालत हो गई है क्या..!!??
ये अंधे हैं..??
या बहरे हैं..??
इन्हें कुछ क्यों नहीं दिखता..!!??
इन्हें ख़ामूश एक ग़ोग़ा
सुनाई क्यों नहीं देता..!!??
कई जाज़िब मोह़ल्लों के
कई गुमस़ुम मकानों में
कई गुमस़ुम मकानों के
अंधेरे सर्द कोनूं में
पड़ी हैं कितनी ही ख़ातून
रेदा-ए-बेवगी ओढ़े
लिए एक आह सीनों में
शब-ए-फ़र्दा के स़दमों में
तमन्ना की हथेली पे
क़ज़ा की मेहंदी रचवा कर
उठाए रखती हैं हर शब
दर-ए-रब्ब-ए-जहां में हाथ!
कि उनको मौत आ जाए
और उनको भी ले जाए
उन्हीं तुरबत कदों के पास
जहां पर उनके ख़ाविंद हैं
कि उनसे और तनहाई
नहीं कटती.......
नहीं कटती.......
कि उनकी रूह़ अब ख़्वाहिश की रुसवाई
नहीं सहती

कभी मैं सोचता हूं यह
और हर शख़्स़ भी सोचे
कि आख़िर उन ख़्वातीं की
भला इसमें ख़ता क्या है..!!??
ख़ुदा ही ने दिए थे शौ
उसी ने ले लिए वापस
तो क्या इसकी सज़ा यह है?
कि तन्हा छोड़ दें उनको?
नहीं यारां______
नहीं यारां______

चलो छोड़ो.....
मुझे एक बात बतलाओ
कि रब ने मर्द की ख़ात़िर
ज़नानी क्यों बनाई थी??
कि आख़िर मर्द ही से रब ने
औरत क्यों निकाली थी??
कि दोनों एक दूजे से
मिलें और हो सकें कामिल
और उलझन के सागर में
सुकूं का पा सकें साह़िल
तो अब यह बात बतलाओ
न समझूं मैं तो समझाओ
कि ये बेवह ख़्वातीं फिर
बियाही क्यों नहीं जातीं??
इन्हें खोई हुई खुशियां
लौटाई क्यों नहीं जातीं??
तुम्हें "ह़फ़्स़ा" नहीं म़ालूम??
"ख़दीजा" भूल बैठे हो??
अरे तुम अपने क़दमों के तले देखो
तो पाओगे
कि कदमों से कुचल कर तुम
ख़ुशी के फूल बैठे हो

ऐ सारे क़ौम के लोगो..!!
मेरी मानो...
कभी उन बेवह आंखों को
पढ़ो, फिर ख़ुद ही समझोगे
कि उनके पास गर कुछ है
तो बस लहजे में मातम है
और होटूं पे शिकवा है
अदाओं में तशक्कुर है
छुपे राज़ूं का सागर है
और वह अपने जीवन भर
यही एक गीत कहती हैं
कि उनको दूसरी शादी
की ह़ाजत है मगर लेकिन
ह़या की क़ब्र में अपनी
यह ह़ाजत दफ़्न रखती हैं।
शायर : कौस़र तस्नीम सुपौली 
सुपौल, बिहार, इंडिया
संपर्क: +91 8757647853
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