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प्यारे नन्हें बेटे को कविता का सारांश, भावार्थ, व्याख्या, एवं प्रश्न उत्तर

प्यारे नन्हें बेटे को कविता के कवि का परिचय


‘प्यारे नन्हें बेटे को’ इस कविता के कवि का नाम विनोद कुमार शुक्ल है। विनोद कुमार शुक्ल का जन्म 1 जनवरी, 1937 ई. को छत्तीसगढ़ के राजनान्द गांव में हुआ था। उनका स्थाई निवासस्थान रायपुर, छत्तीसगढ़ में है। उन्होंने इन्दिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर और निराला सृजनपीठ में जून 1994 से जून 1996 तक अतिथि सलाहकार के पद पर कार्य किया। हिन्दी साहित्य में उत्कृष्ट योगदान के लिए उन्हें रघुवीर सहाय स्मृति पुरस्कार (1992), दयावती मोदी कवि शेखर सम्मान (1997) तथा साहित्य अकादमी पुरस्कार (1999) द्वारा विभूषित किया जा चुका है।

विनोद कुमार शुक्ल की रचनाएं

इनका पहला कविता संग्रह ‘लगभग जयहिन्द’ पहचान सीरीज के अन्तर्गत 1971 में प्रकाशित हुआ। इनकी प्रमुख रचनाएँ निम्न प्रकार से है:

कविता संग्रह–वह आदमी नया गरम कोट पहनकर चला गया विचार की तरह (1981), सबकुछ होना बचा रहेगा (1992), अतिरिक्त नहीं (2001)।

उपन्यास–नौकर की कमीज, खिलेगा तो देखेंगे, दीवार में एक खिड़की रहती थी। कहानी संग्रह–पेड़ पर कमरा, महाविद्यालय।

विशेष–इनके उपन्यासों का कई भारतीय भाषाओं में भी अनुवाद तथा ‘पेड़ पर कमरा’ कहानी संग्रह का इतालवी भाषा में अनुवाद। ‘नौकर की कमीज’ उपन्यास पर मणि कौल द्वारा फिल्म का निर्माण भी किया गया।

विनोद कुमार शुक्ल की काव्यागत विशेषताएं

विनोद कुमार शुक्ल ने लगभग सातवें या आठवें दशक आस पास में अपनी साहित्यिक यात्रा की शुरुआत की थी। कुछ ही दिनों बाद उनकी एक–दो कहानियां भी आईं, जिन्होंने अपनी साहित्यिक विशिष्टताओं के कारण लोगों का ध्यान तेजी से आकृष्ट किया। उन्होंने अपनी रचनाओं में अत्यन्त मौलिक और अद्वितीय सुंदरता के कारण बहुत कम समय में प्रसिद्धि प्राप्त कर ली। उनकी इन विशेषताओं की जड़ें संवेदना एवं अनुभूति में थी और यह हृदय के भीतर से उत्पन्न हुई विशेषताएं थी। उनकी यह अद्वितीय मौलिकता दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही थी उनकी कविता सामान्य बातचीत की मद्धिम लय और लहजे में शुरू ही नहीं खत्म भी होती है। हालांकि उनके समूचे साहित्य में आम आदमी की दिनचर्या में सामान्य रूप से व्यवस्थित तथा एक हद तक घिसे–पिटे शब्दों का भी प्रयोग हुआ है।

