देखा है मैंने मजदूरों को लगातार काम करते हुए : मजदूर दिवस कविता
मजदूर के लिए कविता
पसीना
हां, देखा है मैंने
सामने का मकान बनते हुए
मजदूरों को लगातार
काम करते हुए।
जब वे करते हैं काम
नहीं करते बीच में विश्राम
लगातार अथक परिश्रम करते
ढोते ईंटा- बालू और भारी सामान
कई कई मंजिलों वाले
ये ऊंचे ऊंचे मकान
सामान लेकर ऊपर चढ़ते
रह जाते हम हैरान
इनकी मेहनत को हम
करते हैं बारंबार सलाम
इनके बिना हमारा
चल नहीं सकता है काम
सर्दी गर्मी हो या बरसात
बहाते हैं ये अपना पसीना
ये जो है श्रम की बूंदे हैं
चमकतीं धूप में जो नगीना
रेखा जैन
रांची स्वरचित
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