Ticker

6/recent/ticker-posts

विष्णु भगवान की आरती भजन Vishnu Ji Ki Aarti Bhajan Lyrics In Hindi

विष्णु जी की आरती लिरिक्स भक्ति गीत : विष्णु भगवान हमारे Vishnu Ji Ki Aarti

भक्ति गीत : विष्णु भगवान हमारे
हे विष्णु भगवान हमारे, कहां हैं कृपा निधान?
हमसे क्या भूल हुई, क्यों भूल गए भगवान?
आप तो सारी दुनिया के पालनहार हैं स्वामी,
खाली हाथ भटक रहे, हम हैं बहुत परेशान।
हे विष्णु भगवान हमारे………
अपनों ने अपनी अपनी नजर फेर ली आज,
काम नहीं आ रही हमें, कोई भी जान पहचान।
पता नहीं लक्ष्मी माता भी क्यों नाराज लगती?
इस भक्त पर अपनी थोड़ी कृपा करें भगवान।
हे विष्णु भगवान हमारे………
🔯
हम कंगाल सेवक आपके, आप ठहरे दीनदयाल,
हमारे भी आंसू पोंछे और दें थोड़ी सी मुस्कान।
आज आपके दरबार से, खाली नहीं लौटेंगे हम प्रभुजी,
रोते हुए चरणों में बैठकर, दे देंगे अपनी जान।
हे विष्णु भगवान हमारे…………
🔯
प्रभु हमें नहीं पता है, क्या कसूर है ऐसा हमारा,
गलियों में चलनेवाले, हम तो हैं मामूली से इंसान।
बेसहारा होकर भटक रहे हैं, बनकर एक बेचारा,
क्यों टूट पड़ा है हम पर, आज दुखों का आसमान?
हे विष्णु भगवान हमारे………
🔯
सूबेदार कृष्णदेव प्रसाद सिंह,
नासिक (महाराष्ट्र)/
जयनगर (मधुबनी) बिहार

विष्णु जी की आरती लिखित में भक्ति गीत : श्री हरि है नाम तुम्हारा Vishnu Ji Ki Aarti

''भक्ति गीत : श्री हरि है नाम तुम्हारा''
भगवान, श्री हरि है नाम तुम्हारा,
प्रभुजी तुम हो जग के पालनहार।
भगवान, श्री विष्णु है नाम तुम्हारा,
प्रभुजी तुम हो दुनिया के तारणहार।
प्रभुजी तुम हो………

लोग हरि हरि बोलकर नाम जपते हैं,
सुबह शाम तेरा ही गुणगान करते हैं।
फंस जाए भंवर, जब किसी की नैया,
उसे तुम ही उतार सकते, उस पार।
प्रभुजी तुम हो……

तुम दुःख भक्तों का सह नहीं सकते,
बिन दूर किए प्रभुजी रह नहीं सकते।
कठोर शब्द किसी से कह नहीं सकते,
अपने भक्तों से करते हो बेहद प्यार।
प्रभुजी तुम हो……

तेरी महिमा बरसती है जब किसी पर,
मुंह मांगा मिल जाता है, उसको वर।
भक्तों के सपनों को कर देते साकार,
कृष्णदेव की विनती कर लो स्वीकार।
प्रभुजी तुम हो……
सूबेदार कृष्णदेव प्रसाद सिंह,
नासिक (महाराष्ट्र)/
जयनगर (मधुबनी) बिहार

भजन : कृपा करो विष्णु भगवान Kripa Karo Vishnu Bhagwan Bhajan Lyrics Hindi

भजन : कृपा करो विष्णु भगवान
भगवान, भगवान, कृपा करो विष्णु भगवान,
तू मालिक है, तू ही दाता, हम इंसान।
विष्णु भगवान……
हम सब मानव तो हैं, भक्त सेवक तेरे,
क्षमा करना गलती सारी, कृपा निधान।
कृपा करो विष्णु भगवान……….
तेरी दुनिया, तेरी नगरी, सब कुछ तेरा,
तुमने दिया है हमें, जीवन यह वरदान।
कृपा करो विष्णु भगवान……
तेरी भक्ति से हमको, मिलती है शक्ति,
होती है हमको, अच्छे बुरे की पहचान।
कृपा करो विष्णु भगवान……
साकार कर दो प्रभु, हमारे सपने सारे,
कर दो पूरे, इस जीवन के अरमान।
कृपा करो विष्णु भगवान……
कई रूप में तुम अपने, दर्शन देते हो,
प्रभु तुम, कण कण में हो विराजमान।
कृपा करो विष्णु भगवान……
सूबेदार कृष्णदेव प्रसाद सिंह,
नासिक (महाराष्ट्र)/

