Ticker

6/recent/ticker-posts

पुत्र वियोग कविता का सारांश भावार्थ व्याख्या एवं प्रश्नों के उत्तर

पुत्र वियोग कविता का सारांश भावार्थ व्याख्या एवं प्रश्नों के उत्तर

पुत्र वियोग कविता के कवित्री का नाम सुभद्रा कुमारी चौहान है। यह कविता सुभद्रा कुमारी चौहान के प्रतिनिधि काव्य संकलन मुकुल से ली गई। प्रस्तुत कविता पुत्र वियोग कवयित्री मां के द्वारा लिखी गई है। यह निराला की सरोज स्मृति के बाद हिंदी में एक दूसरा शोक गीत है।

पुत्र वियोग कविता का सारांश

पुत्र वियोग – सुभद्रा कुमारी चौहान
किसी भी मां के लिए पुत्र का वियोग बड़ी पीड़ादायक होती है। सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा लिखी गई कविता पुत्र वियोग में अपने पुत्र के असामयिक निधन पर एक मां द्वारा व्यक्त की गई उसके हृदय की पीड़ा का उत्कृष्ट वर्णन हुआ है। यहां एक वियोगी मां अपने पुत्र वियोग में अत्यंत भावुकता व्याकुल हो उठती है। उसके हृदय की अंतर्चेतना को पुत्र का अचानक बिछोह झकझोर देता है। इस कविता में पुत्र के अप्रत्याशित रूप से असमय निधन से मां के हृदय में अपने संताप का हृदय विदारक चित्रण हुआ है। एक मां के पीड़ित हृदय के शोक का एक साथ धीरे धीरे गहराता और क्रमशः ऊपर की आरोहण करता भाव उत्कंठा अर्जित करता जाता है। और कविता के अंतिम छंद में पारिवारिक रिश्तों के बीच मां बेटे के संबंध को एक विलक्षण आत्म-प्रतीति में स्थायी परिवर्तित करता है। इस कविता में मां की ममता की अभिव्यक्ति का चरमोत्कर्ष है।

कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान अपने पुत्र के असामयिक निधन से अत्यंत विकल हो गई है। उसे लगता है कि उसका प्रिय खिलौना कहीं खो गया है। उसने अपने बेटे के लिए हर प्रकार के कष्ट उठाए तरह तरह की पीड़ाओं को झेलीं। उसे कुछ हो न जाय इसलिए हर समय उसे गोद में लिए रहती थी। उसे सुलाने के लिए लोरियां गाकर और थपकी देकर सुलाया करती थी। मंदिर में पूजा अर्चना किया, मिन्नतें भी मांगी फिर भी वह अपने बेटे को मृत्यु से नहीं बचा सकी। वह विवश है नियति के आगे किसी का वश नहीं चलता। कवयित्री की एकमात्र इच्छा यही है कि पलभर के लिए ही सही उसका बेटा उसके पास आ जाए या कोई व्यक्ति उसे लाकर उससे मिला दे। कवयित्री उसे अपने सीने से चिपका लेना चाहती है और उसका सिर सहला-सहलाकर उसे समझाती है। कवयित्री की संवेदना उत्कर्ष पर पहुंच जाती है शोक के सागर में डूबती-उतरती बिछोह की पीड़ा असहनीय है। वह बेटा से कहती है कि भविष्य में वह उसे छोड़कर कभी नहीं जाए अपने मृत बेटे को इस तरह की बातें कहना उसकी असामान्य मनोदशा को उजागर करती है। संभवतः उसने अपनी जीवित संतान को उक्त बातें कही हो।

यह कविता सुभद्रा कुमारी चौहान के प्रतिनिधि काव्य संकलन मुकुल से ली गई। प्रस्तुत कविता पुत्र वियोग कवयित्री मां के द्वारा लिखी गई है। यह निराला की सरोज स्मृति के बाद हिंदी में एक दूसरा शोक गीत है।

अपने पुत्र के असमय निधन के पश्चात पीड़ा से तड़पते रह गए मां के हृदय के दारुण शोक की ऐसी सादगी भरी अभिव्यक्ति है जो निर्वैयक्तिक और सार्वभौम होकर अमिट रूप से काव्यतत्व अर्जित कर लेती है। उसमें एक मां के शोक का एक साथ धीरे-धीरे गहराता और ऊपर-ऊपर आरोहण करता हुआ भाव उत्कटता अर्जन करता जाता है तथा कविता के अंतिम छंद में पारिवारिक रिश्तों के बीच मां-बेटे के संबंध को एक विलक्षण आत्म-प्रतीति में स्थायी परिणति पाता है।

पुत्र वियोग प्रश्न उत्तर | Putra Viyog Question Answer

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न १.

कवयित्री का खिलौना क्या है ?

उत्तर : कवयित्री का खिलौना उसका पुत्र ( बेटा ) है। बच्चों को खिलौना बहुत प्रिय होता है, जिस प्रकार वह उनकी सर्वोत्तम प्रिय वस्तुओं में से होती है। उसी प्रकार कवयित्री के लिए भी उसका पुत्र उसके जीवन का सर्वोत्तम उपहार है। इसलिए वह कवयित्री का खिलौना है।

प्रश्न २.

पुत्र के लिए माँ क्या-क्या करती है ?

उत्तर : अपने पुत्र के लिए माँ निजी सुख-दुख तक का त्याग कर देती है। वह हर सुख-सुविधा को भूला देती है। उसके पास अपनी सुख-सुविधा के विषय में सोचने का समय ही नहीं रहता। वह पुत्र के स्वास्थ्य एवं सुरक्षा का पूरा ध्यान रखती है। पुत्र को ठंड न लग जाए या बीमार न पड़ जाए, इसके लिए उसे हमेशा गोद में लेकर उसका मनोरंजन और लालन-पालन करती रहती है। उसे लोरी गीत सुनाकर सुलाती है। उसके लिए मंदिरों में जा जाकर पूजा-अर्चना किया करती है और तरह तरह से मन्नतें माँगती है।

प्रश्न ३.

