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मेरे बिना तुम प्रभु कविता की व्याख्या भावार्थ एवं सारांश और प्रश्नों के उत्तर

मेरे बिना तुम प्रभु कविता की व्याख्या भावार्थ एवं सारांश और प्रश्नों के उत्तर


आज की पोस्ट में हम रेनर मारिया रिल्के की कविता मेरे बिना तुम प्रभु की व्याख्या भावार्थ एवं सारांश और प्रश्नों के उत्तर प्रस्तुत करने जा रहे हैं यह कविता बिहार बोर्ड की कक्षा 10 गोधूलि भाग 2 के काव्य खंड में सम्मिलित किया गया है रेनर मारिया रिल्के की कविता मेरे बिना तुम प्रभु से बिहार बोर्ड की परीक्षा में सवाल पूछे जाते हैं इसलिए इसका पढ़ना हम सबके लिए अति आवश्यक है। चलिए अक्षर ज्ञान कविता के प्रश्नों के उत्तर जानते हैं।

मेरे बिना तुम प्रभु कविता की व्याख्या और भावार्थ

मेरे बिना तुम प्रभु कविता के कवि का नाम रेनर मारिया रिल्के है। इनका जन्म 4 दिसम्बर 1875 ई., प्राग, ऑस्ट्रिया (अब जर्मनी) में हुआ और मृत्यु 29 दिसम्बर, 1936 ई. में हुई थी।
पिता- जोसेफ रिल्के
माता- सोफिया

रेनर मारिया रिल्के की शिक्षा-दीक्षा का समय काफी संघर्षपूर्ण रहा। इन्होंने प्राग और म्यूनिख विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की। संगीत, सिनेमा आदि में इनकी गहरी पैठ थी।


रेनर मारिया रिल्के की प्रमुख रचनाएँ

प्रमुख कविता संकलन- ‘लाइफ एंड सोंग्स’ ‘लॉरेंस सेक्रिफाइस’ ‘एडवेन्ट’ आदि।

कहानी संग्रह ‘टेल्स ऑफ आलमाइटी, उपन्यास ‘द नोट बुक ऑफ माल्टे लॉरिड्स ब्रिज’

मेरे बिना तुम प्रभु कविता की व्याख्या

प्रस्तुत कविता ‘मेरे बिना तुम प्रभु’ धर्मवीर भारती के द्वारा हिंदी भाषा में अनुवादित जर्मन कविता है। कवि का मानना है कि बिना भक्त के भगवान भी एकाकी और निरुपाय है। उनका अस्तित्व भक्त की आस्था पर निर्भर करती है। भक्त और भगवान एक-दूसरे पर निर्भर हैं।

मेरे बिना तुम प्रभु कविता भावार्थ

मेरे बिना तुम प्रभु
जब मेरा अस्तित्व न रहेगा, प्रभु, तब तुम क्या करोगे ?
जब मैं – तुम्हारा जलपात्र, टूटकर बिखर जाऊँगा ?
जब मैं तुम्हारी मदिरा सूख जाऊँगा या स्वादहिन हो जाऊँगा ?
मैं तुम्हारा वेश हुँ, तुम्हारी वृति हुँ
मुझे खो कर तुम अपना अर्थ खो बैठोगे ?

कवि का कथन है कि हे प्रभु ! जब मैं नहीं रहुँगा तो तुम्हारा क्या होगा ? तुम क्या करोगे ? मैं ही तुम्हारा जलपात्र हुँ, जिससे तुम पानी पीते हो। अगर मैं टूट गया तो जिससे नशा होता है, तो मेरे द्वारा प्राप्त मदिरा सुख जाएगी अथवा स्वादहीन हो जाएगी। वास्तव में, मैं ही तुम्हारा आवरण हूँ तुम्हारा विश्वास हूँ। अगर मैं नहीं रहा तो तुम्हारी महता ही समाप्त हो जाएगी।


मेरे बिना तुम गृह हीन निर्वासित होगे, स्वागत-विहीन
मैं तुम्हारी पादुका हूँ, मेरे बिना तुम्हारे
चरणों में छाले पड़ जाएँगे, वे भटकेंगे लहूलुहान !

