क्यों नाराज हो बादल भैया? बादल पर कविता हिंदी में बादल शायरी
क्यों नाराज हो बादल भैया?
(कविता)
बोलो, क्यों नाराज हो, मोरे बादल भैया?
अब तो सारी दुनिया हो गई पानी पानी।
जब तुम गरजते हो, दिल धड़कता मोरा,
कब छोड़ोगे तुम अपनी वो आदत पुरानी?
क्यों नाराज हो मोरे………
जोर जोर से गरज गरजकर क्यों डराते हो,
आपदा आ जाती है, क्यों कहर बरपाते हो?
ऊपर बिजली कड़कती, नीचे छाती धड़कती,
लोगों की जान ले लेती, बिजली आसमानी।
क्यों नाराज हो मोरे………
नगर, शहर डूबे पानी में, गांव जैसे दरिया,
सड़कों पर नाव उतरी, नाला लगता नदिया।
अब भी तो क्रोध अपने, शांत कर ले बदरा,
जवानी में, क्यों करते हो, इतनी मनमानी?
क्यों नाराज हो मोरे………
क्या डूबता बिहार तुमको नजर नहीं आता?
अब कोई गीत नहीं तेरा है कहीं पर गाता।
क्यों बार बार जल प्रलय लेकर आते तुम?
कुछ तो समझो बेघर इंसान की परेशानी!
क्यों नाराज हो मोरे……
सूबेदार कृष्णदेव प्रसाद सिंह,
नासिक (महाराष्ट्र)/
जयनगर (मधुबनी)बिहार
(कविता)
बोलो, क्यों नाराज हो, मोरे बादल भैया?
अब तो सारी दुनिया हो गई पानी पानी।
जब तुम गरजते हो, दिल धड़कता मोरा,
कब छोड़ोगे तुम अपनी वो आदत पुरानी?
क्यों नाराज हो मोरे………
जोर जोर से गरज गरजकर क्यों डराते हो,
आपदा आ जाती है, क्यों कहर बरपाते हो?
ऊपर बिजली कड़कती, नीचे छाती धड़कती,
लोगों की जान ले लेती, बिजली आसमानी।
क्यों नाराज हो मोरे………
नगर, शहर डूबे पानी में, गांव जैसे दरिया,
सड़कों पर नाव उतरी, नाला लगता नदिया।
अब भी तो क्रोध अपने, शांत कर ले बदरा,
जवानी में, क्यों करते हो, इतनी मनमानी?
क्यों नाराज हो मोरे………
क्या डूबता बिहार तुमको नजर नहीं आता?
अब कोई गीत नहीं तेरा है कहीं पर गाता।
क्यों बार बार जल प्रलय लेकर आते तुम?
कुछ तो समझो बेघर इंसान की परेशानी!
क्यों नाराज हो मोरे……
सूबेदार कृष्णदेव प्रसाद सिंह,
नासिक (महाराष्ट्र)/
जयनगर (मधुबनी)बिहार
गीत : काली घटा छाई | घटा शायरी Ghata Shayri | घटाओं पर शायरी
गीत : काली घटा छाईऊपर जब काली घटा छाई,
नीचे मौसम ने ली अंगड़ाई।
वन में नाचने लगा है मोर,
जैसे ही मोरनी नजर आई।
ऊपर जब काली……
साजन को सजनी याद आई।
आंखों में सुंदर सपना आया,
जैसे मखमली चुनरी लहराई।
ऊपर जब काली……….
घटा के लिए जग है पागल,
गूंज उठी खुशी की शहनाई।
घटा का संदेश सबको प्यारा,
एक दूसरे को दे रहे हैं बधाई।
ऊपर जब काली…….
घटा रचती सदा नई कहानी,
चारों ओर अनुराग की लड़ाई।
प्यासी धरती पर छाई जवानी,
जग से जैसे गर्मी की बिदाई।
ऊपर जब काली………
प्रमाणित किया जाता है कि यह रचना स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसका सर्वाधिकार कवि/कलमकार के पास सुरक्षित है।
सूबेदार कृष्णदेव प्रसाद सिंह,
नासिक (महाराष्ट्र)/
जयनगर (मधुबनी) बिहार
खेत खलिहान, मस्त किसान,
कविता--बादल
दूर देश से आते बादल
गरज गरज डराते बादल।
झम झम जल बरसाते बादल
ढेरों खुशियां लाते बादल।
जब वर्षा का मौसम आता
घुमण घुमण कर छाते बादल।
काले काले घने मेघों से
शुद्ध जल बरसाते बादल।
ऊंचे ऊंचे बस उड़ते जाते
सबकी प्यास बुझाते बादल।
देकर धरती को हरियाली
सबको खुश कर जाते बादल।
झम झम नाचे देख मयूरा
झूम झूम गहराते बादल।
बादलों पर ही परियां रहती
सबके मन को भाते बादल।
कविता मोटवानी
बिलासपुर छत्तीसगढ़
बड़े भयंकर, काले काले,ये बादल बादल पर कविता | बादल पर शायरी
एक प्रेमी ऐसा भी
बड़े भयंकर, काले काले,ये बादल,
बिजली-तूफां लेकर चलते ये बादल।
नहीं चाहते प्रणय बीच कोई आये,
जभी बरसते हैं धरती पर ये बादल।।
बड़ा अनोखा प्रेम है धरती बादल का,
काजल की डिबिया से, जैसे काजल का।
तन्हा रहने की पीड़ा,ये सहते हैं,
तभी गरजते जोर जोर से ये बादल।।
दूर दूर तक कितने रहते हैं दोनों,
छूने तक को, सदा तरसते हैं दोनों।
आंखों में जब अस्रू,छलक कर आते हैं,,
बूंद बूंद कर रही छिरकते,ये बादल।।
अग्नि की बेदी पर, कसमें खाई हैं,
हरे -भरे खुशहाल रखेंगे धरती को ।
इजहारे मोहब्बत वर्षा ऋतु में करते हैं,
हर्ष, हरित चादर अर्पित कर ये बादल।।
एक प्रेमी ऐसा भी है,इस दुनिया में,
रवी-कवी की नजरों से भी छुपा हुआ।
अस्रू से सींचता है यह अपनी धरती को,
मजनू-रांझा से है बढ़कर ये बादल।।
ओमप्रकाश
अंशिका श्रीवास्तव |
बादल पर कविता | बादल पर आपकी : रिमझिम लाना बादल मेरे घर आना बादल
रिमझिम लाना बादल
मेरे घर आना बादल,
तरसी मेरी अखियाँ
उस बूंद के लिए,
प्यासी ! सारी दुनियाँ
उस नीर के लिए।
रिमझिम लाना बादल,
मेरे घर आना बादल।
बर्फ़ीले नीर टपकना,
बादल तुम जरूर आना,
काली घनघोर घटा छा जाना
धरा पर हरियाली लाना।
बेजान सी हुई धरा,
नीर से हृदय उसका !
अभी नहीं भरा।
शिथिल हुई उसकी काया
अभी तक तूने!
नीर न टपकाया।
उमड़ी नहीं तुझमें माया,
रिमझिम ! तू क्यों नहीं लाया।
रिमझिम लाना....2
स्वरचित कविता
अंशिका श्रीवास्तव
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