प्यारे नन्हें बेटे को कविता का सारांश - Pyare Nanhe Bete Ko Kavita Ka Saransh


प्यारे नन्हें बेटे को शीर्षक कविता का नायक छत्तीसगढ़ के  भिलाई का रहनेवाला एक सामान्य व्यक्ति है। एक दिन वह अपने प्यारे नन्हें बेटे को कंधे पर बिठाकर अपनी नन्हीं बिटिया से जो घर के भीतर बैठी हुई है पूछता है कि “बतलाओ आसपास कहां–कहां लोहा है।” वह अनुमान करता है कि उसकी नन्हीं बिटिया उसके इस साधारण से प्रश्न का उत्तर अवश्य दे देगी। वह बतलाएगी कि चिमटा, कल्छुल, कड़ाही और ज़ंजीरों में लोहा है। वह यह भी कहेगी कि दरवाज़े के सांकल (कुंडी) क़ब्ज़े, सिटकनी एवं दरवाज़े में धंसे हुए पेंच (स्क्रू) के अन्दर भी लोहा है। प्रश्न पूछने पर वह तुरंत ही उत्तर दे देगी। उसे तो यह भी याद आएगा कि लकड़ी के दो खम्भों पर बंधा हुआ तार भी लोहे से बनाया गया है जिस पर उसके बड़े भाई की गीली चड्डी है। वह यह कहना भी नहीं भूलेगी कि साइकिल और सेफ्टी पिन में भी लोहा होता है।

यह नन्ही सी बिटिया देखने में तो दुबली-पतली है लेकिन चतुर (बुद्धिमती) नन्हीं बिटिया को कवि शीघ्रातिशीघ्र बतला देना चाहता है कि इसके अतिरिक्त अन्य किन-किन चीजों में लोहा है जिससे उसे इसकी पूरी जानकारी प्राप्त हो जाए।

कवि अपनी नन्ही सी बिटिया को बड़ी सरलता से समझाना चाहता है कि फाबड़ा, कुदाली, टॅगिया, बसुला, खुरपी, बैलगाड़ी के चक्कों का पट्टा एवं बैलों के गले में काँसे की घंटी के भीतर की गोली में लोहा है। कवि की पत्नी उसे विस्तार से बतलाएगी कि बाल्टी, कुएँ में लगी लोहे की घिरनी, हँसियाँ और चाकू में भी लोहा है। भिलाई के लोहे की खानों में जगह-जगह लोहे के टीले हैं?

इस प्रकार कवि का विचार है कि वह पूरे परिवार के साथ मिलकर और सोच विचार कर लोहा की खोज करेगा। सम्पूर्ण घटनाक्रम को तह तक जाकर वह पता लगा पाएगा कि हर मेहनतकश आदमी लोहा है।

कवि का ऐसा मानना है कि प्रत्येक दबी-सतायी, बोझ उठाने वाली औरत लोहा है। लोहा क़दम-क़दम पर और हर एक गृहस्थी में सर्वव्याप्त है।

इस प्रकार अंततः कवि इस निष्कर्ष पर पहुँचता है कि हर मेहनतकश व्यक्ति लोहा है तथा हर दबी और कुचली, सतायी हुई तथा बोझ उठाने वाली औरत लोहा है। कवि का कहना है

कि हर वो आदमी
जो मेहनतकश लोहा है
हर वो औरत
दबी सतायी बोझ उठानेवाली, लोहा।

प्यारे नन्हें बेटे को कविता का भावार्थ - Pyare Nanhe Bete Ko Bhavarth


१. प्यारी बिटिया से पूछूंगा
“बतलाओ आसपास
कहाँ–कहाँ लोहा है”
चिमटा, करकुल, सिगड़ी
समसी, दरवाजे की साँकल, क़ब्ज़े, 
खीला दरवाज़े में फंसा हुआ’
वह बोलेगी झटपट।

व्याख्या

प्रस्तुत पंक्तियाँ “प्यारे नन्हें बेटे को” शीर्षक कविता से उद्धत है। इसके कवि विनोद कुमार शुक्ल हैं। उपरोक्त पंक्तियों में कवि  की उत्कृष्ट कल्पनाशीलता का दर्शन होता है। इसके अतिरिक्त इसमें जीवन का यथार्थ भी है। कवि अपनी नन्ही सी बिटिया से कुछ प्रश्न पूछना चाहता है। उसे पूर्ण विश्वास है कि वह उसके प्रश्नों के सही उत्तर अवश्य देगी।

कवि अपनी बिटिया से यह प्रश्न पूछता है कि आस पास में लोहा कहाँ–कहाँ पर है। वह तुरंत उसका उत्तर देगी। वह कहेगी कि लोहा चिमटा, कलछुल, कड़ाही एवं संड्सी में है। वह यह भी कहेगी कि लोहा दरवाज़े की सॉकल (कुंडी), कब्जे तथा पेंच में भी है। वह कवि के प्रश्न का उत्तर शीघ्र दे देगी।

