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अनंत चतुर्दशी का महत्व, अनंत चतुर्दशी व्रत कथा, पूजा विधि Anant Chaturdashi

अनंत चतुर्दशी का महत्व, अनंत चतुर्दशी व्रत कथा, पूजा विधि Anant Chaturdashi

अनंत चतुर्दशी व्रत का महत्व

अनंत चतुर्दशी के व्रत का हिन्दू धर्म में बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। भगवान विष्णु जी को प्रसन्न करने तथा अनंत फल देने वाला व्रत है। भगवान श्री विष्णु को समर्पित अनंत चतुर्दशी का व्रत भाद्रपद महीने की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है। इसे लोकभाषा ( ग्रामीण क्षेत्रों की भाषा ) में अनंत चौदस एवं अनंत पूजा के नाम से भी प्रसिद्ध है। इस वर्ष ये पर्व या व्रत 19 सितंबर दिन रविवार को मनाया जा रहा है। इसी दिन संसार के पालनहार भगवान श्री हरि विष्णुजी के अनंत रूप की पूजा-अर्चना की जाती है। अनंत का अर्थ है जिसका कभी अंत न हो अर्थात जिसके आदि का पता है और न ही अंत का। मतलब वे स्वयं श्री हरि नारायण हैं। प्राचीन धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन भगवान विष्णुदेव के लिए व्रत रखकर तथा उनकी पूजा-अर्चना करके अनंतसूत्र बांधने से जीवन में समस्त बाधाओं से मुक्ति मिल जाती है। अग्नि पुराण में अनंत चतुर्दशी व्रत के विशेष महत्व का उल्लेख है। पढ़िए—विष्णु भगवान की आरती भजन Vishnu Ji Ki Aarti Bhajan Lyrics In Hindi

अनंत चतुर्दशी व्रत कथा की शुरुआत

अनंत चतुर्दशी का व्रत करने का उद्देश्य भगवान विष्णु को प्रसन्न करना तथा अनंत फल प्राप्त करना माना गया है। धर्म शास्त्रों की ऐसी मान्यता है कि इस दिन श्री भगवान विष्णु ने सृष्टि के आरम्भ में चौदह लोकों अर्थात तल, अतल, वितल, सुतल, तलातल, रसातल, पाताल, भू, भुवः, स्वः, जन, तप, सत्य तथा मह की रचना की थी तथा इन सभी लोकों की रक्षा करने और पालन हेतु भगवान विष्णु स्वयं चौदह रूपों में प्रकट हुए थे। ताकि वह अनंत प्रतीत होने लगे। यही कारण है कि आज के दिन भगवान श्री विष्णु जी के अनंत रूपों की पूजा-अर्चना होती है।

अनंत चतुर्दशी में सूत्र बंधन का विशेष महत्व

अनंत चतुर्दशी की पूजा में सूत्र बंधन का विशेष महत्व माना गया है। इस पूजा में स्नान करने और स्वयं को पवित्र करने के उपरांत अक्षत, दूर्वा, शुद्ध रेशम अन्यथा कपास के सूत से बने हुए तथा हल्दी से रंगे हुए चौदह गांठों वाली अनंत सूत्र को भगवान विष्णु के चित्रों या प्रतिमाओं के सामने डालकर पूजा-अर्चना करनी चाहिए। हर गाँठ में श्री नारायण के अलग-अलग नामों से स्मरण करते हुए पूजा की जानी चाहिए। प्रथम में अनंत, तत्पश्चात ऋषिकेश, पद्मनाभ, माधव, वैकुण्ठ, श्रीधर, त्रिविक्रम, मधुसूदन, वामन, केशव, नारायण, दामोदर एवं गोविन्द की पूजा करनी चाहिए। तत्पश्चात अनंत देव का ध्यान एवं स्मरण करते हुए शुद्ध अनंत जिसकी पूजा अर्चना की गई है इसको पुरुष भक्तों और श्रद्धालुओं के दाहिने हाथ तथा महिलाओं के बांये हाथ में बांधा जाना चाहिए। धार्मिक मान्यता है कि इस पवित्र अनंत सूत्र को बांधने से भक्तों को जीवन में प्रत्येक कष्ट से मुक्ति मिलती है। कोई भी मनुष्य इस दिन विधिपूर्वक श्री हरि की पूजा करता है तो उसे उसके सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है। यह मान्यता है कि यदि इस दिन व्रत रखने के साथ-साथ कोई भक्त विष्णु सहस्त्रनाम स्रोत का भी पाठ कर लेता है तो उसकी सर्व मनोकामना पूर्ण हो जाती हैं। यह व्रत महिलाएं सुख-समृद्धि, धन-धान्य तथा संतान प्राप्ति हेतु करती हैं।