मेरे प्रभु, मैं नहीं रहा तो तुम गृहविहीन हो जाओगे। कौन करेगा तुम्हारी पूजा-अर्चना? वास्तव में, मैं ही तुम्हारी पादुका हुँ जिसके सहारे जहाँ जाता हुँ तुम जाते हो अन्यथा तुम भटकोगे।


तुम्हारा शान्दार लबादा गिर जाएगा
तुम्हारी कृपा दृष्टि जो कभी मेरे कपोलों की
नर्म शय्या पर विश्राम करती थी
निराश होकर वह सुख खोजेगी
जो मैं उसे देता था

कवि कहता है कि मुझसे ही तुम्हारी शोभा है। मेरे बिना किस पर कृपा करोगे ? कृपा करने का सुख कौन देगा ? मेरे बिना तुम्हार सुख-साधन विलुप्त हो जाऐंगे, जो मैं तुम्हें देता था।

दूर की चट्टानों की ठंढी गोद में
सूर्यास्त के रंगों में घुलने का सुख
प्रभू, प्रभू मुझे आशंका होती है
मेरे बिना तुम क्या करोगे ?

कवि कहता है कि जब मैं नहीं रहुँगा तो संध्याकालीन अस्त होते सूर्य की सुन्दर लालिमा का वर्णन आखिर कौन करेगा ? क्योंकि उस समय सारा वन प्रांत सूर्य की विखर रही लाल किरणों के संयोग से अद्भुत प्रतीत होता है। इसलिए कवि को आशंका होती है कि मैं नहीं रहा तो तुम क्या करोगे।


‘मेरे बिना तुम प्रभु’ कविता का सारांश

इस कविता में भक्त कवि रिल्के अपने प्रभु को संबोधित करते हुए कहते हैं कि हे प्रभु! जब मेरा अस्तित्व ही नहीं रहेगा, तब तुम क्या करोगे? मैं ही तुम्हारा जलपात्र हूँ, मैं ही तुम्हारी मदिरा हूँ। जब जलपात्र अर्थात मैं टूटकर बिखर जाऊंगा और मदिरा सूख जाएगी या स्वादहीन हो जाएगी तब प्रभु तुम क्या करोगे ?

कवि अपने प्रभु से शिकायत भरे अंदाज में कहता है कि मैं ही तुम्हारा वेश हूँ, तुम्हारी वृत्ति हूँ। मैं ही तुम्हारे होने का कारण हूँ। तुम मुझे खोकर अपना अर्थ भी खो बैठोगे। मेरे अभाव में तुम गृहविहीन हो जाओगे। तब तुम निर्वासित-सा अपना जीवन बिताओगे। तब तुम्हारा स्वागत कौन करेगा? प्रभु मैं तुम्हारे चरणों की पादुका हूँ। मेरे बिना तुम्हारे चरणों में छाले पड़ जाएँगे। तुम्हारे पैर लहूलुहान हो जाएँगे। तुम्हारे पैर मेरे बिना कहीं भ्रांत दिशा में भटक जाएँगे।

कवि अपने आराध्य प्रभु से कहता कि जब मेरा अस्तित्व ही नहीं रहेगा, तब तुम्हारा शानदार लबादा भी गिर जाएगा। तुम्हारी सारी महिमा बस मेरे होने पर ही निर्भर है। मैं नहीं रहूँगा तो तुम्हारी कृपा दृष्टि को सुख कहाँ से मिल पाएगा? दूर की चट्टानों की ठंढी गोद में सूर्यास्त के रंगों में घुलने का सुख तुम्हें मेरे नहीं रहने पर कैसे प्राप्त होगा? कवि अपनी आशंका व्यक्त करता हआ कहता है कि मेरे बिना प्रभु शायद ही तेरा अस्तित्व रह सके।

मेरे बिना तुम प्रभु कविता के प्रश्न उत्तर


प्रश्न १.

कवि अपने को जलपात्र और मदिरा क्यों कहता है?

उत्तर : प्रस्तुत कविता ‘मेरे बिना तुम प्रभु’ में रेनर मारिया रिल्के ने एक दुर्लभ साखी प्रस्तुत की है। बिना भक्त भगवान भी एकाकी और असहाय हो जाते हैं। भगवान की सत्ता भी भक्त पर ही निर्भर करती है। इसलिए कवि कहता है कि जब मेरा अस्तित्व न रहेगा, तब प्रभु तुम क्या करोगे?  जब तुम्हारा एक भी भक्त नहीं होगा तब तुम क्या करोगे, तुम पर जल अर्पित करने वाला पात्र मैं बनकर टूट जाऊँगा तब तुम क्या करोगे। यहाँ कवि अपने आप को जलपात्र के रूप में प्रस्तुत किया है जिसकी मदिरा कवि के बिना यानी भक्ति के बिना स्वादहीन होने की बात कवि कहते हैं।

प्रश्न २.

आशय स्पष्ट कीजिए “ मैं तुम्हारा वेश हूँ, तुम्हारी वृत्ति हूँ मुझे खोकर तुम अपना अर्थ खो बैठोगे ?