जयनगर (मधुबनी) बिहार

Bol Hari Bol Bhajan Lyrics भजन : बोल हरि बोल लिरिक्स

भजन : बोल हरि बोल
बोल हरि बोल, भैया बोल हरि बोल,
सारे जग में, यह नाम है अनमोल।
बेड़ा उसका पार है जीवन सागर से,
जाके हरि नाम पर मन गया डोल।
बोल हरि बोल……
जहां से कोई चलता, वापस आ जाता,
हरि की प्यारी दुनिया, लगती है गोल।
हरि से कैसे छुप सकता है, कुछ भी?
कभी न कभी खुल जाता इसका पोल।
बोल हरि बोल……
हरि घर में देर है, होता नहीं है अंधेर,
कहना हरि का मान, तौल फिर बोल।
कुछ नहीं होनेवाला जाने से हरिद्वार,
हरि तेरे पास है, इसे मन में तू घोल।
बोल हरि बोल……
सूबेदार कृष्णदेव प्रसाद सिंह,
जयनगर (मधुबनी) बिहार/
नासिक (महाराष्ट्र)

हरि भजन

हरि तुम हरो मन के पीर।
भाई बंधु कुटुंब परिवारा झूठे सुख को अधीर।
लोभ मोह में जगत है जुटा पाप बढ़ा गंभीर।

ईर्ष्या में जलते जन जन पीछे ताकै नहीं फिर।
माया मोह बहु मैं भटका गया मन का मनका गिर।

मन चंचल चहुँ ओर भटके कबहूँ ना होवै थीर।
पतितों की पतिता देखी शर्म झुकत हैं सिर।

आत्मा कलुषित चुपे रोवत चक्षु गिरे नहीं नीर।
उर व्यथित कुकर्म भाव से कितना धरूँ मैं धीर।

बड़ी मछली छोटी को खाए कथा रहा अति चिर।
हाथ पाँव पीट चाहूँ निकलना उल्टे जाता घिर।

सच्चा केवल इस दुनिया में साधु संत फकीर।
घट घट प्रभु वास है तेरा जानत हो हीर हीर।

मानने को सब तुम्हें माने जो जाने वही वीर।
मृग सम दुनिया में ढूँढ़ै जो पाया वही मीर।

तुभ अंतर्यामी मैं अनुगामी भक्ति लिखो तकदीर।
हरिकृपा बिन तृण न डोलै कबसे खड़ा मैं तीर।

ढूँढ़त ढूँढ़त मन मेरो थक्यो केहि बसत हो क्षीर।
करुण भाव में कहे अरुण लिख लो मेरा तहरीर।