माँ के लिए अपना मन समझाना कब कठिन है और क्यों ?


उत्तर : किसी माँ के लिए अपने मन को समझाना तब कठिन हो जाता है, जब वह अपना बेटा खो देती है। बेटा माँ की बहुमूल्य धरोहर होता है। माँ की आँखों का तारा होता है। किसी भी माँ का सर्वस्व अगर क्रूर नियति द्वारा उससे छीन लिया जाता है, अर्थात उसके बेटे की मृत्यु हो जाती है तो माँ के लिए अपने मन को समझाना बहुत कठिन होता है।

प्रश्न ४.

पुत्र को ‘छौना’ कहने से क्या भाव छुपा है, उसे उद्घाटित करें।


उत्तर : ‘छौना’ शब्द का अर्थ होता है हिरण आदि पशुओं का नन्हा सा बच्चा। ‘पुत्र वियोग’ शीर्षक कविता में कवयित्री ने ‘छौना’ शब्द का प्रयोग अपने प्रिय पुत्र के लिए किया है। हिरण या बाघ का बच्चा बड़ा भोला तथा सुन्दर दिखता है। इसके अतिरिक्त वह बड़ा चंचल तथा तेज भी होता है। अतः कवयित्री द्वारा अपने बेटा को छौना कहने के पीछे यह विशेष अर्थ भी हो सकता है।

प्रश्न ५.

‘पुत्र वियोग’ कविता का भावार्थ संक्षेप में लिखिए।


उत्तर : ‘पुत्र वियोग’ शीर्षक कविता में कवित्री ने अपने बेटे की मौत के बाद एक शोकाकुल माँ के मन में उठनेवाले अनेकों प्रकार के निराशाजनक तथा असंयमित विचार तथा उससे उपजी विषादपूर्ण मन:स्थिति को कुशलता से उद्घाटित किया है। कवयित्री अपने बेटे के आकस्मिक तथा अप्रत्याशित निधन से मानसिक रूप से अत्यधिक अशांत है। वह अपनी विगत स्मृतियों का स्मरण कर उद्विग्न है। एक माँ के हृदय में उठनेवाले झंझावात की वह स्वयं भुक्तभोगी है। कविता में कवयित्री द्वारा अपने पुत्र से वियोग होने पर उत्पन्न पीड़ा का नितांत मनोवैज्ञानिक तथा स्वाभाविक चित्रण किया गया है।

इस कविता में कवयित्री ने अपने बेटे की मौत से उपजे दुखिया माँ के शोकपूर्ण उद्गारों का स्वाभाविक एवं मनोवैज्ञानिक विश्लेषण किया है। ऐसी युक्तियुक्त पूर्ण एवं मार्मिक प्रस्तुति अन्यत्र दुर्लभ है। महादेवी वर्मा की एक मार्मिक कविता इस प्रकार है, जो माँ की ममता को प्रतिबिंबित करती है, “आँचल में है दूध और आँखों में पानी।”

प्रश्न ६.

पुत्र वियोग कविता को पढ़ने पर आपके मन पर क्या प्रभाव पड़ा, उसे लिखिए ?

उत्तर : पुत्र वियोग’ कविता में कवयित्री ने अपने बेटा की असामायिक मृत्यु तथा उससे उपजे विषाद की वास्तविक अभिव्यक्ति की है।

इस कविता को पढ़कर मेरे मन में भी कुछ इसी प्रकार के मनोभावों का आना स्वाभाविक है। पुत्र वियोग कविता को पढ़कर किसका हृदय संवेदना से नहीं भर उठेगा? कौन कवयित्री के शोक की गहराई में गए बिना रहेगा।

एक माँ का अपने बेटे की दिन-रात देखभाल करना, बीमारी, ठंड इत्यादि से सुरक्षा के लिए उसे गोदी में खिलाते रहना, स्वयं रात में जागकर उसे लोरी गीत सुनाकर सुलाना, अपने दाम्पत्य जीवन की खुशी को संतान पर केन्द्रित करना, अंत में नियति के क्रूर-चक्र की चपेट में बेटा की मौत ! इन सारे घटनाक्रमों से मैं मानसिक रूप से अशांत हो गया हूं। मुझे ऐसा अनुभव हुआ जैसे यह त्रासदी मेरे साथ हुई। कविता में कवयित्री ने अपनी सम्पूर्ण संवेदना को उड़ेल दिया है, मन में करुणा उमड़ पड़ी तथा असह्य दर्द की अनुभूति होती है।

प्रश्न ७.

कवयित्री स्वयं को असहाय और विवश क्यों कहती हैं ?


उत्तर : अपने पुत्र की असमय मृत्यु हो जाने के कारण कवयित्री को आगे का सहारा नहीं दिखता है इसलिए वह अपने को असहाय और विवश कहती है। जब उसका पुत्र उसके साथ था तो वह उस खिलौने की भाँति उसी में खोयी रहती थी जिस प्रकार सभी बच्चे की माँ अपने बच्चों का तरह-तरह से ध्यान रखती है। कहीं उसे सर्दी न लग जाए। कहीं उसे लू न लग जाए। कभी उसे लोरियाँ गाकर सुनाती, कभी थपकी देकर इसमें माँ का मन लगा रहता था। परन्तु पुत्र के बिछड़ने के साथ ही वह असहाय हो जाती है और केवल उसके वियोग में आँसू बहाने को विवश हो जाती है।

और पढ़ें 👇

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