उत्तर : कविता की प्रस्तुत पंक्ति में कवि प्रभु से कहता है कि बिना भक्त के तुम्हारा कोई अस्तित्व ही नहीं है। जब मनुष्य ही नहीं होंगे तब तुम्हारा गुणगान करने वाला कौन होगा। तुम भी नहीं रहोगे । अतः जब मैं हूँ तब ही तक तुम्हारा वेश और नाम भी है तुम्हारी कृत्ति मनुष्य के बिना, तुम अपना अर्थ खो बैठोगे।

प्रश्न ३.

शानदार लबादा किसका गिर जाएगा और क्यों ?

उत्तर : कविता के इस पंक्ति का भावार्थ यह है कि प्रभु का  शानदार लबादा अर्थात चोंगा गिर जाएगा। क्योंकि जब हम ही नहीं रहेंगे तब तुम्हारी कृपा दृष्टि जो मेरे कपाल पर हैं वह मिट जाएगी और तुम निराश होकर उसे खोजोगे । मैं ही तुम्हें साकार रूप देता हूँ। इसलिए मेरे बिना प्रभु तुम्हारा कोई लबादा नहीं होगा।

प्रश्न ४.

कवि किसको कैसा सुख देता था ?

उत्तर : कवि प्रभु को लबादा का सुख देता है। क्योंकि जिस प्रभु की कृपा दृष्टि हमारे कपोलों नर्म शय्या पर विश्राम किया करती थी। अब हमारे नहीं होने पर प्रभु की कृपा दृष्टि निराधार है। तुम सुखको खोजोगे। जो तुम मुझे दिया करते थे। अतः मेरे बिना तुम्हारा कोई अस्तित्व नहीं होगा।

प्रश्न ५.

कवि को किस बात की आशंका है ? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : कवि को इस बात की आशंका है कि मेरे बिना या मनुष्य के बिना ये प्रभु क्या करेंगे? जब मैं ही नहीं रहूँगा तब प्रभु की वेश, वृत्ति तथा प्रभु की महिमा का कोई महत्व ही नहीं रह जाता। प्रभु की चोंगा, कृपादृष्टि का कोई अर्थ नहीं रह जाता। भक्त के बिना ईश्वर का कोई महत्व अस्तित्व नहीं है।

प्रश्न ६.

कविता किसके द्वारा किसे संबोधित है ? आप क्या सोचते हैं ?

उत्तर : यह कविता एक भक्त के द्वारा प्रभु को संबोधित की जा रही है। यहाँ भक्त अपना महत्व ईश्वर या प्रभु को बताने की कोशिश कर रहा है। वह कहता है कि मनुष्य के बिना या भक्त के बिना प्रभु का कोई महत्व नहीं होता। प्रभु की महत्ता लोगों की श्रद्धा पर ही आश्रित है। इस कविता में एक प्रकार से प्रभु की महत्ता की बात न कर कवि अपनी यानी भक्त की महत्ता की बात करता है। जिससे हम अपनी भक्ति के महत्त्व को समझते हैं।

प्रश्न ७.

मनुष्य के नश्वर जीवन की महिमा और गौरव का यह कविता कैसे बखान करती है ? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : मनुष्य के नश्वर जीवन की महिमा और गौरव एक दूसरे पर निर्भर करते हैं। मनुष्य के नश्वर जीवन की महिमा इसके जीवित दुनिया तक ही सीमित रहती है जबकि महिमा आनेवाले प्रत्येक समय में कायम रहती है । अगर मनुष्य इस लोक में न हो तो प्रभु का होना व्यर्थ है। मनुष्य से ही प्रभु का अस्तित्व है। हम हैं तब तक प्रभु की अर्चना, गुणगान और उनकी प्रशंसा करते हैं। हमारे नहीं होने पर इनका देश, वेश, वृत्ति, लबादा सब कुछ खत्म हो जाएगा। इसलिए मनुष्य पर प्रभु आश्रित है।

प्रश्न ८.

कविता के आधार पर भक्त और भगवान के बीच के संबंध पर प्रकाश डालिए।

उत्तर : रेनर मारिया रिल्के जी कविता में कहते हैं कि प्रभु मेरे बिना तुम अपने घर से निर्वासित रूप में हो, एक बिना अर्चना के खड़े हों। मैं तुम्हारा खराऊं हूँ। अगर मैं न रहूँ तो तुम्हारे चरणों में छाले पड़ जाएं। तुम लहूलुहान होकर हर जगह निर्वासित रूप में भटकोगे। तुम्हारी कृपादृष्टि हमारे नम्र शय्या पर विश्राम करती है। हमारे न होने पर सब व्यर्थ हैं। मैं तुम्हारा जलपात्र हूँ, मंदिरा हूँ जो मेरे बिना व्यर्थ है।

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