अंत दरश हमें भी दीजै जब प्राण तजे ये शरीर।
हरि तुम हरो मेरे मन के पीर।

पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना।
अरुण दिव्यांश

श्री बृहस्पति देव की आरती गुरुवार की आरती Shri Brihaspati Dev Ji Ki Aarti

गुरुवार विष्णु वंदन
जीवन सुंदर सबका अमन हो,
सुंदर प्यारा अपना चमन हो।

रोग दुःख बाधा संशय सबका,
जीवन से प्रभु अब गमन हो।।

दूर करो अहंकार मेरे मन से,
सेवा भाव हो मेरे इस तन से।

गुजरे न जीवन कहीं अनबन से,
तुझे नमन है हृदय तन मन से।।
अरुण दिव्यांश
9504503560

Bhagwan Vishnu Aarti Bhajan Lyrics Hindi भगवान विष्णु जी की आरती

गुरुवार
हरि वंदन
हरि विष्णु आ हर शिव,
हरिहर के होलन रूप।

शिव भाव में जीव सेवा,
जेकरा हृदय होखे अनूप।।

नमन बा उनको हमर,
जेकरा हृदय बसीं आप।

आप दर्शन से हरि मिलीं,
मन से करीं राउर जाप।।
अरुण दिव्यांश

Vishnu Bhagwan Ki Aarti | Vishnu Bhagwan Ke Bhajan

गुरुवार
हरि वंदन
रोम रोम में राम रमे,
रग रग में राम रमे।

जीभ पर रमा राम रमे,
तन मन में रमा राम रमे।।

हरि के नाम भज लीं बंदे,
मनसा आपन त्याग दीं गंदे।

प्रेम से बोलीं जय माँ गंगे,
जय माँ गंगे जय माँ गंगे।।

माता पिता जीवित देवी देवता।
ईश्वर के सीधे जाला न्योता।।

सेवा भक्ति मन में लाईं।
उनका आगे शीश झुकाईं।।

बुजुर्गो के होखे मान सम्मान।
उनको मन में होला अरमान।।

सभ्यता शिष्टाचार अपनाईं।
उनको मन के मान बढ़ाईं।।

दीन दुखियन के करीं भलाई।
ईश्वर के संदेश इहे भाई।।

ईश्वर बाड़न सबके दाता।
ईश्वर सबके भाग्य विधाता।।

रोम रोम में राम रमे।
रग रग में राम रमे।।

जीभो पर रमा राम रमे।
तन मन में रमा राम रमे।।

अरुण दिव्यांश, 9504503560
विष्णु भगवान की जय

गुरूवार हरि वंदन विष्णु जी की आरती सुनाइए

हम बानी आत्मा रउआ परमात्मा
हर पाप से हमरा उद्धार करिं।

बीच भँवर में फँसल हमरो नईया,
प्रभु जी रउआ बेडा पार करिं।।

हम मूरख खल अधम पापी,
जीवन से ई सबके संहार करिं।

दूर करिं दुःख बाधा संशय,
जन सेवा हम बारंबार करिं।।
हम पर कृपा करीं हे हरि।।।

अरुण दिव्यांश, 9504503560

गुरुवार विष्णु वंदन

हे अंतर्यामी जग के स्वामी
हर जीव के बानी पालनहारा।

कल्याणकर्ता दुःखहर्ता बानी,
जगत बनवलीं सुंदर प्यारा।।

सृष्ट जीवन के हमहुँ प्राणी,
सुमधुर करीं अब हमरो वाणी।

दूर करीं प्रभु हमरो नादानी,
कोटि कोटि नमन है जगत्राणी।।

अरुण दिव्यांश 9504503560

गुरुवार विष्णु वंदन

हम आत्मा रउआ परमात्मा,
पापन से रउआ करीं उद्धार

बीच भँवर में फँसल नईया,
प्रभुजी हमरो करीं बेडा पार।।

हम मूरख खल अधम पापी,
जीवन से ई सब करीं संहार।

दूर करीं दुःख बाधा संशय,
करत पुकार अब जीवन हार।।

राउर अभिनंदन राउर वंदन,
दूर करीं अब हमरा मन के डर।

पड़त बानी चरण ले लीं शरण,
साहित्य साधना के दीं ईश वर।।

अरुण दिव्यांश 9504503560
***

आज वृहस्पतिवार के उपलक्ष्य में श्री और श्रीपति नारायण विष्णु भगवान को सहृदय सादर नमन है। वृहस्पतिवार की आप समस्त माताओं, बहनों व बंधुओं को हार्दिक शुभकामनाएँ। माँ लक्ष्मी और भगवान विष्णु की कृपा आप हम सब पर अनवरत बरसती रहे।