उपरोक्त पंक्तियों में कवि के कहने का आशय यह है कि वह अपनी बिटिया को लोहा के महत्व के बारे में जानकारी देना चाहता है क्योंकि उसकी दृष्टि में लोहा मानव जीवन की एक अमूल्य निधि है। वह उसकी उपयोगिता से अच्छी तरह से परिचित है।

प्यारे नन्हें बेटे को कविता की व्याख्या


२. इसी तरह
घर भर मिलकर
धीरे–धीरे सोच सोचकर
एक साथ ढूँढेंगे
कहा–कहाँ लोहा है–

उपरोक्त काव्यांश “प्यारे नन्हें बेटे को” शीर्षक कविता से उद्धृत है। इसके कवि विनोद कुमार शुक्ल हैं। इन पंक्तियों में कवि लोहे की खोज सपरिवार मिलकर करना चाहता है। कवि का कथन है कि लोहा की खोज वह एक साथ मिलकर धीरे–धीरे करेगा। घर के सभी सदस्यों के साथ वह इस महत्वपूर्ण को कार्य करेगा। इन पंक्तियों में लोहा खोजने हेतु उसकी उत्कंठा स्पष्ट दिखाई देती है।

३. “हर वो औरत दबी सतायी
बोझ उठाने वाली लोहा !
जल्दी–जल्दी मेरे कंधे से
ऊँचा हो लड़का
लड़की का हो दूल्हा, प्यारा

प्रस्तुत पंक्तियां “प्यारे नन्हें बेटे को” शीर्षक कविता से उद्धत है। इसके रचनाकार विनोद कुमार शुक्ल हैं। लेखक ने इन पंक्तियों में मेहनतकश, दबी-दबायी बोझा ढोने वाली औरत के प्रति गहरी संवेदना और सहानुभूति व्यक्त की है तथा उसके सुन्दर भविष्य की कामना की है।

इन पंक्तियों में कवि का कहना है कि प्रत्येक वह औरत जो दबी, और सताती हुई है तथा बोझा उठाने वाली है, अर्थात् परिश्रमी है, कठिन कार्यों में लगी हुई है, वह लोहा है। बिटिया का बाप प्यारे नन्हें बेटे को कंधे पर बैठा कर यह कल्पना कर रहा है–कुछ दिनों के बाद उससे भी अधिक ऊँचा और लम्बा हो जाएगा। बिटिया के लिए प्यारा दुल्हा मिल जाएगा।

कवि के कहने का आशय यह है कि हर वो औरत जो दबी-कुचली तथा बोझा ढोने वाली है, कठिन परिश्रम करती है वह लोहा के समान कठोर, उपयोगी तथा सबको प्रिय होती है। कविता में बिटिया का पिता कल्पना करता है कि कुछ दिनों बाद उसका नन्हा बेटा बड़ा हो जाएगा उससे अधिक ऊँचा और लम्बा हो जाएगा। वह (नन्हा बेटा) अपने पिता से भी अधिक ऊँचे पद पर होगा।

उसकी प्यारी बिटिया भी सयानी हो जाएगी तथा उसके लिए योग्य और सुन्दर दूल्हा मिल जाएगा। वह मधुर कल्पना में डूबा हुआ है।

Pyare Nanhe Bete Ko Ka Question Answer


प्यारे नन्हें बेटे को लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न १.

विनोद कुमार शुक्ल की कविता का नाम क्या है

उत्तर : प्यारे नन्हें बेटा को।

प्रश्न २.

‘प्यारे नन्हें बेटे को’ कविता में लोहा किसका प्रतीक माना गया है?

उत्तर : कर्म का।


प्रश्न ३.

‘प्यारे नन्हें बेटे को’ कविता किस शैली में लिखी गई है?

उत्तर : वार्तालाप शैली में।

प्रश्न ४.

