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बाहर तुफान आनेवाला है भीतर के बवंडर को सम्भालिए– आंधी तूफान बवंडर ज्वालामुखी शायरी

Toofan Shayari in Hindi तूफान पर शायरी

बाहर तुफान आनेवाला है भीतर के बवंडर को सम्भालिए
अलविदा बैसाखी प्रणाम
दिल की किताब उसने पढ़ी ही नहीं
इसलिए वो मौत का सौदागर हो गया
नशा ऐसा चढ़ा तरक्की पाने की उसे
वो भूल गया वह एक अदना इंसान है
बात उसकी क्या करना जो केवल मन की बात करे
हम दिलवालों को उसकी भाषा समझ नहीं आती!
लता प्रासर
cyclone image चक्रवाती तूफान फोटो

आने दो अंधड़ तुफान को भीतर ज्वालामुखी फूटा है तूफान शायरी

बैसाखी सुप्रभात
कुछ घड़ी बैठ लम्बी सांसे भरकर कह दो
ओ हवा हमको तुमसे प्यार है बोलो ना कह दो
कानन में आनन को ढूंढ़ो जिसने उसे हराया
बीज बीज में सोया वृक्ष मिलने को मिट्टी से कह दो
हंसी ओढ़कर चलती हूं दिल घबराये ना इसलिए
खुद को छोड़कर चलती हूं आंखें डबडबाए ना इसलिए
दफ़न सीने में कर बैठी घूंट खून का कतरा कतरा
ख़तरा ख़तरा सुन डरती हूं कोई कतराए ना इसलिए!
लता प्रासर

मौसम संग अंगड़ाइयां लेते रहिए मुस्कुराते रहिए - मौसम शायरी

बैसाखी सुप्रभात
संयम समरस संगम सहस साथ जीवन का
देखकर मुस्कुरा देना हथियार जीवन का
नमी अंदर सहेज हरियाली खिलखिला उठती
सत्ताईस नक्षत्रों सा चक्र घूमा वैवाहिक जीवन का
सुनती रही गीतकार शैलेन्द्र और बोल हैं लता के
एक दिन आयी एक ऐसी ही घड़ी कुछ बता के
सच हुआ साबित फिल्मी नाम जीवन में उतर आया
सत्ताईस वर्ष पहले लग्न हुआ शैलेन्द्र और लता के!
लता प्रासर

बाहर की तपिश से भीतर की तपिश जोड़े रखिए

बैसाखी सुप्रभात

क़फ़स में कैद है इस क़दर आदमी
बना गया है वैद इस क़दर आदमी
गुम़ हुआ जाता है होशो-हवास आदमी का
सैद-ए-अफ़्गन की जद में है इस क़दर आदमी!
लता प्रासर

रोहिणी नक्षत्र का स्वागत

बैसाखी सुप्रभात
अलबेला बावरा अलमस्त
वक्त को दे न सका शिकस्त
तड़प रहा घर के कैदखाने में
सपने होने लगे अब अस्त
सुख के रंग बिखर गये
दुख के रंग संवर गये
ऐसा किया तमाशा
जहर घूंट के पी गये!
लता प्रासर

खुशी के ताप से संताप भगाएं थोड़ा मुस्कुराएं

बैसाखी सुप्रभात
ओह आंसू से आंसू मिलाए जा रहे हैं
ग़म है इतना खुद को भुलाए जा रहे हैं
बचना बचाना ही है बहुत बड़ी चुनौती
दुष्कर है लेकिन खुशियां पिलाए जा रहे हैं!
लता प्रासर
बाहर की तपिश से भीतर की तपिश जोड़े रखिए
बैसाखी सुप्रभात
क़फ़स में कैद है इस क़दर आदमी
बना गया है वैद इस क़दर आदमी
गुम़ हुआ जाता है होशो-हवास आदमी का
सैद-ए-अफ़्गन की जद में है इस क़दर आदमी!
लता प्रासर
कभी धूप कभी छांव का आनन्द लीजिए मुस्कुरा दीजिए
अलविदा कृतिका नक्षत्र नमस्कार
बोल कलम तुझे क्या कहना है
क्या डटकर सदा तुझे चलना है
कुछ कह ऐसा मनोबल जाग उठे
अधिकारों की रक्षा तुझे करना है!
लता प्रासर
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