अनंत चतुर्दशी व्रत पूजा विधि Anant Chaudas Puja Vidhi

अनंत चतुर्दशी को प्रातःकाल स्नान करने के पश्चात पूजा स्थल पर पवित्र जल से भरा कलश स्थापित करें। इसके पश्चात कलश पर भगवान विष्णु का चित्र लगाएं। एक धागे को कुमकुम, केसर तथा हल्दी से रंगकर अनंत सूत्र बना लें। इस पवित्र अनंत सूत्र में चौदह गांठें लगा लें। इन्हीं सूत्रों को भगवान विष्णु के चित्रों के समक्ष रखें। तत्पश्चात भगवान विष्णु एवं अनंत सूत्र की पूजा करें तथा ‘‘अनंत संसार महासुमद्रे मग्रं समभ्युद्धर वासुदेव। अनंतरूपे विनियोजयस्व ह्रानंतसूत्राय नमो नमस्ते।।" मंत्र का जाप करें। इसके बाद अनंत सूत्र को हाथ पर बांध लें। ऐसा माना जाता है कि इस सूत्र को धारण करने से जीवन के समस्त संकटों का नाश होता है।

अनंत सूत्र बंधन मंत्र Anant Sutra Bandhan Mantra

‘‘अनंत संसार महासमुद्रे
मग्नं समभ्युद्धर वासुदेव।
अनंतरूपे विनियोजयस्व
ह्यनंतसूत्राय नमो नमस्ते।।’’

श्री कृष्ण के कहने पर पांडवों ने भी किया था अनंत चतुर्दशी व्रत

धर्म शास्त्रों की प्राचीन कथाओं एवं पुराणों में अनंत चतुर्दशी की कथा का महाभारत काल में युधिष्ठिर से संबंध बताया गया है। जब पांडव राज्यहीन हो गए तो श्रीकृष्ण ने पांडवों को अनंत चतुर्दशी का व्रत करने के लिए कहा। जिससे पांडवों को पुनः राज्य मिल जाए। भगवान श्री कृष्ण ने पांडवों को इसका पूर्ण विश्वास भी दिलाया। तत्पश्चात युधिष्ठिर ने अनंत भगवान के संबंध में जिज्ञासा प्रकट की तो कृष्ण जी ने पुनः कहा कि वह भगवान विष्णु का ही एक रूप हैं। चतुर्मास में भगवान श्री हरि शेषनाग की शैय्या पर अनंत शयन ( गहरी निंद्रा ) में रहते हैं तथा इनके आदि और अंत अज्ञात होता है इस कारण यह अनंत कहलाते हैं। इस व्रत को विधिपूर्वक करने से जीवन के समस्त संकट समाप्त होंगे।

Photo Bhagwan Vishnu Ji Images विष्णु भगवान का फोटो

Photos-Bhagwan-Vishnu-Ji-Images विष्णु भगवान का फोटो

अनंत चतुर्दशी शुभ मुहूर्त Anant Chaturdashi Shubh Muhurt 

अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा का विशेष महत्व है इस वर्ष अनंत के दिन विशेष मंगल बुधादित्य योग बनेगा। १९ सितंबर के दिन महारविवार का भी व्रत हो रहा है। अनंत चतुर्दशी पर शुभ मुहूर्त में पूजा-अर्चना करने से सभी प्रकार बाधाओं एवं समस्याओं से मुक्ति मिलेगी। इस बार अनंत चतुर्दशी पर मंगल बुधादित्य योग बनने के कारण यह व्रत करने वालों के लिए अत्यंत फलदायी होगा।

अनंत चतुर्दशी पूजा शुभ मुहूर्त Anant Chaturdashi Shubh Muhurt

अनंत चतुर्दशी व्रत या पूजा हेतु शुभ मुहूर्त १९ सितंबर २०२१ सुबह ६.०७ मिनट से प्रारम्भ एवं अगले दिन २० सितंबर को सुबह ५.३० बजे तक रहेगा।

क्यों और कैसे बनता है मंगल बुधादित्य योग Mangal Budhaditya Yoga

अनंत चतुर्दशी पर एक ओर गणपति बप्पा की विदाई होती है तो दूसरी ओर इसी दिन श्रद्धालु उपवास रखते हुए श्री भगवान विष्णु के अनंत रूप की विशेष पूजा करते हैं तथा भगवान विष्णु को पवित्र अनंत सूत्र बांधते हैं यह व्रत करने का उद्देश्य यह होता है कि सारी बाधाओं से मुक्ति मिल जाएगी। अनंतसूत्र सुती कपड़े या शुद्ध रेशम का बना होता है। ज्योतिषाचार्य डॉ. चीरहरण दास महुआ वाले ने बताया कि अनंत चतुर्दशी पर इस वर्ष मंगल, बुध तथा सूर्य एक साथ कन्या राशि में विराजमान होने वाले हैं जिस कारण से मंगल बुधादित्य योग बन रहा है। इस योग में की गई पूजा अर्चना का महत्व अत्यधिक बढ़ जाता है तथा महालाभ मिलता है।