जय रामसिया, जय जनक धिया।
हर्षित प्रफुल्लित, मिथिला हिया।।

माता सीता जब करी गृह लिपाई।
एक हाथ धनुहा वह ली जब उठाई।

निज चक्षु वैदेही यह अचरज देखा।
कीन्ह दृढ़ संकल्प निज मन विशेषा।

कोऊ नहीं सकत यह धनुहा हिलाई।
अद्य मम सुता यह धनुहा उठाई।।

जो यह धनुहा अब करेगा खंडित।
होगा वही यहाँ अब महिमामंडित।।

तब पुरोहित निज घर पे वे बुलाए।
धनुहाखंडन का शुभ दिन उचरवाए।।

भेजा निमंत्रण राजा महाराजा वैदेही।
धनुहाखंडन दृढ़ संकल्प मोर एही।।

यह धनुहा विखंडी जो कोई भी होई।
जानकी पाणि सोई हस्त हम देई।।

जो राजा महाराजा हो वीर भूपा।
करे जो खंडित यह धनुहा अनूठा।।

सीता योग्य वर मैं उसे ही तब वरूँ।
सुता पाणिग्रहण संस्कार तब करूँ।।

देखें कैसा है यह विधि का विधाना।
समाचार पठाए राजा महाराजा नाना।।

समाचार जब राजे महाराजे पाए।
सहर्ष प्रफुल्लित मंद मन मुस्काए।।

समयानुसार हर राजे महाराजे आए।
राम लखन संग विश्वामित्र भी धाए।।

राजा महाराजा धनुहा न सके हिलाई।
सब मिली भी धनुहा न सके टकसाई।।

भए क्रोधित कहा धरा वंचित वीर भूपा।
सब वीरताई अब गिरहीं भय कूपा।।

उठे लखन बोले गुरु आज्ञा जब पाऊँ।
ई धनुहा क्षण में खंड खंड कर जाऊँ।।

संग हमारे राम बैठे हैं बड़े भईया।
गुरु आज्ञा से धनु खंडित एही ठईयाँ।।

पा आदेश राम जब धनुहा उठाए।
खंडित विखंडित तब धनुहा पाए।।

आए परशुराम खंडित धनुहा देखी।
उगलने लगे अंगारे दिखाते हुए शेखी।।

बार बार जब निज परशु वे उठाए।
कोटि यत्न कहीं कछु नहीं कर पाए।।

टूटा तब परशुराम यह अभिमाना।
क्षमा याचना पूर्व अपराध निज माना।।

हर्षित प्रफुल्लित तब मिथिला हिया।
जय राम सिया जय जनक धिया।।

पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )
बिहार।

श्री हरि विष्णु जी की आरती भजन Shri Hari Vishnu Bhagwan Ke Bhajan Aarti Lyrics Hindi

भटक रहे मेरे हरि
न रहा कहीं इंसान

फेरे राम नाम की माला
नित कुकर्म करे जहाँन

दुश्मन लगने लगे जनेता
और करता फेरे चार

नफरत का अम्बार पाले,
नेह का जाल रचाते
कैसे कैसे शकुनि जग में
तन कहाँ और मन कहाँ
ॐ रीं श्री जय जिनेन्द्राय श्री हरि कृष्ण रामाय गणपतये महादेवाय नमः।।
सभी को मंगलमय जीवन की शुभकामनाएं
विनोद कुमार जैन वाग्वर

विष्णु भगवान के भजन हिंदी में

भजन
अगर नाथ दिल से हमारे न होते
तो फिर इस धरा पे पधारे न होते
न होती अगर माफ़ करने की आदत
अजमिल अधम को उबारे न होते

नर से नारायण का होता न नाता
सभा बीच कौरव के आए न होते
अगर प्रेम के वो न होते पुजारी
जूठे बेर शबरी के खाए न होते

अगर भक्त प्यारा न होता प्रभू का
तो हनुमत को दिल से लगाए न होते
नही टेर सुनते जो दीनो की भगवन
तो दीनबंधु जग मे कहाए न होते

करुणा के सागर न होते कन्हैया
तो गज के बुलाने पे आए न होते
सटाकर जटायु को सीने से अपने
वो दृग बिंदु दृग से गिराये न होते

अगर दर्द गिरिधर न सुनते किसी की
सुदामा पे सब कुछ लुटाए न होते
अगर भक्तवत्सल न होते मुरारी
"नवल "दिल मे यूँ हीं समाए न होते
नवल प्रसाद
बेतिया, प -चम्पारण

विष्णु भगवान और लक्ष्मी जी की आरती

कल्कि भगवान की आरती
विष्णु भगवान की कथा और आरती
Vishnu Bhagwan Ki Aarti - Lord Vishnu Image

Vishnu Bhagwan Ki Aarti - Lord Vishnu Image

मुक्तक- हरी हरो पीड़ा

जगत पालक सृष्टि चालक पड़ा चरन तेरे बालक।
जय श्री हरि हरो पीड़ा करो भक्त जग के लायक।
श्री राम विष्णु परशुराम बराह मिना नरसिंहावतार।
कूर्म बामना श्री कृष्णावतार तारो संकट है घातक।
श्याम कुंवर भारती


जै श्री हरि

*
भटका हूँ निज राह से, सूझे ना घर बार।
मुझको हे मनमोहना, बस तेरा आधार।।
*
निर्जन वन घनघोर है, साथी है नहीं कोय।
एक भरोसा आपका, आप करे सो होय।।
*
लगा है इस संसार में, बस माया बाजार।
हे गिरधारी आइ के, कर दो भव से पार।।
*
मुझे नहीं कुछ सूझता, तुम बिन हे सरकार।
कहे बिजेन्द्र सिर नाइ के, कर दो भव से पार।।
*
बिजेन्द्र कुमार तिवारी 
बिजेन्दर बाबू
Read More और पढ़ें:

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