विनोद कुमार शुक्ल किस विश्वविद्यालय में एसोशिएट प्रोफेसर रहे हैं?

उत्तर : इन्दिरा गाँधी कृषि विश्वविद्यालय।

प्रश्न ५.

विनोद कुमार शुक्ल निराला सृजनपीठ में जून 1994 से जून 1996 तक किस पद पर रहे?

उत्तर : अतिथि साहित्यकार के पद पर।

प्यारे नन्हें बेटे को प्रश्न एवं उनके उत्तर


प्रश्न १.

‘बिटिया’ से क्या सवाल किया गया है?

उत्तर : बिटिया से उसके पिता द्वारा यह सवाल किया गया है कि बतलाओ, आसपास लोहा कहां कहां है।

प्रश्न २

“बिटिया’ कहाँ–कहाँ लोहा पहचान पाती है?

उत्तर : बिटिया अपने आसपास उपस्थित लोहे को पहचान पाती है। उसके आसपास चिमटा, कल्छुल, अँगीठी, सँड़सी, दरवाज़े की साँकल, कच्चे उसमें लगी कीलें आदि हैं, जिनमें वह लोहे को पहचानती है।

प्रश्न ३.

कवि लोहे की पहचान किस रूप में करते हैं? यही पहचान उनकी पत्नी किस रूप में कराती है?

उत्तर : कवि लोहे की पहचान अपने आसपास की वस्तुओं के माध्यम से कराते हैं। उनके आसपास फावड़ा, कुदाली, टॅगिया, बसूला, खुरपी, बैलगाड़ी के पहिए पर चढ़ा हुआ पट्टा, बैलों के गले में बँधी घंटी के अन्दर की गोली आदि वस्तुएँ हैं, जिनके द्वारा वो लोहे की पहचान कराते हैं।

और यही पहचान उनकी पत्नी अपने आसपास उपलब्ध वस्तुओं से कराती हैं। वह अपने आसपास उपलब्ध बाल्टी, कुएँ की घिरनी, छाते की डंडी, उसके पुर्जे, हँसिया और चाकू के माध्यम से लोहे की पहचान कराती है।

प्रश्न ४.

लोहा क्या है? इसकी खोज क्यों की जा रही है?

उत्तर : पाठ में भिलाई बैलाडिला, छत्तीसगढ़ राज्य में है। यह स्थान लोहे की खदानों के लिए गांव-गांव प्रसिद्ध है। इस आधार पर कह सकते हैं कि लोहा एक धातु है जो अपनी मजबूती, बहुउपयोगिता और सर्वव्यापकता के लिए प्रसिद्ध है। यह हमारे जीवन तथा संबंधों में पूरी तरह से घुल–मिल गया है। यह हम मनुष्यों के जीवन का मूल आधार है, इसलिए इसकी खोज की जा रही है। एक अन्य अर्थ में लोहा प्रतीक के रूप में है जो कर्म का प्रतीक है।

प्रश्न ५.

“इस घटना से उस घटना तक”–यहाँ किन घटनाओं की चर्चा है?

उत्तर : “प्यारे नन्हें बेटे को” शीर्षक कविता में “इस घटना से उस घटना तक” उक्ति का प्रयोग दो बार किया गया है।

पिता अपनी नन्हीं सी बिटिया से पूछता है कि आसपास में लोहा कहाँ–कहाँ है। पुनः वह उसे लोहा के विषय में जानकारी देता है, उसकी माँ भी उसे समझाती है। फिर वह सपरिवार लोहा को ढूँढ़ने का विचार करता है। अत: बेटी को सिखलाने से लेकर ढूँढ़ने का अन्तराल–” इस घटना से उस घटना तक” है। यह सब वह कल्पना के संसार में कर रहा है। पुनः जब उसकी बिटिया बड़ी हो जाती है, तो वह उसके विवाह के विषय में, उसके लिए एक प्यारा सा दूल्हा के लिए सोचता है। यहाँ पर पुनः कवि–”इस घटना से उस घटना तक” उक्ति को पुनरोक्ति करता है।

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