अनंत चतुर्दशी की कथा Anant Chaturdashi Katha

प्राचीन समय की बात है। एक बहुत बड़ा तपस्वी ब्राह्मण था। जिसका नाम सुमंत तथा उसकी पत्नी का नाम दीक्षा था। इन दोनों के यहां "सुशीला" नाम की एक धर्मपरायण पुत्री थी। सुशीला के युवावस्था में आने पर उसकी मां दीक्षा की मृत्यु हो गई। तथा कुछ दिनों पश्चात सुशीला के पिता सुमंत ने कर्कशा नाम की एक स्त्री से विवाह कर लिया। कुछ दिनों पश्चात सुशीला का विवाह एक ब्राह्मण से हुआ जिसका नाम कौंडिन्य ऋषि था‌। जब विवाह के उपरांत सुशीला अपने पिता के घर से विदा हो रही थी उस समय उसकी सौतेली मां कर्कशा ने कुछ ईंट एवं पत्थर बांधकर सुशीला के पति कौंडिन्य को दिए। ऋषि कौंडिन्य को अपनी सास कर्कशा का यह व्यवहार अत्यधिक बुरा लगा। वह दुखी होकर अपनी पत्नी के साथ चल दिए। रास्ते में रात्रि होने पर वह एक नदी के किनारे ठहर कर संध्या वंदन करने में लीन हो गए।
ठीक उसी समय सुशीला ने देखा कि बहुत सारी महिलाएं किसी देवता की पूजा कर रही हैं। सुशीला ने उन महिलाओं से पूजा के संबंध में पूछा तब उन महिलाओं ने सुशीला को भगवान अनंत की पूजा तथा उसके महत्व एवं विशेषताओं के संबंध में विस्तारपूर्वक बताया। तब सुशीला ने भी उसी समय व्रत का अनुष्ठान किया तथा 14 गांठों वाला अनंत सूत्र बांधकर अपने पति ऋषि कौंडिन्य के पास आ गई। जब ऋषि कौंडिन्य ने सुशीला से उस विशेष रक्षा सूत्र के संबंध में पूछा तब सुशीला ने उन्हें सारी बात बताई। कौंडिन्य ने यह सब मानने से इंकार कर दिया तथा उस विशेष रक्षा सूत्र को निकालकर आग में फेंक दिया। इसके पश्चात उनकी सारी संपत्ति नष्ट हो गई तथा दोनों पति-पत्नी दुखी रहने लगे। बहुत समय बीत जाने के पश्चात इस दरिद्रता के कारण जब ऋषि कौंडिल्य ने सुशीला से पूछी तो उन्होंने भगवान अनंत का सूत्र जलाने की घटना का वर्णन किया। यह सुनकर ऋषि कौंडिन्य अनंत सूत्र की प्राप्ति के लिए व्याकुलता से वन की ओर प्रस्थान कर गए। कई दिनों तक वन में ढूंढने के पश्चात भी जब उन्हें वह विशेष अनंत सूत्र नहीं मिला तब वे निराश होकर भुमि पर गिर पड़े। उस समय भगवान विष्णु प्रकट हो कर बोले: ‘हे कौंडिन्य’ तुमने मेरा घोर तिरस्कार किया था। जिसके कारण तुम्हें अपने जीवन में इतना कष्ट भोगना पड़ रहा है। अब तुमने इस पाप का पश्चाप कर लिया है इसलिए मैं तुमसे प्रसन्न हुआ हूं। अब तुम अपने घर जाकर अनंत चतुर्दशी का व्रत करो। 14 वर्षों तक व्रत करने पर तुम्हारे सभी दुख दूर हो जाएंगे तथा तुम धन-धान्य से पूर्ण हो जाओगे। ऋषि कौंडिन्य ने ठीक वैसा ही किया तब उनको सभी कष्टों से मुक्ति मिल गई।

अनन्त चतुर्दशी 2022 | अनंत चतुर्दशी व्रत पर कविता

भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी भगवान अनन्त का व्रत करते।
अन्त न होने वाले सृष्टि के कर्ता विष्णु की भक्ति का दिन कहते।
यह विष्णु कृष्ण रूप हैं और शेषनाग काल रूप में विघमान रहते।
स्नान करके कलश की स्थापना कर कलश पर अष्टदल कमल के समान बने बर्तन से निर्मित अनन्त भगवान की स्थापना करते।
समीप चौदह गाँठ लगाकर हल्दी से रंगे कच्चे डोरे को रखते।
गन्ध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेध से पूजन करते।
अनन्त भगवान का ध्यान कर शुद्ध अनन्त को अपनी दाई भुजा में बाँध कर मानव शुभ मंगल पाते।
धागा अनन्त फल देने वाला अनन्त की चौदह गाँठ चौदह लोको की प्रतीक हैं इसमे अनन्त भगवान विघमान रहते।
डॉक्टर रश्मि शुक्ला
प्रयागराज
उत्तर प्रदेश
भारत

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